परसों (25 सितंबर, 2019) को ऑपइंडिया पर एक दलित बच्ची के सामूहिक बलात्कार की खबर आई थी, जिसे फेसबुक पेज के माध्यम से शेयर किया गया। थोड़ी देर में फेसबुक ने ‘कम्यूनिटी गाइडलाइन्स’ का हवाला देते हुए उसे पेज से हटा दिया। हमें अगले दो दिन तक यह भी नहीं बताया गया कि कारण क्या था। हमने फेसबुक से बातचीत करने की कोशिश की तो बताया गया कि हमारे द्वारा शेयर की गई तस्वीर में समस्या है।
यूँ तो तस्वीर को आप देखें तो उससे किसी भी तरह की समस्या नहीं दिखती। फेसबुक का मानना है कि उसकी नीति के हिसाब से अगर कोई नाबालिग किसी भी यौनहिंसा का शिकार हुई है, तो उसकी तस्वीर हम धुँधली कर के भी नहीं दिखा सकते। ये नीति आपको सतही तौर पर सही लगेगी कि पीड़िता बच्ची है, उसे हमें सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखाना चाहिए।
लेकिन, इस नीति की वजह क्या रही होगी? वजह यह होती है कि पीड़िता के साथ अन्याय न हो, लोग उसकी पहचान के कारण उसे परेशान न करें, उसकी निजता का हनन न हो, उसे किसी भी तरह से नीचा न दिखाया जाए। अब आप ये तस्वीर देखिए, और सोचिए कि इस तस्वीर से क्या पीड़िता की पीली ड्रेस के सिवाय किसी भी और बात का पता चलता है? क्या यह तस्वीर पीड़िता को नकारात्मक रूप में दिखा रहा है?
ख़ैर, अगर फेसबुक यहाँ अपना दोगलापन त्याग कर बात कर रहा होता तो हम मान लेते कि सच में ये लोग इस बात को लेकर संवेदनशील हैं, और इनकी AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), मशीन लर्निंग तकनीकों से ऐसी तस्वीरों को फैलने से रोका जा सकता है। लेकिन ऐसी बात नहीं है। यही तस्वीर, और यही खबर दूसरे वेबसाइट के फेसबुक पेज पर देखी जा सकती है। वहाँ इन्होंने दो अलग-अलग खबरों में इस्तेमाल हुई तस्वीरों को रहने दिया, वो पोस्ट फेसबुक द्वारा डिलीट नहीं किए गए।
इसका अर्थ यह हुआ कि किसी खास संस्था पर इनका काँटा ज्यादा संवेदनशील हो जाता है, और वो भी शायद तब जब किसी खास पहचान वाले लोग एक साथ ऐसी खबरों को रिपोर्ट करते हैं। क्योंकि, अगर एक फेसबुक पेज पर उसी तस्वीर पर आप एक चेतावनी लगाते हैं कि ‘ये तस्वीर हिंसा या अप्रिय जानकारी के साथ है’, लेकिन दूसरे पेज को आप कोई चेतावनी नहीं देते, उस पोस्ट को डिलीट कर देते हैं। उसके बाद भी आपका दिल नहीं भरता तो उसके संपादक की निजी प्रोफाइल को 24 घंटे के लिए ब्लॉक कर देते हैं।
फेसबुक हिन्दुओं को मामले में कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो जाता है
जब मैंने इसके बारे में फेसबुक पर लिखा तो पता चला कि कई लोगों को ‘सूअर’ लिखने से लेकर ‘जय श्री राम’ को अभिवादन स्वरूप लिखने तक के लिए ब्लॉक किया गया है। एक यूजर ने बताया कि आप अगर संस्कृत में कोई मंत्र लिखते हैं, और कोई उसे ‘हेट स्पीच’ कह कर रिपोर्ट कर दे, तो फेसबुक त्वरित कार्रवाई करते हुए आपका अकाउंट सस्पेंड कर देगा। (हर यूजर का स्क्रीनशॉट पोस्ट के अंत में है।)
एक यूजर तरुण कुमार ने अल्लामा इकबाल और ‘सारे जहाँ से अच्छा’ गीत के बारे में कुछ लिखा था जिसमें बताया गया था कि इकबाल जैसे लोगों को दार्शनिक कहा गया जबकि उसका पूरा दर्शन दूसरे धर्म के खिलाफ घृणा फैलाने पर आधारित था। इसके साथ ही इस्लामी जिहाद और कट्टरपंथ की बात की गई थी। ये आज के दौर की सच्चाई है। पोस्ट में सच लिखा गया था और कहीं से भी किसी को भड़काने की बात नहीं थी, लेकिन फेसबुक ने उसे हटावाया और प्रतिबंध लगा दिया।
एक यूजर सुमित ने किसी को ‘सूअर’ कह कर गाली दी। वो व्यक्ति समुदाय विशेष से नहीं था जिससे लगे कि उसके मजहब को निशाना बनाया जा रहा है। फेसबुक ने उसे भी सस्पेंड कर दिया। मैं गाली को डिफेंड नहीं कर रहा, लेकिन मुझे नहीं लगता फेसबुक के पास इतनी शक्ति है कि वो गालियों को अपने प्लेटफॉर्म से हटा दे। गाली देना बहुत आम बात है, और अधिकांश लोग देते हैं। फेसबुक बेशक, अगर उसे पादरीगीरी करनी है, तो हर ‘फक’ और ‘शिट’ को हटा दे, और पोप के प्रवचन चलाया करे, लेकिन इसके लिए अकाउंट सस्पेंड करना, समझ से बाहर है।
एक अन्य यूजर राजन धर्मेश बताते हैं कि जब ‘सूअर’ लिखने पर अकाउंट ब्लॉक हो सकता है तो किसी दूसरे यूजर ने राम मंदिर के संदर्भ में ‘चूतिया’ शब्द का प्रयोग किया, तो उसे क्यों नहीं हटाया गया? जबकि अगर आपके कम्यूनिटी स्टैंडर्ड के हिसाब से ‘सूअर’, जो कि एक जानवर का नाम है, और गाली के रूप में प्रयुक्त होता है, वो हटाने योग्य है, तो फिर ‘चूतिया’ तो गाली के रूप में ही प्रयोग में आता है, वो कैसे किसी भी नीति को वायलेट नहीं करता?
अभिनव बताते हैं कि उन्होंने किसी बच्ची के बलात्कार और हत्या के संदर्भ में एक पोस्ट लिखा था और उसके लिए न्याय की गुहार लगा रहे थे। उस पोस्ट में उस घटना की विस्तृत जानकारी थी कि लाश कैसे मिली, दरिंदों ने क्या किया था, लेकिन किसी ने रिपोर्ट कर दिया और अकाउंट सस्पेंड हो गया। उसमें भी पीड़िता बच्ची थी और आरोपित खास मजहब से ताल्लुक रखते थे।
सुदर्शन ने ‘पुरबा’ और ‘पछुआ’ हवाओं के बारे में कुछ लिखा, जिसका और कोई संदर्भ नहीं, लेकिन उसके पोस्ट को हटा दिया गया। सबसे मजेदार बात तो यह है कि अंकुर त्रिपाठी ने कहीं ‘जय श्री राम’ और ‘श्री अंजनेयम’ लिखा तो उसे कम्यूनिटी स्टैंडर्ड के खिलाफ बता हटा दिया गया। गुलशन पाहूजा की बात करें तो उन्होंने अनुच्छेद 370 हटने पर कश्मीर की स्थिति पर कुछ लिखा था और उनका अकाउंट तीन दिन के लिए सस्पेंड कर दिया गया।
यानी, फेसबुक में बैठा आदमी जो चाहे कर सकता है
ये तो बस चंद उदाहरण हैं जहाँ फेसबुक की फर्जी बातें फट कर फ्लावर हो जाती हैं कि वो रिपोर्ट हुए पोस्ट को जाँचते हैं, उसके बाद कार्रवाई करते हैं। अगर ये इन्हें जाँचते हैं, तो मेरी समझ में यही बात आती है कि इनकी टीम में नकारे लोग बैठे हुए हैं। अगर ये लोग नकारे और निकम्मे नहीं हैं, जिन्हें अपना काम ठीक से नहीं आता, तो फिर ये लोग धूर्त और पूर्वग्रहों से ग्रस्त कर्मचारी हैं।
दिखाने के लिए बिलकुल इनकी एक पॉलिसी है, उसकी टीम है, उस टीम का मुखिया भारत आता है तो मंत्री जी से मिलता है, बताता है कि वो ऐसा कुछ नहीं होने देंगे जिससे वैचारिक विविधता खतरे में पड़े, लेकिन भीतर में ये बहुत ही शातिर लोग हैं जो जानते हैं कि एक यूजर उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। आप अपील कर सकते हैं, लेकिन अपील पर भी अगर यह कहा जाए कि आपने जो कहा वो तो ठीक है, और फलाँ पोस्ट हमारी गाइडलाइन्स के खिलाफ हैं लेकिन हम उसे नहीं हटाएँगे।
या, यह कह दें कि आपने जो ‘जय श्री राम’ लिखा है उससे किसी दूसरे की भावनाएँ आहत हो गई हैं, इसलिए हम पोस्ट तो हटाएँगे ही, आपको ब्लॉक भी करेंगे एक दिन के लिए। यही हो रहा है। ऐसा बार-बार सुनने में आया है कि फेसबुक पर आप हिन्दू देवताओं को अपमान की बात, उनके धार्मिक प्रतीकों को अश्लील तरीके से दिखाने की बात करें, तस्वीरें लगाएँ, आपको कुछ नहीं होगा। वो पोस्ट वहीं रहेगा।
लेकिन, आप ने किसी ‘मजहबी’ नाम वाले बलात्कारी का नाम लिख दिया, किसी ‘मजहबी’ बलात्कारी के कुकृत्यों को लिख कर पीड़िता के लिए न्याय की गुहार लगाई तो फेसबुक में बैठा कोई कर्मचारी आपको ब्लॉक कर देगा। उसे सिर्फ एक रिपोर्ट चाहिए किसी से भी, और आपको लम्बे-चौड़े कम्यूनिटी गाइडलाइन्स का हवाला दे कर ब्लॉक कर दिया जाएगा।
इसकी कोई सुनवाई नहीं होती
मैंने फेसबुक के आला अधिकारियों से बात करने की कोशिश की तो मुझे कहा गया कि पोस्ट हटा लीजिए। हमने हटा लिया। मेरा सवाल उनसे यह था कि अगर फेसबुक को लगा कि इस तस्वीर में दिक्कत है, तो एक बेहद अस्पष्ट भाषा में ‘कम्यूनिटी गाइडलाइन्स’ का हवाला देने की जगह, यह क्यों नहीं कहा कि तस्वीर में समस्या है। पहली ही बार की जा रही कथित गलती पर आपने अकाउंट सस्पेंड कर दिया और कारण तब बताया जब हमने आप पर दबाव बनाया।
दूसरी बात यह कि जब हमने पूछा कि आपका ‘अपील’ कर पाने का बटन क्यों नहीं काम कर रहा था, तो कहा गया कि वो पता करेंगे कि आखिर ऐसी क्या बात हुई कि उस दिन, उस पोस्ट पर ये बटन बंद हो गया! वो कहते रहे कि वो मेरी सारी बातों का जवाब दे देंगे और वो हर संभव कोशिश करते हैं कि हर तरह के विचारों का सम्मान हो, लेकिन फेसबुक के कृत्य तो ऐसे नहीं लगते।
राइट विंग के विचारों को, इनके फेसबुक पेजों को, इनके ट्विटर हैंडलों को, यूट्यूब वीडियो को हर तरह से ज्यादा लोगों तक पहुँचने से रोका जा रहा है। ये शिकायत सैकड़ों लोगों की है, जो सिर्फ मेरे सम्पर्क में हैं। जब आप इन्हें यह बात कहिए तो कहते हैं कि ये महज गलतफहमी है, कम्पनी तो हर तरह के विचारों का सम्मान करती है।
ये तो बस चंद उदाहरण हैं जो दो घंटे में फेसबुक पर मुझे कुछ लोगों ने भेज दिए, लेकिन यह सत्य है कि हर हिन्दू नाम वाला व्यक्ति, हर वो आईडी जिसने कश्मीर पर ये नहीं लिखा कि वहाँ मानवाधिकारो का हनन हो रहा है, जिन्होंने इस्लामी आतंक के ऊपर लिखा है, किसी को कमेंट में जवाब दे कर कुछ वैसा लिखा जो सच हो लेकिन पोलिटिकली करेक्ट न हो, कोई भी अदरक-लहसुन आपको रिपोर्ट कर देगा और आपका नाम, आपकी विचारधारा देखते ही फेसबुक में बैठे एक निठल्ले कर्मचारी की बाँछें खिल जाएँगी, और आपको बिना अपनी बात रखने का मौका दिए ब्लॉक कर दिया जाएगा।
मैं तो फेसबुक के अधिकारियों से बात कर सकता हूँ, लेकिन जिस लोकतांत्रिक प्लेटफॉर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दम्भ फेसबुक का मालिक अमेरिका की संसद में भरता है, और आम जनता की निजता, उसकी वैचारिक विविधता के सम्मान की बात उस संसद को मानने को कहता है, वो प्लेटफॉर्म भारत में हिन्दूफोबिया के समर्थन में और दक्षिणपंथी लोगों के विरोध में हमेशा खड़ा दिखता है।
आम आदमी के पास झुकने के अलावा, या यहाँ से जाने के अलावा कोई चारा नहीं। बात यह नहीं है कि कोई यहाँ है ही क्यों, बात यह है कि कोई अगर यहाँ है तो प्लेटफॉर्म अपनी ही नीतियों से कैसे मुकर सकता है? इस पर लगातार आवाज उठाने की ज़रूरत है क्योंकि वैचारिक विविधता के प्रति यह रवैया आज के दौर में अस्वीकार्य है।