उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (UP CM Yogi Adityanath) ने वाराणसी स्थित ज्ञानवापी को लेकर साफ कर दिया है कि यह मस्जिद नहीं है। उन्होंने कहा कि इसमें त्रिशूल सहित हिंदू धर्म के अन्य निशान हैं। इसलिए इस परिसर को मस्जिद नहीं कहा जा सकता।
सीएम योगी ने कहा, “ज्ञानवापी के अंदर देव प्रतिमाएँ हैं। यह प्रतिमा हिंदुओं ने नहीं रखी है। अगर ज्ञानवापी को मस्जिद कहेंगे तो विवाद तो होगा ही।” उन्होंने कहा कि सरकार ज्ञानवापी विवाद का समाधान चाहती है। मुस्लिम समाज को आगे आकर इस ऐतिहासिक गलती सुधारना चाहिए।
ANI की एडिटर स्मिता प्रकाश ने सीएम योगी से बातचीत में पूछा कि ‘काशी विश्वनाथ मंदिर – ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का कोई समाधान’ है। इस पर सीएम योगी ने कहा, “अगर हम उसे मस्जिद कहेंगे तो फिर विवाद होगा। मुझे लगता है कि जिसे भगवान ने दृष्टि दी है, वह देखे इसे।”
सीएम योगी ने यह बता ऐसे ही नहीं कही है और ना ही इसके पीछे चुनावी मौसम में फायदा लेने की नियत मात्र है। ज्ञानवापी परिसर की प्राचीन तस्वीरें देखें और परिसर में आने आए इस बात की गवाही दे रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जो कहा, वह शब्दत: सत्य है।
सर्वे में सीएम योगी की बातों की हो चुकी है पुष्टि
पिछले साल मई में पूर्व एडवोकेट कमिश्नर अजय मिश्रा ने अदालत में रिपोर्ट में देकर खुलासा किया था कि ज्ञानवापी ढाँचे की पश्चिमी दीवार पर शेषनाग और हिंदू देवी-देवताओं की कलाकृति है। दीवार के उत्तर से पश्चिम की ओर शिलापट्ट पर सिंदूरी लेप की उभरी हुई कलाकृति है। इसमें देवों के रूप में चार मूर्तियाँ दिख रही हैं।
पूर्व एडवोकेट कमिश्नर अजय मिश्रा ने न्यायालय को आगे बताया था कि जाँच में चौथी आकृति मूर्ति प्रतीत हो रही है और उस पर सिंदूर का मोटा लेप है। उसके आगे दीपक जलाने के लिए उपयोग में लाए गए त्रिकोणीय ताखा में फूल रखे हुए थे। पूर्व दिशा में बैरिकेडिंग के अंदर व ढाँचे की पश्चिम दीवार के बीच मलबे का ढेर पड़ा हुआ है। यह शिलापट्ट भी उन्हीं का हिस्सा प्रतीत हो रहा है। इन पर उभरी हुई कलाकृतियाँ ढाँचे की पश्चिम दीवार पर उभरी कलाकृतियों से मेल खाती दिख रही हैं।
ये हाल ही में हुए ज्ञानवापी परिसर के सर्वे की रिपोर्ट है। सर्वे में एक शिवलिंग भी मिला है, जिसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा है। हालाँकि, वो ये नहीं बता पा रही है कि एक फव्वारे के आगे नंदी की प्रतिमा क्यों, जो प्राय: शिव मंदिरों में शिवलिंग या प्रतिमा के आगे बना रहता है।
154 साल पुरानी तस्वीर में ज्ञानवापी में भगवान हनुमान भी
इतना ही नहीं। सर्वे में जो बात सामने आई है और जिसके आधार पर सीएम योगी ने ज्ञानवापी को मस्जिद कहने से इनकार किया है, उसके सबूत अमेरिकी म्यूजियम में भी रखे हैं। विवादित ढाँचे के अंदर से हनुमान जी की भी मूर्ति होने के सबूत मिले हैं। करीब 154 साल पुरानी तस्वीर से ये खुलासा हुआ है। यह तस्वीर अमेरिका के एक म्यूजियम में रखी हुई है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1868 में ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुअल बॉर्न ली ने ये फोटो खींची थी। जिस ज्ञानवापी विवादित ढाँचे को मुस्लिम पक्ष मस्जिद बताकर उस पर अपना दावा करते हैं, ये रिपोर्ट उन दावों की पोल खोल देती है।
दरअसल, 154 साल पहले ली गई इस तस्वीर को ध्यान से देखने पर इसमें भगवान शिव के 11वें रूद्र अवतार हनुमान जी की मूर्ति के साथ ही घंटा टंगा दिखता है। इसके अलावा वहीं पर नंदी भी विराजमान दिखाए दे रहे हैं। तस्वीर में तीन खंबे भी दिख रहे हैं, जिनमें प्राचीन भारतीय शिल्पकला उकेरी दिख रही है।
ऊपर दिख रही तस्वीर को और भी बड़ा/भव्य/क्लियर देखना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक कर देख सकते हैं। मौजूदा वक्त में यह तस्वीर अमेरिका के ह्यूस्टन स्थित ‘द म्यूजियम ऑफ फाइन आर्ट्स में संभाल कर रखी गई है। इस तस्वीर के सामने आने के बाद से विवादित ढाँचे पर हिन्दू पक्ष का दावा और अधिक मजबूत हो गया है।
काशी-मथुरा हिंदू देवताओं की जमीन
सीएम योगी ने मुस्लिम समाज को साफ संदेश दिया कि वे आगे आकर मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित करने के ऐतिहासिक भूल को सुधारें। यह अयोध्या के रामजन्मभूमि विवाद के उलट, मामले का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान निकालने से संबंधित है। हालाँकि, मुस्लिम समाज इसके पक्ष में नहीं दिख रहा। ऐसी स्थिति में यह मामला पूरी तरह कोर्ट के फैसले पर निर्भर हो गया है।
मुस्लिम पक्ष ने तो पूजास्थल अधिनियम-1991 के आधार पर इस मामले में सुनवाई ना करने की सुप्रीम कोर्ट से अपील तक कर दी थी। हालाँकि, मई 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि किसी स्थान के धार्मिक चरित्र के निर्धारण को पूजास्थल अधिनियम-1991 (Places of Worship Act 1991) प्रतिबंधित नहीं कर सकता।
इसी तरह, मथुरा के शाही ईदगाह ढाँचे और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर (Shahi Idgah Mosque – Shri Krishna Janmbhoomi Temple) मामले में हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार करते हुए मथुरा की कोर्ट ने भी कह दिया था कि इसकी सुनवाई में पूजास्थल अधिनियम-1991 बाधा नहीं है।
हालाँकि, दोनों ही मामलों में कोर्ट स्वीकार किया है कि यह कानून सुनवाई में बाधा नहीं बन सकता, लेकिन तकनीकी तौर यह अधिनियम भारतीय कानून का हिस्सा है और विभिन्न परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट अपने विवेक के आधार पर इसका प्रयोग कर सकता है। ऐसे में यह कानून रहने के बावजूद उपरोक्त दोनों मामलों में हिंदुओं का पक्ष कितना मजबूत है, इस पर चर्चा करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने पूजास्थल अधिनियम-1991 को असंवैधानिक बताया और कहा कि ऐसा कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है ही नहीं। उन्होंने कहा कि अवैध काम को वैध ठहराने के लिए सरकार कानून नहीं बना सकती। इस कानून द्वारा हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों को उनके धार्मिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों को सीमित कर दिया गया है। इसके साथ ही उन्होंने इस कानून पर न्यायपालिका पर चोट बताया है।
भाजपा तो इस कानून का शुरू से विरोध करती रही है। कॉन्ग्रेस की सरकार द्वारा इस बिल को पेश करने के दौरान ही बहस में तत्कालीन भाजपा सांसद उमा भारती (Uma Bharti) ने इसे महाभारत के ‘द्रौपदी का चीरहरण’ कहा था। भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Adawani) ने कहा था कि इस कानून से जिन स्थानों पर तनाव नहीं है, वहाँ भी दोनों समुदायों में तनाव बढ़ेगा।
साबित करना होगा कि ज्ञानवापी और ईदगाह मस्जिद है
ऑपइंडिया से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय मथुरा, काशी, भद्रकाली, भोजशाला जैसे विवादों में कानूनन हिंदुओं के पक्ष को मजबूत बताया और कहा कि इसके प्रमाण इन जगहों पर उपलब्ध हैं। ये प्रमाण हिंदुओं के पक्ष को मजबूत करते हैं।
एडवोकेट उपाध्याय ने बताया, “ये सब स्थान मस्जिद नहीं हैं। इन्हें मस्जिद साबित करने के लिए सबसे पहले इस्लामिक लॉ से इन्हें प्रूव करना पड़ेगा। ये मंदिर हैं या नहीं है, इसे हिंदू लॉ से प्रूव करना है। कोई भी स्थान ऐसा नहीं हो सकता कि वह मंदिर भी हो और मस्जिद भी। वह या तो मंदिर होगा या मस्जिद। अगर यह मस्जिद है तो आपको (मुस्लिम पक्ष को) कुछ बातें साबित करनी पड़ेंगी।”
इस्लामिक कानून के तहत मस्जिद बनाने के लिए आवश्यक शर्त की बात करते हुए उन्होंने कहा, “मस्जिद बनाने के लिए सबसे पहले यह साबित करना होगा कि ये यह जमीन मेरी है या हमने इसे किसी से खरीदा या फिर किसी ने अपनी इच्छा (बिना डर-भय, लालच के) से इसे दान किया है। सबसे महत्वपूर्ण बात साबित करना होगा कि वहाँ पहले कोई स्ट्रक्चर नहीं था। इस्लामिक लॉ में मस्जिद के लिए यह पहली कंडीशन होती है। धार्मिक स्ट्रक्चर तो होना ही नहीं चाहिए।”
इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने आगे बताया, “अगर मकान, दलान, दुकान आदि कोई घरेलू ढाँचा है और वहाँ मस्जिद बनाना चाहते हैं…. मान लीजिए हमारे पास एक दुकान है और हम उसे अब नहीं चलाना चाहते और वहाँ एक मस्जिद बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले उस दुकान की एक-एक ईंट उखाड़नी पड़ेगी। इस्लामिक लॉ कहता है कि नींव में पहले के ढाँचे का एक ईंट भी नहीं होनी चाहिए। पहली ईंट जो लगनी चाहिए, वो मस्जिद के नाम की लगनी चाहिए।”
हिंदू कानून और इस्लामिक कानून के बीच फर्क का जिक्र करते हुए एडवोकेट उपाध्याय ने कहा कि मंदिरों में पहले मंदिर बन जाता है फिर नामकरण होता है, जबकि मस्जिदों में पहले नामकरण होता है फिर मस्जिद बनती है। इस्लामिक लॉ के तहत मस्जिद का जो नाम रख दिया जाता है, उसी के नाम की पहली ईंट मस्जिद निर्माण की नींव में रखी जाती है।
औरंगजेब और इतिहास को झूठा साबित करना होगा
अश्विनी उपाध्याय ने ज्ञानवापी मामले को लेकर ऑपइंडिया से कहा था, “आप (मुस्लिम) कहते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद है तो आपको सबसे पहले औरंगजेब को झूठा साबित करना पड़ेगा। जो उसके इतिहासकार हैं, उनको झूठा साबित करना पड़ेगा। उसके ये भी साबित करना पड़ेगा कि फलाने आदमी ने जमीन दान किया या उससे खरीदा। यह भी साबित करना पड़ेगा कि फलाने बादशाह ने इस मस्जिद की पहली ईंट रखी थी यहाँ पर।”
ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष ने 20 मई को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि इतिहासकार इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस्लामी शासक औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें उसके प्रशासन को वाराणसी में स्थित भगवान आदि विश्वेश्वर के मंदिर को ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया था। आदि विश्वेश्वर के मंदिर पर 1193 ईस्वी से 1669 ईस्वी तक हमला किया गया, लूटा गया और ध्वस्त किया गया।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी तर्क दिया था कि औरंगजेब ने अपने फरमान में और मुगल इतिहासकारों के रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि औरंगजेब या उसके बाद के शासकों ने विवादित भूमि पर वक्फ बनाने या किसी मुस्लिम या मुस्लिम निकाय को जमीन सौंपने का आदेश दिया था। हिंदू पक्ष की ओर कोर्ट में शामिल अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने याचिका में अदालत को बताया कि फरमान की कॉपी कोलकाता के एशियाटिक लाइब्रेरी रखे होनी की जानकारी मिली है।
हिंदू देवता की एक बार जमीन, हमेशा के लिए उनकी जमीन
अश्विनी उपाध्याय ने कहा, “हिंदू लॉ कहता है कि एक बार वहाँ भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा कर दिया, उसके बाद उसकी दीवार तोड़ दीजिए, गुंबद उड़ा दीजिए, नमाज पढ़िए चाहे उसकी नींव की एक-एक ईंट उखाड़ दीजिए वह मंदिर ही रहेगा। एक बार मंदिर हो गया तो वह किसी भी रूप में हमेशा मंदिर ही रहेगा। जब तक वहाँ से मूर्ति का विसर्जन नहीं होगा, तब तक वह मंदिर ही कहलाएगा।”
हिंदू पक्ष ने कहा कि मस्जिद सिर्फ वक्फ या मुस्लिम की जमीन पर बनाई जा सकती है। इस मामले में मंदिर की भूमि और संपत्ति अनादि काल से देवता की है। इसके साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि किसी मुस्लिम शासक या किसी मुस्लिम के आदेश के तहत मंदिर की भूमि पर किए गए निर्माण को मस्जिद नहीं माना जा सकता है।
ज्ञानवापी विवादित परिसर में अभी भी भगवान की पूजा होती है और श्रद्धालुओं द्वारा पंचकोशी परिक्रमा की जाती है। हिंदू कानून भी कहता है कि देवता की भूमि हमेशा देवता के नाम पर रहती है। विदेशी शासन आने के बाद भी देवता का अधिकार खत्म नहीं होता।
अगर विवादित स्थानों पर वर्तमान कानून, इस्लामिक कानून, हिंदू कानून और संविधान के अनुच्छेदों में प्रदत्त अधिकारों के उल्लंघन पर गौर करें तो स्पष्ट है कि इन मामलों में हिंदुओं का पक्ष मजबूत है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जिन-जिन स्थानों को विवादित माना जा रहा है, वहाँ हिंदू देवताओं एवं प्रतीकों के निशान आज भी मौजूद हैं।