Saturday, November 16, 2024
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हिंदू की हवेली गिराने का था प्लान, पूरी जामा मस्जिद पर ही KC ब्रदर्स ने फेर दिया था हाथ: आजादी के बाद की घटना, किताब में छपी कहानी

न्यायालय में प्रतिवादी ने उत्तर दिया - "जिस इमारत को मुसलमान मस्जिद कह रहे हैं, वह एक हिन्दू मंदिर है और इस कारण मुसलमानों का इस भवन पर कोई अधिकार ही नहीं होता। अतएव 'K.C. ब्रदर्स' की हवेली गिराने का प्रश्न ही नहीं उठता।"

अमदावाद के प्राचीन क्षेत्र को ‘भद्र’ कहा जाता है। गुजरात के स्कूली-सिलेबस में पढ़ाया जाता है कि यहाँ एक किले की स्थापना अहमद शाह-प्रथम ने की थी, जिसके बाद से वह ‘भद्र के किले’ के तौर पर जाना गया और समग्र कोट-विस्तार ‘भद्र’ के नाम से ही पहचाना जाने लगा। लेकिन हम सभी जानते हैं कि ‘भद्र’ माँ काली का ही एक रूप है, ऐसे में प्रश्न उठता है कि अहमदशाह जैसा धर्मांध शासक इतनी मेहनत से किला बनवा कर उसका नाम हिन्दू देवी के नाम पर क्यों रखेगा?

दूसरा, ‘भद्र’ एक संस्कृत शब्द भी है जिसका अर्थ ‘मंगल’ ‘सुशील’ ‘अच्छा’ इस प्रकार से होता है तो क्या यह संभव है कि अहमदशाह ने अपने किले का नाम संस्कृत डिक्शनरी से ढूंढ कर रखा होगा?

जिस किसी ने भी पुराने अमदावाद का एक बार भी दौरा किया है, उसने यह अनुभव किया ही होगा कि किसी भी अन्य नगर की तुलना में अमदावाद में मस्जिदें ही मस्जिदें हैं। लगभग प्रत्येक सौ गज के अंतर में एक मकबरा या मस्जिद है। सोचने वाली बात है कि आज अमदावाद में मुस्लिमों की जनसंख्या 15 प्रतिशत के आसपास है और अहमदशाह के समय तो यह संख्या अत्यंत ही अल्प रही होगी। तो यह कैसे संभव है कि इतने अल्पांश वर्ग के लिए अहमदशाह ने मस्जिदें ही मस्जिदें बनवा दीं!

उत्तर बहुत स्पष्ट है कि आज का भद्र प्राचीन समय में मंदिरों से भरपूर ‘मंगलप्रद’ विस्तार था। यहाँ की इमारतें जिसे मुस्लिम आज अपना कह रहे हैं, वे सभी प्राचीन राजपूत मंदिर एवं राजप्रासाद थे। यहाँ जामा मस्जिद के नाम से पुकारी वाली प्रमुख मस्जिद ही भद्रकाली का मुख्य मंदिर था। वहीं इस नगर की आराध्य-देवी का स्थान था।

भद्र का किला, जामा मस्जिद, नगर के दरवाजें, आदि हिन्दू शैली में ही बने हुए हैं। अहमद शाह ने अपने कार्यकाल में इन तमाम हिन्दु स्थानों को अपवित्र किया और फिर उस पर कब्ज़ा कर लिया। भद्र विस्तार में खुदाई के समय बहुत बार विष्णु, शिव, महिषासुरमर्दिनी एवं लक्ष्मी, गणेश की मूर्तियाँ प्राप्त हो चुकी हैं। इसलिए बहुत आसानी से यह सिद्ध हो सकता है कि ये इमारतें, ये ढाँचे कभी मुस्लिम शासकों द्वारा निर्मित किए ही नहीं गए, केवल हथिया कर उपयोग में, व्यवहार में ले लिए गए।

बहुत सी घटनाओं से लगता है कि मुस्लिमों को भी इस बात की पूरी जानकारी है। इसी सम्बन्ध में अमदावाद की जामा मस्जिद से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना 1964-65 में घटी। मस्जिद के पास ही ‘कांतिचंद्र ब्रदर्स’ नाम की एक पुरानी दुकान थी। दुकान की स्थिति को देखकर ‘K.C. ब्रदर्स’ ने उसे गिरवा कर वहाँ एक ऊँची हवेली बनवा दी।

पुरुषोत्तम नागेश ओक’ अपनी पुस्तक ‘भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें’ में लिखते हैं कि मस्जिद के निकट ही एक हिन्दू की ऊँची हवेली देख कर मुस्लिमों को विवाद का एक नया अवसर मिल गया। मस्जिद के ट्रस्टी ने ‘K.C. ब्रदर्स’ की हवेली को ढहा देने के उद्देश्य से कोर्ट में दावा दाखिल किया।

पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें का एक पृष्ठ

चिंतित ‘K.C. ब्रदर्स’ अपनी हवेली बचाने के लिए यहाँ-वहाँ भटकने लगे। तभी किसी ने उन्हें ‘पुरुषोत्तम नागेश ओक’ का नाम बताया जोकि एक इतिहासज्ञ हैं और उनके कथनानुसार अमदावाद की जामा मस्जिद प्राचीनकाल में भद्रकाली का मंदिर था।

‘K.C. ब्रदर्स’ ने ओक को अपनी समस्या से अवगत करवाया। और फिर ओक के सुझाव पर ‘K.C. ब्रदर्स’ ने न्यायालय में यह प्रतिवादी उत्तर दिया – “जिस इमारत को मुसलमान मस्जिद कह रहे हैं, वह एक हिन्दू मंदिर है और इस कारण मुसलमानों का इस भवन पर कोई अधिकार ही नहीं होता। अतएव ‘K.C. ब्रदर्स’ की हवेली गिराने का प्रश्न ही नहीं उठता।”

तब एक हैरान कर देने वाली बात हुई कि छोटी-छोटी बातों पर दंगे भड़का देने वाले मुस्लिमों ने ‘K.C. ब्रदर्स’ का वह उत्तर पढ़ते ही अपना दावा वापस ले लिया। शायद उन्हें यह डर लग गया कि यदि केस आगे बढ़ा तो हवेली को गिराना तो दूर मस्जिद ही उनके हाथों से निकल जाएगी।

आज जब देश में ज्ञानवापी, कुतुबमीनार एवं ताजमहल पर एक नए सिरे से चर्चा हो रही है, ऐसे में यह बहुत स्पष्ट है कि भारतवर्ष के प्रत्येक नगर की लगभग प्रत्येक छोटी-बड़ी ऐतिहासिक इमारतें जिसे मुस्लिम उपयोग में ले रहे हैं, वें मध्यकालीन हिन्दू, राजपूत एवं क्षत्रियों द्वारा बनाए गए मंदिर, दुर्ग एवं राजमहल ही थे। जिहादी आक्रांताओं ने पहले इस पर कब्ज़ा किया फिर बाद में मस्जिदों एवं मकबरों में बदल दिया।

इस समय हिन्दुओं को चाहिए कि वे किसी भी तथाकथित मुस्लिम इमारत या भवन को शंका की दृष्टि से ही देखें। उसके विषय में पढ़ें, खोज करें और जागृति फैलाएँ। आज नहीं तो कल सच सामने आ ही जाएगा लेकिन तब तक मुस्लिमों को भी यह समझ आ जाएगी कि अब वे बहुत अधिक दिनों तक इस्लामी-सुप्रीमेसी के ढींगे मार कर हिन्दुओं को परेशान नहीं कर सकते। यदि उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें इसकी बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है।

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Abhishek Singh Rao
Abhishek Singh Rao
कर्णावती से । धार्मिक । उद्यमी अभियंता । इतिहास एवं राजनीति विज्ञान का छात्र

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