Saturday, November 16, 2024
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द क्विंट की चालबाजी को नेटिजन्स ने पकड़ा: जिस ट्रिक से शरजील को किया था डिफेंड, उसी से PM की सुरक्षा से खिलवाड़ को बता रहा कमतर

द क्विंट ने कहा था कि 2017 में पीएम मोदी 2 घंटे ट्रैफिक में फंसे रहे, किसी ने दावा नहीं किया कि उनकी जान को खतरा है। मीडिया कॉन्ग्रेस सरकार के खिलाफ सवाल उठा रहा, क्योंकि वह पंजाबियों के लिए उनके मन में नफरत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के पंजाब (Punjab) दौरे के दौरान उनकी सुरक्षा में जान-बूझ कर चूक की गई। जब पीएम की काफिला हुसैनीवाला से करीब 30 किमी दूर ही था तो एक फ्लाईओवर पर कथित किसान प्रदर्शनकारियों ने ने 20 मिनट तक रोके रखा। ‘टाइम्स नाऊ की रिपोर्ट’ के मुताबिक, भारतीय किसान यूनियन (Bhartiya kisan union) ने इस प्रदर्शन की जिम्मेदारी ली है। बीकेयू ने इस बात को स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री के रूट की जानकारी लीक की गई थी। इस मामले में पूरा देश एक होकर पंजाब सरकार की जवाबदेही पर सवाल कर रहा है, लेकिन वामपंथी मीडिया पोर्टल ‘द क्विंट’ ने एक आर्टिकल के जरिए इस सुरक्षा चूक को झूठे तथ्यों के आधार पर जस्टिफाई कर रहा है।

पीएम मोदी के दौरे पर द क्विंट ने अपने ‘पत्रकार’ आदित्य मेनन की ‘पीएम मोदीज पंजाब विजिट कैंसिल्ड: 2 एंगल्स टू द फियास्को- सिक्योरिटी एंड पॉलिटिक्स’ शीर्षक से एक रिपोर्ट को प्रकाशित किया। मेनन ने पीएम मोदी की सुरक्षा में हुई चूक को जस्टिफाई करने के लिए झूठ बोला और कहा कि पीएम मोदी पाकिस्तान की सीमा से लगे इलाके में 20 मिनट तक फँसे नहीं रहे।

साल 2017 की घटना का हवाला देते हुए आदित्य मेनन ने दावा किया कि उस दौरान नोएडा में करीब 2 घंटे तक प्रधानमंत्री का काफिला जाम में फँसा रहा, लेकिन तब उनकी जान को कोई खतरा नहीं बताया गया था। इस आर्टिकल को आदित्य मेनन और क्विंट ने अपने हैंडल से ट्विटर पर शेयर किया है।

द क्विंट के पत्रकार के द्वारा किया ट्वीट

मेनन के इस लेख को ‘द वायर’ की जानी-पहचानी लेफ्ट-लिबरल पत्रकार रोहिणी सिंह समेत अन्य लिबरल्स ने भी सोशल मीडिया पर शेयर किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुरक्षा खतरे को नकारते हुए पंजाब की कॉन्ग्रेस सरकार को इस मामले में बचाने की कोशिश की।

रोहिंणी सिंह के द्वारा किया गया ट्वीट

रोहिणी सिंह ने आदित्य मेनन के ट्वीट पर रिप्लाई करते हुए ‘नोएडा के चैनलों’ पर पीएम मोदी की जान को खतरा बताते हुए बदनाम करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि तथ्य यह है कि पीएम मोदी का काफिला ‘नोएडा में 2 घंटे से अधिक समय तक फँसा रहा’ और यह एक ‘बेहद महत्वपूर्ण बिंदु’ था, लेकिन बाकी मीडिया ‘पंजाबियों को राष्ट्र-विरोधी’ दिखाने की कोशिश कर रहा था।

द क्विंट के मुताबिक, 2017 में पीएम मोदी 2 घंटे ट्रैफिक में फँसे रहे, लेकिन किसी ने उनकी जान को खतरा होने का दावा नहीं किया। अब वही मीडिया कॉन्ग्रेस सरकार पर सवाल उठा रही है, क्योंकि उन्हें पंजाबियों से नफरत है।

द क्विंट के द्वारा पब्लिश किया गया आर्टिकल

दरअसल इस घटना का जिक्र करके आदित्य मेनन ने झूठी खबर फैलाने की कोशिश की है कि पंजाब में यह घटना होने के कारण इतना अधिक तूल दिया जा रहा है, जबकि ऐसा ही उत्तर प्रदेश में हुआ था तो किसी ने भी इस पर आपत्ति जाहिर नहीं की।

झूठ बोल रहा द क्विंट

पीएम मोदी के काफिले के 2 घंटे तक फँसने को लेकर द क्विंट का यह आर्टिकल पूरी तरह से झूठ पर आधारित है। सच ये है कि साल 2017 में पीएम मोदी का काफिला केवल 2 मिनट के लिए ट्रैफिक में फँसा था।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उस दौरान सुरक्षा में चूक के कारण दो पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया था। दरअसल, पुलिसकर्मियों ने गलत टर्न ले लिया था, जिसके कारण पीएम मोदी का काफिला महज दो मिनट के लिए ट्रैफिक में फँस गया था।

साभार: इंडियन एक्सप्रेस

खास बता यह है कि 2017 में नोएडा में जो हुआ और पंजाब में जो हुआ उसमें बहुत बड़ा अंतर है। साल 2017 में जो पीएम मोदी के काफिले के साथ हुआ, उसमें पुलिसकर्मियों की गलती थी। वहीं, पंजाब में वहाँ की पुलिस ने पीएम मोदी के काफिले के रूट को खुद ही लीक कर दिया। इस दौरान वायरल वीडियो में पंजाब पुलिस के जवान प्रदर्शनकारियों के साथ चाय की चुस्कियाँ लेते देखे गए थे।

आंदोलकारियों को पहले से पता था पीएम मोदी का रूट

कथित प्रदर्शनकारियों में से एक स्थानीय गवाह ने खुलासा किया है कि आंदोलनकारियों को पहले से इस बात की जानकारी दे दी गई थी कि प्रधानमंत्री का काफिला किस रूट से होकर गुजरने वाला है। इस सीक्रेट इन्फॉर्मेशन को पंजाब पुलिस और स्थानीय प्रशासन तक सीमित होना चाहिए था, लेकिन यह लीक की गई। वहीं, प्रदर्शनकारियों को हटाने के मुद्दे पर भी पंजाब पुलिस ने झूठ भी बोला। पुलिस का कहना है कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों को हटाने की कोशिश की थी, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके। वहीं, प्रत्यक्षदर्शी प्रदर्शनकारी के मुताबिक, पुलिस ने रास्ता खाली कराने की कोशिश ही नहीं की।

जब प्रदर्शनकारी से पूछा गया कि क्या किसी ने बातचीत या बलपूर्वक प्रदर्शनकारियों को सड़क खाली करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की तो उसने कहा, “अगर पुलिस ऐसा करने की कोशिश भी करती तो उसे अच्छी तरह से पता था कि उसके साथ क्या होने वाला था, क्योंकि किसानों की संख्या पुलिसवालों से अधिक थी। किसानों को वहाँ से हटाने के लिए पर्याप्त पुलिस फोर्स नहीं थी। हमने मोदी के प्रशंसकों को भी वहाँ से निकलने नहीं दिया। हम ये जानते थे कि अगर उन्हें ऐसा करने दिया तो वो कुछ न कुछ जरूर करते। हम (किसान) जानते थे कि पीएम सिर्फ इसी रास्ते से गुजरेंगे और हम नहीं चाहते थे कि वे अपनी रैली या कार्यक्रम में पहुँचें।”

पंजाब सरकार ने ही पीएम मोदी के रूट को लेकर जानकारी लीक की है, इसका इस बात से पता चलता है कि राज्य के सीएम ने इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, लेकिन उन्होंने कई विरोधाभासी बयान दिए। इससे स्पष्ट होता है कि वो इस मुद्दे से बचने की कोशिश कर रहे थे। इसके अलावा, टाइम्स नाऊ को दिए इंटरव्यू में भी बीकेयू पीएम मोदी के रूट की जानकारी लीक किए जाने की बात को स्वीकार किया था। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में खलल डालने से पहले प्रदर्शन कर रहे कथित किसान बसों और भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला करते दिखे।

लोगों ने द क्विंट के झूठ का किया पर्दाफाश

द क्विंट के इस झूठ का पर्दाफाश करते हुए कई ट्विटर यूजर ने वामपंथी पोर्टल की पोल खोल दी। एक्टिविस्ट अंशुल सक्सेना ने ट्वीट कर बताया कि द क्विंट ने अपनी रिपोर्ट में झूठ बोला है।

एक्टिविस्ट अंकुर सिंह ने भी द क्विंट के फेक न्यूज को एक्सपोज करके रख दिया।

अपनी बेइज्जती होती देख द क्विंट ने चुपचाप अपने ट्वीट को डिलीट कर दिया।

क्विंट ने डिलीट किया ट्वीट

इसके साथ ही द क्विंट ने अपनी रिपोर्ट को अपडेट करते हुए उसमें से ‘2 घंटे’ वाले अपने झूठ को हटा दिया। हालाँकि, बाकी उसने उसी तरह से अपने एजेंडे को आगे बढ़ाया।

द क्विंट की अपडेटेड रिपोर्ट

बता दें कि साल 2017 की घटना से इस घटना की तुलना करके द क्विंट केवल कॉन्ग्रेस सरकार को डिफेंड करने की कोशिशें कर रहा है। वो यह साबित करना चाहता है कि पीएम मोदी के सुरक्षा को खतरा पैदा करने पर सवाल करने वाले पंजाब से नफरत करते हैं।

आदित्य मेनन ने शरजील इमाम का भी किया था बचाव

सीरिया से कश्मीर की इमेज पर व्याख्यान देने वाले द क्विंट के पत्रकार आदित्य मेनन ने साल 2020 में शाहीन बाग के मास्टरमाइंड शरजील इमाम की अलगाववादी और हिंसक टिप्पणियों को तर्कसंगत बनाने की कोशिश की थी।

शरजील का बचाव करते हुए मेनन ने तर्क दिया था जेएनयू के पूर्व छात्र ने बस ‘चक्का जाम या असम की ओर जाने वाले राजमार्गों और रेलवे की नाकाबंदी’ के लिए कहा था। हालाँकि, इसके साथ ही उन्होंने 2008 के अमरनाथ आंदोलन का भी जिक्र किया, जिसमें कथित तौर पर हिंदू संगठनों ने जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग को जाम कर दिया था। द क्विंट पत्रकार का कहना था कि अगर हिंदू संगठनों के विरोध को देशद्रोह नहीं माना जाता है तो इमाम द्वारा असम की ओर जाने वाली सड़कों और रेलवे को अवरुद्ध करने के आह्वान को अलगाववादी भी नहीं माना जाना चाहिए।

आदित्य मेनन के दो कुतर्क

पहला ये कि शरजील इमाम ने भारत को पूर्वोत्तर भारत से जोड़ने वाले 22 किलोमीटर के उस गलियारे (चिकन नेक) को अलग करने के लिए आह्वान किया था, ताकि पूर्वोत्तर को शेष भारत से अलग किया जा सके। लेकिन मेनन ने बड़ी ही चालाकी से इसे ‘चिकन नेक’ के संदर्भ को ही नजरअंदाज कर दिया। खास बात ये है कि अपने लेख के जरिए मेनन ने शरजील इमाम को सभी तरह के आरोपों से मुक्त करते हुए उसे केवल इस बात का दोषी माना कि बौद्धिक अहंकार के कारण उसने ऐसा कहा।

इसी तरह से इस मामले में भी मेनन ने प्रदर्शनकारियों को उन सभी बलात्कार, हत्या और हिंसाओं के अपराधों से मुक्त बताया है, जिनमें ये शामिल रहे हैं। इसके अलावा आदित्य मेनन ने 26 जनवरी की हिंसा और पीएम मोदी की सुरक्षा के उल्लंघन वाले दिन बसों और भाजपा कार्यकर्ताओं पर किए गए हमले को भी भुला दिया।

इसका दूसरा पहलू गलत तुलना को लेकर है। आदित्य मेनन शरजील इमाम के विनाशकारी दावों को सही ठहराने की कोशिश करते हैं। जिस अमरनाथ ब्लॉकेड का जिक्र कर आदित्य मेनन शरजील इमाम की भड़काऊ बयानबाजी को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं, वो 26 मई 2008 की घटना है। उस दौरान केंद्र सरकार द्वारा श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) को कश्मीर घाटी की करीब 99 एकड़ जंगली भूमि देने के आदेश के बाद विरोध हुआ था। इस भूमि पर हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए अस्थायी आश्रय और सुविधाओं का निर्माण किया जाना था।

केंद्र सरकार के इस फैसले का कश्मीरी मुस्लिमों ने जमकर विरोध किया था। इन प्रदर्शनों की अगुवाई जेकेएलएफ जैसे संगठनों ने की। इसमें शब्बीर अहमद शाह, सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक, ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जैसे अलगाववादी नेताओं की भागीदारी भी देखी गई थी। बाद में मुस्लिमों के विरोध के आगे झुकते हुए केंद्र ने जमीन देने के फैसले को रद्द कर दिया था।

केंद्र के इस फैसले से आहत कम से कम 35 हिंदू संगठनों ने जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर हिंदुओं को जमीन की बहाली की माँग को लेकर विरोध किया। बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद समेत तमाम हिंदू संगठनों ने सरकार के फैसले के खिलाफ दिल्ली में कश्मीर हाउस के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। लेकिन, मेनन ने अपने रीडर्स को सच नहीं बताया। उन्होंने झूठा दावा करते हुए कहा कि हिंदुओं ने जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया, जिससे कश्मीर को शेष भारत से अलग कर दिया गया था। जबकि, भारत सरकार, सेना, जिला प्रशासन नाकेबंदी से इनकार करते हैं।

सच ये भी है कि किसी भी हिंदू संगठन ने न तो भारत के संविधान को चुनौती दी और न ही जिन्ना के जयकारे लगाए। बीजेपी ने भी किसी भी नाकेबंदी से इनकार करते हुए इस थ्योरी को ‘आईएसआई द्वारा फैलाया गया झूठ’ करार दिया, जिसका कोई ठोस सबूत नहीं था। बीजेपी ने दावा किया कि झूठा प्रचार करके घाटी के लोगों को गुमराह कर अलगाववादी अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की फिराक में थे।

वहीं आदित्य मेनन मौजूदा घटना की तुलना 2017 की घटना से करके पंजाब की कॉन्ग्रेस सरकार और प्रदर्शनकारियों को दोषमुक्त कर रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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