ऑनलाइन मीडिया पोर्टल स्क्रॉल ने 28 अगस्त को अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि ‘One nation one health card’ स्कीम के तहत सरकार द्वारा जारी की जाने वाली यूनिक हेल्थ आईडी के लिए कई संवेदनशील जानकारियाँ एकत्रित की जाएँगी। इस जानकारी में न केवल मेडिकल हिस्ट्री, फाइनेंस के बारे में पूछा जाएगा, बल्कि जेनेटिक्स और सेक्स लाइफ की जानकारी भी ली जाएगी।
रिपोर्ट में कुल मिलाकर यह बताया गया कि ‘comprehensive data protection law’ की अनुपस्थिति में सरकार लोगों की संवेदनशील जानकारियाँ एकत्रित कर रही है। ज्ञात रहे कि स्क्रॉल में डेटा प्वाइंट्स को ‘संवेदनशील पर्सनल डेटा’ कहा गया है क्योंकि उसमें फाइनेंशियल डिटेल्स, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, सेक्स लाइफ, मेंटल रिकॉर्ड, जेंडर और सेक्सुएलिटी, जाति, धर्म जैसी चीजों के बारे में पूछा जाएगा।
इस आर्टिकल का मुख्य उद्देश्य लोगों के मन में यूनिक आईडी को लेकर प्रश्न खड़ा करना था। तभी तो इसमें कहा गया है कि यह स्वास्थ्य मिशन नैतिक चिंताओं की वजह बन गया है। लेख की मानें तो लोगों से डेटा एकत्रित करना उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का जवाब नहीं है। लेकिन हो सकता है यह कॉर्पोरेट के लिए अनुकूल हो।
Grossly misinterpreted and sensationalized.
— National Health Authority (NHA) (@AyushmanNHA) August 31, 2020
Govt has not asked, and doesn’t intend to ask for any such personal information.
Information like only name, year of birth, state & district are required while registering for Health ID.
1/4 https://t.co/wjB7rsePrn
बता दें कि स्क्रॉल के इस आर्टिकल में कॉर्पोरेट के हस्तक्षेप पर मुख्यत: लोगों का ध्यान आकर्षित करवाया गया। साथ ही लोगों की राय जानने के लिए एक हफ्ते की समय सीमा को बेहद कम बताया गया है। इनके अलावा ऐसे बिंदु तर्क के तौर पर रखे गए, जिसके द्वारा यह बताया गया कि इस स्कीम में आम जनमानस के अधिकार हाशिए पर हैं।
अब इस रिपोर्ट के पब्लिश होने के तीन दिन बाद NHA ने इस पर संज्ञान लिया। उन्होंने इस रिपोर्ट को गलत व्याख्या करने वाला और सनसनीखेज लेख बताया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि सरकार ने ऐसी कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं ली और न ही उनका ऐसे निजी सवाल पूछने का कोई इरादा है। हेल्थ आईडी के लिए रजिस्टर करने हेतु केवल नाम, जन्म का साल, राज्य और जिला ही जरूरी है।
Grossly misinterpreted and sensationalized.
— National Health Authority (NHA) (@AyushmanNHA) August 31, 2020
Govt has not asked, and doesn’t intend to ask for any such personal information.
Information like only name, year of birth, state & district are required while registering for Health ID.
1/4 https://t.co/wjB7rsePrn
स्क्रॉल के झूठे दावों वाले लेख को देखकर NHA ने भ्रम की स्थिति मिटाने के लिए यह भी साफ किया है कि पब्लिक फीडबैक के लिए उन्होंने 2 हफ्तों का समय दिया था, जिसे बाद में एक और सप्ताह यानी 10 सितंबर तक के लिए बढ़ा दिया गया। यानी जिस एक हफ्ते की समय सीमा को लेकर स्क्रॉल शिकायत कर रहा है, वो समय सीमा तीन हफ्ते की है।
NHA ने यह भी साफ किया कि स्वास्थ्य आईडी के निर्माण के लिए आधार को अनिवार्य बनाने के लिए कानूनी रूप से अनुमति नहीं है। रिपोर्ट में डेटा कलेक्शन को सेंसिटिव पर्सनल डेटा कहने पर, NHA ने बताया कि इस शब्द का प्रयोग सूचना प्रौद्योगिकी (उचित सुरक्षा अभ्यासों व प्रक्रियाओं और संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा या सूचना) नियम, 2011 और व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) बिल के अनुसार किया गया है।
उन्होंने बताया कि उक्त परिभाषा के अनुसार, संवेदनशील डेटा में पर्सनल डेटा फाइनेंशियल जानकारी, सेक्सुअल ओरियंटेशन, राजनैतिक मत आदि होते हैं। लेकिन ड्राफ्ट पॉलिसी में अभी तक ऐसा कोई खंड नहीं है, जहाँ कहा गया हो कि इन जानकारी के लिए पूछा गया है। इसके अलावा इस शब्द के प्रयोग का अर्थ यह भी है कि अगर कभी NDHM के सूचना तंत्र पर किसी प्रकार का एनकाउंटर होता है तो सेंसिटिव पर्सनल डेटा के अंतर्गत रखी गई जानकारी को सबसे ज्यादा सुरक्षा और प्राइवेसी दी जाएगी।
यहाँ बता दें कि एक राष्ट्र और एक कार्ड का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 74वीं स्वतंत्रता दिवस की स्पीच के दौरान किया था। उन्होंने नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन का उल्लेख करते हुए बताया था कि यूनिक हेल्थ आई़डी हर नागरिक को इस स्कीम के तहत मिलेगी और ये सुविधा सबके लिए वैकल्पिक होगी। इसके लिए जो डेटा चाहिए होंगे, उनमें व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री जैसे टेस्ट, डायनॉसिस, और ट्रीटमेंट आदि की जानकारी होगी।