करीब एक दशक पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने सेना में पुरुषों की तरह महिला अधिकारियों के लिए भी स्थायी कमीशन के गठन को कहा था। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। शीर्ष अदालत ने कहा कि शरीर-क्रिया सम्बन्धी बाधाओं और सामाजिक पहलुओं के आधार पर महिलाओं को सेना में परमानेंट कमीशन न देना एक व्यथित करने वाला तर्क है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों ने काफ़ी बहादुरी भरा प्रदर्शन किया है और विभिन्न सम्मान लेकर आई हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सेना में महिलाओं को शामिल किए जाने को एक ‘विकासवादी प्रक्रिया’ करार दिया।
कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गॉंधी इस मसले पर भी केंद्र सरकार को घेरने से बाज नहीं आए। लेकिन, इस चक्कर में वे वैसी ही गलती कर बैठे जैसा उन्होंने उत्तराखंड में पदोन्नति के आरक्षण मामले में किया था। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के समर्थन में फ़ैसला देते हुए पिछले दिनों कहा था कि प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के लिए राज्य को मजबूर नहीं किया जा सकता। उत्तरखंड में भाजपा की सरकार है, इसीलिए राहुल ने मोदी-शाह और संघ को निशाने पर लिया। लेकिन वे भूल गए कि यह मामला 2012 का था, जब उत्तराखंड में कॉन्ग्रेस की सरकार थी। अब उन्होंने फिर से अपनी बेइज्जती कराई है।
राहुल गाँधी ने कहा कि केंद्र सरकार महिलाओं को सेना में ‘स्थायी सेवा’ या फिर ‘कमांड पोस्ट’ नहीं देना चाहती थी, इसीलिए उसने सभी महिलाओं का अपमान किया है। उनका निशाना मोदी सरकार पर था। उन्होंने बड़ी बेशर्मी से दावा कर दिया कि एक-एक महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में खड़े होकर मोदी सरकार को, भाजपा की सरकार को ग़लत साबित कर दिया। हालाँकि, इस दौरान वो ये भूल गए कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार नहीं, मनमोहन सरकार लेकर गई थी। 2010 में जब हाई कोर्ट ने महिलाओं के पक्ष में फ़ैसला सुनाया था, तभी कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में चल रही यूपीए-2 की सरकार इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुँची थी।
यानी राहुल गाँधी अपनी पार्टी के सरकार की करनी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। अब सवाल उठता है कि मोदी सरकार इस बारे में क्या सोचती है? पीएम मोदी ने अगस्त 15, 2018 को ही अपने सम्बोधन के दौरान इस बारे में घोषणा कर दी थी कि पुरुष अधिकारियों की तरह अब महिला अधिकारियों को भी सेना में ‘परमानेंट कमीशन’ की सुविधा दी जाएगी। 72वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से उन्होंने ऐलान किया था कि पारदर्शी प्रक्रिया के तहत ये सुनिश्चित किया जाएगा कि सेना में महिला अधिकारियों को पुरुष साथियों की तरह सुविधाएँ व अधिकार मिलें।
However the appeal against the Delhi HC decision that had granted this benefit to women officers was filed in 2010, when the current govt was not in power. That said, it’s my sincere belief that such issues and judicial verdicts must not be politicised.https://t.co/r6S2cox3gB
— Navdeep Singh (@SinghNavdeep) February 17, 2020
जहाँ तक महिलाओं के अधिकार की बात है, पहली मोदी कैबिनेट में जितनी महिलाओं की संख्या थी, उतनी आजादी के बाद से किसी भी सरकार में नहीं रही। उस दौरान पीएम ने इस बात की भी चर्चा की थी कि सुप्रीम कोर्ट में भी 3 महिला जज हैं, जो आजादी के बाद से अब तक सर्वाधिक है।