Sunday, November 17, 2024
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2019 लोकसभा चुनाव में क्या होगा महागठबंधन का भविष्य ?

प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने हाल ही में न्यूज एजेंसी एएनआई को करीब डेढ़ घंटे का इंटरव्यू दिया। उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा कि विरोधी पार्टियों के पास मोदी को हराने के लिए कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि महागठबंधन की आड़ में कुछ अवसरवादी पार्टियाँ और नेता अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। महागठबंधन के मौजूदा प्रदर्शन को देखते हुए और उनके नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षाओं से सने हुए शब्दों को सुनकर यही लगता है कि मोदी को हराने के लिए ये नेता किसी भी स्तर तक नीचे गिर सकते हैं।

यदि आप महागठबंधन के भविष्य के बारे में जानना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हाल-फिलहाल की कुछ घटनाओं को समझना होगा। पहली घटना अक्टूबर 2018 की है जब तीन राज्यों में होने वाली विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही एक तरफ जहाँ वायुमंडल का पारा नीचे गिरने लगता है, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक माहौल का पारा ऊपर चढ़ने लगता है।

ठीक इसी समय बसपा (बहुजन समाज पार्टी) सुप्रीमो मायावती ने कड़ा रुख़ अख़्तियार करते हुए एक के बाद एक बयानों की मानो झड़ी ही लगा दी हो। उनके इन बयानों ने राजनीतिक माहौल को और अधिक गर्मा दिया है जो बहुतों के लिए सिरदर्दी का कारण भी बन गया है। अपने एक बयान में उन्होंने कड़े अंदाज़ में ये मांग की है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 में यदि कांग्रेस या अन्य पार्टी उन्हें सम्मानजनक सीटें देती है तो ठीक, वर्ना वो किसी से भीख नहीं मांगेंगी।

दूसरी घटना इसके ठीक एक महीने बाद नवंबर की है जब ममता बनर्जी ने चंद्र बाबू नायडू से मिलने के बाद साफ शब्दों में कहा कि कोई एक नहीं हर कोई महागठबंधन का चेहरा होगा। इसके बाद अब बारी तीसरी घटना की जो कि दिसंबर 2018 की है। तीन राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान महागठबंधन का हिस्सा बताए जाने वाले तीन बड़े नेताओं – ममता बनर्जी, अखिलेश यादव व मायावती – ने समारोह से नदारद रहकर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी।

इन सभी घटनाओं से साफ है कि महागठबंधन में कोई एक मान्य नेता नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि महागठबंधन का माजरा बिन दूल्हा बारात जैसा ही है। कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखने के बाद पता चलता है कि केंन्द्र हो या फिर राज्य, जब कभी कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई, इस पार्टी ने अपने शर्तों और हितों को जरूर आगे बढ़ाया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मायावती ने 2 अप्रैल 2018 में कानून व्यवस्था बदहाल करने वाले दलितों के मुकदमे को वापस लेने की बात कही है।

इससे साफ हो गया कि यदि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद महागठबंधन बनता है तो सभी पार्टियों द्वारा अपनी-अपनी शर्तें थोपी जाएँगी। इस गठबंधन की जिम्मेदारी किसी एक पार्टी के पास नहीं होगी। हर पार्टी लूट-खसोट में लग जाएगी। इस तरह हम कह सकते हैं कि हालात कुछ ऐसे होंगे कि, ‘तुम मेरी पीठ खुजाओ, मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊँगा’। महागठबंधन के बनने से देश कैसे प्रभावित होता है इसके बारे में इतिहास की कुछ घटनाओं को याद किया जा सकता है।

जब इंदिरा सरकार ने चरण सिंह पर थोपी स्वार्थी शर्तें

इमरजेंसी के बाद अगस्त 1979 की बात है। जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद केंन्द्र में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी थी। इस सरकार को बाहर से इंदिरा का समर्थन था। इंदिरा गांधी ने कुशल राजनीतिक व्यापारी की तरह चौधरी साहब से तोल-मोल करना शुरू कर दिया। इंदिरा चाहती थी कि इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार ने संजय गांधी के उपर जो मुकदमें लगाए हैं, उन सभी मुकदमों को वापस लिया जाए। किसान नेता चौधरी साहब ने यह शर्त मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद कांग्रेस के हितों को सरकार द्वारा किनारा किये जाने के बाद कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इस तरह चौधरी साहब की नेतृत्व वाली सरकार गिर गयी।

भ्रष्टाचार के मामले पर राजीव गांधी का दबाव

यह बात उत्तर प्रदेश के बलिया वाले बाबू साहब के सरकार की है। बलिया के बाबू साहब इन दिनों राजीव गांधी की मदद से देश की सत्ता में बैठे थे। राजीव गांधी ने भी अपनी माँ की तरह ही मौका मिलते ही अपनी शर्तों को सरकार के ऊपर थोप दिया। अपने बिंदास अंदाज़ वाले बाबू साहब को यह शर्त नागवार गुजरी, उन्होंने राजीव के इस फैसले को ठुकरा दिया। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन-सी शर्त थी जिसके चलते चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद तक की परवाह नहीं की। दरअसल राजीव बोफोर्स के मामले को दबाना चाहते थे। इस मामले को रफा-दफा करने से सरकार ने मना कर दिया जिसके बाद बाबू साहब को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।

कर्नाटक में भी शर्तों पर ही समर्थन

2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा को कांग्रेस ने अपने दांव पेंच के जरिये सरकार बनाने से रोक दिया। कर्नाटक में जेडीएस (जनता दल सेक्यूलर) और कांग्रेस के साथ गठबंधन बनने के बाद वेणुगोपाल ने कहा कि राहुल गांधी जी ने कहा है कि गठबंधन सरकार देश की जरूरत है। देश के बड़े हितों को ध्यान में रखकर कुछ फैसले लिए जाते हैं। इस तरह वेणुगोपाल ने माना कि कांग्रेस जेडीएस के सभी शर्तों को मानने के लिए तैयार है।

यही नहीं राज्य के वित्त मंत्रालय और सिंचाई मंत्रालय जैसे रसूख वाले पद को भी कांग्रेस ने सिर्फ इसलिए हाथ से जाने दिया क्योंकि कांग्रेस जेडीएस को हर हाल में महागठबंधन में बनाए रखना चाहती है। इस तरह दोनों ही राजनीतिक पार्टियों ने अपने –अपने हितों के लिए गठबंधन किया है। जिस दिन उनमें से किसी एक का हित नजरअंदाज होगा, इन पार्टियों का गठबंधन टूट जाएगा।

2019 कहीं अगस्ता एवम् अन्य घोटालों की जाँच दबाने की कोशिश न बन जाए

अगस्ता वेस्टलेंड मामले में सोनियां गांधी का नाम आने के बाद मामले में गांधी पर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा शिकंजा मजबूत होता जा रहा है। ऐसे में यदि महागठबंधन की सरकार आती है तो पहले की तरह ही इस बार भी राहुल बाबा इस संगीन मामले को दबा सकते हैं। यही नहीं अपने जीजा के ऊपर चल रहे मामले को भी राहुल बाबा रफा-दफा कर सकते हैं। इस तरह एक तरह से मोदी के ख़िलाफ़ आने वाली यह महागठबंधन की सरकार भी हितों व स्वार्थ के आधार पर ही बन सकती है।

साथ ही, ऐसे लोगों के एक मंच पर आने से अर्थ यही निकलता है कि किसी भी तरह से एक ऐसी सरकार को सत्ता से बाहर फेंक दिया जाए जो भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख़ रखती है। मोदी सरकार ने न सिर्फ़ भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा कसा बल्कि अपने पूरे मंत्रीमंडल को बेदाग़ बनाए रखने की बात बार-बार कही है, साबित की है। यही कारण है कि अवसरवादी नेता, जिनमें से कई ज़मानत पर बाहर हैं, या जिन पर आरोप तय किए जा रहे हैं, एक साथ आकर ‘मोदी बनाम सारे’ की रट लगाकर, किसी भी क़ीमत पर सत्ता में आना चाहते हैं।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना भड़काऊ, उकसाने वाला और गैरज़रूरी काम: शशि थरूर

अक्सर अपने विवादित बयानों और अजीबोगरीब अंग्रेजी शब्दावली के इस्तेमाल के लिए चर्चा में रहने वाले शशि थरूर ने सबरीमाला मंदिर विवाद पर अपना विचार रखकर सबको चौंका दिया है। शशि थरूर ने इस विषय पर बोलते हुए कहा, “सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना भड़काऊ, उकसाने वाला और गैरज़रूरी काम है।” साथ ही स्पष्टीकरण देते हुए शशि थरूर ने ये भी कहा है कि हालांकि वो महिला सशक्तिकरण के समर्थक हैं, लेकिन फिर भी सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना उकसाने वाला काम है। अपने बयान में शशि थरूर ने ये आरोप भी लगाए हैं कि सी.पी.एम.और भाजपा द्वारा किसी पवित्र स्थान को राजनीति का मंच बना देना एक निंदनीय काम है।

शशि थरूर का ये बयान बुधवार को करीब 40 वर्ष की दो महिलाओं, बिन्दु और कनकदुर्गा के बुधवार सुबह 3.45 मिनट पर मंदिर में प्रवेश करने की घटना के बाद आया है। न्यूज़ चैनल ‘मिरर नाव’ को दिये गए अपने इंटरव्यू में शशि थरूर ने कहा है, “कोई भी महिला जो भगवान अयप्पा में श्रद्दा रखती है, अपनी पचास साल कि उम्र से पहले भगवान अयप्पा कि पूजा नहीं करना चाहेगी।” महिलाओं के प्रवेश के पश्चात मंदिर के ‘शुद्धिकरण’ के फैसले भी देशभर में, विशेषकर लिबरल मीडिया के लोगों ने नाराजगी व्यक्त की है।

क्योंकि सबरीमाला मंदिर विवाद आस्था से जुड़ा हुआ प्रश्न  है, इसीलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा भगवान अयप्पा के मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी मिलने के बाद से ही इस बात पर लगातार बहस का माहौल बना हुआ है, कि क्या वाकई में महिलाओं को इस मंदिर में प्रवेश करना चाहिए या नहीं ?

वहीं वामपंथी मीडिया इस बात से हैरान भी है कि अक्सर महिलाओं के समर्थन में बयान देने वाले शशि थरूर ने अचानक महिलाओं के प्रवेश को उकसाऊ कैसे बता दिया है। शशि थरूर के समर्थकों ने भी ट्वीटर पर शशि थरूर के महिलाओं के प्रति नजरिए के विरोध में ट्वीट कर उनसे अपनी नाराजगी व्यक्त की। कुछ लोगों ने प्रश्न किए कि अगर मंदिर मुद्दे पर भाजपा और सी.पी.एम. हीरो और विलेन का रोल निभा रही है तो फिर काँग्रेस का इसमें क्या योगदान रहा  है ? ट्वीटर पर शशि थरूर के प्रसंशकों ने उनपर अपनी ‘सुविधानुसार उदारवादी’ होने के आरोप भी लगाए हैं।

इस बयान पर बरखा दत्त ने ट्वीट कर के कहा है कि “शशि थरूर ने सबरीमाला पर अपनी स्थिति बदल दी है।”  शशि थरूर ने बरखा दत्त को दिये इंटरव्यू में ये भी कहा है, ” भले ही वो सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन फिर भी वो आस्था के मसले पर जनता कि भावनाओं के साथ हैं। “

शशि थरूर अक्सर सामाजिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर अपनी राय देकर चर्चा मे आ जाते हैं और महिला सशक्तिकरण पर जनता उनके बयानों को लेकर उत्साहित भी रहती है। इसलिए सबरीमाला विवाद पर शशि थरूर का बयान उनके समर्थकों के लिए हतोत्साहित करने वाली घटना रही है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप महिला विरोधी बयान के बाद अपने अगले बयान में शशि थरूर किस दिशा में राय रखते हैं ?

अंतरराष्ट्रीय नोबेल विजेता वैज्ञानिकों ने की पीएम की तारीफ; कहा मोदी समझते हैं विज्ञान का महत्व

विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के दो प्रमुख नोबेल विजेताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा है कि वो विज्ञान का महत्व समझते हैं और भारत में विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए उनके पास नजरिया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि मोदी को ये बात पता है कि विकास के क्षेत्र में विज्ञान का क्या महत्व है। इजराइल के बायोकेमिस्ट अवराम हेर्शको और जर्मन साइकोलोजिस्ट थॉमस सूडहॉफ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ एक अनौपचारिक ‘चाय पे चर्चा’ के बाद ये बातें कही। बता दें कि अभी पंजाब के फगवाड़ा में 106वां भारतीय विज्ञान कांग्रेस आयोजन किया जा रहा है जिसमे भाग लेने के लिए ये दोनों वैज्ञानिक भारत आये हुए हैं। ये कार्यक्रम लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में 3 जनवरी को शुरू हुआ और 7 तक चलेगा।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक खबर के अनुसार समाचार एजेंसी से बात करते हुए इन दोनों ने ये बातें कही। 20014 में ubiquitin-mediated protein degradation की खोज के लिए रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीत चुके अवराम ने कहा कि सभी नेता विज्ञान के महत्व को नहीं समझते लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को इसकी समझ है। उन्होंने कहा;

“अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ये समझते हैं कि विज्ञान और अनुसंधान पैसों की बर्बादी है लेकिन इसके विपरीत प्रधानमंत्री मोदी उनकी तरह नहीं सोंचते। मैंने आज उनसे मिलने के बाद यह निष्कर्ष निकाला।”

पहली बार भारत आए अवराम ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे कुछ सुझाव भी मांगे और उनकी बातों को ध्यान से सुना। वहीं 2013 में नोबेल जीतने वाले सूडहॉफ ने कहा कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार विज्ञान और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए पैसे खर्च नहीं कर रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री मोदी का इस मामले में नजरिया काफी आशावादी है। उन्होंने प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए आगे कहा;

“भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी काफी बुद्धिमान हैं। मुझे आज उनसे मिल कर यही लगा। मोदी ने इस कार्यक्रम के लिए जो तयारी की थी उस से और उनकी विज्ञान की समझ से मैं काफी प्रभावित हूँ।”

सूडहॉफ ने कहा कि पीएम मोदी की मुद्दों पर काफी अच्छी पकड़ है। उन्होंने कहा कि पीएम ने उनकी बातों को ध्यान से सुना और उनसे सहमत भी हुए। बकौल सूडहॉफ, उन्होंने पीएम मोदी को बताया कि देश में विज्ञान और अनुसंधान के लिए एक मौलिक संस्कृति का होना जरूरी है जिस पर प्रधानमंत्री ने हामी भरी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी देश के आर्थिक विकास के लिए ज्ञान पर आधारित संस्कृति के विकास का महत्व समझते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि मोदी के पास विज्ञान और अनुसंधान के महत्व को समझने के लिए बुद्धिमता और समर्पण है।

ज्ञात हो कि कल पीएम मोदी ने जालंधर में 5 दिनों तक चलने वाले 106वें विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन किया था। इस अवसर पर प्रधानमंत्री छात्रों से रूबरू भी हुए और उनके द्वारा बनाये गए रोबोट्स व अन्य उत्पादों को देखा। इस समारोह में देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर से कई शीर्ष वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं।

बिना फ़ीस लिए 1984 दंगा पीड़ितों का केस लड़ने वाले फुल्का ने दिया AAP से इस्तीफा

पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का ने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। एचएस फुल्का को 1984 सिख दंगा के पीड़ितों को इन्साफ दिलाने के लिए मुफ्त में केस लड़ने के लिए भी जाना जाता है। वो पिछले तीस वर्षों से इन मुकदमों में पीड़ितों की तरफ से पैरवी कर रहे हैं। गुरुवार को पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल को एक पत्र लिख कर उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया। अपने पत्र में उन्होंने लिखा;

मैं आम आदमी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देता हूँ। मुझे पार्टी की सेवा करनेका मौक़ा देने के लिए आपका धन्यवाद।”

जब फुल्का से पूछा गया कि क्या आम आदमी पार्टी द्वारा राजीव गाँधी का भारत रत्न वापस लेने सम्बन्धी प्रस्ताव का समर्थन नहीं करने के कारण वो पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि उनके इस्तीफे का सिर्फ एक यही कारण नहीं है बल्कि कई और भी कारण हैं और वो शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस कर बांकी बातों का खुलासा करेंगे। फुल्का के इस्तीफे को पंजाब में AAP के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि इस साल लोकसभा चुनाव भी होने हैं और इस से पार्टी की चुनावी तैयारियों पर भी असर पड़ सकता है। ज्ञात हो कि उन्होंने तीन महीने पहले विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया था। कई लोगों का मानना है कि 1984 सिख दंगा के पीड़ितों के मुक़दमे पर ध्यान देने के लिए उन्होंने ये कदम उठाया है।

एक ट्वीट के माध्यम से फुल्का ने अधिक जानकारी देते हुए कहा;

‘मैंने AAP से इस्तीफा दे दिया है और आज केजरीवाल जी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। यद्यपि उन्होंने मुझे इस्तीफा न देने को कहा लेकिन मै अड़ा रहा। कल शाम 4 बजे प्रेस क्लब, रायसीना रोड में मीडिया से बात करूंगा जहां मैं AAP से अपने इस्तीफे की वजह और आगे के प्लान के बारे में बताऊंगा।’

कुछ दिनों पहले टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बातचीत में फुल्का ने बताया था कि राजनीती में आना उनकी गलती थी। फुल्का ने कहा कि वो राजनीती में इस उम्मीद से आये थे कि कांग्रेस के खिलाफ कोई बड़ा मंच खड़ा हो सके। बता दें कि फुल्का जनवरी 2014 में AAP में शामिल हुए थे और उसी साल हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी की तरफ से उम्मीदवार भी थे। बाद में उन्होंने पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर कार्यभार सम्भाला लेकिन फिर उस पद से भी उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। अभी कुछ दिनों पहले सार्वजनिक तौर पर बयान देते हुए भी फुल्का ने कहा था कि अगर AAP का कांग्रेस के साथ गठबंधन होता है तो वह पार्टी से इस्तीफा दे देंगे।

हलांकि अभी AAP और कांग्रेस में गंथान्बंधन को लेकर कोई खबर नहीं आई है, ऐसे में फुल्का के इस्तीफे की वजह आज होने वाले उनके प्रेस कांफ्रेंस के बाद ही पता चलेगा। इस बारे में पंजाब में विपक्ष के नेता हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि उन्हें फुल्का के इस्तीफे की खबर सोशल मीडिया से मिली है और पार्टी के साथ उनका कोई मतभेद नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि वो पार्टी के लिए पंजाब में एक मजबूत स्तम्भ रहे हैं।

लात मारकर अफसरों को बाहर किया जाएगा: मध्य प्रदेश श्रम मंत्री

15 साल के बाद मध्य प्रदेश की सत्ता हाथ में आते ही कांग्रेस पार्टी के नेता बेलगाम हो गए हैं। पार्टी के नेताओं का जोश में होश खो बैठने जैसा आलम है। मध्य प्रदेश के बमौरी से विधायक व राज्य के वर्तमान श्रम मंत्री महेंन्द्र सिंह सिसोदिया ने विवादास्पद बयान दिया है। अपने क्षेत्रीय दौरे के दौरान उन्होंने कहा, “किसी अधिकारी को फोन लगाओ यदि वह अधिकारी आपकी बात नहीं सुनता है, तो आप मुझे इस बात की जानकारी दो। मैं ऐसे अधिकारियों को राज्य से लात मारकर बाहर करूँगा।”

आपको बता दें कि महेंन्द्र सिंह सिसोदिया की गिनती राज्य के कद्दावर नेताओं में होती है। यही नहीं मध्य प्रदेश की राजनीति में सिसोदिया को ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे का मजबूत नेता माना जाता है। मंत्री साहब का यह बयान सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर ट्रेंड कर रहा है। मंत्री के बयान वाले वीडियो को ट्वीटर पर भी लोग खूब लाइक, डिसलाइक और कमेंट कर रहे हैं। आइए जानते हैं ट्वीटर पर लोगों की क्या प्रतिक्रिया है।

एमएनआई के ट्वीट पर कमेंट करते हुए वॉल्वरीन नाम के एक सोशल मीडिया यूजर ने कमेंट किया ‘साँप को चाहे जितना दूध पिलाओ वो साँप ही रहता है।’

ट्वीटर पर ही एक दूसरे यूजर अंशु चौधरी ने कमेंट किया है ‘देखिये फ्रीडम ऑफ स्पीच की बात करने वाले लोग किस तरह की बात करते हैं। सत्ता में आने के बाद तरह विरोधी को दबाया जाता है, इस मामले में भाजपा को कांग्रेस से सीखने की जरूरत है।’

कुनाल सिंह नाम के एक यूजर ने कमेंट में लिखा है ‘अभी-अभी मंत्री बना है और इतने जल्दी घमंड चढ़ गया इसपे।’  

सुमित सिंह नाम के एक यूजर ने कमेंट में लिखा है ‘फिर तो पप्पू को पहले लात पड़ेगी।’

डरपोक सावरकर नाम के एक यूजर ने लिखा ‘और तुम काम नहीं करोगे तो जनता अगली बार तुम्हें लात मारेगी।’

बढ़ते विवादों पर अनुपम खेर ने तोड़ी चुप्पी, सिनेमा और राजनीति को बताया एक दूसरे का असली चेहरा

राष्ट्रीय अवार्डों से सम्मानित बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार अनुपम खेर अपनी आने वाली फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की वजह से विवादों का हिस्सा बनते जा रहे हैं। कुछ समय पहले उनकी इस फ़िल्म का ट्रेलर लॉन्च हुआ था, जिसके कारण उन्हें काफी सोशल मीडिया पर काफी ट्रॉल किया जाने लगा।

बीते बुधवार, अनुपम खेर को और इस फ़िल्म में उनके साथी कलाकारों पर बिहार, मुजफ्फरपुर के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत भी दर्ज की गई है। जिसकी सुनवाई 8 जनवरी को होनी है। बता दें कि ये शिकायत उनके ऊपर दिग्गज राजनेताओं की छवि बिगाड़ने की वजह से की गई है।

‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को लेकर बढ़ते विवादों की वजह से अनुपम खेर ने बयान दिया है, कि सिनेमा और राजनीति ऐसी चीजें नहीं हैं, जिन्हें एक दूसरे से अलग किया जा सके। अनुपम की माने तो ये दोनों (राजनीति और सिनेमा) एक दूसरे का प्रतिबिंब हैं। इन दोनों के प्रभावों का असर एक दूसरे पर हमेशा से देखने को मिलता रहा है। अनुपम का कहना है कि ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ किसी नेता की छवि बिगाड़ने के लिए बनाई गई फ़िल्म नहीं है, बल्कि इस फ़िल्म में ये दर्शाया गया है कि किस तरह एक साधारण व्यक्ति अपनी क्षमता और काबिलियत के आधार पर देश का प्रधानमंत्री बनता है।

अनुपम खेर ने आईएएनएस को दिए इंटरव्यू के दौरान कहा कि जब दर्शक सिनेमा हॉल में घुसता है तो वह सिर्फ दर्शक ही होता है, लेकिन जब वो बाहर आता है तब उनके मन में कई तरह की बातें घूम रही होती हैं, क्योंकि राजनीति और सिनेमा दोनों एक दूसरे का चेहरा दिखाती हैं।

अनुपम ने अपनी बात को बढ़ाते हुए कहा कि एक फ़िल्म निर्माता और कलाकार कभी इस बात को तय नहीं कर सकते कि जनता एक निश्चित पार्टी को क्यों वोट देती है। हर किसी के पास अच्छे और बुरे की सूची होती है, जिससे वो तय करते हैं कि वो किस पार्टी को वोट देंगे। अब इसमें कोई फ़िल्म अपना योगदान कैसे दे सकती है?

अनुपम की माने तो ये फ़िल्म मात्र एक साधारण व्यक्ति की कहानी है, जो मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मा और और अपनी काबिलियत की वजह से भारत का प्रधान मंत्री बन पाया।

ये फ़िल्म 2014 के चुनावों में मनमोहन सिंह के जीवन पर आई एक किताब पर आधारित है। जिसमें मनमोहन सिंह की जीवन यात्रा का विवरण दिया गया है। ये किताब संजय बारू ने लिखी है जो कि उनके प्रधानमंत्री काल में उनके मीडिया सलाहकार और मुख्य प्रवक्ता रह चुके हैं।

माकन का दिल्ली कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा, शीला ने कहा AAP से मिला सकती हैं हाथ

अजय माकन ने दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। एक ट्वीट के द्वारा अपने इस्तीफे की जानकारी देते हुए माकन ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया। अजय ने अपने बयान में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को भी उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।

ख़बरों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के साथ दिल्ली कांग्रेस में पार्टी मामलों के प्रभारी पीसी चाको और अजय माकन की गुरुवार शाम को एक बैठक हुई जिसमे राहुल ने माकन का इस्तीफा स्वीकार कर लिया। अजय माकन को 2015 में दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था और पीछे साल सितम्बर में भी उनके इस्तीफे की खबर उड़ी थी जिसे कांग्रेस पार्टी ने उस समय नकार दिया था। यूपीए के शासनकाल में केंद्रीय मंत्री रहे अजय माकन दो बार लोकसभा सांसद और तीन बार दिल्ली से विधायक रह चुके हैं।

तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित ने एक बयान देते हुए कहा है कि अगर पार्टी आलाकमान उन्हें दिल्ली में कांग्रेस की टीम का नेतृत्व करने का मौका देता है तो वह उसके लिए पूरी तरह तैयार है। इंडिया टुडे के साथ बात करते हुए उन्होंने कहा कि अगर पार्टी उन्हें उनके प्रतिद्वंदी अरविन्द केजरीवाल के लिए प्रचार करने को कहती है तो वह उसके लिए भी तैयार हैं। ज्ञात हो कि 2013 के दिल्ली चुनावों में केजरीवाल ने शीला दीक्षित को ही मुख्यतः अपने निशाने पर रखा था और उनके खिलाफ धुआंधार प्रचार कर पहली बार सत्ता पर काबिज़ हुए थे।

अभी कुछ महीनों पहले ही फ्रांस में शीला दीक्षित की हार्ट सर्जरी हुई थी और वो काफी दिनों से बीमार भी थी। बीते अप्रैल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल उनका हालचाल लेने उनके निवास पर भी पहुंचे थे। उस से पहले शीला ने अपनी हार्ट सर्जरी में हो रही देरी के लिए दिल्ली की आआप सरकार को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था कि सरकार द्वारा समय पर खर्चे की मंजूरी न देने के कारण उनकी सर्जरी में विलम्ब हुआ। अब उनके नए बयानों से ये साफ़ हो गया है कि वो केजरीवाल के साथ हाथ मिलाने और उनके साथ अपनी राजनितिक दुश्मनी को भुलाने के लिए तैयार हैं।

दीक्षित ने कहा कि कांग्रेस और AAP के बीच चुनावी गठबंधन के लिए अगर कोई बातचीत चल भी रही तो वह अभी उनसे अनभिज्ञ है लेकिन किसी भी अंतिम निर्णय तक पहुँचने से पहले सभी पहलू को ध्यान में रखा जायेगा। शीला दीक्षित ने चौंकाने वाला बयान देते हुए कहा कि इन सब मामलो में सामान्य पार्टी कार्यकर्ताओं की राय नहीं ली जा सकती है और हमे हर हाल में आलाकमान का जो भी फैसला हो उसे ही मानना पड़ता है।

हलांकि AAP से गठबंधन या अगले दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष के लिए कांग्रेस ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है और इस बारे में कोई आधिकारिक बयान भी नहीं आया है। अब देखना यह है कि माकन के ताजा इस्तीफे के बाद पार्टी की दिल्ली में रणनीति क्या रहती है। इस साल लोकसभा के चुनाव भी होने वाले हैं और अभी दिल्ली की सात की सात लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में है, ऐसे में दिल्ली कांग्रेस में क्या बदलाव किया जाता है इसपर सबकी नजरें टिकी हुई है।

‘उल्लू का पट्ठा’ जिसने मनमोहन देसाई और अमिताभ को सितारा बना दिया

हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री की दमदार शख़्सियत कादर खान साहब नहीं रहे। नए साल की ये एक तरह से पहली दुखद ख़बर है।  कादर खान की एक्टिंग, कॉमेडी टाइमिंग और डायलॉग डिलीवरी अपने आप में अभिनय का एक पूरा स्कूल है। निश्चित रूप से उनका जाना ना सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक अपूर्णीय क्षति है बल्कि उन सभी के लिए जो उनकी फिल्मों और अभिनय के कद्रदान है।

ऐसी शख्सियतें जिन्होंने खुद के बल पर जीवन में एक बड़ा और प्रभावी मुकाम हासिल किया होता है, आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणापुंज होती हैं। अभिनय और फ़िल्मी दुनिया से थोड़ा परिचित होने की वजह से भी मेरा उनसे लगाव कुछ ज्यादा ही है। जिन शख्सियतों से मिलने की चाहत थी, उनमें से सदैव कादर खान की प्रमुखता बनी रही, हालांकि कभी उनसे मिलने का मौका नहीं मिला। कादर खान का शुरुआती जीवन दुखों की अबूझ पहेली है, जो हर उस इंसान को प्रेरणा देने के लिए पर्याप्त है, जो हमेशा अभाओं का रोना रोते हैं। फ़िल्म पत्रकार और मित्र रोशन जोशी ने कादर खान से जुड़ी कई कहानियाँ कुछ साल पहले साझा की थी, आज जब कादर खान हमारे बीच नहीं हैं तो वो सभी बातें खूब याद आ रहीं हैं। कादर खान का जीवन संघर्ष ही है जो उन्हें उन्हें एक कलाकार से कहीं ऊपर उठाकर, हम सब के दिलों का सरताज़ बना देती है।

अब्दुल रहमान खान और इक़बाल बेग़म अफगानिस्तान में काबुल के करीब पहाड़ी इलाके में गरीब और अनपढ़ों की बस्ती में अपना गुजर बसर किया करते थे। आठ वर्ष की उम्र में उनका बड़ा बेटा शम्स उल रहमान किसी बीमारी से चल बसा। उसके बाद फिर दो बेटे हबीब उल रहमान और फज़ल उल रहमान भी आठ वर्ष के होते ही खुदा को प्यारे हो गए। एक दिन इक़बाल बेग़म ने अपने शौहर से कहा- “इस मुल्क की आबो-हवा मेरे बच्चों को रास नहीं आती, क्यों न हम कहीं और चलें?”

अपने चौथे बेटे के जन्म पर उसकी सलामती और लम्बी उम्र की दुआ माँगते हुए दोनों मियाँ बीवी फौजियों की गाड़ी में बैठकर, कुछ रास्ता पैदल चल, कभी बस में कभी रेलगाड़ी में भटकते-भटकते पाकिस्तान (वर्तमान) होते हुए बम्बई (मुंबई) आ पहुँचे। मुंबई आकर यहाँ के कमाठीपुरा इलाके में रहने लगे, जहाँ शराब, चरस, गांजा, अफ़ीम, कोकीन, जुआ, पत्ते, सट्टा के साथ-साथ दिन दहाड़े हत्या का भी माहौल था। वालिद मुंबई का बोझ बर्दाश्त नहीं कर सके। कुछ दिनों बाद दोनों मियाँ-बीवी का निबाह न हो सका और दोनों तलाक़ लेकर अलग हो गए। इक़बाल बेगम के वालिद आये और उन्होंने कहा, “एक नौजवान, खूबसूरत, क़द्दावर, गरीब और पठान बेटी का तन्हा बम्बई में यूँ ऐसे रहना ठीक नहीं है।”

उन्होंने अपनी बेटी की दूसरी शादी एक शख़्स से करवा दी, जो पेशे से कारपेंटर थे। नन्हा बेटा मुंसिपल कॉर्पोरेशन के स्कूल में जाने लगा। घर में दुःख, फ़ाक़ा, तंगहाली का आलम इस कदर परेशान किये रहता था कि एक दिन सौतेले पिता ने बच्चे से कहा – “जा तेरे बाप से 2 रुपये लेकर आ, तब खाना मिलेगा।”

बच्चा पैदल-पैदल जाकर अपने पिता से दो रुपये लेकर आया और तब घर में आटा, चावल, राशन आदि लाया जा सका। बच्चा परेशान रहने लगा और उसने अपनी माँ की आर्थिक मदद करने के लिए कुछ कमा कर लाने की सोची। पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे उस बच्चे को मोहल्ले के दूसरे बच्चों ने एक फैक्ट्री में मजदूरी करने जाने के लिए मना लिया। उसने अपना बस्ता घर के एक कोने में पटका। स्कूल जाने के बजाये सुबह फैक्ट्री में मजदूरी के लिए जाने के लिए अपना कदम घर से बाहर निकाला ही था कि अचानक पीछे से कंधे पर माँ ने हाथ रखा। माँ को भनक लग चुकी थी।

इकबाल बेग़म ने अपने बेटे से सिर्फ इतना कहा- “तू कमाने जाना चाहता है, जा, मैं तुझे रोकूंगी नहीं, पर सोच बेटा इस तरह तू कितना कमायेगा? दो रुपये? तीन रुपये? पर याद रखना, ऐसे हमेशा तेरी औकात तीन रुपये की ही रहेगी। घर की तंगहाली और भूख से निपटने के लिए मैं मेहनत मजदूरी करुँगी। तू बस एक ही काम कर, तू पढ़। तू बस पढ़।”

कादर खान
कादर खान अपने स्टडी रूम में विचारमग्न मुद्रा में

बच्चे को लगा जैसे किसी ने गरम पिघला हुआ सीसा उसके बदन पर उड़ेल दिया हो। वो भागता हुआ अंदर घर में गया और अपनी किताबें और बस्ता उठा कर स्कूल की तरफ दौड़ता हुआ भागा। जिंदगी भर अपनी माँ के शब्द “तू पढ़, तू बस पढ़” उसके कानों में ऐसे गूंजते गए कि उस बच्चे ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। धुन ऐसी कि पाठ्यक्रम की किताबों के अलावा दूसरे भी तमाम साहित्य पढ़ डाले। पढ़ने वालों के लिए जगह की कमी कहीं नहीं होती। शिवाजी पार्क, मरीन ड्राइव, आजाद मैदान के अलावा ये बच्चा कभी कब्रिस्तान में भी जाकर किताब खोल कर बैठ जाता। पढ़ना, पढ़ना और पढ़ते ही रहना – यह वाक्य दिमाग पर इस कदर हावी रहा कि किताब पढ़ते-पढ़ते वो बच्चा इंसानों के चेहरे पढ़ना सीख गया। बहुत कम लोग जानते हैं कि कादर खान दूर से ही सामने वाले व्यक्ति के होठों को हिलते देखकर भी समझ जाया करते थे कि वो उनके बारे में क्या बात कर रहा है।

इस्माइल युसूफ कॉलेज (बम्बई यूनिवर्सिटी) से ग्रेजुएशन करने के बाद कादर खान ने ‘मास्टर्स डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग’ (MIE) किया। पढ़ने का अगला पड़ाव अक्सर पढ़ाना होता है, सो अपने स्कूल और कॉलेज टाइम पर भी ट्यूशन्स पढ़ा लिया करते थे। इस तरह कादर खान एम. एच. साबू सिद्दीकी कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, भायखला (मुंबई) में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर की नौकरी करने लगे। ग़ुरबत और तंगहाली में अपना पूरा बचपन बिता चुके कादर खान के लिए 300 रुपये महीना पगार उस ज़माने में बहुत थी।

स्कूल-कॉलेज के ज़माने में नाटकों का मंचन करने का शौक प्रोफ़ेसर बनने के बाद भी कादर खान साहब को बना रहा। अदाकारी और लिखने का फ़न छुपता कहाँ है। कादर खान ने एक नाटक के मंचन में अभिनय, लेखन और निर्देशन के तीनों पुरस्कार हासिल किये। वहाँ निर्णायक मंडली में कामिनी कौशल और निर्देशक नरेंद्र बेदी भी थे। उन्होंने कहा – “तुम इतने पढ़े लिखे हो, अदाकारी के साथ-साथ लिखने का फ़न भी जानते हो, फिल्मों में क्यों नहीं आते?” एक दिन दिलीप कुमार साहब के कानों तक भी बात पहुंची। फिल्म ‘सगीना’ और ‘बैराग’ में छोटी भूमिकायें मिलीं।

निर्माता रमेश बहल और निर्देशक नरेंद्र बेदी की फिल्म ‘जवानी दीवानी’ के बाद कादर खान ने निर्माता रवि मल्होत्रा और निर्देशक रवि टंडन (अभिनेत्री रवीना टंडन के पिता) की फिल्म ‘खेल खेल में’ के डायलॉग लिखे और फिल्म इंडस्ट्री में धीरे-धीरे उनका नाम होने लगा। फिर निर्माता आइ. ए. नाडियावाला और निर्देशक नरेंद्र बेदी की फिल्म ‘रफू चक्कर’ आई। तीनों फिल्में सुपर हिट रहीं। इस तरह कादर खान के पास फिल्मों के प्रस्ताव पर प्रस्ताव आने लगे। दिन भर फिल्मों में शूटिंग, शाम को लिखना और पढ़ना एक साथ जारी रहता था। साथ-साथ उस्मानिया यूनिवर्सिटी हैदराबाद से अरबी भाषा में एम. ए. भी कर लिया तो यार लोग हैरान रह गए, “ये आदमी सोता कब है?”

मनमोहन देसाई और कादर खान

(दिग्गज फिल्मकार मनमोहन देसाई से हुई मुलाक़ात को कादर खान अक्सर ज्यों का त्यों सुनाया करते थे।)

मनमोहन देसाई – “मेरे को मालूम है कि तुम मियाँ भाई लोगों को लिखने को आता नहीं है। तुम या तो शायरी लिखते हो या मुहावरे वगैरह। मुझे शेर-ओ-शायरी नहीं चाहिए। डायलॉग चाहिए। क्लैप ट्रैप डायलॉग चाहिए। तालियां बजना चाहिए। लिख सकता है? बकवास लिख के लाएगा तो मैं उसको फाड़ के वो उधर नाली में फेंक दूंगा।”

कादर खान – “अगर अच्छा लिख कर लाया तो?”

मनमोहन देसाई – “तो फिर मैं तुझे सिर पे बिठा के नाचूँगा, जैसे लोग गणपति को लेकर नाचते हैं।”

मनमोहन देसाई ने सबसे पहले अपनी फिल्म ‘रोटी’ (राजेश खन्ना, मुमताज़) का क्लाइमैक्स लिखने का काम दिया। कादर खान ने उसे चैलेंज के बतौर लिया और रात भर बैठ कर डायलॉग लिख डाले। दूसरे दिन अपना लेम्ब्रेटा स्कूटर लेकर मनमोहन देसाई के घर खेतवाड़ी इलाके (चर्नी रोड स्टेशन के पास) में पहुंचे। वो मोहल्ले के बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहे थे, उन्होंने कादर खान की तरफ देखा और हल्के होठों से बुदबुदाये, “उल्लू का पट्ठा!”

कादर खान – “आपने मुझे गाली दी।”

मनमोहन देसाई – “नहीं, मैंने गाली नहीं दी।”

कादर खान – “सर, मैं बुदबुदाते हुए होठों को दूर से पढ़ लेने का हुनर जानता हूँ।”

मनमोहन देसाई कादर खान की इस काबिलियत के इस कदर कायल हुए कि बरसों बाद उन्होंने फिल्म ‘नसीब’ में इस चीज का भी उपयोग किया। याद कीजिये, जब हीरोइन दूरबीन की मदद से बहुत दूर विलेन के होठों को हिलता देख सारे डायलॉग समझ जाती है और बोलकर बता देती है।

रोटी का क्लाइमैक्स पढ़कर मनमोहन देसाई इतने खुश हो गए कि उसी वक़्त हाथ का सोने का ब्रेसलेट निकाल कर दे दिया। पच्चीस हजार कैश और एक टेलीविजन सेट भी उठाकर उपहार में दे दिया। कादर खान याद करते हुए कहते थे, ‘मनमोहन देसाई मुझसे डांटकर, चिल्लाकर, झिंझोड़कर और गाली देकर काम करवा लिया करते थे।’

मनमोहन देसाई – “कितने पैसे लेता है लिखने के?”

कादर खान (थोड़े सकुचाते हुए) – “पच्चीस हजार”

(विशुद्ध व्यावसायिक बुद्धि वाले गुजराती भाई मनमोहन देसाई चाहते तो तुरंत हाँ कह देते, मगर…..)

कादर खान अपने दोनों बेटों के साथ

मनमोहन देसाई – “रायटर है या हज़ाम? मैं तेरे को एक लाख रुपये देगा। मस्त डायलॉग लिखना प्यारे।”

सिलसिला चल निकला। मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा की अमिताभ बच्चन के साथ वाली ढेरों फिल्मों में कादर खान ने ऐसे-ऐसे सुपर-डुपर हिट डायलॉग लिखे, जिनको सुनकर सिनेमा हाल में दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सिक्के उछाला करते थे, सीटियाँ बजाया करते थे। आज भी अमिताभ बच्चन के प्रशंसकों की जुबान पर वो डायलॉग जस-के-तस हैं।

बतौर संवाद लेखक (डायलॉग रायटर) उन्होंने करीब ढाई सौ फिल्में लिखी। इनमें प्रमुख हैं- सुहाग, मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एन्थोनी, शराबी, कूली, सत्ते पे सत्ता, देश प्रेमी, गंगा जमुना सरस्वती, परवरिश, मिस्टर नटवरलाल, खून पसीना, दो और दो पांच, इंक़लाब, गिरफ्तार, हम, अग्निपथ, हिम्मतवाला, कुली नंबर-1, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, कानून अपना अपना, खून भरी मांग, कर्मा, सल्तनत, सरफ़रोश, जस्टिस चौधरी, धरम वीर।

कादर खान साहब ने अग्निपथ और नसीब फिल्मों का स्क्रीन प्ले भी लिखा। उन्हें खलनायक और कॉमेडियन की भूमिकाओं में देखते हुए कितने लोगों का बचपन और जवानी बीती है। जीतेन्द्र, राजेश खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती, श्रीदेवी जयाप्रदा, अरुणा ईरानी, असरानी और उनके खासमखास शक्ति कपूर के साथ वाली फिल्मों ने तो कामयाबी के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। गोविंदा अभिनीत फिल्मों का एक के बाद एक लगातार हिट होते चले जाना कादर खान के साथ का ही कमाल था।

इतनी उपलब्धियों के बाद भी अमिताभ बच्चन के साथ ‘ज़ाहिल’ फ़िल्म बनाने की इच्छा दिल की दिल में ही रह गई। फिल्म कूली के बाद वो शूटिंग शुरू करने वाले थे। अमिताभ बच्चन के एक्सीडेंट के बाद फिल्म अटक गई। फिर कादर खान अपनी दूसरी फिल्मों में खुद व्यस्त हो गए। बच्चन साहब राजनीति में चले गए और फिर बात आई-गई हो गई। ‘जाहिल’ ना बना पाने का उन्हें हमेशा अफ़सोस रहा। बच्चन साहब एक जमाने में बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे। इसलिए कभी-कभार कुछ मौकों पर कादर खान नाराजगी भी जाहिर कर चुके थे। हालांकि अमिताभ बच्चन की तारीफ करते हुए कादर ख़ान कहते थे, “वो संपूर्ण कलाकार हैं, अल्लाह ने उनको अच्छी आवाज़, अच्छी जबान, अच्छी ऊंचाई और बोलती आंखों से नवाजा है।”

एक और खास बात, कादर खान अपने महत्वपूर्ण और अच्छे डायलॉग लिखकर ही नहीं बल्कि अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर के हीरो को दिया करते थे। ताकि बोलते समय अर्धविराम, पूर्णविराम, आवाज के उतार और चढ़ाव आदि का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा जाए। जिससे स्क्रीन पर परफॉर्मेंस वैसा ही उभर कर आता, जैसा लिखते समय कादर खान साहब के जेहन में रहा हो।

इस प्रकार अपनी लम्बी यात्रा (जन्म: 22 अक्तूबर 1937 से लेकर लम्बी बीमारी के बाद इंतकाल 31 दिसंबर 2018 तक) में उन्होंने भरपूर जीवन जिया। उनके व्यक्तिगत जीवन में पत्नी अज़रा खान बेटे सरफ़राज़ खान, शाहनवाज़ खान, और क्यूडस खान हैं।

सुनो पप्पू बाबू, संसद तुम्हारे बाप, दादी या परनाना की नहीं

रहुलबा के पैंट में अलकतरा की तरह राफ़ेल चिपक गया है और वो चाहे किरासन तेल डाल ले, पेट्रोल डाल ले, लेकिन वो छुटाए नहीं छूटता। जब देह में घोटालों का अलकतरा बाप से लेकर परनाना तक ने डीएनए के स्तर तक घुसा दिया हो तो ‘रोम-रोम’ से भ्रष्टाचार करनेवाले आदमी को फ़्रान्स-फ़्रान्स तक घोटाला ही दिखता है। ख़बर यह है कि हमारे अपने पपुआ ‘ठाकुर’ ने संसद में राफ़ेल सौदे पर चर्चा के दौरान अपने चिरकुट सांसदों की फ़ौज से लोकसभा के अंदर काग़ज़ों के जहाज उड़वाए। 

जिस आदमी का काग़ज़ से इतना ही नाता हो कि कभी वो अपनी मम्मा के मनोनीत प्रधानमंत्री के कैबिनेट को डिसीजन के प्रिंट आउट को फाड़ चुका हो, या फिर उसके हवाई जहाज बनाए हों, (या फिर जीभ लगाकर रोल किया हो) उससे राफ़ेल के दामों के गणित पर क्या सवाल करना! जेटली बाबू भी ये सब बेकार की बातों में उलझ जाते हैं कि रहुलबा को बेसिक एरिथमेटिक नहीं आता! ऐ भैबा! उसको तो एरिथमेटिक होता क्या है वो भी नहीं पता होगा। 

इसीलिए तो रहुलबा बहुत गुस्सा हो गया! संसद में गुस्सा हो गया कि ये सुमित्रा महाजन उसको बताएगी कि उसको क्या बोलना चाहिए, क्या नहीं? मतलब नेहरू के परनाती, इंदिरा के पोते और राजीव के बेटे को आजकल की स्पीकर बनी महिला बताएगी कि उसको संसद के भीतर कैसा व्यावहारिक करना चाहिए? जिसकी माँ चाभी से चलने वाले रोबोट को प्रधानमंत्री बना चुकी हो, उसे स्पीकर हेडफ़ोन लगाकर आदेश सुनने कहेगी? जिसके परनाना ने संसद बनाया हो, रात के बारह बजे उठकर डेस्टिनी के साथ इंडिया का ट्रिस्ट कराया हो, उस आदमी को संसद में कैसे और क्या बोलना है, वो बात दस साल सत्ता में रही पार्टी की सांसद बताएगी?

इसी को रहुलबा घोर कलजुग कहता है काहे कि डिम्पल वाले हंस को दाना-पानी चुगने कह दिया और ये कौआ सब मोती खा रिया है! जिसका बचपन इसी संसद में बोफ़ोर्स के मॉडल की चटनी चाटते बीता है, उस चिरयुवा व्यक्ति को बताया जाएगा कि संसद में पेपर प्लेन उड़ाना ग़लत है! वो काहे नहीं उड़ाएगा प्लेन? बचपन से उड़ाया है, अब तो जवान हुए हैं, संसद में परिवार है, घर का मामला है, तो पेपर मोड़ कर प्लेन नहीं बना सकते? “आपको मज़ा नहीं आया? अच्छा, मज़ा आया? तो आप भी उड़ा लीजिए प्लेन! ऐसे मोड़कर बना लीजिए न प्लेन! मैं वही मज़ा आपको देना चाहता हूँ जो एक बार महिलाओं को देना चाह रहा था।”

जिस परिवार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का जज कौन बनेगा ये तय होता था, उस परिवार का छोना बाबू सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन को सही मानेगा? रहुलबा का माइंड इज़ इक्वल टू ब्लोन हो गया जब गोगोई ने बंद लिफ़ाफ़े में राफ़ेल के दस्तावेज मँगाए और कह दिया कि सब सही है। हैं! सब सही कैसे है, रहुलबा कह रहा है कि गलत है, तो गलत है।  

महीनों की मेहनत, फ़्रान्स के अनाम पोर्टल को बहलाकर, ओलांद से कहवाकर, इतना इलेबोरेट झूठ बुना था चाटुकारों ने, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गुड़गोबर कर दिया। इस मामले में एक्के बात बुझाता है और वो ये है कि कॉन्ग्रेस को घोटाले करने का अनुभव तो है, लेकिन जब न किया हो तो मैनुफै़क्चर करने का बिलकुल नहीं। पहले कभी ज़रूरत नहीं हुई, और प्रैक्टिस करने से बेहतर घोटाला ही कर लेना इनकी हर सरकार का हॉलमार्क रहा है, तो ठीक से ताना-बाना बुन नहीं पाए। 

बात भी सही है कि जब पूरा ध्यान घोटाला करने और उससे बाल-बाल बच जाने पर हो, और मगज में ये गर्मी कि हम कभी सत्ता से बाहर नहीं होंगे, उसको चौवालीस कर देना, ठीक बात थोड़े ही है। अब ऐसी स्थिति में नया स्किलसेट डेवलप करना पड़ा रहा है। मोदी डिजिटल इंडिया ले आया और अम्बानी जियो, उसका अलग ही टंटा है। हर आदमी को थोड़ा सर्च करने पर काम का मैटेरियल मिलिए जाता है। 

पपुआ के बर्तन वाले जीजू से लेकर बोफ़ोर्स वाले अब्बू, इमरजेन्सी वाली दादी और जीप वाले नाना तक ने ऐसे कांड किए हैं कि पार्टी कार्यकर्ता तक मुख्यालयों की हवा सूँघकर ही करप्ट हो जाता है। ऐसे में दिन-रात वहीं बिताने वाली लीडरशिप जन्मजात अनुभव के साथ आती है, और घोटाले तो बस नैसर्गिक रूप से हो जाते हैं। 

जब ये कहते हैं कि इन्होंने व्हीलचेयर से लेकर कोयला, स्पैक्ट्रम, कॉमनवेल्थ और अगस्ता वैस्टलैंड के हेलिकॉप्टर तक घोटाला नहीं किया, तो आप मानिए कि वो बिलकुल सही कह रहे हैं। क्योंकि इनकी ख़ून में घोटाले के इतने तत्व घुल चुके हैं कि इन्हें ‘करना’ नहीं पड़ता, वो बस ‘हो’ जाते हैं। यही कारण है कि ये लोग अपने घोटाले को, अगस्ता वाले हेलिकॉप्टर और ‘HAL को कॉन्ट्रैक्ट क्यों नहीं दिया’ को आसानी से भूल जाते हैं क्योंकि इन्होंने कभी सोचा ही नहीं कि ये जो कर रहे हैं, वो घोटाला है। 

मतलब देखिए आप, अपने आस-पास कॉन्ग्रेसी सरकारों की लाई गई परम्परा को निहारिए तो पाएँगे कि चपरासी को सौ रुपए देकर ‘आवासीय प्रमाण पत्र’ बनवाने से लेकर, पासपोर्ट के लिए तिमारपुर के पुलिसवाले को 1000 रूपए देने तक, आप झिझकते भी नहीं, क्योंकि आईआईटी ही नहीं भ्रष्टाचार के घूमते-फिरते संस्थान भी तो इनके परनाना ने ही दिए हैं, जो कि आपको कभी भी आउट ऑफ़ प्लेस नहीं लगेंगे। आप अपने दोस्तों को कहेंगे, तो वो उल्टे आपको कह देंगे कि ‘इतना तो चलता है’। ये एटीट्यूड बाय डिफ़ॉल्ट भारतीय जनता में भर देना, कम्प्यूटर लाने से कम थोड़े ही है! 

कम्प्यूटर इनके बाप ने दिया, आईआईटी इनके परनाना, और ‘इमरजेन्सी’ में ‘पावर’ ले गई इनकी दादी, तो  चपरासियों की ऊपरी कमाई के इस नायाब स्टार्टअप का ज़िम्मा भी तो उन्हें ही लेना होगा ना? अब ऐसे में घोटाला न कर पाने का ‘विथड्राअल सिम्पटम’ तो दिखेगा ही कॉन्ग्रेसियों में। ‘यार चार साल हो गए यार! घोटाला नहीं किया यार…’ की फ़ीलिंग कितनी मजबूर कर देती है इन्सान को, इसका उदाहरण कॉन्ग्रेस और राफ़ेल को लेकर उनके प्रेम से दिखता है। 

चोर वाली प्रवृत्ति हो, और ऐसे माहौल में पले-बढ़ें हों जहाँ आपके शरीर के हर मॉलीक्यूल घोटालों की कोवेलेंट बॉन्डिंग से बने हुए हों, तो फिर लगता है कि सबको चोर बताकर अपने आप को नॉर्मल बता पाना ज़्यादा सही रहेगा। इसीलिए पपुआ कभी भी अपने पप्पा या पार्टी के पापों का ज़िक्र नहीं करता क्योंकि उसको लगता होगा कि घोटाला तो नॉर्मल-सी बात है, जो नहीं करते वो एब्नॉर्मल हैं। 

इसी चक्कर में उसको विश्वास ही नहीं हो रहा है कि रक्षा क्षेत्र में सौदा हो गया और घोटाला हुआ ही न हो। बात सही या गलत की है ही नहीं, बात है कि किसी का विश्वास सरकारों के घोटाला करने की प्रवृत्ति में इतना प्रगाढ़ हो तो उसके लिए भ्रष्टाचार से दूर रहने वाली सरकार के अस्तित्व में होने की संभावना पर खुद को समझा पाना अत्यंत कठिन हो जाता है। वो तो यही कहेगा, “अबे चल! सरकार घोटाला नहीं करेगी… मतलब कुछ भी बोलेगा!” 

इसीलिए, डिम्पल पड़नेवाले क्यूट आदमी का शातिर होना मुझे तो बिलकुल सही अवधारणा नहीं लगती। इतना क्यूट आदमी, जो पार्टी का अध्यक्ष होकर संसद में काग़ज़ के हवाई जहाज उड़वा देता हो, मैडम को सर बोल देता है, चार सवाल के बारे में ट्वीट करता हो और तीसरा लिखना ही भूल जाता हो, वो रहुलबा, हमारा पपुआ, भले ही कॉन्ग्रेस में जन्मा, लेकिन सोच-समझकर विरोधियों पर हमला करेगा, ये गलत बात है। 

मोदी सरकार की वो 6 योजनाएँ, जिन्होंने 2014 से ही बदलनी शुरू कर दी थी देश की तस्वीर

तमाम मुश्किलों के बाद भी यदि भाजपा का शुरुआती समय याद किया जाए, तो मालूम पड़ेगा कि देश की सत्ता संभालने के साथ ही मोदी जी ने ऐसी योजनाओं को शुरू किया, जिसने समाज के उस तबके को आगे बढ़ाया है, जो सालों से पिछड़ा था। जिनकी वजह से लोगों के उज्ज्वल भविष्य की न केवल कामना की गई, बल्कि उन्हें समाज में आगे बढ़ने का पूरा मौका दिया गया। ऐसे में भी कुछ नकारात्मक शक्तियों के लगातार वार करने के बाद भी विकास गति धीमी नहीं हुई।

विपक्ष में बैठे लोगों का कहना है कि मोदी जी देश मे बुलेट ट्रेन को लाने का सपना देख रहे हैं, जबकि ग़रीब तबके की स्थिति बिगड़ती जा रही है। ऐसे में लोगों को उन योजनाओं के बारे में जानना ज़रूरी है, जो कि आम लोगों की ज़िंदगी पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से असर करती हैं और जिन पर प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता सँभालते ही काम करना शुरु कर दिया था।

सरकार तरह- तरह की योजनाओं के ज़रिये देश के आख़िरी आदमी को रोजगार दिलाने के लिए मशक्कत कर रही है, जिसमें ‘स्टार्टअप इंडिया’ से लेकर ‘स्किल इंडिया’ और ‘मुद्रा योजना’ जैसी योजनाएँ प्रमुख हैं। साथ ही, सरकार न सिर्फ रोज़गारदाता बनना चाहती है, बल्कि उसका एक लक्ष्य देश के युवाओं की क्षमता को विस्तार देते हुए उन्हें भी हर संभव मदद दे रही है जिससे वो समाज में कई लोगों को रोज़गार दे सकें।

जहाँ, मोदी सरकार आम आदमी की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के उपाय करती नज़र आती है, वहीं 2014 में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने बेहतर विपक्ष के रूप में सरकार की मदद की बजाय भाजपा के हर कार्य पर प्रश्न चिन्ह लगाने का काम किया है। फिर चाहे वो 2016 में की गई नोटबंदी हो या फिर दुश्मनों के खिलाफ उठाया गया सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में सबसे कड़ा कदम, विरोधी खेमा हर बात में अपने विचारों और सवालों का स्तर गिराता ही जा रहा है।

आज हम आपको भाजपा के उन शुरुआती योजनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। जिनकी वजह से भाजपा ने आम आदमी के कल्याण का सपना पहले साल से ही देखा है। इसमें भारत का विकास सर्वोपरि है। लेकिन कांग्रेस ने जनता को भाजपा के प्रति ऐसे बरगलाया है, कि देश की जनता अब इन बातों में आने लगी है कि भाजपा द्वारा किए गए देश के या देश के नागरिकों के लिए कार्य उनके हित में नही हैं। इसलिए जानना ज़रूरी है कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद उसने किस प्रकार जनता के भविष्य को उज्ज्वल करने के लिए लाभकारी कदम उठाए हैं। आइये जानते हैं उन शुरुआती योजनाओं के बारे में जिनके तमाम फ़ायदे यदि आम आदमी की समझ में आ जाएँ, तो भाजपा के लिए 2019 में दोबारा बहुमत से पाना आसान ही होगा।

विपक्ष की कुर्सी पर बैठे कांग्रेस ने विपक्ष की भूमिका अदा करने से ज्यादा भाजपा से अपनी दुश्मनी का समय-समय पर प्रमाण दिया है। क्योंकि, जहां तक राजनैतिक मूल्यों की बात है, उसमें विपक्ष की भूमिका सत्ता में बैठे लोगों को सही दिशा में लाना होता है। सत्ताधारियों को उनकी ज़ुबाँ से किए गए वादे याद दिलाने का होता है, जिन्हें अक्सर राजनेता कुर्सी पाने के बाद भूलते दिखाई पड़ते हैं। लेकिन बेवजह ही लगातार हर मुद्दे पर भाजपा पर ऊँगली उठाना, मोदी सरकार को कटघरे में लेना, साफ़ बताता है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीतने के लिए जनता तक पहुँचने की बजाय भाजपा को नीचा दिखाने का एजेंडा बना कर चल रही है।

डिजिटल इंडिया

आधार कार्ड के माध्यम से भारत सरकार ने देश के 121.9 करोड़ निवासियों को डिजिटल पहचान दिलाई है। जिसमें 30 नवम्बर 2018 तक के आंकड़ों में 99% वयस्क शामिल हैं। ‘डिजिटल इंडिया’ के बढ़ते हुए प्रभावों से देश की अर्थव्यवथा में भी बड़ा बदलाव आया है। आधार कार्ड से पैसों का लेन-देन भी डिजिटल तरीकों से किया जाने लगा है। ये सरकार की उपलब्धि है कि भीम एप और आधार कार्ड को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है।

बीते 4 सालों में डिजिटल रास्ता अपनाकर लोगों ने इन आँकड़ों को काफी उछाला है। एक तरफ 2014-15 में जहाँ मात्र ₹316 करोड़ के ट्रान्जेक्शन हुए थे, वहीं 2017-2018 में यह आँकड़ा ₹2,071 करोड़ तक पहुँच गया। यहीं ध्यान देने योग्य बात यह है कि आज के समय में ‘डिजिटल इंडिया’ के लिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए ‘भीम एप्लीकेशन’ के ज़रिए सबसे ज्यादा डिजिटल ट्रान्जेक्शन होता है।

इसके अलावा ‘डिजिटल इंडिया’ की दिशा में ‘डिजी लॉकर’ नाम की एप भी लॉन्च की गई। इसमें आप अपने आधार नंबर से ही सभी ज़रूरी काग़ज़ात निकाल सकते हैं, चाहे वो दसवीं की मार्कशीट ही क्यों न हो। जिन काग़ज़ात के खो जाने पर हमें संस्थानों के चक्कर लगाने पड़ते थे, आज वो सब इंटरनेट के ज़रिये मात्र आधार नंबर से पाए जा सकते हैं।

अटल पेंशन योजना

2015 में शुरू हुई यह योजना प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों के लिए काफी लाभकारी है। इसका उद्देश्य असंगठित क्षेत्रों में कार्य करने वालों और मजदूरों के लिए 60 की उम्र के बाद एक नियमित पेंशन प्रदान करना है, ताकि वह मात्र 42 रुपये निवेश करने के साथ खुद को और अपने बुढ़ापे को सुरक्षित कर सके। अब तक ‘अटल पेंशन योजना’ के लाभार्थियों की संख्या 1.24 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। साल 2018-19 में इनकी संख्या में लगभग 27 लाख से ज़्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है।

जन-धन योजना

28 अगस्त 2014 से इस योजना की शुरुआत हुई थी। एक दिन में ही लोगों ने इस योजना के तहत लगभग डेढ़ करोड़ खाते खोले। इन सभी लोगों को 1 लाख रुपये दुर्घटना का बीमा कवर दिया गया। 2016 में तक ये आंकड़े 3.02 करोड़ तक पहुँच गए थे। मार्च 2018 के रिकॉर्डों के अनुसार इस योजना के तहत खोले गए खातों की संख्या 31.20 करोड़ हो गई है। जिनमें 75 लाख से अधिक की धन राशि भी जमा है। लोगों द्वारा इस योजना का बढ़-चढ़ कर फायदा उठाया जा रहा है। इस योजना का सबसे बड़ा लाभ प्रधानमंत्री द्वारा ‘डायरेक्ट बेनिफ़िट ट्रॉन्सफ़र’ योजना द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का सीधा लाभार्थी के बैंक अकाउंट में पहुँचना था। पहले ग़रीबों, वंचितों आदि के पास बैंक अकाउंट न होने के कारण भ्रष्टाचार करनेवाले उनके हक़ के पैसे खा जाते थे, और उचित लोगों तक उनके हिस्से का पैसा नहीं पहुँच पाता था।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

जिस देश में युवाओं के रोजगार को लेकर आए दिन संशय की स्थिति जताई जाती है, वहीं ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ का यही उद्देश्य है कि गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाए। देश के युवाओं को इस काबिल बनाया जाए कि वो बढ़ते दौर में रोज़गार के लिए न सिर्फ़ खुद को सक्षम बना पाएँ बल्कि अपने स्टार्टअप के ज़रिये दूसरों को भी अवसर दे सकें। ‘स्किल इंडिया’ जैसी योजना के द्वारा युवाओं को कई संस्थानों में प्रशिक्षण भी दिया गया।

12 दिसंबर 2018 के आँकड़ों के अनुसार 33,43,335 अभ्यर्थियों को या तो प्रशिक्षण दिया जा चुका है या दिया जा रहा है। इनमें में से कुछ को कम अवधि वाला प्रक्षिक्षण दिया जा रहा है तो कुछ को विशेष परियोजनाओं के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। साल 2018 में इस योजना के तहत 10 लाख से ज्यादा लोगों को प्लेसमेंट के ज़रिए रोज़गार मिला जिसमें एक बेहतर बात देखने को मिली कि महिलाओं ने पुरुषों को लगभग एक लाख की संख्या से पछाड़ दिया है। साथ ही, अन्य प्रशिक्षुओं के लिए रोज़गार के कई क्षेत्र खुलते दिखाई दिए।

मेक इन इंडिया

‘मेक इन इंडिया’ एक ऐसी सोच का नतीजा है, जिसमें भाजपा ने भारत के सशक्त होने का सपना देखा था। जिसके ज़रिए मोदी सरकार ने एक ऐसे देश की कल्पना की थी जहाँ पर विदेशी और देशी सभी कंपनियाँ भारत में ही वस्तुओं का निर्माण करें। ‘मेक इन इंडिया’ में 4 चीजों पर ज़ोर दिया गया था: नई कार्यविधि, नए बुनियादी ढाँचे, नए क्षेत्र और नई सोच। ‘डिजिटल इंडिया’ के बाद ‘मेक इन इंडिया’ एक ऐसा प्रयोग था जिसने लोगों को अपनी क्षमताओं को विस्तार करने का मौका दिया।

आज हर दिन तिगुनी रफ्तार से लोग अपने बिज़नेस को ऑनलाइन शिफ्ट कर रहे है। घर बैठे अपने हुनर को व्यवसाय का रूप देते लोग ही ‘मेक इन इंडिया’ के उद्देश्य को कामयाब बना रहे हैं। सैमसंग जैसी प्रतिष्ठित मोबाइल कंपनी जो अभी तक केवल विदेशों में अपने मोबाइल सेट का निर्माण करती थी, उसने पहली बार इसी बीच भारत मे अपने मोबाइल बनाने शुरू किए। ये भारत जैसे देश के लिए बहुत बड़ी बात है। जिसे लोग मामूली-सी चीज समझ कर नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना

‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ के ज़रिये भाजपा ने देश के लिए एक ऐसा सपना देखा, जहाँ हर घर की रसोई में चूल्हे के धुएँ की जगह एलपीजी सिलिंडर पहुँचाए गए। उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले से इस योजना की शुरुआत की गई थी, जिसमें 5 करोड़ महिलाओं की रसोई में मुफ्त गैस कनेक्शन देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। पर, हाल ही के आंकड़ों पर यदि पर गौर करें तो इस योजना ने 6 करोड़ का आँकड़ा छू लिया है।

एलपीजी की शुरुआत के बाद से 50 वर्षों में केवल 13 करोड़ कनेक्शन लोगों को उपलब्ध कराए गए थे, जबकि पिछले 54 महीनों में सरकार ने लगभाग इतने ही कनेक्शन उपलब्ध कराए हैं। आज लगभग 80 प्रतिशत लाभार्थी अपने एलपीजी सिलेंडरों की रीफ़िलिंग करवा रहे हैं।

तो, ये थी वो योजनाएँ जिन्हें कुर्सी को सँभालने के साथ ही मोदी सरकार ने कार्यान्वित किया था और जिनका लाभ करोड़ों लोगों ने उठाया है। 2014 से लेकर 2018 के बीच में आज भी कई योजनाएं शुरू की जा रही हैं। जिनका उद्देश्य, बिना जाति-धर्म आदि देखे, हर व्यक्ति का कल्याण है। लेकिन आज भ्रम की स्थिति में फँसकर लोग इन बातों को भी भूल गए हैं कि देश के व्यवस्थित तबके को सुव्यवस्थित करने के साथ ही मोदी सरकार ने बिगड़ी चीजों को भी सुधारा है।

आज हमें समझने की जरूरत है कि विकास की राह इतनी आसान नहीं होती जितनी अपेक्षा की जाती है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लिए गए छोटे-बड़े फ़ैसले देश के हित में कार्य कर रहे हैं, जिन्हें समझने के लिए सकारात्मक नज़रिये की ज़रूरत है। 60 साल तक देश को सँभालने वाली कांग्रेस सरकार को ये बात अच्छे से समझनी चाहिए कि यदि उनका लक्ष्य देश का विकास है तो फिर उन्हें हर बात में कमी निकालने की जगह समस्याओं के समाधान के लिए विस्तार से बात करके उन पर सुझाव देना चाहिए। जो लोग भाजपा की कोशिशों को समझते हैं उन्हें बेहतर भारत की तस्वीर भी दिखती ही होगी।

मध्यम वर्ग के लिए मोदी सरकार बनाम कांग्रेस का रिपोर्ट कार्ड आप यहाँ विस्तार से पढ़ सकते हैं।