कई लोग अगस्त में ही दीपावली मानाने की तैयारी में भी दिखते हैं। वैसे इससे हमें दूसरा वाला नारा - काशी-मथुरा बाकी है, याद आ जाता है, मगर उससे दीयों के बजाए कुछ और ही जलने लगेगा! नहीं?
भारत-चीन विवाद के बीच प्रधानमंत्री का लेह-लद्दाख पहुँच जाना सेना के लिए कैसा होगा इस बारे में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। पुराने दौर में “दिल्ली दूर, बीजिंग पास” कहने वाले तथाकथित नेता पता नहीं किस बिल में हैं। ऐसे मामलों पर उनकी टिप्पणी रोचक होती।
बिरियानी में बोटियाँ तलाशते टुकड़ाखोर किसी "फोबिया" शब्द को बिलकुल वैसे ही पत्थरों की तरह चलाते हैं, जैसे अभी-अभी यूपी के किसी जिले में स्वास्थ्यकर्मियों पर चलाए गए। गोएबल्स की ये औलादें गाँधीवादी नहीं हैं। आपको ये भी पता है कि नाज़ियों से किसी गाँधीवादी तरीके से निपटा नहीं गया था।