काशी की महाशिवरात्रि, रंगभरी एकादशी, चिता भस्म की होली के बाद एक और ऐसी प्राचीन परंपरा जो अपने आप में अनूठी है वह है मणिकर्णिका घाट महाश्मशान में बाबा मसाननाथ के दर पर नगरवधुओं का नृत्य।
जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के बारे में कौन नहीं जानता। यह नरसंहार अंग्रेज अधिकारी जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर के आदेश पर हुआ था। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि अकाल तख़्त ने उसे सिरोपा देकर सम्मानित किया था।
रोमन, जूलियन और ग्रेगेरियन कैलेंडरों में खासा कन्फ्यूजन था। अब भी है। कई त्रुटियाँ हुईं। किसी ने सूर्य को आधार माना तो किसी ने चन्द्रमा को। भारतीय प्राचीन कैलेंडर यूँ ही चला आ रहा है - सटीक।
कौन नहीं जानता है कि गायों को हरावल दस्ते में आगे रखकर हिंदुओं को जीतने वाले कायर रेगिस्तानी बर्बरों ने हिंदुओं की चेतना को खत्म करने के लिए मंदिरों को अपवित्र किया, मूर्तियाँ तोड़ीं और बलात्कार किए।
मध्यकालीन भारतीय मंदिरों के भित्तिचित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए इसमें 17वीं शताब्दी की मेवाड़ की एक कलाकृति में महाराणा को अपने दरबारियों के साथ चित्रित किया गया है।
जहाँ ब्रजधाम में राधा और कृष्ण के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं वहीं अवध में राम और सीता के जैसे होली खेलें रघुवीरा अवध में। राजस्थान के अजमेर शहर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गाई जाने वाली होली का विशेष रंग है।
खलीफा वालिद बिन अब्दुल मलिक सूर्यदेवी के सौंदर्य को देख कर मोहित हो गया और उसके भीतर हवस की आग जाग उठी। फिर उसने राजा दाहिर की बड़ी बेटी के साथ जोर-जबरदस्ती शुरू कर दी।