आनन-फानन में आधी रात को कोर्ट लगाकर प्रोपेगंडा एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अब इसकी अवधि भी बढ़ा दी है। इस दौरान उन्हें गिरफ्तार से सुरक्षा दी गई है। इस मामले में अगली सुनवाई 19 जुलाई 2023 को होगी। गुजरात दंगों में फर्जी साबूत गढ़कर सरकार को बदनाम करने का आरोप सीतलवाड़ पर है।
Supreme Court extends interim protection given to activist Teesta Setalvad in a case of alleged fabrication of evidence in relation to the 2002 Gujarat riots. Supreme Court posts the matter for hearing on July 19.
— ANI (@ANI) July 5, 2023
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न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की विशेष पीठ ने मामले में गुजरात सरकार से जवाब माँगा और मामले को अंतिम निपटान के लिए सुनवाई की अगली तारीख 19 जुलाई तय की। शनिवार (1 जुलाई 2023) को हुई एक विशेष सुनवाई में अदालत ने सीतलवाड़ को सात दिनों की अंतरिम जमानत दी थी, जो 8 जुलाई को समाप्त होने वाली थी।
गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने शीर्ष अदालत से कहा कि उन्हें कुछ दस्तावेजों का अनुवाद करने के लिए समय चाहिए। वहीं, सीतलवाड़ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मामले की तत्काल सुनवाई की माँग की।
सुप्रीम कोर्ट गुजरात हाईकोर्ट की उस आदेश के खिलाफ सीतलवाड़ की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्हें नियमित जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया था कि उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण कर देना चाहिए, क्योंकि जमानत पर बाहर रहने से राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण गहरा जाएगा।
तीस्ता सीतलवाड़ पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार के अधिकारियों को फँसाने के लिए दस्तावेज तैयार करने के आरोप हैं। जून 2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक दिन बाद गुजरात आतंकवाद विरोधी दस्ते ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2022 में मामले में उन्हें अंतरिम जमानत दे दी थी।
बता दें कि इस पूरे मामले की शुरुआत गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले से हुई। गुजरात हाईकोर्ट ने सीतलवाड़़ की जमानत याचिका रद्द कर उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का आदेश सुनाया था। उसी दिन शाम में सुप्रीम कोर्ट बैठी और मामले को बड़े बेंच को हस्तानांतरित कर दिया। रात को फिर सुनवाई हुई और तीस्ता सीतलवाड़़ को एक सप्ताह की राहत प्रदान कर दी गई।
दिलचस्प बात ये है कि सीजेआई चंद्रचूड़ ने भरतनाट्यम का प्रोग्राम देखते हुए उनकी याचिका पर अपनी नजर बनाए रखी और सुनिश्चित किया कि अगले दिन यानी रविवार (2 जुलाई) को ही सुनवाई हो जाए। सीजेआई को करीब 7 बजे पता चला था कि जो पीठ तीस्ता की बेल याचिका सुन रही थी, उसने जमानत पर मत अलग दिए हैं। ऐसे में जस्टिस चंद्रचूड़ की इस मामले में एंट्री हुई। उन्होंने दो अन्य जजों को इस पीठ का हिस्सा बनवाया और फिर इस बेल पर मोहर लगी।
गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़़ को तुरंत सरेंडर करने का आदेश देते हुए कहा था कि उन्हें जमानत देने का अर्थ होगा कि दो समुदायों के बीच दुश्मनी को और बढ़ावा देना। 127 पन्नों के आदेश में जस्टिस निर्जर देसाई ने कहा कि अगर तीस्ता सीतलवाड़़ को बेल दे दी जाती है तो इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ेगा और सामुदायिक वैमनस्य और गहरा होगा।
गुजरात के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई भाजपा नेताओं और अधिकारियों को फँसाने की साजिश तीस्ता सीतलवाड़ ने रची थी। गुजरात उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ ने पीड़ितों और और गवाहों का अपने फायदे के लिए सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया। उच्च न्यायालय ने कहा कि पत्रकार रहीं तीस्ता सीतलवाड़ ने पीड़ितों और गवाहों का सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर के अपना फायदा कमाया – वो न सिर्फ पद्मश्री से नवाजी गईं, बल्कि उन्हें योजना आयोग के सदस्य का पद भी मिला।
साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और पूरी सरकारी मशीनरी को बदनाम कर के तीस्ता सीतलवाड़़ ने सक्रिय रूप से एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने के लिए प्रयास किया। इसके तहत विभिन्न अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक झूठे केस दर्ज करवाए गए। पीड़ितों और गवाहों को भड़का कर ऐसा करवाया गया। हाईकोर्ट ने ये भी पाया कि एक समुदाय विशेष की भावनाओं का इस्तेमाल कर के तीस्ता सीतलवाड़़ ने पैसे जुटाए और इन पैसों का इस्तेमाल पीड़ितों के लिए नहीं किया।