Saturday, October 19, 2024
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विजय माल्या भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित, अब होगी संपत्ति ज़ब्त

कर्ज़ में डूबी एयरलाइंस किंगफिशर के मालिक विजय माल्या को कड़ा झटका देते हुए मुंबई की धनशोधन निरोधक क़ानून (पीएमएलए) की विशेष अदालत ने उसे भगोड़ा ‘आर्थिक अपराधी’ घोषित कर दिया है। इस अधिनियम के तहत जिसे आर्थिक भगोड़ा घोषित किया जाता है, उसकी संपत्ति तुरंत प्रभाव से ज़ब्त कर ली जाती है।

आर्थिक अपराधी एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसके विरुद्ध सूचीबद्ध अपराधों के लिए ग़िरफ़्तारी का वारंट जारी किया गया हो; या जो भारत छोड़ चुका हो ताकि यहाँ हो रही आपराधिक कार्रवाई से बचा जा सके; या वो विदेश में रहने लगा हो और इस तरह की आपराधिक कार्रवाई से बचने के लिए भारत आने से मना कर रहा हो। इस तरह के क़ानून के तहत 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा की घोखाधड़ी, चेक का अनादर और लोन डिफ़ॉल्ट से संबंधित मामले आते हैं।

अदालत के इस फ़ैसले के बाद बैंकों के लगभग 9,000 हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज़दार माल्या की संपत्तियों को अब ज़ब्त किया जा सकेगा। जानकारी के मुताबिक प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने विशेष अदालत के समक्ष विजय माल्या को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित करने संबंधी एक याचिका दायर की थी।

इस याचिका के परिणामस्वरूप अब भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम (एफईओए) के तहत माल्या का नाम पहले भगोड़े आर्थिक अपराधी के रूप में दर्ज हो गया है। ऐसा होने से अब माल्या के ख़िलाफ़ नए आर्थिक अपराध क़ानून के तहत कार्रवाई होगी।

विजय माल्या वर्ष 2016 में हज़ारों करोड़ रुपयों का गबन करके ब्रिटेन भाग गया था। गौरतलब है कि पिछले साल 10 दिसंबर को लंदन की वेस्टमिनिस्टर अदालत ने माल्या के प्रत्यर्पण पर भारत के पक्ष में फ़ैसला दिया था और उसे भारत भेजने की अनुमति दे दी थी।

राहुल गाँधी के महागठबंधन को कड़ा झटका, AAP के बाद SP और BSP ने भी किया किनारा

2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा के सभी विरोधी दलों के एक साथ संगठित होने की अटकलों पर विराम लग गया है। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के बयान के बाद अखिलेश यादव और मायावती ने भी महागठबंधन से किनारा कर लिया है।

बीते शुक्रवार को दिल्ली में मायावती के आवास पर दोनों नोताओं के बीच बातचीत हुई। इस बैठक के बाद इंडिया टुडे रिपोर्ट के मुताबिक इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि उत्तर प्रदेश में सपा 35 जबकि बसपा 36 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। इसके अलावा 4 सीटों पर आरएलडी चुनाव लड़ेगी जबकि 4 सीटों को अभी रिज़र्व में रखा गया है।

यही नहीं इस रिपोर्ट में इस बात की भी चर्चा है कि राहुल और सोनिया के ख़िलाफ़ अमेठी और रायबरेली की सीटों पर दोनों ही दलों की तरफ से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा जाएगा।

पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने एक इंटरव्यू के दौरान महागठबंधन को खारिज कर दिया था। इस इंटरव्यू में संजय सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और गोवा में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी। इस तरह आम आदमी पार्टी की तरफ से यह बयान आने के बाद महागठबंधन पर संकट के बादल साफ़ दिख रहे हैं।

दिल्ली में सपा–बसपा के इस मीटिंग के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी को करारा झटका लगा है। तीन राज्यों में कॉन्ग्रेस द्वारा सत्ता में आने के बावजूद 2019 में मोदी लहर से अकेले पार पाना उसके लिए आसान नहीं होगा। भाजपा को रोकने के लिए राहुल गाँधी सभी नेताओं को एक मंच पर लाना चाहते थे। लेकिन मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में मायावती, ममता और अखिलेश की अनुपस्थिति ने राहुल के आरमानों पर पानी फेर दिया था।

IAS बी. चंद्रकला के घर में पड़ा CBI का छापा, इस आरोप में फँसी हैं बुरी तरह

आईएएस बी. चंद्रकला वो शख़्स हैं, जो हमेशा से ही अपने तेज-तर्रार रवैये की वज़ह से खबरों में आती रहती हैं। कभी अपने फैसलों को लेकर तो कभी अपने एक्शन को लेकर, लेकिन इस बार वो जिस कारण खबरों में आई हैं, वो उनकी छवि पर सवालिया निशान लगा सकता है।

आज शनिवार (5 जनवरी 2019) की सुबह लखनऊ में उस समय बवाल मच गया, जब सीबीआई का छापा आईएएस बी चंद्रकला के हुसैनगंज स्थित सफायर अपार्टमेंट पर पड़ा। ये छापेमारी अवैध खनन रखने के आरोप में की गई। सीबीआई ने ये जाँच की कार्रवाई हाई कोर्ट के आदेश पर की। इस छापेमारी के दौरान सीबीआई ने महिला आईएएस के घर से कई महत्त्वपूर्ण काग़ज़ात ज़ब्त किए हैं।

एक तरफ जहाँ सीबीआई की एक टीम सफायर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 101 में छापेमारी कर रही थी, वहीं सीबीआई की दूसरी टीम हमीरपुर में 2 बड़े व्यवसायियों के निवास स्थान पर छापा मारा। इन दो बड़े व्यवसायियों का नाम रमेश मिश्रा और सत्यदेव दीक्षित हैं। ये दोनों ही शहर के दो बड़े मौरंग व्यापारी हैं। जाँच के दौरान सीबीआई ने कोई कोताही नहीं बरती। सोफे से लेकर बेड के अंदर तक देखा गया।

आईएएस बी. चंद्रकला की जिलाधिकारी के रूप में पहली बार पोस्टिंग अखिलेश सरकार के काल में हमीरपुर में ही हुई थी। चंद्रकला पर आरोप है कि उन्होंने 2012 में मौरँग खनन के पट्टे कर दिए थे। उस समय ऐसा करना नियमों के ख़िलाफ़ जाना और उनका उल्लंघन करने जैसा था क्योंकि उस समय ई-टेंडर के जरिये मौरँग के पट्टों को स्वीकृत करने का प्रावधान था।

आईएएस बी. चंद्रकला

आपको बता दें, बी चंद्रकला 2008 में आईएएस बनीं थीं। मूलरूप से तेलाँगना की निवासी बी. चंद्रकला को यूपी कैडर दिया गया था। इसके बाद मथुरा और इलाहाबाद में पोस्टिंग के दौरान वो अपने फ़ैसलों और तेज-तर्रार रवैये के कारण खूब चर्चा में रहीं। सोशल मीडिया पर सबसे एक्टिव रहने वाले आईएएस की सूची में वो सबसे जाना-माना नाम हैं, लेकिन अपनी एक गलती के कारण उन्हें सीबीआई की छापेमारी तक झेलनी पड़ी है। अब देखना ये है कि उन पर लगे इन संगीन आरोपों से वो खुद को कैसे बचा पाती हैं।

कुमारस्वामी ने UPA सरकार की योजना को बताया बोगस

कर्नाटक में कॉन्ग्रेस की मदद से सरकार चला रहे मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने अपने ही गठबंधन साथी कॉन्ग्रेस की योजना पर निशाना साधा है और उसे फर्जी करार दिया है। RTE यानी शिक्षा के अधिकार योजना को आड़े हाथों लेते हुए कुमारस्वामी ने कहा कि ये एक ऐसी योजना है जिसकी मदद से निजी विद्यालय काफी बड़े स्तर पर लूट मचा रहे है। सीएम ने ये बातें 84वें कन्नड़ साहित्य सम्मलेन में कही। कुमारस्वामी ने कहा कि RTE को सबको शिक्षा का अधिकार देने के लिए अस्तित्व में लाया गया था लेकिन अब यह निजी विद्यालयों के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने का जरिया बन रहा है और इसकी कीमत सरकारी स्कूलों को चुकानी पड़ रही है।

बता दें कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम को अप्रैल 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा पूरे देश में लागू किया गया था। इस अधिनियम के तहत यह लक्ष्य रखा गया था कि पांच साल के भीतर 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों तक बुनियादी शिक्षा पहुंचा जाएगी। हलांकि ये क़ानून अपने लक्ष्य से काफी पीछे रह गया था और 2015 के शुरुआत में जब इसके पांच साल पूरे हुए तब ये खुलासा हुआ कि देश के 92 प्रतिशत विद्यालय इसके मानकों को पूरा नहीं कर रहे थे। उस समय जारी हुई “डाईस रिपोर्ट 2013-14” में कहा गया था कि इस क़ानून के मापदंडों को पूरा करने के लिए करीब 14 लाख और शिक्षकों की आवश्यकता है।

कुमारस्वामी का ताजा बयान इसीलिए चौंकाने वाला है क्योंकि वो अभी कॉन्ग्रेस की मदद से ही कर्नाटक में सरकार चला रहे हैं और मुख्यमंत्री बने हुए हैं और ये कानून भी तभी पारित किया गया था जब केंद्र में कॉन्ग्रेस नीत गठबंधन की सरकार थी। इसके अलावा सीएम ने कर्नाटक के सरकारी विद्यालयों में अंग्रेजी शिक्षा की भी वकालत की और कहा कि वो कन्नड़ को बचाने और उसे बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह संकल्पित हैं लेकिन सरकारी विद्यालयों में अंग्रेजी लाने के लिए वह बाध्य हैं। उन्होने कहा कि ये विद्यार्थियों के भविष्य के लिए किया गया है।

ज्ञात हो कि बीते जुलाई में कर्नाटक सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम को अंग्रेजी रखने का फैसला लिया था। इस का पूरे राज्य भर में विरोध हुआ था और आलोचकों ने जेडीएस सरकार पर मातृभाषा कन्नड़ को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया था।

अभी कल ही कुमारस्वामी के पिता और जेडीएस के अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा का भी ऐसा ही कुछ बयान आया था जिससे पता चलता है कि कर्नाटक में जेडीएस-कॉन्ग्रेस में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने कॉन्ग्रेस को नसीहत देते हुए कहा था कि वो क्षेत्रीय दलों से अच्छा बर्ताव करे। उसके इस बयान पर कॉन्ग्रेस ने भी प्रतिक्रिया दी थी और पार्टी के राज्याध्यक्ष दिनेश गुंडू ने राज्य के जेडीएस नेताओं को सार्वजनिक तौर पर ऐसे बयान न देने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा था उन नेताओं को जमीनी हकीकत समझनी चाहिए।

इसके अलावा देवेगौड़ा ने अपने बेटे मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बारे में कहा था कि उन्हें गठबंधन सरकार चलाने के लिए काफी पीड़ा उठानी पड़ रही है। उन्होंने उन्हें ये पीड़ा बर्दाश्त करने की सलाह दी थी। विश्लेषकों का मानना है कि जेडीएस इस साल होने वाले लोकसभा के चुनावों में राज्य की एक तिहाई सीटों पर दावेदारी ठोकना चाहती है जिसके लिए ऐसे बयान देकर कॉन्ग्रेस पर दबाव बनाया जा रहा है।

बता दें कि आगामी लोकसभा चुनावों के लिए सीटों के बटवारे को लेकर अभी तक कॉन्ग्रेस और जेडीएस के बीच कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है और नेताओं ने कहा कि अभी इस बारे में बातचीत चल रही है।

SC ने ख़ारिज की हिज़्बुल मुजाहिदीन के सरगना सैयद सलाउद्दीन के बेटे की ज़मानत याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने हिज़्बुल मुजाहिदीन सरगना और आतंकवादियों की घोषित वैश्विक सूची में शामिल सैयद सलाउद्दीन के पुत्र शाहिद युसुफ़ की ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी है। न्‍यायालय ने कहा कि निचली अदालत द्वारा जाँच पूरी करने के लिए राष्‍ट्रीय जाँच एजेंसी को और समय दिए जाने के बाद अभियुक्‍त को ज़मानत नहीं दी जा सकती।

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और दिल्ली उच्च न्यायालय के फ़ैसलों में कोई अवैधता नहीं है जिसने पहले उनकी ज़मानत याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था।

फ़िलहाल युसुफ़ न्यायिक हिरासत में है जिसे राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने 24 अक्टूबर 2017 को सेंट्रल कश्मीर के बड़गाम से गिरफ़्तार किया था। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने आरोप लगाया है कि शाहिद युसुफ़ का संबंध प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हिज़्बुल मुजाहिदीन से थे और वह अपने पिता के निर्देश पर सऊदी अरब में एक आतंकवादी संगठन से धन एकत्र कर रहा था। आतंकवाद फैलाने के लिए पाकिस्तान से जम्मू और कश्मीर तक हवाला के ज़रिए फंड भेजे जाने की सूचना के आधार पर यूसुफ़ के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया था।

‘पूजा के समय थूकते, मंदिर में कूड़ा फेंकते थे कट्टरपंथी’ – बहराइच में पथराव से खून-खराबा

बृहस्पतिवार को उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले में हिन्दू समाज की आस्था से जुड़े एक घटना स्थल पर समुदाय विशेष की दबंगई और जबरन कब्जा करने का मामला सामने आया है। ताज़ा रिपोर्ट्स के अनुसार समुदाय विशेष के लोगों ने बहराइच के फखरपुर थाना के कुड़ास पारा गाँव पर धावा बोलकर हिन्दुओं पर पथराव और हमला किया, जिसमें बहुत से लोग घायल हुए हैं। इस हिंसा में दूसरे समुदाय के लोगों ने भाजपा बूथ अध्यक्ष को भी पीटकर लहूलुहान कर दिया ।

ग्रामीणों का कहना है कि इन लोगों की इस प्रकार की हिंसात्मक घटनाओं के बारे में थाना फखरपुर और एसडीएम तक को पहले भी कई बार अवगत कराया गया था लेकिन उनकी बात पर अमल नहीं किया गया। उनका कहना है कि पुलिस द्वारा इस मामले को लगातार अनदेखा करने के कारण भी समुदाय विशेष को इस प्रकार की हिंसा करने की आजादी मिल पायी है।

स्थानीय समाचारपत्रों की मानें तो कुड़ास पारा में खास समुदाय द्वारा लगातार इस प्रकार की हिंसक घटनाओं को अंजाम देने के कारण ग्रामीण चिंतित हैं और उनमें से कुछ का कहना है कि अगर इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी तो सभी ग्रामवासी सामूहिक रूप से धर्म परिवर्तन कर लेंगे। साथ ही लोगों ने कहा कि अगर योगी सरकार में हिन्दूओं को धार्मिक स्थल पर पूजा करना अपराध है तो बेहतर यही होगा कि वे अपना धर्म परिवर्तन कर दें।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस विभाग का ग्रामीणों की शिकायत को नज़रअंदाज करने का ये नतीजा रहा कि समुदाय के लोगों ने घटनास्थल पर हिंदुओं को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा और हिन्दू बस्तियों पर पथराव भी किया। इस पथराव और हिंसा में भाजपा बूथ अध्यक्ष मूलचन्द्र के साथ ही बहुत सारे लोग घायल हुए हैं। मामले की गंभीरता को देखने के बाद बहराइच के एसपी गौरव ग्रोवर ने घटनास्थल पर पुलिस और पीएएस को तैनात कर दिया है और सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने वाले अराजक तत्वों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज़ कर गिराफ़्तार करने के आदेश दिये हैं।

घटना कुड़ास पारा गाँव में स्थित प्राचीन सावित्री वट पूजा स्थल की है, जहाँ पर हिन्दू श्रद्धालु बहुत सालों से पूजा-पाठ और कथा करते आए हैं। पीड़ितों का कहना है कि समुदाय विशेष द्वारा इस प्राचीन पवित्र स्थान पर कब्जा करने कि नीयत से मैला, कचरा और जानवरों के अवशेष फेंककर दूषित करने का काम किया जाता रहा है।

पूजा-पाठ के दौरान यह समुदाय विशेष हिन्दू श्रद्धालुओं पर थूकने, कूड़ा फेंकने और धमकाने का भी काम करते हैं। इस बात पर हिंदुओं द्वारा आपत्ति व्यक्त करने पर उन्हें धमकाया और डराया जाता रहा है। इस मामले की जानकारी जब थाना फखरपुर को दी गयी तो उनका उदासीन रवैया मानो इस हिंसा के होने का इंतजार कर रहा था।

कहीं ना कहीं यह मामला जबरन धर्म परिवर्तन और हिन्दू पवित्र स्थलों पर कब्जा करने का है। एक ओर जहां देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिसमें देश का तथाकथित लिब्रल वर्ग समुदाय विशेष को इस देश में असुरक्षित बता रहा है, वहीं धरातल पर सच्चाई क्या है, ये कुड़ास पारा गाँव की घटना बताती है।

ऑपइंडिया द्वारा अंतिम बातचीत तक घटनास्थल पर पंचायत के द्वारा दोनों समुदायों को आपसी वार्तालाप के लिए बुलाया गया है। कुड़ास पारा गाँव अभी भी तनावग्रस्त है।

कॉन्ग्रेस ने किया किसानों को कर्ज़ के लिए मजबूर, अब कर रही है कर्जमाफ़ी के नाम पर गुमराह: PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज शनिवार को अपने झारखंड दौरे पर हैं, जहाँ पलामू जिले से उन्होंने कई योजनाओं का शिलान्यास किया। झारखंड के पलामू पहुँचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई विकास परियोजनों की आधारशिला रखी, जिनमे उत्तरी कोयल (मंडल बांध) परियोजना और कनहर स्टोन पाइपलाइन सिंचाई प्रणाली के पुनरुद्धार की प्रमुख हैं।

शिलान्यास के बाद प्रधानमंत्री ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि किसान अगर आज कर्ज़ लेने के लिए मजबूर हुआ है तो इसके पीछे कॉन्ग्रेस की किसान-विरोधी नीतियों का योगदान रहा है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज़ादी के बाद साठ सालों तक किसानों ने कॉन्ग्रेस सरकार को अवसर दिया लेकिन किसानों कि दशा नहीं सुधरी है।

‘कॉन्ग्रेस के लिए किसान है सिर्फ वोटबैंक, हमारे लिए है अन्नदाता’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भाजपा और कॉन्ग्रेस में सबसे बड़ा अंतर ये है कि कॉन्ग्रेस हमेशा किसानों को वोट बैंक की तरह देखती आई है, जबकि उनके लिए किसान अन्नदाता हैं। उन्होंने कहा कि यदि कॉन्ग्रेस ने समय रहते किसान हितों की परियोजनाओं को पूरा किया होता, तो आज देश का किसान कर्ज़ लेने के लिए मजबूर नहीं होता और अब कॉन्ग्रेस किसानों को कर्जमाफ़ी के नाम पर गुमराह कर रही है ।

प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के लिए लाई गई योजनाओं के बारे में कहा, “देश के उज्जवल भविष्य के लिए देश के किसानों को ताकतवर बनाने की दिशा में हम आगे बढ़ रहें है। हम किसानों और देश की सेवा को अपना धर्म मानकर कार्य कर रहें है। बीच से बाज़ार तक नई व्यवस्था खड़ी करके हम किसान को सशक्त कर रहें है। पहले की योजनाएँ जो नामों के आधार पर चली वो आज जमीन पर दिखाई नहीं पड़ती हैं, हमारी सरकार नाम के झगड़ों में ना पड़कर काम करने पर विश्वास करती है।”

पीएम मोदी ने कहा कि उनकी सरकार योजना के लाभार्थियों को सीधा खातों में पैसा जमा कर के पारदर्शिता और ईमानदारी से काम कर रही है और वर्तमान सरकार में बिचौलियों और दलालों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा, “देश में रिमोट कंट्रोल वाली सरकार ने पाँच साल में गाँवों में मात्र 25 लाख घर बनवाए, जबकि हमने पाँच साल से भी कम समय में एक करोड़ पच्चीस लाख घर बनवा दिये हैं जो कि मात्र चारदीवारी नहीं, बल्कि उन तमाम मूलभूत सुविधाओं वाले घर हैं जो कि एक परिवार के लिए आवश्यक होती हैं।”

पलामू में जनसभा को सम्बोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि NDA सरकार मध्यमवर्गीय परिवार का भी ध्यान रख रही है। सरकार उन्हें हाउस लोन में राहत दे रही है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह कथन उनकी सरकार का ध्येय भी है और लक्ष्य भी है।

इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ओड़ीसा रवाना हो गए जहाँ वो ₹7,732 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे । प्रधानमंत्री बारीपाड़ा में आईओसीएल की एलपीजी पाइपलाइन परियोजना का बालासोर-हल्दिया-दुर्गापुर खंड और बालासोर मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक पार्क राष्ट्र को समर्पित करेंगे।

अब सांसदों पर निगरानी रखना होगा आसान, सुमित्रा महाजन ने इस वेबसाइट का किया लोकार्पण

लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सांसदों पर निगरानी रखने के लिए एक ऑनलाइन वेबसाइट का लोकार्पण किया है। इस वेबसाइट के जरिये जनता सीधे अपने जनप्रतिनिधियों से जुड़ सकेगी। इस वेबसाइट का नाम पार्लियामेंट्री बिजनेस डॉट कॉम दिया गया है। इस वेबसाइट की जिम्मेदारी प्रबंध संपादक के रूप में नीरज गुप्ता को दी गई है। नीरज गुप्ता ने लोकार्पण के दौरान बताया कि इस वेबसाइट के लांच होने के बाद जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय होगी।

संवाद आसान बनाने की पहल

इस वेबसाइट के जरिये जनता और सांसदों के बीच संवाद को आसान बनाया जाएगा। इस वेबसाइट पर लॉगिन के बाद आप अपने क्षेत्र के सांसद को किसी भी समस्या से अवगत करा सकते हैं। इस तरह अपनी बात को जनप्रतिनिधियों के सामने रखने के लिए आपको कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है।  

सदन की कार्यवाही का हर पल अपडेट

आपको बता दें कि सदन से जुड़ी जानकारी के लिए सत्र खत्म होने का इंतजार नहीं करना होगा। इस वेबसाइट के जरिये देश भर के सांसद जुड़े होंगे। इन सांसदों के काम-काज से लेकर सदन के हर पल की जानकारी वेबसाइट पर अपडेट होगी। यदि आप अपने क्षेत्र के सांसद के कामकाज के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप उनके नाम या लोकसभा क्षेत्र पर क्लिक करने के बाद उनसे जुड़ी जनकारी को देख सकेंगे। किसी भी सांसदों के द्वारा पूछे गए सवाल और उनके जवाब को भी आप पढ़ सकते हैं।

सांसद के परफॉर्मेंस को जांचने का माध्यम

इस वेबसाइट के जरिये देश भर के सांसदों के कामकाज का भी आकलन किया जाएगा। बेस्ट सांसद का चुनाव इस आधार पर होगा कि किसी सांसद ने अपने मद से कितने रूपए जनकल्याण या विकास कार्यों के लिए खर्च किया है,या किस सांसद ने अपने क्षेत्रीय समस्या को सही तरह से हल करने का प्रयास किया है। इस तरह साल में एक बार सांसदों के कामकाज सांसद में उपस्थिति आदि के आधार पर एक रैंकिंग लिस्ट जारी की जाएगी।  

कॉन्ग्रेस ने सत्ता में बने रहने के लिए संविधान के साथ खिलवाड़ किया?

25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण के दौरान डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा “अध्यक्ष महोदय किसी देश का संविधान कितना अच्छा या बुरा है, यह सिर्फ संविधान की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है। किसी देश का संविधान चाहे जितना भी अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है, यदि उसके अनुसरण करने वाले लोग बुरे हो जाएँ।”

इस ऐतिहासिक भाषण के दौरान डॉ अंबेडकर ने जो कुछ भी कहा देश की आजादी के बाद आम जनता को वैसा ही कुछ देखने और सुनने को मिला। आजादी के बाद देश की बागडोर कांग्रेस पार्टी के हाथों में चली गई।

कांग्रेस सरकार ने सत्ता में बने रहने के लिए संविधान को औजार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इसके बाद कईयों बार जनता के मौलिक अधिकार को कुचला गया। यही नहीं वक्त पड़ने पर संविधान की मूल आत्मा को भी नजरअंदाज कर दिया गया। आम जनता को कईयों बार अपने मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए सरकार के खिलाफ कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पड़े।

आजादी के बाद देश की भोली-भाली जनता को संविधान के बारे में बताकर सही मायने में संविधान को सार्थक बनाने का प्रयास सत्ता में काबिज कांग्रेस पार्टी के नेता नेहरू हो या शास्त्री किसी ने भी नहीं किया। 

समाजवादी नीति के लिए संविधान संशोधन

यह जरूरी नहीं है कि संविधान का संशोधन सिर्फ जनता के हितों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है। कई बार सरकारें विचारधारा के आधार पर अपने फायदे के लिए जो फैसला लेती है, उसके रास्ते की रूकावटों को दूर करने के लिए भी संविधान का संशोधन करती है। उदाहरण के लिए संविधान लागू होने के पहले ही साल 1951 में नेहरू सरकार ने संविधान में पहला संशोधन कर दिया। इस संशोधन के जरिये नेहरू ने स्वतंत्रता, समानता एवं संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने संबंधी कुछ व्यवहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया। यही नहीं इस संशोधन में नेहरू सरकार द्वारा पहली बार आम लोगों के अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर उचित प्रतिबंध की व्यवस्था भी की गई। नेहरू के इस फैसले का श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने विरोध किया था।

दरअसल कोर्ट ने नेहरू सरकार के जमींदारी उन्मूलन कार्यक्रम में मौलिक अधिकारों का हनन बताकर सरकार के फैसले को अस्वीकार कर दिया था। कोर्ट के मुताबिक नेहरू सरकार अपने फैसले को जिस तरह से लागू करना चाहती थी, उससे संविधान में दर्ज आर्टिकल 19 व 31 के तहत लोगों के मौलिक अधिकारों की अवहेलना होती। क्योंकि इस समय संपत्ति के अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों में शामिल थे। इस तरह कोर्ट द्वारा सरकार के खिलाफ सुनाए गए फैसले के बाद नेहरू सरकार ने अपने रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करने के लिए संविधान में संशोधन किया। इस संशोधन के जरिये संविधान के 9वें शेड्यूल का फायदा उठाकर नेहरू ने आमलोगों से सरकार के खिलाफ कोर्ट जाने के अधिकार को छीन लिया। इस तरह अधिकारों के हनन होने की स्थिति में भी सरकार के खिलाफ न्यायिक समीक्षा का रास्ता बंद कर दिया गया।

1951 में मुख्यमंत्रियों को भेजे गए एक पत्र में नेहरू ने लिखा कि संविधान के मुताबिक न्यायपालिका की भूमिका चुनौती देने से बाहर है। लेकिन अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच में आ जाए तो हर हाल में संविधान में परिवर्तन करना चाहिए। नेहरू ने सत्ता में आने के बाद सत्ता में बने रहने के लिए पत्र में लिखे बातों का अक्षरशः पालन करते हुए संविधान को हथियार के रूप में ही इस्तेमाल किया। नेहरू के इस फैसले ने न सिर्फ गलत मिसाल पेश की बल्कि इसने संविधान में नई अनुसूची को भी जन्म दिया।

तब नेहरू के इस फैसले का विरोध करते हुए एसपी मुखर्जी ने कहा था कि देश के संविधान के साथ रद्दी काग़ज़ जैसा व्यवहार किया जा रहा है। इस संशोधन के तीन साल बाद 1954 में एक बार फिर अपनी विचारधारा की सनक पर आधारित विकास मॉडल को जमीन देने के लिए नेहरू ने संविधान में चौथा संशोधन कर दिया। इस बार सरकार की कोशिश इस बात की थी कि अगर सरकार निजी संपत्तियों का अधिग्रहण करती है, तो मुआवजे को लेकर सरकार से सवाल पूछने का कोई हक कोर्ट के पास नहीं हो।

इस तरह एक बार फिर नेहरू सरकार ने न्यायपालिका के अधिकार को कम कर दिया। नेहरू ने संविधान में संशोधन के जरिये लोगों के मौलिक अधिकारों को कम करने की एक गलत परिपाटी शुरू की। इसका बुरा परिणाम यह हुआ कि आगे आने वाले समय में कई सरकारों ने संविधान संशोधन के जरिये न्यायपालिका समेत आम लोगों के अधिकारों को कम करना शुरू कर दिया। फलस्वरूप 1973 में केशवानंद केस में 13 जजों की बेंच ने नेहरू और बाद में इंदिरा सरकार के फैसलों को एक तरह से गलत साबित कर दिया। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि कोई भी सरकार संविधान के मौलिक स्ट्रक्चर में कोई बदलाव नहीं कर सकती है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में कोर्ट को न्यायिक समीक्षा करने से भी कोई नहीं रोक सकता है।

क्या आप जानते हैं ?

दुनिया भर के दूसरे देशों की तुलना में भारतीय संविधान का आकार काफी बड़ा है। वर्तमान समय में हमारे देश का संविधान 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 22 भागों में विभाजित है। इतनी सारी चीजों को एक साथ अपने अंदर समेटने की वजह से आमलोगों के लिए संविधान को समझ पाना बेहद जटिल हो गया है। इस जटिलता की वजह से ही संविधान को वकीलों का स्वर्ग भी कहा जाता है। जटिलता का फायदा उठाकर कई बार सरकारें अपने फायदे के लिए संविधान संशोधन कर देती है। लेकिन इस संशोधन के बाद जनता के हिस्से में क्या आया? यह न तो जनता जानना चाहती है और न ही सरकार बताना चाहती है। जनता के संवैधानिक अधिकारों के साथ छलावा न हो इसके लिए पहली बार नरेंन्द्र मोदी की सरकार ने 26 नवंबर 2015 से देश भर में संविधान दिवस मनाने का फैसला किया। संविधान दिवस मनाने का मकसद नागरिकों में संविधान के प्रति जागरूकता पैदा करना है।

वो पाँच संशोधन जिसने संविधान को नेस्तनाबूद कर दिया

नेहरू ने संविधान संशोधन के जरिये न्यायपालिका के अधिकारों क सीमित करने की शुरूआत की। लेकिन इस मामले में इंदिरा गाँधी अपने पिता से भी आगे निकल गयीं। राम मनोहर लोहिया ने जिस इंदिरा के लिए कई बार ‘गूंगी गुड़िया’ शब्द इस्तेमाल किया, उस इंदिरा ने संविधान के पांच कानून को बदलकर ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया’ को ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा’ बना दिया।

1975 में जयप्रकाश नरायण के नेतृत्व में इंदिरा के खिलाफ लोग सड़क पर आ गए। ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का नारा देश भर में गूँजने लगा। इसी समय इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा के चुनाव को गलत बताते हुए रद्द कर दिया। फिर क्या था देश में 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित कर दिया। यही नहीं 22 जुलाई 1975 को संविधान का 38वाँ संशोधन करके आपातकाल पर न्यायिक समीक्षा का रास्ता बंद कर दिया। सत्ता में बने रहने के लिए इतना ही नहीं किया, बल्कि आगे चलकर प्रधानमंत्री पद पर खुद को बनाए रखने के लिए इंदिरा गाँधी ने संविधान में 39वाँ संशोधन किया।

इसके बाद सरकार द्वारा 40वें व 41वें संशोधन के जरिये 42वां संशोधन लाया गया। इस तरह संविधान में इन पाँच बड़े बदलाव के जरिये देश के पूरे प्रशासनिक तंत्र को इंदिरा ने अपने हाथों की कठपुतली बना दिया। इंदिरा ने 42वें संशोधन के दौरान संविधान के प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्दों को जोड़ दिया। इंदिरा द्वारा संविधान के प्रस्तावना में किए गए बदलाव के खिलाफ कई बार भाजपा समेत दूसरी पार्टी के नेताओं ने विरोध किया है। यही नहीं इंदिरा के इन फैसलों ने देश के न्यायिक व्यवस्था को एक तरह से पंगू बना दिया। इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार ने 43वें संशोधन के जरिये उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय को उनके अधिकार वापस दिलाए।

राजीव ने भी पद के लिए संविधान संशोधन किया

नेहरू और इंदिरा के बाद राजीव गाँधी ने भी सत्ता में आते ही संविधान संशोधन के जरिये अपना मकसद पूरा करने का प्रयास किया। 23 अप्रैल 1985 को  मोहम्मद अहमद खान वर्सेस शहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने 60 वर्षीय महिला शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके फैसले में शाहबानो और उसके पाँच बच्चों को भरण पोषण के लिए उसके पति द्वारा भत्ता दिए जाने की बात कही गयी।

लेकिन मुस्लिम धर्म गुरूओं के दवाब में राजीव गाँधी ने सदन में मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 लाकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया। राजीव गाँधी के इस फैसले का हिंदूवादी संगठनों ने मुस्लिम तुष्टिकरण कहकर आलोचना करना शुरू किया। इस तरह मौका हाथ से निकलते देख हिंदूओं को अपनी तरफ झुकाने के लिए राजीव सरकार ने अयोध्या मंदिर के ताला को खुलवाने में अहम भूमिका निभाई। इस तरह अपनी माँ और नाना के तरह ही राजीव गाँधी ने भी सत्ता पर बने रहने के लिए संविधान को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।

सबरीमाला: बढ़ते तनावों में 52 साल के एक बुज़ुर्ग की दर्दनाक मौत, केरल मुख्यमंत्री का बेकार-सा बचाव

सबरीमाला मामला दिन पर दिन तूल पकड़ता जा रहा है। कुछ दिन पहले 40 वर्ष से ऊपर की दो महिलाओं के मंदिर में घुस जाने की वजह से केरल में काफी हिंसा देखने को मिली। ऐसे हालातों में सबरीमाला कर्म समिति ने केरल बंद बुलाया, साथ में तमिलनाडु से केरल में प्रवेश करने वाली सभी सरकारी बसों को रोका जाने लगा। इन सबकी वजह से स्थिति बेहद बिगड़ने लगी।

विरोध प्रदर्शन के दौरान सबरीमला कर्म समिति और सीपीएम समर्थकों के बीच पंडालम में काफ़ी कहा-सुनी हुई। जिसमें 52 वर्षीय चंद्रन उन्नीथन नाम के शख़्स की चोट लगने से मौत हो गई, इस मामले में पुलिस ने दो लोगों को हिरासत में भी लिया। लेकिन मामले में पारदर्शिता नहीं बन पाई क्योंकि अस्पताल कुछ और कहता रहा और मुख्यमंत्री जी कुछ अलग ही बयान देते रहे।

जानें पूरा मामला

चंद्रन उन्नीथन नाम के इस व्यक्ति को चोट लगने के बाद बुधवार देर रात अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उनकी मौत हो गयी। शव परीक्षण के बाद चंद्रन की मौत का कारण डॉक्टर ने सिर पर चोट लगना और शरीर से ज्यादा खून बह जाना बताया है। ये शव परीक्षण गुरुवार (3 जनवरी 2019) की सुबह कोट्टायम सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में किया गया।

हैरान करने वाली बात ये है कि शव परीक्षण करने वाले डॉक्टरों का बयान मुख्यमंत्री पिनरई विजयन से बिल्कुल अलग है। पिनरई विजयन के बताए अनुसार चंद्रन की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई है। वहीं डॉक्टरों का कहना है कि मौत का कारण सिर पर गहरी चोट लग जाने के कारण हुई है।

विजयन ने गुरुवार की सुबह मीडिया से हुई बातचीत में कहा कि पंडलाम में बुधवार को शाम 6:30 बजे के करीब काफी तनाव का माहौल था, जिसमें चन्द्रन उन्नीथन घायल हुए थे। मुख्यमंत्री जी की यदि मानें तो दिल का दौरा पड़ने की वज़ह से रात 11:00 बजे बिलिवर चर्च अस्पताल में चंदन की मौत हो गयी।

हालाँकि, कोट्टायम सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल और बिलिवर चर्च अस्पताल दोनों की रिपोर्ट्स की मानें तो चंद्रन की मौत की वज़ह केवल सर पर गहरी चोट लगने के बाद निकले खून की वजह से हुई है। ये बात और है कि कोट्टायम मेडिकल कॉलेज के स्त्रोतों से मालूम पड़ा है कि यूँ तो चंद्रन दिल के रोगी थे, लेकिन ये एक ऐसी चोट थी जिसके लगने से खून बहा और मौत हुई।

बिलिवर चर्च अस्पताल द्वारा दिए गए विवरण में- चंद्रन के सीधे कान, नाक से और मुँह से लगातार खून बह रहा था। करीब 9:50 पर उन्हें दिल का दौरा भी आया। चिकित्सीय रूप से उनकी मौत रात 10:48 मिनट पर हुई।

आपको बता दें कि चंद्रन, सबरीमाला कर्म समिति के सदस्य थे। इस समिति का कार्य माहवारी होती महिलाओं को मंदिर में जाने से रोकना था। इस पूरे मामले में सीपीएम के दो कैडर्स को गिरफ्त में लिया गया है। चंद्रन के घरवालों के कहना है कि सीपीएम के ये कैडर ऑफिस में मौजूद थे।

इन्होंने किसी के बिन उकसाये ही रैली पर पत्थरबाजी करनी शुरू कर दी थी। जबकि सीपीएम के कैडर्स ने समारा समिति के लोगों पर आरोप लगाया है कि रैली में मौजूद लोगों द्वारा पहले पथराव किया गया था। इसके साथ ही पुलिस ने मीडिया को बताया कि समारा समिति द्वारा किया गया प्रदर्शन बिना अनुमति के था। इसलिए परिस्थितियाँ इतनी ज्यादा बिगड़ीं।