देश में चुनाव का मौसम शुरू हो चुका है और ऐसे में राजनीतिक गलियारे में उथल-पुथल होना आम बात है। विपक्ष का केंद्र के ख़िलाफ़ हमलावर रहना कोई नई बात नहीं है लेकिन जब उन बेबुनियादी मुद्दों को हवा दी जाती है, जिनका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं होता तो यह काम निंदनीय होता है। हाल के दिनों में राहुल गाँधी द्वारा ऐसे ही झूठ का दुष्प्रचार किया जा रहा है जिसका संबंध राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NSA) के अजीत डोभाल से है। बीते रविवार (मार्च 10, 2019) को राहुल गाँधी ने अजीत डोभाल को 1999 में आतंकवादी मसूद अज़हर को रिहा करने वाली वार्ता टीम का हिस्सा बनाने की भरसक कोशिश की। अपनी इस कोशिश में वो मसूद अज़हर की रिहाई के लिए अजीत डोभाल को दोषी करार देने पर तुले नज़र आए।
PM Modi please tell the families of our 40 CRPF Shaheeds, who released their murderer, Masood Azhar?
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 10, 2019
Also tell them that your current NSA was the deal maker, who went to Kandahar to hand the murderer back to Pakistan. pic.twitter.com/hGPmCFJrJC
अपने ट्विटर पोस्ट में, राहुल गाँधी ने कुख्यात आतंकवादियों द्वारा IC-814 के अपहरण का ज़िक्र किया। राहुल ने अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी से सवालिया होते हुए लिखा कि वो 40 CRPF शहीदों के परिवारों को बताएँ, जिन्होंने उनके हत्यारे मसूद अज़हर को रिहा कर दिया। इसके अलावा राहुल ने अपने ट्वीट में अजीत डोभाल पर भी निशाना साधा। हालाँकि, राहुल गाँधी के अधिकतर दावे आधे-अधूरे ही नज़र आते हैं।
बता दें कि IC-814 जब अमृतसर से दक्षिणी अफ़गानिस्तान में कंधार ले जाया गया था तब आतंकवादी मुल्ला मोहम्मद उमर के नेतृत्व में अपहर्ताओं ने खूंखार आतंकवादी मौलाना मसूद अज़हर सहित भारतीय जेलों से 35 आतंकवादियों को रिहाई के अलावा 200 मिलियन डॉलर नकद की माँग की थी।
इसके बाद भारत सरकार ने राजनयिक विवेक काटजू, अजीत डोभाल के नेतृत्व में वार्ताकारों की एक टीम भेजी। इस टीम में उस समय के एक उच्च श्रेणी के इंटेलिजेंस ब्यूरो अधिकारी नेचल संधू और सीडी सहाय समेत ब्यूरो ऑफ़ सिविल एविएशन सिक्योरिटी के कुछ अन्य प्रतिनिधि भी शामिल थे। 31 दिसंबर 1999 को, इस मसले को हल कर लिया गया। बता दें कि इस मसले को हल करने के लिए भारत सरकार आतंकवादी संगठन, जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अज़हर सहित तीन शीर्ष आतंकवादियों को रिहा करने पर सहमत हो गई थी। इन सभी गतिविधियों में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि कई वार्ताओं के दौरान, अजीत डोभाल ने आतंकवादियों की रिहाई संख्या को 35 से घटाकर सिर्फ़ तीन किया था और इसके लिए उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, अजीत डोभाल ने आतंकवादी मसूद अज़हर की रिहाई का विरोध किया था, क्योंकि वे जानते थे कि इस तरह के खूंखार आतंकवादी को रिहा करने के नतीजे भविष्य में बुरे परिणाम होंगे। हालाँकि, तब अजीत डोभाल एक सरकारी अधिकारी थे और उन्हें सरकार के फ़ैसलों के अनुसार चलना पड़ा। कथित तौर पर, अजीत डोभाल ने बंधकों को छुड़ाने के लिए अज़हर की रिहाई के बिना सौदे पर बातचीत करने के लिए सरकार से और समय भी माँगा था।
This is inaccurate Mr. Gandhi.
— Mustafa Kazemi (@CombatJourno) March 10, 2019
Doval was liaison between Taliban & your govt. His authority when others would make decision was to pitch his suggestion only.
As @AdityaRajKaul also mentioned, at that time, Nat’l Security Adviser was Brajesh Mishra.
Even Kejriwal knows this. https://t.co/3UrN2Q8B2m
यह बात चौंकाने वाली है कि भविष्य में देश का नेतृत्व करने की इच्छा रखने वाले राहुल गाँधी को ऐसी राष्ट्रीय आपात स्थितियों के दौरान आतंकी समूहों के साथ होने वाली जटिल वार्ताओं के बारे में पूरी और सही जानकारी अब तक नहीं है। राहुल गाँधी ने जानबूझकर इस तथ्य की अवहेलना की कि इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा बुलाई गई बैठक में तत्कालीन कॉन्ग्रेस प्रमुख सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह भी उपस्थित थे। बावजूद इसके राहुल गाँधी ने न सिर्फ़ सच को छिपाया बल्कि देश की जनता को भ्रमित करने का अपराध भी किया।
कंधार घटना को कवर करने वाले कुछ पत्रकारों ने इस बात का भी ख़ुलासा किया था कि 1999 में वाजपेयी सरकार को तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा था क्योंकि उस समय मीडिया और कार्यकर्ताओं ने IC-814 अपहरण की भड़काऊ कवरेज की थी और जल्द निर्णय लेने के लिए सरकार पर बहुत अधिक दबाव बनाने का काम किया था।
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है जब बड़े स्तर पर होने वाली राजनीतिक बातचीत और चर्चा को ग़लत रूप से प्रचारित कर हमारे ‘राष्ट्रीय नायकों’ की सम्मानित छवि को धूमिल करने का भरसक प्रयास किया जाता है। राहुल गाँधी, जिनका एकमात्र ध्येय केवल केंद्र सरकार को बेवजह घेरना भर रहता है, उन्हें अजीत डोभाल को दोषी ठहराए जाने वाले इस निंदनीय कृत्य के लिए शर्मिंदा होना चाहिए।