Thursday, November 21, 2024

भारत की बात

क्या गाँधी की हत्या को रोका जा सकता था? कौन से लूपहोल्स थे? क्यों हो गए थे अपने ही लोग लापरवाह?

26 जनवरी 1948 की रात को थाने स्टेशन पर नाथूराम, आप्टे और करकरे मिले, जहाँ गोडसे ने पाहवा द्वारा उनके नाम उजागर कर देने की बात भी कही। उसके विचार में अब 9-10 के ग्रुप में चलने की मूल योजना ग़लत थी। अतः गोडसे अब बार-बार कहने लगा कि गाँधी की हत्या वही करेगा।

के के मुहम्मद को पद्मश्री: अयोध्या के गुनहगारों के मुँह पर ज़ोरदार तमाचा

विवादित ढाँचा गिराए जाने से पूर्व ऐसे एक-दो नहीं बल्कि 14 स्तंभों को के के मुहम्मद की टीम ने प्रत्यक्ष देखा था। उसी प्रकार के स्तंभ और उसके नीचे के भाग में ईंट का चबूतरा विवादित ढाँचे की बगल में और पीछे के भाग में उत्खनन करने से प्राप्त हुआ था।

अस्त होती सभ्यता का सूर्य हैं सरस्वती पुत्र ‘पद्मश्री’ प्रीतम भरतवाण

देवताओं की इस धरती पर यदि सबसे पहले किसी को नमन किया जाना चाहिए तो वह यह ‘दास समुदाय' है जिन्हे स्थानीय भाषा में ‘औजी’ कहा जाता है, जिनके आवाह्न से ही किसी भी शुभ कार्य या समारोह में सर्वप्रथम देवी-देवताओं का स्मरण किया जाता है।

26 जनवरी स्पेशल: भारतीय शहीदों की याद में हमेशा प्रज्वलित रहे ‘अमर जवान ज्योति’ की लौ

नई दिल्ली के इंडिया गेट पर 24 घंटे और सातों दिन लगातार प्रज्वलित लौ ‘अमर जवान ज्योति’ सैनिको के साहस, शौर्य और बलिदान को सलाम करती है।

26 जनवरी स्पेशल: मोर के राष्ट्रीय पक्षी बनने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

मोर को विभिन्न मापदंडों पर खरा पाया गया, जिसके परिणामस्वरूप इसे भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया। नीला मोर हमारे पड़ोसी देश म्यांमार और श्रीलंका का भी राष्ट्रीय पक्षी है।

26 जनवरी स्पेशल: अशोक स्तम्भ का इतिहास, जो बना हमारा राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न

सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए इन सभी स्तम्भों की अनेकों ख़ासियतों में एक ख़ास बात यह है कि इनकी चमकदार पॉलिश आज भी वर्षों बाद भी बरक़रार है।

भारत के इतिहास में पहला जौहर करने वाली उत्तराखंड की जिया रानी

लूटेरे तैमूर ने एक टुकड़ी आगे पहाड़ी राज्यों पर भी हमला करने के लिए भेजी, जब ये सूचना जिया रानी को मिली तो उन्होंने फ़ौरन इसका सामना करने के लिए कुमाऊँ के राजपूतो की एक सेना का गठन किया।

वो मुग़ल बादशाह, जो बेटे की याद में रोते-रोते मरा… जबकि बेटा था ‘इस्लाम का दूत’

1666 में वो आज की ही तारीख़ थी, जब आगरा के किले में नज़रबंद एक बूढ़े मुग़ल बादशाह ने आख़िरी साँस ली थी। मौत के वक़्त उसके सारे कुकर्म लौट कर वापस उसके ही पास आए और इतिहास ने अपने-आप को फिर से दोहराया।

कुम्भ 2019: ख़ास आकर्षण, जो जीवन भर नहीं भूलेंगे आप!

'पेशवाई' प्रवेशाई का देशज़ शब्द है, जिसका अर्थ है शोभायात्रा, जो विश्व भर से आने वाले लोगों का स्वागत कर कुम्भ मेले के आयोजन को विश्व पटल पर सूचित करने के उद्देश्य से निकाली जाती है

जानिए कुम्भ को: शंकराचार्य ने संगठित किया, सम्राट हर्षवर्धन ने प्रचारित

कुम्भ मेला का मूल को 8वीं सदी के महान दार्शनिक शंकर से जुड़ती है। जिन्होंने वाद विवाद एवं विवेचना हेतु विद्वान सन्यासीगण की नियमित सभा परम्परा की शुरुआत की थी।

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