मोदी सरकार के दौरान देश में रोजगार के अनाप-शनाप आँकड़े जुटाकर बेरोजगारी-बेरोजगारी चिल्लाने वाले कुछ गिरोहों ने ये बात कबूल करने में समय लगाया है कि उन्हें सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर मोदी सरकार ने ही लाकर दिए हैं। फैक्ट चेक के नाम पर जो खिलवाड़ अपने पाठकों के साथ इन मीडिया गिरोहों ने किया है और करते जा रहे हैं वह फैक्ट चेक के इतिहास में शर्मनाक कहानियों की तरह याद किया जाएगा।
राजनीति के खानदान विशेष के आदेशों पर उनकी प्रेस वार्ताओं में राफेल डील को घोटाला साबित करने के लिए घटिया और वाहियात सबूत जुटाए। प्रधानमंत्री की गरिमा को नुकसान पहुँचाने और व्यक्ति विशेष के तौर पर नरेंद्र मोदी की छवि ख़राब करने के प्रयास के लिए कुछ विशेष सस्ती कॉमेडी करने वाले सचल दस्ते बड़ी मात्रा में तैयार किए गए। फिर भी रोजगार की कमी को मुद्दा बनाया गया। अभिजात्यों ने पकौड़े बनाने वालों से लेकर चौकीदारों तक का भरपूर मजाक बनाया।
लेकिन विगत कुछ दिनों में एक नया ट्रेंड सोशल मीडिया में देखने को मिला है। देशभर में मेनस्ट्रीम मीडिया ने सदियों से पत्रकारिता और विचारधारा को अपनी बपौती समझकर इकतरफा समाचार, मनगढ़ंत आरोप और दुष्प्रचार का जमकर इस्तेमाल किया। इसमें TOI से लेकर द हिन्दू जैसे बड़े मीडिया घरानों ने वाहवाही भी लूटी। मौजूदा सरकार के खिलाफ भड़ास को प्रमुखता से बड़ी हेडलाइन पर छापने के बाद माफीनामा 10 दिन बाद आखिरी के किसी पन्ने पर छापने का खूब बढ़िया धंधा चलाया गया। यह भी कहना जरुरी है कि माफ़ी माँगने का सिलसिला भी तब जाकर शुरू हुआ, जब सोशल मीडिया देश में अपने पाँव पसार रहा था। और दूसरी तरफ के लोगों को भी प्रतिक्रिया करने का अवसर मिलना शुरू हुआ।
आप सोचिए, आप संचार के माध्यम हैं। लेकिन आपको इस बात पर गर्व के बजाय घमंड है कि आपकी बात कितने लोगों को प्रभावित कर सकती है। फिर भी आप किसी संस्थान, नेता, व्यवस्था पर बिना सोचे-समझे आरोप लगा देते हैं। बाकायदा इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से किसी सूचना को एक बड़े वर्ग को पढ़वाकर आप बड़े स्तर पर जो हानि कर चुके होते हैं, क्या उसकी भरपाई एक छोटे से और लगभग अदृश्य माफीनामे से की जा सकती है?
साल भर में एक दिन की बरसात के लिए छाते की दुकान हैं फैक्ट चेकर वेबसाइट्स
झूठे दावों, घटनाओं और आँकड़ों की वास्तविकता बताने के लिए फैक्ट चेक नामक व्यवस्था ने जन्म लिया था। धीरे-धीरे हुआ यह कि फैक्ट चेक के अच्छे बाजार को देखते हुए उन्हीं लोगों ने फैक्ट चेक को अपना व्यवसाय बना लिया, जो फैक्ट्स और आँकड़ों के लिए सबसे बड़ा खतरा रहे हैं। इसका उदाहरण राफेल को विमानवाहक पोत (एयरक्राफ्ट कॅरियर) बताने वाली अरुंधति रॉय द्वारा फंड किए गए ऑल्ट न्यूज़ जैसी वेबसाइट्स हैं, जिनके झूठे प्रोपेगैंडा और फैक्ट के फैक्ट चेक्स की नग्नता को ऑपइंडिया अक्सर सामने लाता रहता है। दुखद बात यह है कि ऑल्ट न्यूज़ वेबसाइट का फाउंडर नफरत से भरा हुआ एक ऐसा व्यक्ति है, जो सोशल मीडिया से लेकर लोगों के के व्यक्तिगत जीवन में नजर रखता है और उनकी बेहद निजी जानकारियों को सार्वजानिक करते हुए और ज्यादा माँसल हुए जा रहा है।
इंटेरनेट के बढ़ते इस्तेमाल के साथ ही सोशल मीडिया से लेकर व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी पर चलने वाली फर्जी यानी, फेक ख़बरों का बाजार जमकर बढ़ा है। इसी बात का फायदा उठाकर पत्रकारिता के नाम पर दुकान चलाने वाले कुछ लोग उल-जुलूल और बेहद हास्यास्पद ख़बरों तक का फैक्ट चेक करते हुए देखे जा रहे हैं। यहाँ तक कि MEME और फोटोशॉप तस्वीरों तक का फैक्ट चेक करने वाले लोग खूब फलते-फूलते देखे जा रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि वो समय दूर नहीं है जब फैक्ट चेक ही अपने आप में एक MEME बन चुका होगा।
फैक्ट चेक हम शर्मिंदा हैं, दी लल्लनटॉप…
इतिहास का सबसे निराशाजनक दिन वो था जब हिटलर के लिंग की नाप-छाप करने वाले कुछ मीडिया गिरोह फेकिंग न्यूज़ वेबसाइट की ख़बरों का फैक्ट चेक करते पाए गए। इससे भी दुखद यह देखना था कि इस फैक्ट चेक को करने के लिए वो अपने पाठकों को उल्टा समझाते हुए पाए गए कि यह खबर वास्तव में लोगों द्वारा सच समझी जा रही थी, इसलिए इसका फैक्ट चेक किया गया। हालाँकि, दी लल्लनटॉप ने मम्मी कसम खाकर पाठकों को मारक मजा देने की कसम खाई हुई है, इसलिए दी लल्लनटॉप में ये सब चलता रहता है। सिर्फ इस एक घटना के कारण मीडिया के समुदाय विशेष की इस छोटी सी टुकड़ी के विवेक को शंका की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। क्योंकि, चीते की चाल, बाज की नजर और दी लल्लनटॉप की ‘कसम’ पर शक नहीं करते!
ट्विटर पर India Today के पत्रकार राहुल कंवल को कल ही एक ऐसे फोटोशॉप का फैक्ट चेक शेयर करते हुए देखा गया, जिसे देखकर उनकी बौद्धिक क्षमता पर सवालिया निशान लगाने की गुंजाइश ही ख़त्म हो जाती है। इस वीडियो को बनाने वालों ने खुद जाकर राहुल कंवल को समझाने का प्रयास किया कि ये सिर्फ Meme है और महज हास्य के लिए ट्विटर पर चलाया गया है।
Fact Check: Doctored video links soccer celebrations in UK to exit poll cheer https://t.co/CQ68Gm4owr
— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) May 20, 2019
एक नजर ऐसे ही कुछ वाहियात फैक्ट चेक पर, जिनके जरिए ये मीडिया गिरोह अपने पाठकों को ये जताना चाहते हैं कि उनके पाठक उनके जैसे बेहद बुद्धू और उन्हीं के जैसे दिमाग से पैदल हैं।
एक नजर स्वघोषित फैक्ट चेकर्स की मार्मिक एवं दुखद कहानी पर
इस फैक्ट चेक को पढ़ने के बाद अपने आप को ‘फेसबुक पर सुरक्षित’ अवश्य चिन्हित करें
हमारी राय: प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) है स्वरोजगार का सबसे बेहतर विकल्प
ऐसे समय में, जब देश का एक बड़ा वर्ग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं का लाभ उठाकर स्वरोजगार की ओर बढ़ रहा है, अपने नाम के आगे बेरोजगार लिखने वालों को भी कुछ स्कीम्स का लाभ जरूर लेना चाहिए। पकौड़े बेचना और ‘चौकीदार’ होना ‘बेराजगार’ होने से कहीं बेहतर विकल्प है।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) में कैसे मिल सकता है लोन?
मुद्रा योजना (PMMY) के तहत लोन के लिए आपको सोशल मीडिया और व्हाट्सएप्प ग्रुप में फेक न्यूज़ का कच्चा माल तलाशने से थोड़ा फुर्सत निकालकर किसी बैंक की शाखा में आवेदन करना होगा। इंटरनेट पर लोगों को भक्त साबित करते हुए अगर आप दिन प्रति दिन चिड़चिड़े होते जा रहे हैं और इसके कारण अगर आप अब निराश होकर खुद का कारोबार शुरू करना चाहते हैं, तो आपको मकान के मालिकाना हक़ या किराए के दस्तावेज, काम से जुड़ी जानकारी, आधार, पैन नंबर सहित कई अन्य दस्तावेज देने होंगे।
नेहरू ने जो बैंक इस देश को दिए थे, उस बैंक का ब्रांच मैनेजर आप से कामकाज से बारे में जानकारी लेता है। ध्यान रखें कि उसे ये मत बताइएगा कि आपके पास आपसे भिन्न विचारधारा रखने वालों को भक्त साबित करने और पकौड़े बनाने वाले और चौकीदारों को गाली देने के अलावा और कोई काम बाकी नहीं है। आपके काम के आधार पर आपको PMMY लोन मंजूर करता है। कामकाज की प्रकृति के हिसाब से बैंक मैनेजर आपसे एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनवाने के लिए कह सकता है। उसे मोदी का एजेंट समझकर पारित हो चुके लोन के लिए मना मत कर देना।