रवीश कुमार देश के बड़े हिन्दीभाषी पत्रकारों में से एक हैं। एनडीटीवी पर आने वाला उनका शो ‘प्राइम टाइम’ हर उस मामले पर आवाज़ उठाने के लिए जाना जाता है, जिसमें भाजपा या पीएम मोदी की आलोचना का जरा भी चांस हो। अगर ऐसे मामले नहीं मिलते तो रवीश क्रिएट भी कर लेते हैं। तमिलनाडु के किसी गाँव में किसी बिजली के पोल का तार टूट जाए तो रवीश को देरी नहीं लगती ये साबित करने में कि पीएम मोदी का 100% इलेक्ट्रिफिकेशन का आँकड़ा झूठा है। जंगल में किसी शेरनी को कच्चा माँस खाते देख वो आवाज़ उठा सकते हैं कि उसे शिकार को पकाने के लिए ‘उज्ज्वला योजना’ का लाभ क्यों नहीं मिला?
रवीश के एक शुभचिंतक के रूप में मेरी चिंता ये है कि उनकी टीआरपी लगातार गिर रही है। एनडीटीवी देखने वाले अब भारत में कुछेक ही बचे हैं। हाँ, पाकिस्तान में यहाँ से ज़्यादा दर्शक हैं जो उनका शो देखते हैं। रवीश कुमार जिस एनडीटीवी के लिए इतना कुछ कर रहे हैं, अगर वही उन्हें धोखा दे दे तो वो भला कहाँ जाएँगे? जी हाँ, हमारी चिंता एकदम जायज है क्योंकि एनडीटीवी की वेबसाइट के पहले पेज पर रवीश को छोटी सी जगह में समेट दिया गया है। उन्हें महज ‘278 * 81’ पिक्सल्स की जगह मिली है
जहाँ पहले वेबसाइट खोलते ही रवीश का ब्लॉग छाया रहता था, वेब गंजे को कंघी बेचने, सॉरी गंजापन दूर करने वाली ख़बर को भी उनके ब्लॉग से ज्यादा प्राथमिकता मिलती दिख रही है। अक्षय कुमार का एड है लेकिन रवीश को कहीं कोने में भेज दिया गया है। पहले क्या दिन था! वेबसाइट खोलो तो रवीश के ब्लॉग पर ही पहली नज़र जाती थी। रोज़ रवीश के लेख आते थे। अब वो राजनीतिक मुद्दों पर कुछ दिनों से लिख ही नहीं रहे। जब देखो गोबर से खाद बनाने की विधि समझाते रहते हैं। क्या एनडीटीवी रवीश को हटा देगा? ये चर्चा आम हो गई है।
ऊपर वाले स्क्रीनशॉट में देखिए। एनडीटीवी की हिंदी वेबसाइट पर रवीश को कहाँ किस कोने में ढकेल दिया गया है। उनके लेख को ‘विचार’ वाली केटेगरी में नीचे की तरफ़ डाल दिया गया है। स्क्रॉल करने पर ही मिलता है।उनके लेख के नीचे ही कमाल खान का लेख है। वेबसाइट खुलते ही अमेज़न का प्रचार आता है। यहाँ तक कि इन्सुरेंस प्लान को भी रवीश से ज़्यादा जगह दी गई है। इसके पीछे का कारण क्या है? रवीश कुमार अपने उसी संस्थान में क्यों किनारे किए जा रहे हैं, जहाँ उन्होंने पसीना बहा कर प्रोपेगेंडा फैलाया है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि रवीश कुमार के शो की गिरती टीआरपी का असर उनके ब्लॉग पर दिख रहा हो? एनडीटीवी वेबसाइट वाले शायद नहीं चाहते होंगे कि उनके शो ‘प्राइम टाइम’ की तरह कहीं ‘एनडीटीवी डॉट इन’ का भी भट्ठा बैठ जाए। हालाँकि, ऑपइंडिया में फ़िलहाल कोई वैकेंसी नहीं है वरना रवीश कुमार अगर आवेदन करें तो यहाँ विचार ज़रूर किया जाएगा। चूँकि, मैं उनके ही गृह जिले से हूँ, मुझे उनकी चिंता होनी स्वाभाविक है। हम एनडीटीवी से माँग करते हैं कि रवीश के ब्लॉग को वेबसाइट पर पूरे सम्मान के साथ उचित स्थान दिया जाए।