Sunday, October 6, 2024
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देश को बेचने वाले वामपंथियों को जरूर देखनी चाहिए ‘द ताशकंद फाइल्स’: ऑपइंडिया से बोले विवेक अग्निहोत्री

जेएनयू और जाधवपुर सहित सभी जगहों के लेफ्ट लिबरल्स को ये फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए क्योंकि हमारे देश की सारी बर्बादी के पीछे वही लोग हैं। भारत की बर्बादी के पीछे पूरा का पूरा एक लेफ्टिस्ट और कम्युनिस्ट सिस्टम है।

फ़िल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ का ट्रेलर रिलीज हो चुका है और इसे सोशल मीडिया पर अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के कारणों को ढूँढती इस थ्रिलर फ़िल्म का निर्माण विवेक रंजन अग्निहोत्री ने किया है। वो एक तरफ़ चॉकलेट, हेट स्टोरी और ज़िद जैसी कमर्शियल फ़िल्में बनाते हैं तो दूसरी तरफ़ ‘बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम’ और ‘द ताशकंद फाइल्स’ जैसी फ़िल्में भी बनाते हैं, जो समाज को जागरूक करने का कार्य करती हैं। सामाजिक रूप से काफ़ी जागरूक विवेक अग्निहोत्री ट्विटर पर ख़ासे सक्रिय हैं और वामपंथी अक्सर उन्हें निशाना बनाते रहते हैं। हाल ही में स्वरा भास्कर भी उनसे उलझ गई थी। लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम के विरुद्ध उन्होंने कई बार ट्विटर पर अभियान चलाया है। उनकी ताज़ा फ़िल्म के ट्रेलर के रिलीज के मौक़े पर उन्होंने ऑपइंडिया से बातचीत की और अपनी बात रखी।

इस दौरान विवेक अग्निहोत्री ने तमाल सवालों के जवाब दिए और अपनी फ़िल्म के साथ-साथ लाल बहादुर शास्त्री के बारे में किए गए अपने रिसर्च से भी हमें अवगत कराया। आइए देखते हैं ‘द ताशकंद फाइल्स’ के निर्माता-निर्देशक-लेखक विवेक रंजन अग्निहोत्री से ऑपइंडिया की बातचीत के प्रमुख अंश।

“Who Killed Shastri” का कैप लिए विवेक अग्निहोत्री, अभिनेत्री श्वेता, पल्लवी जोशी व शास्त्रीजी के परिजन

लाल बहादुर शास्त्री की समाधि विजय घाट पर फ़िल्म शूटिंग के दौरान आपका कैसा अनुभव रहा?

वहाँ एकदम सुनसान वातावरण था। वो जगह ऐसी लग रही थी, जहाँ कभी कोई आता न ही न हो। गाहे-बगाहे अगर टूरिस्ट वाले बसों में भर कर आ गए तो आ गए, वरना वहाँ कोई जाता ही नहीं। वहाँ काम कर रहे लोगों ने हमें बताया कि पहले तो कभी-कभार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेतागण आ भी जाया करते थे, अब तो कोई भी नहीं आता। 2 अक्टूबर के मौके पर भी यहाँ शायद ही कोई आता हो। ऐसा इसीलिए हुआ है क्योंकि हमने लाल बहादुर शास्त्री को अपनी स्मृति से ही हटा दिया है। विधिवत तरीके से हम उन्हें भूलते चले गए। इसीलिए आज उनकी समाधि का ये हाल है।

लेकिन हाँ, विजय घाट पर जाकर हमें एक बात तो समझ में आ ही गई कि सरलता क्या होती है। अगर इस चीज को आप समझना चाहते हैं तो शास्त्री जी की समाधि पर जाकर अनुभव कीजिए।

आपकी ट्विटर पर अक्सर स्वरा भास्कर टाइप लोगों से बहस होती रहती है। लेफ्ट लिबरल्स को आपसे आख़िर दिक्कत क्या है? आपको क्या लगता है कि आपने ऐसा कौन सा गुनाह किया है जो वो आपसे इतने ख़फ़ा-ख़फ़ा रहते हैं?

अच्छा आप मुझे एक बात बताइए। (हँसते हुए…) चोर सबसे अधिक किससे डरता है? (Interviewer: चोर तो आजकल चौकीदार से डरता है। चौकीदार वाला ट्रेंड चल रहा है आजकल)। (फिर हँसी) हाँ, चोर को सबसे ज्यादा पुलिस से डर लगता है। इन लोगों का खुलेआम नंगा नाच चल रहा था। कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था। इनके गिरोह के पत्रकारों ने जो भी लिख दिया, वही अकाट्य सत्य हो जाता है। अगर उन्होंने कह दिया कि Feminism की यही परिभाषा है, फलाँ चीज Feminism है, तो वही उसकी परिभाषा बन जाती है।

आजतक लोग इन पर सवाल नहीं उठाया करते थे। मैंने आकर सीधा कहा कि तुमलोग जिस Feminism की बात करते हो, वो फेक है। अरे, तुमलोग (गिरोह विशेष) तो भारत की माँओं को भी Empowered नहीं मानते। अरे, जो भारतीय माताएँ अपने बच्चों का पालन-पोषण करती हैं, बच्चों और परिवार के लिए इतना सारा त्याग करती हैं, उन्हें Empowered क्यों नहीं मानते हैं ये लोग? ये सारे के सारे फेक हैं। ये आदमी और औरत के बीच दरार खड़ा करना चाहते हैं।

ये सारी की सारी पाश्चात्य बातें हैं, फेक बातें हैं, वेस्टर्न ढकोसले हैं। अगर समस्या भारत की है तो समाधान भी भारतीय ही होगा। मैंने इन सब बातों को उठाया, जिस से इन्हे मुझ से दिक्कतें हो गई।

प्रेस को सम्बोधित करते विवेक अग्निहोत्री (उनके बगल में लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री)

क्या आपको लगता है कि लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम के लोग पाश्चात्य (western) विचारधारा को हम पर जबरन थोप रहे हैं?

जी हाँ, बिलकुल। भारत की समस्याओं का निदान के लिए भारतीय सलूशन चाहिए जबकि ये लोग वेस्टर्न कॉन्सेप्ट्स लेकर आ रहे हैं। ऐसा इसीलिए है, क्योंकि ये हिंदुस्तान को समझते ही नहीं हैं। इन्हे हिंदुस्तान क्या है, इस बारे में ज़रा भी आईडिया ही नहीं है। इन्होने भारत को देखा ही नहीं है। हिंदुस्तान का अर्थ है- त्याग और संघर्ष। इनमें से किसी से न तो आज तक त्याग किया है और न ही संघर्ष किया है, (हँसते हुए) ये क्या जानें हिन्दुस्तान को।

आज लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने ऑपइंडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि उनके पिता की तरह नरेंद्र मोदी के कारण भी भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊँचा हो जाता है। क्या आपको भी लगता है कि शास्त्री और मोदी में समानताएँ हैं?

मुझे ऐसा लगता है कि जब भी कोई ज़मीन से जुड़ा राष्ट्रवादी व्यक्ति इस देश में सर उठा कर चलने की कोशिश करता है, उनके कारण पूरे विश्व में भारत का नाम ऊपर होता है। लेकिन, इसे दुर्भाग्य कहिए या कुछ और, जब भी कोई ज़मीन से जुड़ा साधारण, ईमानदार और राष्ट्रवादी व्यक्ति जब इस देश में सर उठाकर चलने की कोशिश करता है, उसका गला घोंटने के लिए पूरा का पूरा एक इकोसिस्टम आ जाता है।

जेएनयू और जाधवपुर यूनिवर्सिटी में ‘बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम’ की स्क्रीनिंग के दौरान आप पर हमले किए गए थे। आपको चोटें भी आई थी। क्या ‘द ताशकंद फाइल्स’ की भी वहाँ स्क्रीनिंग करेंगे?

अभी तो फ़िल्म 12 अप्रैल 2019 को बॉक्स ऑफिस पर रिलीज होगी। जेएनयू और जाधवपुर सहित सभी जगहों के लेफ्ट लिबरल्स को ये फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए क्योंकि हमारे देश की सारी बर्बादी के पीछे वही लोग हैं। भारत की बर्बादी के पीछे पूरा का पूरा एक लेफ्टिस्ट और कम्युनिस्ट सिस्टम है। मैं ऐसा बिलकुल नहीं कह रहा हूँ कि उस सिस्टम का हर एक व्यक्ति गलत है लेकिन ‘इस देश को बेच देना’ वाली लाइन उन पर चरितार्थ होती है। आपने ट्रेलर में भी देखा होगा कि एक डायलॉग है, ‘India For Sale’, ये डायलॉग किस परिपेक्ष्य में था?

उस समय भारत के जितने भी वामपंथी थे, वो सभी के सभी KGB को बिके हुए थे। और हाँ, वो आज भी बिके हुए हैं। (बता दें कि केजीबी 1991 तक सोवियत यूनियन की प्रमुख सुरक्षा एजेंसी थी। इसे आर्मी के नियम-कायदों के तहत शासित किया जाता था। ये रूस की विदेशी इंटेलिजेंस की चीजों को देखती थी।)

आपने इस फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह के साथ काम किया है। वो भी तो अक़्सर असहिष्णुता टाइप के बयानों के कारण विवादों में आते हैं? ‘द ताशकंद फाइल्स’ की शूटिंग के दौरान उनके साथ Coordinate करना कैसा रहा? क्योंकि, वो आपके विरोधी विचारधारा के हैं?

देखिए, ऐसा है कि लाल बहादुर शास्त्री का नाम आते ही सारी विचारधाराएँ मिल जाती हैं। हर व्यक्ति को पता है कि शास्त्री जी एक अच्छे एवं ईमानदार नेता थे। सबको पता है कि उनके साथ गलत हुआ है। वहाँ जाकर सब जुड़ जाते हैं।

साल भर से भी ज्यादा समय तक फ़िल्म की शूटिंग चली। क्या आप हमें इस बात की गारंटी दे सकते हैं कि अब नसीरुद्दीन शाह को Intolerance नज़र नहीं आता?

देखिए, किसी के व्यक्तिगत विवाद से तो मेरा कोई लेना-देना नहीं है। हालाँकि, मैं अपने लेवल पर ये ज़रूर कहूँगा कि भारत विश्व का सबसे सहिष्णु (Tolerant) राष्ट्र है। और हाँ, मैं तो इतना ज्यादा सहिष्णु हूँ कि हमेशा अपने से विपरीत विचारधारा वाले लोगों के साथ ही बात करना चाहता हूँ। और मैं ऐसा करता भी हूँ।

एक वेबसाइट है, जिसका नाम है…क्या नाम है…? हाँ, न्यूज़लॉन्ड्री। वे हमेशा मेरी बुराई करते रहते हैं। लेकिन फिर भी जब उन्होंने मुझे बुलाया तो मैं उनके यहाँ गया। एक बार वो आए थे और उन्होंने झूठ बोला। बाद में उन्होंने कैमरे के सामने एक-दो नहीं बल्कि तीन बार माफ़ी माँगी।

न्यूज़लॉन्ड्री वालों ने मेरे वीडियो को गलत तरीके से एडिट कर मुझे बदनाम करने की कोशिश की। तब जाकर मुझे समझ आया कि कुछ लोग ऐसे होते हैं, कुत्ते की तरह जिनकी पूँछ आप कभी सीधी नहीं कर सकते।इस तरह के लोगों से थोड़ा दूर भी रहना चाहिए। वरना मेरे को किसी भी चीज से कोई समस्या नहीं है। बात कीजिए, बातचीत में क्या प्रॉब्लम है? कोई हम एक-दूसरे को मार तो नहीं रहे…

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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