कारवाँ ने एक बार फिर से इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को लेकर फेक न्यूज़ फैलाया है। उसने लिखा है कि भारत सरकार ने ज़रूरी निर्णय लेने और विचार-विमर्श करने से पहले आईसीएमआर के कोरोना टास्क फोर्स से कोई सलाह नहीं ली। आईसीएमआर ने तुरंत इस ख़बर को नकारा और कारवाँ का नाम लिए बिना कहा कि उसके टास्क फोर्स के बारे में जो ख़बर चलाई जा रही है, वो झूठी है। सच्चाई ये है कि टास्क फोर्स की पिछले एक महीने में 14 बार बैठक हुई है। साथ ही ये भी जानकारी दी गई कि जो भी फ़ैसले लिए गए, उसकी जानकारी टास्क फोर्स के हर सदस्य को थी और सबसे विचार-विमर्श करने के बाद ही कुछ भी हुआ। आईसीएमआर ने ऐसे दावों को नज़रअंदाज़ करने की सलाह दी है।
बता दें कि कारवाँ ने अपने लेख में दावा किया है कि आईसीएमआर के टास्क फोर्स में 21 वैज्ञानिक हैं जो मोदी सरकार को कोरोना से निपटने के उपायों पर सलाह देने वाले थे, लेकिन उन्हें नज़रंदाज़ किया जा रहा है। एक अनाम सदस्य के हवाले से ये सूचना दी गई कि पिछले एक सप्ताह में टास्क फोर्स की एक भी बैठक नहीं हुई। सच्चाई ये है कि पिछले 1 महीने में 14 बैठकें हुईं। साथ ही ये दावा भी किया गया कि पीएम मोदी ने लॉकडाउन बढ़ाने से पहले भी उनकी कोई सलाह नहीं ली।
नीति आयोग के सदस्य और इस टास्क फोर्स के अध्यक्ष विनोद पॉल ने ऑपइंडिया से बात करते हुए कहा, “भारत के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ COVID-19 की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण सेवाएँ दे रहे हैं। यह टास्क फोर्स इस लड़ाई में तमाम विशेषज्ञों को जोड़ने और इस विषय में निर्णायक कार्य करने में अग्रणी है। साथ ही, मैं स्वयं प्रधानमंत्री जी को लगातार सूचित करता रहता हूँ और उनके सुझाव भी पाता रहता हूँ। ऐसे समय में, इस तरह की सनसनी फैलाना दुर्भाग्यपूर्ण है। मीडिया की ऐसी हरकतों से, महामारी के इस दौर में, एक राष्ट्रीय स्तर की लड़ाई में हानि ही होती है।”
कारवाँ ने लेख में दावा किया है कि ये कमिटी सिर्फ़ दिखावे के लिए बनाई गई है। एक दूसरे अनाम सदस्य के हवाले से ये भी दावा किया गया कि बैठकों के डिटेल्स सीधे कैबिनेट सेक्रेटरी को भेजे गए, लेकिन टास्क फोर्स के साथ साझा नहीं किए गए। साथ ही प्राइवेट अस्पतालों में कोविड-19 की टेस्टिंग की अदालती सुनवाई के डिटेल्स भर इस लेख में हेडिंग में किए गए दावों की पुष्टि के लिए कोई सबूत भी नहीं पेश किया गया है।
There is a media report which makes false claims about the COVID-19 Task Force. The fact is that the task force met 14 times in the last month and all decisions taken involve the members of the task force. Please avoid such conjectures. #COVID2019india #IndiaFightsCorona
— ICMR (@ICMRDELHI) April 15, 2020
कोरोना वायरस से भारत सरकार युद्ध स्तर पर निपट रही है, जैसे किसी प्राकृतिक आपदा के समय एक्शन लिया जाता है। केंद्र सरकार और उसकी मदद से अन्य राज्य सरकारें भी इसके संक्रमण के प्रसार की रोकथाम में जुटी है। लेकिन कुछ मीडिया संस्थान ऐसे भी हैं, जो जनता में भ्रम फैलाने और सरकारी कामकाज के बारे में दुष्प्रचार फैलाने में लगे हुए हैं। पूरे देश में लॉकडाउन की स्थिति है जो 3 मई तक चलेगी, लेकिन इससे मीडिया के इस वर्ग को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा। कारवाँ ने इससे पहले भी इसी प्रकार का एक फेक न्यूज़ फैलाया था।
कारवाँ मैगजीन का भारत सरकार के कामकाज को लेकर झूठ फैलाने का इतिहास रहा है। मार्च 14, 2020 को प्रकाशित एक आर्टिकल में मैगजीन ने दावा कर दिया था कि भारत सरकार कोरोना वायरस से जुड़े मामलों को छिपाने में लगी हुई है, ताकि सही आँकड़े पता न चले। इस लेख का शीर्षक था- “WHO ने कहा है कि भारत अब कोरोना के लोकल ट्रांसमिशन के स्टेज में है, लेकिन सरकार लगातार इससे इनकार कर रही है“। लेखक विद्या कृष्णन ने झूठा दावा किया। आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन फैक्ट्स को नकार दिया।
झूठा दावा किया गया कि भारत सरकार ये कह रही है कि भारत में कोरोना केवल विदेश से आए लोगों से ही फ़ैल रहा है और अभी फ़िलहाल लोकल ट्रांसमिशन शुरू नहीं हुआ है। यानी, भारत सरकार के हवाले से दावा किया गया कि लोकल इन्फेक्शन नहीं हो रहे हैं। ये झूठा दावा इसीलिए है क्योंकि आईसीएमआर ने पहले ही कहा था कि भारत अब संक्रमण के स्टेज-2 में है, जिसे लोकल ट्रांसमिशन स्टेज भी कहते हैं। कोरोना के चार स्टेज ये रहे- विदेश से आने वाले मामले, लोकल ट्रांसमिशन, कम्युनिटी ट्रांसमिशन और एपिडेमिक। लेकिन, कारवाँ ने इन सबका खिचड़ी बना दिया।
कारवाँ के पूरे लेख में कहा जाता रहा कि WHO जो कह रहा है, भारत सरकार और आईसीएमआर इसके उलट काम कर रहा है। कारवाँ ने WHO के एक रिपोर्ट के हवाले से लिखा कि भारत अब इटली और दक्षिण कोरिया जैसे देशों की श्रेणी में आ गया है और लोकल ट्रांसमिशन चालू हो जाएगा। उसने दावा किया कि भारत सरकार सिर्फ़ विदेश से आने वाले मामलों की ही जाँच में लगी है और उसका मानना है कि देश में फिलहाल कोरोना के सिर्फ़ ‘इम्पोर्टेड केसेज’ ही हैं, लोकल ट्रांसमिशन नहीं हो रहा। सोशल मीडिया में कारवाँ का झूठ पकड़ा गया तो उसने अपने लेख को ‘अपडेट’ कर दिया।
इस तरह कारवाँ ने पहला झूठ ये फैलाया कि सरकार और WHO अलग-अलग बातें कर रहे हैं। दूसरा झूठ ये फैलाया कि आईसीएमआर के टास्क फोर्स को किनारे कर दिया गया है। दोनों ही झूठे साबित हुए और आईसीएमआर ने ख़ुद आगे आकर उसके दावों का खंडन किया है। अब सवाल उठता है कि क्या आईसीएमआर के ट्वीट के बाद कारवाँ मैगजीन माफ़ी माँगेगा?