Sunday, December 22, 2024
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पंजाब से नहीं लिया ज्ञान, आपसी खींचतान से छत्तीसगढ़-कर्नाटक कॉन्ग्रेस हलकान: दिल्ली दरबार में पहुँचे CM बघेल, सिंहदेव भी पहुँचे बिगाड़ने खेल

संकटमोचक को कॉन्ग्रेस में दरकिनार कर कठपुतली को बैठाने की परंपरा रही है। इससे हाईकमान की पूछ और महत्व बना रहता है और राज्य में भी चेक-बैलेंस का खेल होता रहता है। हालाँकि, इस खेल में पंजाब विधानसभा चुनाव जैसे हादसे भी हो जाते हैं और यह बात हाईकमान को भी अच्छी तरह पता है।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) और कर्नाटक (Karnataka) में अगले साल यानी 2023 में विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2023) होने हैं। छत्तीसगढ़ में कॉन्ग्रेस (Congress) सत्ता में है, जबकि कर्नाटक में भाजपा (BJP)। लेकिन, जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है, इन दोनों राज्यों के कॉन्ग्रेस नेताओं में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान बढ़ता जा रहा है।

इधर छत्तीसगढ़ कॉन्ग्रेस के प्रतिस्पर्धी नेता हाईकमान से मिलने दिल्ली पहुँचे हैं तो उधर कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया (Siddaramaiah) और डीके शिवकुमार (DK Shivakumar) गुट के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। कॉन्ग्रेस की अंदरूनी सेहत कितनी ठीक है यह इन दोनों राज्यों के में राजनीतिक सरगर्मी वाले थर्मामीटर से मापा जा सकता है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) दिल्ली में हाईकमान से मिलने पहुँचे, तो सरकार में उनके सहयोगी मंत्री और प्रदेश की राजनीति में उनके प्रतिस्पर्धी त्रिभुवनेश्वर शरण सिंह देव (TS Singh Deo) भी दिल्ली प्रस्थान कर गए। दोनों आज रविवार (24 जुलाई 2022) को कॉन्ग्रेस हाईकमान से मुलाकात करेंगे।

छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव और कर्नाटक में डी शिवकुमार कॉन्ग्रेस के संकटमोचक रहे हैं। 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के दौरान टीएस सिंहदेव ने अपने राजनीतिक कौशल का इस्तेमाल करते हुए प्रदेश में कॉन्ग्रेस पर माहौल बनाया था। कॉन्ग्रेस को सत्ता में लाने में उनकी आदिवासी समर्थक छवि भी बहुत काम आई थी। यही नहीं, उन्होंने विधानसभा चुनावों में पार्टी का घोषणा-पत्र भी तैयार किया था।

वहीं, डीके शिवकुमार ने कई बार कॉन्ग्रेस को संकट से उबारा है। जब गुजरात में राज्‍यसभा चुनाव के दौरान कॉन्ग्रेस के विधायक एक-एक कर बीजेपी में शामिल होते जा रहे थे और अहमद पटेल की नैया डूबती नजर आ रही थी, तब डीके शिवकुमार सामने आए थे। उन्होंने कॉन्ग्रेस के बचे 44 विधायकों को बेंगलुरु के पास स्थित अपने ‘ईगलटन’ रिज़ॉर्ट ले गए। इसके बाद अहमद पटेल (Ahmed Patel) चुनाव जीते।

हालाँकि, संकटमोचक को कॉन्ग्रेस में दरकिनार कर कठपुतली को बैठाने की परंपरा रही है। इससे हाईकमान की पूछ और महत्व बना रहता है और राज्य में भी चेक-बैलेंस का खेल होता रहता है। हालाँकि, इस खेल में पंजाब विधानसभा चुनाव जैसे हादसे भी हो जाते हैं और यह बात हाईकमान को भी अच्छी तरह पता है।

छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव को स्थानीय लोगों का जबरदस्त समर्थन है, खासकर आदिवासी समुदाय उन्हें मसीहा की तरह मानता है। सिंहदेव ने अपनी ही सरकार द्वारा हसदेव वनों में कोयला खनन को दी गई मंजूरी का विरोध किया था और इसे आदिवासियों के लिए नुकसानदेह बताकर विरोध किया था। सीएम बघेल ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया, लेकिन राहुल गाँधी ने कैंब्रिज में अपने भाषण के दौरान इस पर असहमति जताई तो बघेल ने इस फैसले को तुरंत वापस ले लिया।

इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों के घर बनाने के लिए फंड आवंटित नहीं करने पर टीएस सिंहदेव ने राज्य के पंचायती मंत्री से इस्तीफा दे दिया था। उनके समर्थकों का कहना है कि 2018 में यह सहमति बनी थी कि राज्य में आधी अवधि के लिए टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन बघेल इससे पीछे हट रहे हैं। बघेल और सिंहदेव के बीच जारी खटास अपने चरम पर दिख रहा है, जिसका असर आने वाला चुनाव में भी दिखेगा।

उधर कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के समर्थक अभी से ही राग अलापना शुरू कर दिया कि प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री सिद्धरमैया होने चाहिए। वहीं, प्रदेश के कॉन्ग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कहा कि सभी को किसी व्यक्ति की पूजा करने के बजाय पार्टी को सत्ता में लाने के लिए काम करना चाहिए। इसके बाद प्रदेश में वाकयुद्ध शुरू हो गया है।

अभी बहुत दिन नहीं बीते जब पंजाब में भी ऐसी ही स्थिति देखने के मिली थी। तब के कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और भाजपा छोड़कर कॉन्ग्रेस में शामिल होने वाले नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तकरार चरम पर पहुँच गया था। मुख्यमंत्री बनने की चाहत में सिद्धू की चरणजीत सिंह चन्नी के साथ भी टकराव की स्थिति आ गई और परिणाम यह हुआ कि पंजाब कॉन्ग्रेस के हाथ निकल गया।

छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के जो हालात दिख रहे हैं, वह पंजाब से बहुत अलग नहीं हैं। अगर कॉन्ग्रेस हाईकमान समय रहते इन गुटबाजियों को खत्म नहीं कर पाई तो कर्नाटक पहले से ही हाथ से निकला हुआ है, छत्तीसगढ़ में भी सत्ता से दूर होना पड़ सकता है, क्योंकि दोनों ही राज्यों में असंतुष्ट नेता कद्दावर और मजबूत पकड़ वाले हैं।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
प्रकृति प्रेमी

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