जिसकी परवरिश एक तय तरीके से हुई है, वो अचानक से उस संकाय में प्रोफेसर बना दिया जाए जो पूरे विश्व में हिन्दू धर्म और आस्था पर उठते सवालों या शंकाओं का निवारण करता है? आप मुझे एक उदाहरण दिखा दीजिए कि किसी इस्लामी संस्थान में हिन्दू प्रोफेसर शरीयत पढ़ाकर मौलवी तैयार कर रहा हो!
आने वाले दिनों में विषवमन ज्यादा होगा, रवीश जी ज्यादा लिखेंगे, ज्यादा बोलेंगे और अंतरात्मा को बार-बार बुलाएँगे। फिर भी आप इन धूर्तों को टीवी पर देखा कीजिए, इनके लेख पढ़ा कीजिए ताकि आपको पता चलता रहे कि नैरेटिव बनता कैसे है।
गरीबों के बच्चों की बात करने वाले ये भी बताएँ कि वहाँ दो बार MA, फिर एम फिल, फिर PhD के नाम पर बेकार के शोध करने वालों ने क्या दूसरे बच्चों का रास्ता नहीं रोक रखा है? हॉस्टल को ससुराल समझने वाले बताएँ कि JNU CD कांड के बाद भी एक-दूसरे के हॉस्टल में लड़के-लड़कियों को क्यों जाना है?
पाकिस्तानी सरकार के पास 'अच्छे आतंकी' हैं, जो उनके भारत-विरोधी अजेंडे को सेना के शह पर अंजाम देती है जो सेना स्वयं खुल्लमखुल्ला नहीं कर सकती। वैसे ही एनडीटीवी जैसों के पास 'निष्पक्ष' पत्रकार हैं जो 'निजी राय' के नाम पर कॉन्ग्रेस के लिए भाजपा-विरोधी अजेंडा चलाते हैं।
बाबरी मस्जिद का टूटना भले ही भारतीय कानून की दृष्टि में एक आपराधिक घटना है, लेकिन हिन्दुओं के इतिहास के हिसाब से यह उस आस्था के साथ न्याय है जिसके मंदिर की दीवार पर मस्जिद खड़ी की गई थी।
जजों ने इस बात का ख्याल रखा है कि कोई भी लिबरल, अजेंडाबाज़ रवीश टाइप पत्रकार, टुटपुँजिया कॉमेडियन, पंक्चर के काम करने वाले 'हा-हा' रिएक्शन ब्रीड के लौंडे या मीम का फैक्ट चेक करने वाले गंजे आदि छूट न जाएँ क्योंकि दर्द तो बहुत हुआ होगा।