देश में पांच राज्यों के लिए हुए विधानसभा चुनावों और उसके ताजा परिणामों के बाद एक बार फिर से नोटा (उपर्युक्त में से कोई नहीं) को लेकर बहस छिड़ गई है। ऐसे में इस बात पर चर्चा होना लाजिमी है कि आखिर नोटा से जनता का फायदा है या नुकसान?
पाँचों राज्यों के आंकड़ों को मिला कर देखें तो कुल पंद्रह लाख लोगों ने किसी उम्मीदवार को वोट देने कि बजाय नोटा यानी "उपर्युक्त में से कोई नहीं" का विकल्प चुनना ज्यादा बेहतर समझा। पाँचों राज्यों में नोटा का वोट शेयर 6.3% के आसपास रहा।
चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार कांग्रेस को 114 सीटें आई तो वहीं भाजपा 109 सीटों को अपनी झोली में डालने में कामयाब रही। सपा को एक तो बसपा को दो सीटों से संतोष करना पड़ा।
119 सीटों वाले तेलंगाना विधानसभा में बहुमत के लिए 60 सीटों पर जीत चाहिए होती है लेकिन केसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति ने 88 सीटों पर जीत का परचम लहरा कर एकतरफा जीत दर्ज किया।
कांग्रेस 99 सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है। हलांकि राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटें हैं लेकिन इनमे से 199 सीटों पर ही मतदान हुआ था।
कांग्रेस ने कुल 68 सीटों पर जीत का परचम लहराया है वहीं भाजपा के हाथ महज 15 सीटें ही आई। ताजा ख़बरों के अनुसार मुख्यमंत्री रमण सिंह ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा भी सौंप दिया है।