उपेंद्र कुशवाहा, दोनों लोजपा, मुकेश सहनी और जीतन राम माँझी - ये सभी नीतीश कुमार पर हमलावर हैं। लालू यादव तो राहुल गाँधी को 'दूल्हा' बनाने को बेताब हैं। उद्धव ठाकरे का हश्र नीतीश को सपने में आता होगा। शिक्षकों की पिटाई के बाद थू-थू हो रही है।
यूरोप ने खुल कर विदेशी घुसपैठियों को गले लगाया। मोरक्को की हार के बाद फ्रांस में दंगे हुए। अब पुस्तकालय जला दिया गया है। 830 साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय को आगे के हवाले कर दिया गया था।
एक ऐसी भी क्लिप सामने आई है कि जिसमें जैद हदीद आकांक्षा को जबरदस्ती पकड़कर खींच रहे हैं। इस पर आकांक्षा थोड़ा उनसे दूर होकर कहती भी हैं कि उन्हें ये सब नहीं पसंद इसलिए ऐसे न छुआ जाए। लेकिन जैद हदीद पर खासा फर्क नहीं दिखता।
पिछले 1 वर्ष में नूपुर शर्मा और तस्लीम रहमानी के जीवन का जो अंतर है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे 'डिजिटल जिहादियों' की सफलता है। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे का गला रेता जाना और 1 वर्ष बाद भी हत्यारों को सज़ा न मिलना, यही इन 'डिजिटल जिहादियों' का उत्साहवर्धन है।
इस्लामी कानून, रवायत और कठमुल्ले किसी के लिए मुस्लिम महिलाओं की आवाज का मोल नहीं। उलटे तकरीरों में उन्हें इस तरह पेश किया जाता है जैसे 'भोग की वस्तु' से अधिक उनका मोल न हो।