एक बच्ची जो 10 दिन बाद अपना चौथा जन्मदिन मनाने वाली थी, उसे भी आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया। उस पिता पर क्या गुजरी होगी जिसके ऊपर उसकी नन्ही बेटी का शव आकर गिरा होगा।
चीन ने यह कदम ऐसे वक्त में उठाया है जब कहा जा रहा है कि उसने इस महामारी पर नियंत्रण पा लिया है। वुहान से कोरोना का संक्रमण शुरू हुआ था और चीन पर शुरुआत में दुनिया से जानकारी छिपाने के गंभीर आरोप हैं।
सर्बिया के राष्ट्रपति ने तो यूरोपीय सहयोग और बंधुत्व को महज एक 'दिवास्वप्न' करार देते हुए कहा कि सिर्फ चीन ही था, जिसने उनकी मदद की। - चीन के इसी प्रोपेगेंडा का शिकार होने की लाइन में ईरान, इराक और इटली जैसे देश भी हैं। जहाँ रोजाना हजारों मौतें हो रहीं, वहीं चीन इस दुर्भाग्यपूर्ण समय को एक अवसर के तौर पर देख रहा।
वैज्ञानिकों ने आगाह किया था कि ऐसी ही कोई बिमारी भविष्य में भी जन्म ले सकती है। 2002 के उत्तरार्ध में, एक रहस्यमयी निमोनिया जैसी बीमारी के मामले दक्षिण-पूर्वी चीन के गुआंगडोंग प्रांत में सामने आने लगे थे।
कल गुरूद्वारे पर हमले के बाद पूरा अफगानिस्तान अपने सिख-हिन्दू भाइयों के लिए उमड़ पड़ा और अपनी सहानुभूति व्यक्त कर उसके साथ खड़े होने की दृढ़ता दिखाई। इस हमले पर अभी तक तालिबान की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस्लामिक स्टेट ने इसकी जिम्मेदारी लेकर एक बार फिर अपना घिनौना चेहरा दुनिया के सामने रख दिया। इधर भारत में लिबरल-वामपंथी गिरोह इसको लेकर चुप्पी साधे हुए है। जैसे उसने सुकमा में नक्सली हमले के वक्त साधा था।
"भारत में कुछ लोग इनके प्रवेश का विरोध करते हैं। इन्हें नागरिकता देने की बात पर राजनीति साधते हैं। वे चाहते हैं कि आतंकियों को भी नागरिकता दी जाए ताकि वे यहाँ उनका पालन कर सकें और हत्याएँ जारी रख सकें।"
कोरोना वायरस से संक्रमितों में ऐसा ही एक नया नाम सामने आया है। यह नाम है विषाणुओं की खोज में महारत हासिल करने वाले दुनिया के शीर्ष विशेषज्ञों में शामिल डॉ. डब्ल्यू इयान लिपकिन का! विषाणु विज्ञानी डॉ. लिपकिन भी कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं।
इसे चीनी वायरस कहना कोई रेसिज्म नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि जिस जगह से ये वायरस पहली बार निकल कर आया, उस स्थान पर इसका नामकरण हो। ऊपर से जब चीन ने इसे ढकने की गलती करके दुनिया भर को परेशानी में डाला है तो फिर इसमें उन्हें क्यों दोष दिया जा रहा, जो इस वायरस के ऑरिजिनेट होने के स्थान के नाम पर इसे सम्बोधित कर रहे हैं?
अदालत ने कहा कि सरकार पूरे मामले को लेकर गंभीर नहीं है। ईरान से समय पर तीर्थयात्रियों को वापस लाने के प्रयास नहीं किए गए। जब वे लौटे तो उन्हें घर जाने दिया गया, जबकि उन्हें 14 दिन तक अलग-थलग रखने की जरूरत थी। अब यही लोग संक्रमण के बड़े स्रोत बन गए हैं।
हमला सुबह-सुबह हुआ। उस समय अरदास के लिए गुरुद्वारे में छोटे बच्चों समेत करीब 150 लोग मौजूद थे। मोहन सिंह ने बताया कि गोली चलने की आवाज सुन उन्होंने खुद को टेबल के नीचे छिपा लिया। अचानक धमाका हुआ और छत का एक टुकड़ा उन पर आ गिरा।