मेरे नानाजी लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु की ख़बर जब आई, तब मैं सिर्फ़ 9 वर्ष का था। घर में जब पहला फोन कॉल आया, तब भी मैं उसका गवाह बना था और जो आख़िरी फोन कॉल आया, तब भी मैं वहाँ उपस्थित था। जब घर में उनकी मृत्यु का समाचार आया तब मेरे सबसे बड़े वाले मामा ‘मार डाला, मार डाला तुम लोगों ने’ बोलते हुए बदहवास हो उठे। ये इतना ज्यादा शॉकिंग न्यूज़ था कि मैं रो भी नहीं पाया। उनके पार्थिव शरीर को देख कर भी मुझे रोना नहीं आया। जब भी किसी और की मृत्यु होती, मैं हमेशा सोचा करता था कि मेरे परिवार में कोई नहीं मरेगा। ये बचपन का एक विश्वास था। उनके छोड़ जाने के बाद से उन्हें हमेशा मैंने मिस किया और मेरे मन में उनके लिए कुछ करने का ख्याल आता रहा।
जब मैं विवेक अग्निहोत्री से मिला, तो मुझे लगा कि ये आदमी कर सकता है। मैं हमेशा से सच्चाई चाहता था (नानाजी की मृत्यु की) और इस चक्कर में मैंने कई रिकॉर्ड्स, डॉक्यूमेंट्स, साहित्य और काग़ज़ात खंगाल डाले। मैंने कई लोगों से कई तरह की बातें सुनीं और जानी। मैं आज के युवा पत्रकारों व छात्रों को कहना चाहता हूँ कि आप भी सच्चाई की ख़ोज कीजिए, सच को बाहर निकालना ज़रूरी है।
‘मेरे पिता लाल बहादुर शास्त्री की तरह मोदी ने भी भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊँचा उठाया’
नानाजी लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद संसद में भी इस पर सवाल उठे। प्रोफेसर त्रिभुवन नारायण सिंह ने संसद में शास्त्री जी की मृत्यु की प्रवृत्ति पर सवाल उठाए। वह शास्त्री जी के बचपन के मित्र थे। उनके साथ राज नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉक्टर कुंजरू, कामत साहब और लालकृष्ण अडवाणी जैसे लोगों ने सवाल उठाए। उस समय दिल्ली कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे जगदीश संसद में नहीं थे लेकिन उन्होंने भी इसे लेकर आवाज़ उठाई। इन सभी लोगों के सवालों के ऊपर तब मंत्रीगण ने झूठ बोला था।
चाहे उस समय विदेश मंत्री रहे सरदार स्वर्ण सिंह हों या रक्षा मंत्री चौहान, इन सभी ने मिलकर झूठ बोला कि शास्त्री जी के कमरे में 3 टेलीफोन थे। उनके कमरे में एक बजर भी था। एक फोन ऐसा था, जिसे उठाते ही उनके सभी स्टाफ के पास कॉल चला जाता। इसी तरह एक फोन इंटरनल कॉल्स के लिए और एक अंतरराष्ट्रीय कॉल्स के लिए था। मैं अब आपको फैक्ट बताता हूँ। मैं रूस से आए निमंत्रण के बाद अपनी नानी के साथ ताशकंद गया, जब मैं उनके कमरे में गया (जहाँ शास्त्रीजी की मृत्यु हुई थी) तो मुझे पता चला कि उनके कमरे में एक घंटी तक नहीं थी।
इसके बाद बयान बदलते हुए सरदार स्वर्ण सिंह ने कहा था कि उनके कमरे में चार से पाँच मीटर दूर दूसरे कमरे में फोन था। सरकार ने भी बाद में कहा कि उनके कमरे में फोन नहीं था लेकिन उनके कमरे से लगे दूसरे कमरे में था। अब मैं आपको बचपन की बात बताता हूँ। मैं आपको वही बताने जा रहा हूँ, जो एक बच्चे ने देखा था। जैसा कि सरकार ने दावा किया था, फोन उनसे 4-5 मीटर दूर कमरे में नहीं था बल्कि उनके कमरे से 4-5 कमरा हटके था। सरकार और मंत्रियों ने सफ़ेद झूठ क्यों बोला? मंत्रियों को वो समझ में नहीं आया जो एक बच्चे की समझ में आ गया!
4 अक्टूबर 1970 का दिन था। जो लोग नहीं जानते हैं, उन्हें बता दें कि उस समय धर्मयुग नामक एक पत्रिका छपा करती थी। यह एक राष्ट्रीय पत्रिका थी। पत्रिका के इस अंक में दिवंगत लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी और मेरी नानी ललिता शास्त्री का साक्षात्कार छपा था। वो भी इस बात से परेशान हो गईं थीं कि उनके पति की मृत्यु के कारणों को कवर-अप किया जा रहा है। उन्होंने इंटरव्यू में कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए थे। उस इंटरव्यू में काफ़ी महत्वपूर्ण पॉइंट्स थे, लेकिन मैं आपको सबसे महत्वपूर्ण बात से अवगत कराता हूँ।
जब शास्त्री जी का पार्थिव शरीर आया, तब उनके बेटे हरि शास्त्री को हुतात्मा के पार्थिव शरीर के नज़दीक नहीं जाने दिया जा रहा था। यहाँ तक कि मेरी नानी को भी उनके पति के पार्थिव शरीर के नज़दीक नहीं जाने दिया जा रहा था। बहुत ज़िद करने के बाद परिवार के लोग पार्थिव शरीर के पास जा सके। जब लोगों ने बात उठानी शुरू की तो न जाने कहाँ से एक व्यक्ति आया और उसने शास्त्रीजी के चेहरे पर चन्दन पोत दिया। उनके चेहरे पर अजीब तरह के नीले और काले निशान बन गए थे। उनके पीछे से ख़ून निकला हुआ था, उनके नाक से भी ख़ून निकला हुआ था।
दूसरा फैक्ट यह है कि सरकार ने पोस्टमॉर्टम कराने से मना कर दिया। उन्होंने पोस्टमॉर्टम होने ही नहीं दिया। इसके बाद ‘अंतररष्ट्रीय सम्बन्ध ख़राब होंगे’ जैसी बातें कह कर किनारा कर लिया गया। मैं पूछता हूँ कि क्या विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री की संदेहास्पद स्थिति में मृत्यु हो जाती है और उनके मृत शरीर का पोस्टमॉर्टम नहीं होता है, क्यों? इसके बाद ये मामला संसद में फिर उठा। धर्मयुग में ललिता शास्त्री के इंटरव्यू ने सोवियत यूनियन के साथ-साथ भारत सरकार में भी हड़कंप मचा दिया था। सोवियत ने भारत को पत्र लिख कर शास्त्री जी की मृत्यु की जाँच के लिए कमिटी बनाने जैसी माँगों के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज कराया था।
अंततः भारत सरकार ने कोई जाँच कमिटी नहीं बिठाई। ये सारी चीजें यह साबित करती हैं कि दाल में कुछ काला था। इसमें कोई शक़ ही नहीं है। तभी से मेरे मन में ये बात थी कि कोई न कोई आएगा, जो इस बात को उठाने की ताक़त रखता हो। विवेक अग्निहोत्री ने इस कार्य का बीड़ा उठाया है। वह पिछले ढाई वर्षों से रिसर्च में लगे हुए हैं। मैं उन्हें इसके लिए बधाई देता हूँ। सच्चाई सामने आएगी। मैं पत्रकारों से भी निवेदन करना चाहता हूँ, आप चुप मत बैठिए। सच्चाई की ख़ोज में निकलिए, सच्चाई को बहार लाने का प्रयास कीजिए।
(यह लेख पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती संजय नाथ सिंह द्वारा ‘द ताशकंद फाइल्स’ के ट्रेलर लॉन्च के दौरान कही गई बातों के आधार पर तैयार किया गया है।)