रवीश कुमार को पुनः बधाई समेत उनसे गुजारिश करना चाहूँगा कि भक्त और चाटुकार आपके भी कम नहीं हैं और ऐसे में आप इस बात के लिए मोदी या किसी और को दोषी ठहराते हुए नंगे हो जाते हैं। हाँ, ये बात सही है कि मोदी के भक्त अक्ल से थोड़े अधिक पैदल हैं जबकि आपके वाले पढ़े-लिखे, सभ्य और अधिक तिकड़मी हैं।जहाँ गाली-गलौज में दोनों ही एक समान हैं, वहीं एक विशेष अंतर जो इनके मेन्टल स्टेट का है – जहाँ मोदी भक्त तृप्त और संतुष्ट हैं वहीं रवीश जी के भक्त अधिकतर अंदर से जले-भुने, कुढ़े, चिड़चिड़े, असंतुष्ट और कुछ अचीव न कर पाने का क्षोभ लिए।
खैर, तो रवीश जी को पुरस्कार मिल गया। बधाई बधाई बधाई। मेरी समझ से संभवतः यह ब्रह्मांड का पहला पुरस्कार होगा जो उसे उस चीज के लिए मिला है, जिसको वही आदमी गलत ठहराता और झूठ कहता रहा है। देश में असहिष्णुता है, डर का माहौल है और अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है, ऐसा कहने वाले रवीश जी को अपनी अभिव्यक्ति के लिए ही पुरस्कार मिल गया।
फ़िलहाल संभ्रांत रवीश भक्तों की तंग गली में ताजा विषय है पुरस्कार पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या फिर किसी और ने बधाई क्यों नहीं दी? जबकि रवीश जी अपनी पहचान वाली पत्रकारिता 2014 में छोड़ चुके थे और तब तक एक पत्रकार के तौर पर मध्यम वर्ग के दिलों में राज करते थे – उन्हें नरेंद्र मोदी और उनके कारण उत्पन्न असहिष्णुता का शुक्रिया अदा करना चाहिए, जिसकी वजह से यह सब संभव हुआ।
वैसे भी मध्यम वर्ग के दिलों पर राज करने से ठुल्लू मिलता आया है, सो आदमी वर्ग विशेष का चहेता क्यों कर न बने भला! तब यह और आसान हो जाता है जबकि देश में विपक्ष के नाम पर शून्य हो! हमें विरोध करने को, अपनी कुत्सित मानसिकता दर्ज करने को, अपने आप को भीड़ से अलग साबित करने को और बस विरोध के लिए विरोध करने को कोई तो अड्डा चाहिए न। सो रवीश जी की वॉल यह शून्य भरता (अंडा) अड्डा बना।
अपने सोशल मीडिया के अनुभव से कह सकता हूँ कि प्रसंशा या (बड़ी वाली) शुभकामनाएँ उसे अधिक मिलती हैं जो सकारात्मक हो, एक धड़े को पकड़ कर रहे, आदर्श बातें करने के बजाय उसे अपने चरित्र में दिखाए और कभी एकतरफा या चुनिंदा सोच लिए न हो। यह भारतीय पत्रकारिता की बदकिस्मती से रवीश जी इनमें कहीं भी फिट नहीं बैठते हैं। यह दुनिया के आठवें आश्चर्य से क्या कम है कि जो सरकार अपना कार्यकाल पूरा करके पहले से अधिक बहुमत लाती है, उस सरकार में रवीश जी को कोई सकारात्मक बात नहीं दिखी?
2007 के एक आलेख में रवीश जी लिखते हैं – “मनमोहन सिंह किसी जात बिरादरी के नेता की तरह अंतिम संस्कार के भोज, शादी, विदाई के वक्त संयम बरतने की अपील कर रहे हैं। सरकार के मुखिया की तरह कुछ कर नहीं रहे हैं। रिलायंस के कार्टेल के सामने क्या मनमोहन सिंह खड़े हो सकते हैं? राजनीति में भी परिवारों का कार्टेल बन रहा है। क्या उसके खिलाफ खड़े हो सकते हैं? मनमोहन सिंह व्यक्तिगत जीवन में संयम से रहते हैं। उनकी बेटियां आज भी साधारण रूप से कॉलेजों में पढ़ाने जाती हैं। कोई अहंकार नहीं। मगर क्या वो इस व्यक्तिगत कामयाबी को सामाजिक या राष्ट्रीय कामयाबी में बदल सकते हैं? नहीं।”
“वो भाषण दे सकते हैं। सो दे रहे हैं। बहुत ही बेकार भाषण देते हैं। खुद ईमानदार होने पर बधाई। मगर अपराधी, भ्रष्ट नेताओं को मंत्री बनाने की बेबसी पर लानत। मनमोहन सिंह जैसे बेबस ईमानदारों से ऐसे ही भाषणों की उम्मीद की जा सकती है। मर्दाना कमजोरी से बचने के लिए हस्तमैथुन से संयम बरते की सलाह देने वाले सड़क छाप बाबाओं की तरह मनमोहन सिंह के इस भाषण पर बहुत गुस्सा आया है।”
ऐसा लिखने वाले रवीश आज चिदंबरम की गिरफ़्तारी पर मौन ओढ़ ले रहे हैं। यदि सिर्फ सत्ता को गाली देने की बातें ही सही मान लें तो कल को क्या ऐसा होगा कि रवीश जी पदच्युत होने के बाद मोदी के खिलाफ कुछ नहीं कहेंगे?
दरअसल अब ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जहाँ रवीश अपनी एक आँख बंद करके रिपोर्टिंग करते दिखे हैं। और तो और अब वो अच्छा दिखने और इमेज बनाने के लिए भी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। ताजा उदाहरण है कशिश टीवी द्वारा मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड पर किए कार्य की सराहना पर। रवीश खुद तो इस पर कोई कार्यक्रम नहीं कर पाए किन्तु इस कांड के कवरेज के लिए पत्रकार की खूब तारीफ की, बिना मेहनत इस न्यूज को कवर कर फुटेज ली।
आज जबकि यह चैनल और वो पत्रकार इस खबर को किसी मज़बूरी में कवर करना छोड़ चुका है, रवीश जी नहीं पूछते। क्योंकि रवीश जी को इससे फुटेज नहीं मिलेगा। उनका यह आदर्शवाद का ढोंग वहाँ भी दिखता है, जहाँ वो एक तरफ ऐसा कार्यक्रम करते हैं जिसमें कहा जाता है कि देश में बात सुनी नहीं जा रही, सब गलत हो रहा है और दूसरी तरफ वो यह कार्यक्रम भी करते हुए दिखते हैं कि – हें, हें, हें!!! मेरी रिपोर्टिंग की वजह से (मोदी राज में ही) ट्रेन समय पर हो गई, लोगों को नौकरियाँ मिल गईं, विश्वविद्यालय में सुधार हो गया!!!
ऐसे में जबकि देश की अर्थव्यवस्था को एड्स हो जाने की ख़बरें आ रही हैं, देश के आम आदमी को अब (मोदी राज में भी) सब कुछ ठीक कर देने वाले सिर्फ और सिर्फ रवीश जी के उस प्राइम टाइम का इंतजार है, जिसमें वो कहेंगे कि देखिए मेरे प्राइम टाइम का असर हुआ – अर्थव्यवस्था का एड्स भी ठीक होने को है!!! हें हें हें हें!
यह भी कोई आश्चर्य की बात नहीं गर रवीश जी आपको प्राइम टाइम में कहते सुनाई दें – “हमें रोजगार को सिर्फ नौकरी की नजर से नहीं देखना चाहिए, बिजनेस भी तो रोजगार ही है!!! और आप देखिए कि 10 साल पहले के मेरे ट्वीट की वजह से आज का युवा अपना बिजनेस कर स्वावलंबी हो रहा है।”
शायद विषयांतर हो गया है और यह हो ही जाता है। क्योंकि हमारे बिहारी बाबू ने इतना रायता फैलाया हुआ है कि उसे समेटने में विषयांतर हो ही जाता है! वो भी तब जबकि वो रायते में रंग मिलाकर रंग बदलने के माहिर हों। तो रवीश जी को पुरस्कार मिला और जैसा कि ऊपर लिख चुका हूँ, इसके लिए सबसे बड़े बधाई के पात्र हैं देश में उनकी आवाज दबाने वाले मोदी जी। इस पुरस्कार के लिए बधाई के दूसरे सबसे बड़े पात्र प्रणय रॉय हैं जिन्होंने खुद की इमेज से बचाते हुए, विपरीत समय में भी रवीश कुमार को NDTV का प्लेटफॉर्म दिया।
मैं नरेंद्र मोदी और प्रणय रॉय को साधुवाद देता हूँ और इसी लाइन में रवीश जी को बधाई नहीं लिखता हूँ क्योंकि किसी बड़े आदमी ने न तो आज की क्रांति – सोलर पावर के काम के लिए हरीश हंडे को मैग्सेसे पुरस्कार के लिए बधाई दी थी और न ही रूरल डेवलेपमेंट के लिए मैग्सेसे पाने वाले दीप जोशी को। रेमन मैग्सेसे पाने वाले गूँज वाले अंशुल गुप्ता और संजीव चतुर्वेदी को कितने लोगों ने बधाई दी थी! क्या उनके मुकाबले का कोई काम है रवीश जी का?