Wednesday, July 3, 2024

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बिन बुर्क़े बाहर जाओगी तो हल्ला मच जाएगा: आईसिस ने यज़ीदी सेक्स स्लेव से यही कहा

ये कैसी मानसिकता है जिससे एक तरफ तो मज़हब का भी सम्मान हो रहा है और दूसरी तरफ अपनी ठरक का भी। जी, सही शब्द 'ठरक' ही है क्योंकि किसी महिला को उस तरह से घेरकर नचाना आपकी कुंठा की परिणति ही है, न कि आपके अंदर बैठा कला-प्रेमी जाग गया है।

तुम बदसूरत हो, मर्दों जैसी दिखती हो; कोई तुम्हारा बलात्कार क्यों करेगा – रेप पीड़िता से महिला जजों की बेंच

क्या बलात्कार सुंदरता के आधार पर होता है? फिर लड़के-बच्ची-बूढ़ी के साथ रेप की ख़बरें क्यों पढ़ने को मिल जाती हैं! बड़े-बड़े नाम घर में काम वाली बाई के साथ क्यों पकड़े जाते हैं? एक महिला दूसरी महिला के साथ रेप किस सुंदरता और सेक्स अपील के आधार पर करती है?

चैत्र संक्रांति के साथ उत्तराखंड मना रहा है प्रकृति देवी का पर्व – फूलदेई

बच्चे चैत्र मास के पहले दिन से बुराँस, फ्योंली, सरसों, कठफ्योंली, आड़ू, खुबानी, भिटौर, गुलाब आदि फूलों को तोड़कर घर लाते हैं, और घर-घर जाकर "फूलदेई-फूल देई छम्मा देई दैणी द्वार भर भकार यो देई सौं बारंबार नमस्कार" कहकर घरों और मंदिरों की देहरी पर फूल बिखरते हैं।

ISIS से मुक्त हुई यज़ीदी लड़कियाँ, जलाए बुरखे; ISIS लक्षण है, बीमारी नहीं

अपना बुरखा उतार कर जलाते हुए इस यज़ीदी युवती के चेहरे पर जो राहत, जो catharsis दिख रही है, वह इंसानी सभ्यता के लिए शर्मिंदगी का सबब है।

‘इस्लामोफोबिया’ और मल्टीकल्चरलिज़्म के मुखौटे के पीछे छिपी कड़वी सच्चाई है न्यूज़ीलैंड का नरसंहार

विकसित देशों में इमीग्रेशन आज एक बड़ी समस्या बन चुका है। किसी देश में बाहर से आकर बसने वाले अपने साथ अपनी संस्कृति, खानपान, भाषा, पहनावा, उपासना पद्धति और रहन सहन का हर वो तरीका लेकर आते हैं जो उस देश से भिन्न होता है जहाँ वे जाते हैं।

क्राइस्टचर्च में 50 लोगों की जान लेने वाला हेडमास्टर का बेटा नहीं, उसे कहिए आतंकी: वामपंथी मीडिया गिरोह

सत्य यही है कि बंदूक लेकर टहलने वाले किसी भी बाप, बेटे, दामाद या जीजा को सिर्फ इसलिए जस्टिफाय नहीं किया जा सकता क्योंकि उसकी बिटिया आठ साल की है जिसे सफ़ेद कबूतरों का उड़ना देखना अच्छा लगता है।

कॉन्ग्रेस भारत का वो बेजोड़ विपक्ष है जिसकी तलाश राष्ट्रवादियों को 70 सालों से थी

मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए कॉन्ग्रेस अकेले मैदान में नहीं रही बल्कि उसने अपने गोदी मीडिया, सस्ते कॉमेडियन्स, न्यूट्रल पत्रकारों के गिरोह और अवार्ड वापसी गैंग जैसी घातक टुकड़ियों को भी इस प्रक्रिया में एड़ी-छोटी का जोर लगाने पर मजबूर किया।

30 साल में यह पहला ऐसा चुनाव है, जब PM के अलावा कोई और PM का उम्मीदवार नहीं

ऐसे में सिर्फ एक व्यक्ति बचता है जो अभी प्रधानमंत्री है, और आगे भी हर हाल में प्रधानमंत्री बनना चाहता है। जिसके पास न अब सत्ता और षड्यंत्रों के अनुभवों की कमी है, न संसाधनों की, न समर्थकों की, न ऊर्जा की, न मुद्दों की और न ही दिलेरी की।

‘मोदी है तो मुमकिन है’ नारे के पीछे है यह वजह, बताया अरुण जेटली ने

जेटली ने प्रधानमंत्री मोदी के बारे में लिखा है, "अपनी लगातार नई बातों को सीखने की इच्छा के कारण, प्रधानमंत्री न केवल एक प्रभावशाली विद्यार्थी साबित हुए हैं बल्कि उन्होंने विदेश नीति, आर्थिक और रणनीतिक मुद्दों पर भी अपनी पकड़ मज़बूत की।"

नेहरू ने जिस ड्रैगन को दूध पिलाया, आज वह भारत पर ही आग उगल रहा है

नेहरू ने सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता ठुकरा कर 'दोस्त' चीन का नाम सुझाया। सेनाधिकारियों ने चीन के मंसूबे बताए तो उल्टा उन्हें ही झिड़क दिया। अंबेडकर की बातों को नज़रअंदाज़ किया। सरदार पटेल की राय भी नहीं मानी। आज भारत उसके दंश झेल रहा।

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