चुनाय आयोग ने गुरुवार (14 मार्च 2024) को एसबीआई से प्राप्त चुनावी ब्रांड का डाटा जारी किया। ये डाटा दो शीट में जारी किया गया, जिसकी पहली शीट में 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 तक इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है, तो दूसरे में 12 अप्रैल 2019 से 24 जनवरी 2024 तक इन बॉन्ड्स को भुनाने वाले राजनीतिक दलों की जानकारी। हालाँकि, भारत में मुख्य विपक्षी पार्टियों के लिए दुख की बात ये रही कि इलेक्टोरल बॉन्ड वाली लिस्ट में जिन नामों की उन्हें सबसे ज्यादा उम्मीद थी, वो कहीं मिले ही नहीं। इनका अनुमान था कि इस लिस्ट में अडानी ग्रुप और रिलायंस ग्रुप का नाम सबसे ऊपर होगा, लेकिन इस लिस्ट में इनका नाम तक नहीं आया।
इस लिस्ट में अडानी का नाम होने को लेकर इतनी ज्यादा निराशा फैला दी गई कि इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक होने से एक दिन पहले ही शेयर बाजार में अडानी ग्रुप के शेयरों में काफी गिरावट दर्ज की गई। जानकारों का कहना था कि ये गिरावट घबराहट की वजह से हुई, क्योंकि अडानी का नाम इस लिस्ट में आने की उम्मीद थी। इसकी वजह से अडानी ग्रुप के शेयरों को काफी नुकसान हुई, लेकिन जब प्रोपेगेंडा में शामिल लोगों को इस बात का पता चला कि इस लिस्ट में अडानी और अंबानी की कंपनियों का जिक्र तक नहीं है, तो उन्होंने तुरंत ही फेक न्यूज फैलाने शुरू कर दिए, ताकि अडाणी ग्रुप को नुकसान पहुँचाया जा सके।
अभी वो अडानी का नाम लिस्ट में न ढूँढ पाने की निराशा से निकले भी नहीं थे, कि उन्हें नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड का नाम दिख गया, जिसका लिंक तुरंत अडानी से जोड़कर सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने का सिलसिला शुरू कर दिया गया। जबकि ये बहुत पहले साफ हो चुका है कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बन रही सिल्कयारा सुरंग को बनाने वाली कंपनी नवयुग से अडानी का कोई लिंक नहीं है, इसके बावजूद नवयुग को अडानी के साथ जोड़कर फेक न्यूज फैलाया जाने लगा और बताया जाने लगा कि नवयुग के माध्यम से अडानी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चंदा दिया है।
अनवर खान नाम के एक्स हैंडल पर भी ये झूठ परोसा गया।
कई हैंडल्स पर नवयुग और अडानी का फर्जी कनेक्शन बताया गया।
नवयुग पर प्रकाश डालने वाला वही स्क्रीनशॉट कई लोगों द्वारा गौतम अडानी की तस्वीरों के साथ साझा किया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि नवयुग इंजीनियरिंग “गौतम अडानी के स्वामित्व वाली” सहायक कंपनी है। हकीकत में अडानी ग्रुप का नवयुग से कोई लेना-देना भी नहीं है।
बता दें कि कई वामपंथी मीडिया पोर्टल और उनसे जुड़े ‘पत्रकारों’ ने भी ये दावा किया था कि नवयुग का स्वामित्व अडानी के पास है। द वायर ने तो पिछले व्यापारिक लेनदेन का भी हवाला दे दिया था और बताया था कि अडानी ग्रुप ने आंध्र प्रदेश में कृष्णापटनम पोर्ट कंपनी में हिस्सेदारी खरीदी थी। हालाँकि हालाँकि, अडानी समूह ने पिछले साल नवंबर में एक मीडिया बयान में यह स्पष्ट कर दिया था कि सिल्कयारा सुरंग के निर्माण से जुड़ी किसी भी कंपनी का उनका स्वामित्व नहीं है। बयान में स्पष्ट किया गया है कि अडानी समूह की कोई भी कंपनी या सहायक कंपनी सुरंग के काम से जुड़ी नहीं है और अडानी के किसी भी कंपनी के मालिक होने के दावे और आरोप झूठे हैं।
Clarification on nefarious attempts to link us to the unfortunate collapse of a tunnel in Uttarakhand. pic.twitter.com/4MoycgDe1U
— Adani Group (@AdaniOnline) November 27, 2023
कुछ फर्जी समाचार विक्रेताओं ने अडानी समूह के एक पुराने संयुक्त उद्यम का हवाला देते हुए झूठा दावा करने की कोशिश की है कि अडानी नवयुग के “मालिक” हैं। यदि कोई बड़ा समूह किसी विशेष परियोजना के लिए किसी अन्य कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम में प्रवेश करता है, तो वे कंपनी के “मालिक” नहीं बन जाते हैं। व्यापार जगत में संयुक्त उद्यम आम बात है, खासकर बड़ी निर्माण परियोजनाओं में। अडानी समूह पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी का उनका स्वामित्व नहीं है, और उक्त कंपनी उनकी सहायक कंपनी नहीं है।
हालाँकि मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के लिए किसी विश्वसनीय मुद्दे के अभाव में अडानी और अंबानी पर हमला करना कॉन्ग्रेस पार्टी और कई विपक्षी दल के नेताओं की पुरानी आदत रही है। यही ट्रेंड इस बार भी दिख रहा है, जिसमें नवयुग कंपनी को अडानी का बताकर लोगों में भ्रम फैलाया जा रहा है।