रवीश आज भी नेहरू-इंदिरा के अहंकार के उस दौर से आतंकित हैं, जब मनचाहे तरीकों से सत्ता, समाज और संस्थाओं को अपने नियंत्रण में रखा करती थी। लप्रेकी रवीश इस नींद से जागना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें 'दंगा साहित्य' पसंद है।
जिस समय दुनिया कोरोना से लड़ रही है उत्तराखंड ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण के षड्यंत्रों से भी संघर्षरत है। यह कभी ऑनलाइन तो कभी राशन, बाइक और मुर्गा के नाम पर परोसा जा रहा है।
इस कदम ने इंदिरा गाँधी को और भी अधिक निरंकुश बना दिया था। फिर पत्रकारों की गिरफ्तारी से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं के खून से लोकतंत्र के इतिहास का सबसे कलंकित अध्याय लिखा गया।
बीबीसी की इस दर्दभरी हेडलाइन के भीतर जाने पर पता चलता है कि यह लेख सिर्फ और सिर्फ फेक न्यूज़ और भ्रामक तथ्य फैलाने की स्वीकृति माँगने के अलावा और ज्यादा कुछ नहीं कहती है।
ज़ैनब सिकंदर एक लाइन का कुछ लिखें या हजार शब्दों का कुछ लिखें, उसका एक ही मकसद है अपनी हिन्दूघृणा को साकार रूप देना और अपने 'मजहबी टार' को अपनी कल्पनाओं के साहित्य से सींचना।