हाल में कई रिपोर्टें आई हैं जो बताती हैं कि नेपाल-भारत सीमा पर तेजी से डेमोग्राफी में बदलाव हो रहा है। मस्जिद-मदरसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए 20 से 27 अगस्त 2022 तक ऑपइंडिया की टीम ने सीमा से सटे इलाकों का दौरा किया। हमने जो कुछ देखा, वह सिलसिलेवार तरीके से आपको बता रहे हैं। इस कड़ी की पाँचवीं रिपोर्ट:
नेपाल सीमा पर रिपोर्टिंग के दौरान हमें स्थानीय लोगों से ‘थारू’ जनजाति का नाम सबसे अधिक सुनाई दिया। हमें यह भी बताया गया कि भारत और नेपाल दोनों के अंदर सीमावर्ती क्षेत्रों में हिन्दू समाज की थारू जनजाति के लोग सबसे ज्यादा रहते हैं। जानकारी यह भी दी गई कि थारू जनजाति अपनी प्राचीन संस्कृति और परम्पराओं को आज भी ज्यों की त्यों सहेजे हुए हैं। इन तमाम बातों को परखने के लिए हम नेपाल की जरवा सीमा पर मौजूद थारू जनजाति की लगभग 3500 आबादी वाले एक गाँव मोहकमपुर में गए।
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मोहकमपुर बलरामपुर जिले के जरवा थानाक्षेत्र में आता है और यहाँ से मुख्य बाजार तुलसीपुर लगभग 15 किलोमीटर दूर है। इस गाँव के बाद जंगली क्षेत्र शुरू हो जाता है और कुछ ही दूरी पर नेपाल की सीमा आ जाती है। गाँव में घुसने से पहले हमें एक बोर्ड दिखाई पड़ा, जिस पर ‘स्वर्गीय श्री कन्हैयालाल स्मृति द्वार’ लिखा हुआ था। गाँव तक पक्की सड़क जाती है। इस गाँव के खेम सिंह राणा के घर के आगे चौपाल के रूप में कुछ लोग बैठे बात कर रहे थे। वहाँ हम रुक गए और चर्चा में शामिल हो गए।
‘हमारे पूर्वज महाराणा प्रताप के सिपाही’
खेम सिंह से चर्चा शुरू हुई तो उन्होंने अपने पूर्वजों को महाराणा प्रताप का साथी और सहयोगी बताया। खेम सिंह ने कहा कि उनके पुरखे देश और धर्म बचाने के लिए राणा प्रताप के साथ मुगलों के खिलाफ लड़े थे।
उन्होंने यह भी बताया कि जब राजा ही नहीं बचे तब प्रजा क्या करती और यही सोच कर उनके पूर्वज अपना धर्म बचाने के लिए पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में शरण ले लिए। खेम सिंह ने माना कि नेपाल सीमा पर थारू जनजाति अच्छी-खासी संख्या में हैं।
सीमाओं पर बढ़ी है मुस्लिम आबादी
खेम सिंह ने बताया कि वो जन्म से ही सीमा के उसी गाँव मोहकमपुर में रहे हैं। उनके अनुसार पहले के मुकाबले अब मुस्लिमों की नेपाल बॉर्डर पर आबादी बढ़ी है। इसी गाँव के कोटेदार और थारू जनजाति के ही राजेश ने हमें बताया कि भारत की सीमा में नेपाल के रास्ते मुस्लिम प्रवेश किए और वो जमीन आदि खरीद कर बसते चले गए। राजेश ने बताया कि मजारें पहले से ही बनी हुई हैं लेकिन मदरसे नए बने हैं।
इसी गाँव व समुदाय के देवशरण ने भी कहा कि सीमा पर मस्जिद और मजारों के साथ मुस्लिम आबादी पहले के मुकाबले बढ़ी है। पड़ोसी गाँव के मनोज ने भी नेपाल बॉर्डर पर मुस्लिम आबादी बढ़ने के मीडिया रिपोर्ट्स के दावों को सही माना।
ग्राम प्रधान शकीला: ग्राम सभा में 3 मस्जिदें और 1 मदरसा
चौपाल में मौजूद लोगों ने बताया कि थारू बहुल होने के बाद भी वहाँ की ग्राम प्रधान शकीला हैं। इसी के साथ वहाँ पता चला कि जो प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहा, वो भी मुस्लिम समुदाय का ही है। ग्रामीणों ने इलाके के टंडवा और शेखड़ीह गाँवों को मुस्लिम बाहुल्य बताया। ग्रामीणों ने ये भी कहा कि पहले रास्ते और घरों में चोरी होती थी लेकिन जबसे योगी सरकार आई, तब से चोरी बंद हो गई। खेम सिंह ने कहा कि कभी-कभार लव जिहाद जैसी घटनाएँ भी सामने आ जाती हैं।
मोहकमपुर में थारू लोगों के मोहल्ले में हमें जानकारी दी गई कि उस पूरे ग्रामसभा में लगभग 2000 मुस्लिम आबादी है। हमें यह भी जानकारी मिली कि ग्राम सभा में 3 मस्जिदें और 1 मदरसा हैं। हालाँकि थारू समुदाय की बहुलता वाले मोहल्ले में मस्जिद नहीं दिखी। इस मोहल्ले में लोगों को भगवान शिव की पूजा करते देखा गया।
योगी सरकार में बहन-बेटियाँ सुरक्षित
खेम सिंह के मुताबिक थारू जनजाति की बहन बेटियों की रक्षा पिछली सरकारों में खुद उनके परिजनों को करनी पड़ती थी लेकिन अब ये दायित्व सरकार उठा रही है। चौपाल में मौजूद अन्य लोगों ने बताया कि अब किसी की हिम्मत नहीं होती कि वो उनके घरों की लड़कियों को नजर उठा कर देख भी लें।
सुरक्षा और विकास के मुद्दे पर चौपाल में बैठे राजेश, देवशरण और खेम चंद ने एक स्वर में कहा कि जब से योगी सरकार आई है, तब से थारू जनजाति की सुनवाई शासन और प्रशासन स्तर पर हो रही है। उन्होंने बताया कि अब उनको सभी योजनाओं का फायदा मिल रहा है। वहाँ मौजूद सभी इस बात से सहमत थे कि पिछली सरकारों में उनकी अनदेखी करते हुए उन सभी को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता था।
हमसे बात कर रहे खेम सिंह ने बताया कि थारू जनजाति के लोग मेहनत-मजदूरी और खेती कर के अपने परिवार का पेट पालते हैं। वहीं राजेश कुमार के मुताबिक सरकारी नौकरियों में थारू लोगों की संख्या बेहद कम है। ग्रामीणों के मुताबिक अब हालात थोड़े-थोड़े बदल रहे हैं। अभी के युवा इंटरमीडियट और ग्रेजुएशन भी पास कर रहे हैं और पढ़ाई की तरफ ध्यान दे रहे।
नेपाल में वामपंथी आंदोलन और भारतीय सुरक्षा बल
कोटेदार राजेश के घर पर लगी चौपाल में सभी ने सामूहिक रूप से कहा कि जब 1990 के दशक में नेपाल में वामपंथी आंदोलन हो रहा था, तब उनके गाँव तक ब्लास्ट की आवाजें सुनाई देती थीं। ग्रामीणों ने कहा कि कुछ ही दूरी पर खून-खराबा देखने के बावजूद भी वो लोग बॉर्डर पर तैनात जवानों के दम पर निश्चिंत रहते थे। सभी ने एक स्वर में बताया कि सारा हंगामा बॉर्डर के उस पार ही हुआ था।
मोहकमपुर के गाँव वालों ने हमें बताया कि वामपंथी हिंसा के दौरान नेपाली पुलिस के जवानों की लाशों के साथ कुछ घायल वर्दी वाले भी भारत की सीमा में बचने के लिए आए थे। ग्रामीणों ने बताया कि तब भारतीय जवानों ने न सिर्फ उनकी माओवादियों से जान बचाई थी बल्कि घायलों का इलाज भी करवा कर हर सम्भव मदद की थी। खेम सिंह ने बताया कि उन्ही हमलों के बाद से बॉर्डर पर मौजूद नेपाल का कोयलाबास बाजार वीरान हो गया है।
थारू जनजाति के लोग सीमा पर तैनात पैरामिलिट्री SSB (सशस्त्र सीमा बल) के जवानों के बर्ताव से बेहद खुश और संतुष्ट दिखे। ग्रामीणों ने SSB के जवानों को अपना भाई कहा। इसी के साथ गाँव वालों ने योगी सरकार में जिला पुलिस का भी व्यवहार अपने लिए बदला हुआ बताया।
कपड़े बेचते मुमताज़ अली
हमारी रिपोर्टिंग के दौरान उसी मोहल्ले में मुमताज़ अली बाइक पर कपड़े रख कर बेचते दिखे। मुमताज़ ने बाइक पर ढेर सारा सामान लाद रखा था। उन्होंने खुद को वहाँ से 200 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले का रहने वाला बताया। उन्होंने कहा कि वो पास की बाजार तुलसीपुर में किराए पर कमरा लिए हैं। अपनी बाइक पर रखे कुल सामान की कीमत मुमताज़ ने लगभग 25 हजार रुपए बताई। उन्होंने थोक माल सीतापुर से उठाने की बात कही और पूरे बॉर्डर इलाकों में सामान बिकना बताया।
‘देशद्रोही उठाते हैं थारू लोगों की गरीबी का फायदा’ – भाजपा विधायक
नेपाल बॉर्डर क्षेत्र के तुलसीपुर से भाजपा विधायक कैलाशनाथ शुक्ला ने कहा कि देशविरोधी तत्व कभी थारू लोगों की गरीबी का फायदा उठाते हैं तो कभी उनकी कम शिक्षा के दर का। उन्होंने ये भी कहा कि उनकी भाजपा सरकार इस मामले में ध्यान दे रही है।
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