Sunday, November 17, 2024
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‘द वायर’, NDTV किंकर्तव्यविमूढ़ हैं मोदी राज में, महँगाई बढ़े तब संकट, घटे तब संकट!

मोदी ने एक पुल का उद्घाटन किया तो यही गिरोह ये बता रहा था कि नाव चलाने वाले लोगों की नौकरी पर संकट आन पड़ा है। गंगा में जलमार्ग बना, तो गिरोह के लोगों ने बताया कि नीचे मछलियों को संकट हो जाएगा इससे।

पिछले दिनों खुदरा मुद्रास्फीति के डेढ़ साल में सबसे निचले स्तर पर आने की ख़बरें आईं थीं। ज़ाहिर-सी बात है कि महँगाई घटने की ख़बर सकारात्मक है। लेकिन कुछ मीडिया पंडित (या मौलवी, जैसी आपकी श्रद्धा) इसे अब किसानों पर संकट के तौर पर देख रहे हैं।

‘द वायर’ की एक रिपोर्ट में हेडलाइन कुछ ऐसी थी: ‘खुदरा मुद्रास्फीति 18 माह के निचले स्तर पर, खाद्य वस्तुएँ सस्ती होने से संकट में किसान’। पहले पैराग्राफ़ में कुछ यूँ लिखा गया: “फल, सब्जियाँ और ईंधन कीमतों में गिरावट से मुद्रास्फीति घटी है। सब्जियों वगैरह के दामों में गिरावट आने का मतलब है कि किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। इसकी वजह से किसानों को संकट का सामना करना पड़ सकता है।”

‘द वायर’ के रिपोर्ट की हेडलाइन

ये रिपोर्टिंग वाक़ई अलग स्तर की है क्योंकि लिखने वाले ने सिवाय हेडलाइन और पहले पैराग्राफ़ के ये बताने की कोशिश नहीं की कि उसके ‘किसान संकट’ वाली बात का आधार क्या है? हेडलाइन में तो कोई प्रश्नचिह्न, या ‘संकट में पड़ सकता है किसान’ भी नहीं लिखा। सीधे किसान को संकट में डाल दिया गया और पहले पैराग्राफ़ में बताया गया कि ‘पड़ सकता है’।

अगर यही लिख दिया होता कि 18 महीने में कितना ‘संकट’ मुद्रास्फीति के घटने से आया है, तो भी एक बात होती

रिपोर्ट लिखने वाले ने कोई आँकड़ा नहीं दिया, किसी मंडी के किसान से बात नहीं की, कहीं से पता नहीं किया कि क्या वाक़ई महँगाई घटने से किसान ‘संकट’ में आ गया है? कहीं यही लिखा मिल जाता कि किसान पर कितने रुपए का संकट आ गया। या यही मिल जाता कि कितने रुपए के ऊपर नीचे-होने से किसान संकट में जाता है, और बाहर आ जाता है।

ऐसे ही, एनडीटीवी पर एक एंकर ने किसानों की बात करनी शुरू कर दी कि कैसे किसान को आपके द्वारा रेस्तराँ में पैसे कम ख़र्च करने पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। भले ही ये तर्क एब्सर्डिटी कही जाएगी लेकिन उसने दर्शकों को बरगलाने के लिए ही सही, कम से कम 1000 रुपए, 50 रुपए और थोड़ी गणित की बात तो की। ‘वायर’ वालों को कुछ तो सीखना चाहिए।

ये लोग अपनी बात सही तरह से कह नहीं पाते। ये सब एक गिरोह के लोग हैं जो हेडलाइन में झूठ और कल्पना का सहारा लेकर भ्रम की स्थिति पैदा करते हैं। अगर इसी रिपोर्ट में ये स्वीकारा जाता कि तेल के दाम बढ़ने से महँगाई बढ़ती है, और महँगाई बढ़ने से देश का किसान संकट से बाहर आ जाता है, तो माना जा सकता था कि ऊपर जो भी लिखा गया, वो सही बात है।

हमने ‘द वायर’ पर ‘महँगाई’ लिख कर सर्च किया कि कहीं ये ज्ञान मिल जाए कि ‘वाह मोदी जी, महँगाई बढ़ा कर आपने कमाल किया’। लेकिन नहीं मिली। हर जगह तेल के दाम बढ़ने से, महँगाई बढ़ने से कैसे जनता त्राहिमाम कर रही है, यही मिला। अभी ये लोग किसानों का संकट देख रहे हैं, और जब टमाटर-प्याज 80 रुपए प्रति किलो हो जाता है तो उस समय ‘बाज़ार मूल्य’ और किसानों की आय में कोई सम्बन्ध नहीं दिखता इन्हें। तब इन्हें याद आ जाता है कि किसान तो उतने में ही बेचता है, बीच में कोई और खेल भी होता है।

इनका यह कह देना कि दामों में गिरावट के कारण किसानों को ‘उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है’, बताता है कि किसान और अर्थव्यवस्था के साथ-साथ मुद्रास्फीति आदि की कितनी समझ है इस पत्रकार को। वस्तुओं के मूल्य के निर्धारण में कई कारक होते हैं, और हो सकता है कि किसी एक कारक पर प्रभाव पड़ने से ही किसान संकट में नहीं आता। इससे भी इनकार नहीं है कि किसानों की स्थिति बेहतरीन नहीं है आज के दौर में, लेकिन सरकार ने लगातार उनको केंद्र में रखकर कई कल्याणकारी योजनाएँ बनाई हैं। उनका फ़र्क़ दिखता है।

आम भाषा में समझने की कोशिश करें तो सब्ज़ियों के दाम गिरने के कारणों में ज़्यादा उत्पादन से लेकर, बिक्री के लिए ले जाते हुए वाहन में डलने वाले तेल के दामों में कमी, मंडी में दलालों के कमीशन में कमी, और उस सब्ज़ी की डिमांड तक को देखना ज़रूरी है। ये समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। हाँ, अगर पत्रकार को यह लगता हो कि दूध गाय से नहीं, ‘मदर डेरी’ से आता है तो उनका आकलन सही है।

पिछले दिनों जब मोदी ने एक पुल का उद्घाटन किया तो यही गिरोह ये बता रहा था कि नाव चलाने वाले लोगों की नौकरी पर संकट आन पड़ा है। पता चला कि गंगा में जल परिवहन हेतु जलमार्ग बना है, तो इनके गिरोह के लोगों ने बताया कि नीचे मछलियों को संकट हो जाएगा इससे।

ऐसी बेकार मानसिकता लेकर चलने से पत्रकारिता करना संभव नहीं है। अगर आपको लगता है कि सच में महँगाई घटने से किसान संकट में आ जाता है तो आप उन किसानों की बात कीजिए, लोगों से पूछिए कि कल तक उनके खेत से गोभी किस रेट पर तौली जा रही थी, और अभी ‘संकट’ के समय में ये रेट कितना है?

आपको ये भी लिखना चाहिए कि तेल के दाम बढ़ना देश की अर्थव्यवस्था के लिए कितना ज़रूरी है क्योंकि उससे महँगाई बढ़ती है और, आपके तर्कानुसार, महँगाई बढ़ने से किसानों का संकट दूर हो जाएगा क्योंकि अब उन्हें सब्ज़ियों और फलों के दाम ज़्यादा मिलने लगेंगे।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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