मदरसों में गुलामों जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं बच्चे। मौलवी उनसे भीख मॅंगवा सालाना लाखों कमाते हैं। पैसा लेकर नहीं आने पर पीटते हैं। शिकायत करने पर धमकाते हैं। दीनी तालीम के नाम पर हो रहा है अमानवीय बर्ताव।
मलाला के साथ पाकिस्तान में जो कुछ हुआ वह दुखद है। लेकिन, श्रीश्री ने तीन साल पहले ही कह दिया था कि वह नोबेल पुरस्कार के लायक नहीं हैं। उनकी बातें कश्मीर पर पाकिस्तानी प्रोपगेंडा की बानगी भर है। उन्हें सिंध में जबरन इस्लामिक धर्मान्तरण नहीं दिखता। असल में बर्मिंघम में रहकर आतंक का अब्बा पाकिस्तान जन्नत ही दिखता है।
हिन्दीभाषियों के घमंड के दूसरे एक्सट्रीम पर वो लोग हैं जो हिन्दीभाषियों को घृणा से देखते हैं। एक बंगाली व्यक्ति ने लिखा कि हिन्दी वाले गुटखा खाने वाले हैं, गाली देने वाले हैं, भ्रूणहत्या करने वाले हैं, ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले हैं, ढोकला चुराने वाले हैं, भुजिया खाने वाले रक्तचूसक कीड़े हैं।
ताज़ा खुलासे से पता चलता है कि प्रशांत किशोर की कम्पनी ममता बनर्जी की तृणमूल के लिए सोशल मीडिया में एक बड़ा इकोसिस्टम खड़ा कर रही है, जिसमें कई डिजिटल पोर्टल्स और 'इन्फ्लुएंसर्स' शामिल हैं। यह सब रुपयों के दम पर किया जा रहा है।
मजहब को टोपी-चादर के नाम पर लुभाने की राजनीति अब देश की सरकार को झूठा बता पाकिस्तानी प्रोपगेंडा को हवा देने तक पहुॅंच गई है। ऐसे लोगों को न तो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद दिखाई दे रहा और न ही बलूचिस्तान का नरसंहार। पूरा का पूरा लिबरल गिरोह और मानवाधिकार के कथित पैरोकार मौन हैं।
32 साल की उम्र में विश्वेश्वरैया ने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी भेजने की योजना तैयार की थी। उन्हें 'कर्नाटक का भागीरथ' भी कहा जाता है। उन्होंने बॉंध से पानी के बहाव को रोकने के लिए स्टील के स्वचालित द्वार और सिंचाई के लिए ब्लॉक सिस्टम विकसित किया जो इंजीनियरिंग का अद्भुत कारनामा माने जाते हैं।
बलूचिस्तान के नेताओं को पाकिस्तान के डर से देश से बाहर रहना पड़ रहा है। पीओके के समाजसेवी पाकिस्तान पर आरोप लगा रहे हैं। सिंध में लड़कियों का जबरन धर्मांतरण हो रहा है। लेकिन, मलाला कश्मीर पर पाकिस्तानी नैरेटिव चलाने में लगी हैं, वो भी बिना सबूतों के।
108 घंटे तक चले इस ऑपरेशन के दौरान 18 सितम्बर को भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी। हैदराबाद की सरकार ने 17 सितम्बर को ही इस्तीफा दे दिया था। हाउस अरेस्ट में किए जाने का बाद निज़ाम अब ये कह कर भुलावा दे रहा था कि वह नई सरकार का गठन करेगा।
आप सोचिए कि हिन्दी जानने से आपकी संस्कृति कैसे प्रभावित हो रही है? अगर यह कहा जाए कि तुम तेलुगु छोड़ दो, और हिन्दी पढ़ो; तमिल में लिखे सारे निर्देश हटा दिए जाएँगे; कन्नड़ में अब नाटक या फिल्म नहीं बनेंगे; मलयालम की किताबों को जला दो... तब उसे हम कहेंगे कि 'हिन्दी थोपी जा रही है।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक देश के सभी हिस्सों में सामान रूप से सिविल कोड लागू करने के लिए किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं किया गया है। शाहबानो मामले में अपने फैसले की याद दिलाते हुए कहा कि उसने इस सम्बन्ध में ध्यान भी दिलाया लेकिन तब भी प्रयास नहीं किए गए।