वामपंथी और मोदी-विरोधी किसी भी हद तक जाने से नहीं घबराते। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर चल रहा विरोध-प्रदर्शन भी इसकी नए सिरे से पुष्टि करता है। उनकी योजना होती है कि कुछ भी भावुक सा बोल कर, प्रतीकात्मक रूप में दिखा कर, गलत बात को जेनरलाइज करके ऐसे दिखाना, जैसे भारत जल रहा है। वो असलियत से दूर होते हैं। इसके लिए वे 20 दिन की बच्ची का भी इस्तेमाल कर लेते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि वही बीस दिन की बच्ची बड़ी हो कर पूछेगी कि अम्मी थोड़ा पढ़ लेती तो कानून के बारे में क्लेरिटी आ जाती कि इसमें तो उनके मजहब के लिए कुछ गलत है ही नहीं।
हम बात कर रहे हैं 20 दिन की उस बच्ची के बारे में, जिसे सीएए के विरोध प्रदर्शन का सबसे छोटा चेहरा बना कर पेश किया जा रहा है। बीस दिन की बच्ची के हवाले से लिखा गया है कि वो जब बड़ी हो कर अम्मी से पूछेगी, “जब हम पर जुल्म हो रहा था तो आप क्या कर रही थीं।” जबकि अगर वो बच्ची ठीक से पढ़-लिख ले तो उसका सवाल ये होगा, “इतनी ठंड में बिना कानून पढ़े मेरी जान को खतरे में डाल कर, किसके उकसाने पर गई थी?”
20 day old Umme Habeeba,the youngest protestor @ Shaheen Bagh.Wen I asked her mother how she manages sitting in d cold having gone thru delivery 20 days back, she said, “..samvidhaan bachaana hai. Baithengey” @thewire_in @washingtonpost @AJEnglish @nytimes @times @TIME @BBCHindi pic.twitter.com/gynaLNF6SN
— Mariya Salim (@MariyaS87) December 30, 2019
उस बच्ची का नाम उम्मी हबीबा है। बताया गया कि वो महज 20 दिन की है। उसकी माँ के कुल 5 बच्चे हैं और वो मीडिया अटेंशन का कारण इसीलिए बन रही है, क्योंकि वह अपने बच्चों को सीएए विरोधी प्रदर्शन में लेकर आती है। क्या 20 दिन की बच्ची से उसकी मर्जी पूछी जा सकती है? क्या उसे पता भी है कि वो कहाँ है और उसका इस्तेमाल किसलिए किया जा रहा है? उसकी अम्मी संविधान बचाने की बात करते हुए धरने पर बैठी हुई है। संविधान को किस से क्या ख़तरा है, इसका उत्तर ख़ुद वामपंथियों के पास भी नहीं है।
वैसे ये पहला मौक़ा नहीं है, जब इस तरह की करतूत की जा रही हो। जेएनयू में सरकार विरोधी प्रदर्शन के दौरान विकलांग छात्रों को आगे कर दिया गया था। बाद में उनका इस्तेमाल कर छात्रों ने पुलिस पर बर्बरता के आरोप लगाए थे। ऐसे ही जामिया हिंसा के दौरान महिला छात्रों को आगे कर दिखाया गया था कि पुलिस ‘मासूम चाहतों पर जुल्म’ कर रही है। शाहीन बाग़ में सीएए का विरोध प्रदर्शन करने बैठी उम्मी की अम्मी भी यही कर रही है। उम्मी को तो पता भी नहीं है कि उसके साथ क्या हो रहा है?
दरअसल, किसी भी विवादित हिंसक प्रदर्शन को छिपाने के लिए, अंतररराष्ट्रीय मीडिया का अटेंशन पाने के लिए ऐसी तरकीबें आजमाई जाती रहती है। लेकिन, ये भी सोचा जाना चाहिए कि अगर उम्मी की तबियत खराब होती है, या फिर उसे ठण्ड लग जाती है तो क्या यही प्रदर्शनकारी इसका इल्जाम सरकार पर नहीं थोपेंगे? सरकार पर एक मासूम बच्ची के साथ बेरहमी करने का झूठा आरोप लगाया जाएगा। सोशल मीडिया पर इसे ‘क्रन्तिकारी’ बता कर शेयर भी किया जा रहा है।