उदयपुर (Udaipur) में हिंदू व्यक्ति कन्हैया लाल की बर्बर हत्या के आरोप में गिरफ्तार मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद की गिरफ्तारी पर बयानबाजी का राजस्थान पुलिस (Rajasthan Police) ने बुधवार (29 जून 202) को फैक्ट चेक किया।
एक पत्रकार ने गिरफ्तार किए गए दोनों हत्यारों के बारे में ट्विटर पर पूछा कि आरोपितों खिलाफ जेल में सख्त कार्रवाई की जाएगी या नहीं। राजस्थान पुलिस के ट्विटर हैंडल ने इसे ‘न्यूज’ बताते हुए इसका फैक्ट चेक कर दिया।
कन्हैया लाल के दोनों हत्यारों की गिरफ्तारी के बाद ट्विटर पर एक पत्रकार ने एक व्यंग्यात्मक सवाल किया। उन्होंने लिखा, “गिरफ्तारी के बाद दोनों हत्यारों की फोटो है और राजस्थान की जेल में इन्हें बिरयानी परोसी जाएगी? यूपी होता तो?”
बिरयानी का जिक्र 26/11 के मुंबई हमले के एकमात्र पकड़े गए इस्लामी आतंकवादी अजमल कसाब के संदर्भ में किया गया है, जिसके खिलाफ वर्षों तक मुकदमा चला था और इस दौरान उसे बिरयानी खिलाई जाती थी। बिरयानी संदर्भ का इस्तेमाल आमतौर पर इस बात पर चर्चा करने के लिए किया जाता है कि कैसे एक धीमी और उदार न्याय प्रणाली क्रूर अपराधियों को भी आरामदायक तरीके से जीने देती है।
हालाँकि, पत्रकार का ट्वीट जो हल्के-फुल्के अंदाज में लिखा गया था, उसे राजस्थान पुलिस ने व्यक्तिगत रूप में लिया। राज्य के पुलिस विभाग के ट्विटर हैंडल ने ट्वीट का फैक्ट-चेक करते हुए कहा कि पत्रकार के दावे झूठे हैं और अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा।
राजस्थान पुलिस के ट्विटर हैंडल से लिखा गया, “सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है एक फेक न्यूज। ये सरासर गलत है। उदयपुर में जघन्य अपराधियों के खिलाफ राजस्थान पुलिस कठोर कार्रवाई करेगी। पुलिस असामाजिक तत्वों से नरमी से पेश नहीं आएगी। प्रदेश में कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए राजस्थान पुलिस कटिबद्ध है।”
गौरतलब है कि मृतक पीड़ित कन्हैया लाल के आठ वर्षीय बेटे ने अपने मोबाइल से पूर्व बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समर्थन में एक सोशल मीडिया पोस्ट शेयर किया था। हालाँकि बाद में कन्हैया लाल ने उसे डिलीट कर दिया था। इसके बाद धानमंडी थाना के अधिकारियों ने कन्हैया लाल को उदयपुर में गिरफ्तार कर लिया।
जमानत पर रिहा होने के बाद भी कन्हैया लाल को जान से मारने की धमकी मिलती रही, जिसके बाद उन्होंने पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई लेकिन पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। कार्रवाई करने के बजाय स्थानीय पुलिस ने कन्हैया लाल और कुछ स्थानीय मुस्लिमों को एक ‘समझौता’ दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा और मामले को रफा-दफा कर दिया।