Sunday, November 17, 2024
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एयर स्ट्राइक का सबूत माँगता लिबटार्ड गिरोह, महाशिवरात्रि पर दूध चढ़ाने का विरोध करना भूला

व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी चांसलर श्री रबिश जी ने नाराजदीप, एक्स-वाई चौक, लल्लनडाउन, स्कूपपूप, द स्प्रिंट, द डोन्ट थिंक, द एगरोल आदि के सम्मानित सदस्यों से उनके द्वारा 'भारत की गरीबी के परिप्रेक्ष्य में हिन्दू पर्वों की आड़ में सामंतवादी और फासिस्ट सवर्णों द्वारा दूध की बर्बादी' पर लिखे गए लेखों का विवरण माँगा।

हालिया इतिहास में यह पहली बार हुआ कि होली में वीर्य और पीरियड्स के ख़ून से भरे ग़ुब्बारों, दीवाली पर ओज़ोन लेयर बेधने और बृहस्पति ग्रह के वातावरण तक में गैस भरने वाले हिन्दू पटाखों, दुर्गापूजा की मूर्तियों द्वारा ‘इंटरस्टेलर’ फिल्म में पानी वाले ग्रह के समुद्र में मैथ्यू मकानहे के रोबोट के पैरों को लगभग फँसा लेने की बातों का विरोध करने वाले बुद्धिजीवियों के गिरोह ने महाशिवरात्रि के दौरान करोड़ों लीटर दूध के ‘बेकार चले जाने’ और भारत की गरीबी पर बात नहीं की।

इससे राष्ट्रवादियों में बहुत क्षोभ है। उन्होंने शाब्दिक असला-बारूद तैयार रखा था कि इन छद्म-बुद्धिजीवियों, लिबटार्डों और हिन्दू-विरोधी ताक़तों द्वारा एक भी विरोध की बात लिखी जाए, और उन पर डिजिटल धावा बोला जाए। लेकिन एयर स्ट्राइक के गलत समय पर होने के कारण लिबटार्ड गिरोह के गुर्गों को इधर सोचने का मौका ही नहीं मिला।

सुप्त सूत्रों से पता चला है कि आज सुबह जब लिबटार्ड गिरोह और पत्रकारिता के समुदाय विशेष के व्हाट्सएप्प चांसलर ने कैलेंडर का स्क्रीनशॉट भेजकर ग्रुप में इसकी जानकारी दी तो एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल गया। व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी चांसलर श्री रबिश जी ने नाराजदीप, एक्स-वाई चौक, लल्लनडाउन, स्कूपपूप, द स्प्रिंट, द डोन्ट थिंक, द एगरोल आदि के सम्मानित सदस्यों से उनके द्वारा ‘भारत की गरीबी के परिप्रेक्ष्य में हिन्दू पर्वों की आड़ में सामंतवादी और फासिस्ट सवर्णों द्वारा दूध की बर्बादी’ पर लिखे गए लेखों का विवरण माँगा।

ज़ाहिर है कि किसी ने लेख लिखने की ज़हमत नहीं उठाई थी। लल्लनडाउन ने आर्काइव से उठाकर एक लिंक दिया, जिस पर रबिश ने कहा, ‘चचा मुर्गा बन जाइए’। लल्लनडाउन के कर्मचारी को रबिश ने उनके हाल ही के दुष्कृत्य के लिए भी आड़े हाथों लिया जब उन्होंने स्मार्टीपैन्ट्स बनते हुए विंग कमांडर अभिनंदन के परिवार वालों की जानकारी सार्वजनिक कर दी थी जिसे बाद में उन्हें हटाना पड़ा था। 

हालाँकि, दूध की बर्बादी पर न लिख पाने का कारण गिरोह के सदस्यों ने बार-बार याद दिलाया कि एयर स्ट्राइक का सबूत अभी तक जारी नहीं हुआ है, और उनके अथक प्रयासों के बावजूद देश यह मानने को तैयार नहीं है कि हमारी सेना के लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान के देवदार के पेड़ उखाड़े, और कुछ नहीं। इस दलाली को रबिश ने आधे मिनट में ख़ारिज कर दिया और कहा कि तमाम सदस्यों को दिग्विजय सिंह और नवजात सिद्धू से सीखने की ज़रूरत है कि आसानी से फ़ौज की बड़ाई करते हुए, चुपके से यह कह दिया जाए, “अगर मारा है तो सबूत देने में क्या हर्ज है?”

जब तक ये सवाल जवाब चल रहा था तब तक ‘द एगरोल’ के पत्रकार ने ग्रुप में ही एक आर्टिकल लिखकर डाल दिया, ‘सेना के जवानों को नहीं मिलता है दूध, देश में करोड़ों लीटर दूध बहा दिए जाते हैं पत्थरों पर’। इस पर उसे ग्रुप के बाकी सदस्य जहाँ वाहवाही दे रहे थे, वहीं नाराजदीप नाख़ुश दिखे। उन्होंने कहा, “इसमें सेक्स वाला एंगल है ही नहीं जबकि ‘लिंग’ की पूजा होती है।” 

तब तक स्कूपपूप ने एक आर्टिकल का ड्राफ़्ट ग्रुप में डाला, “आठ सबूत कि भारतीय हिन्दू सेक्सुअल परवर्ट हैं।” इस आर्टिकल के तीन स्लाइड के बाद किसी ने पढ़ने की कोशिश नहीं की। लल्लनडाउन ने इसी बीच कहा कि स्कूपपूप उनका कालजयी आर्टिकल ‘हिटलर का लिंग था छोटा’ अपने रिलेटेड आर्टिकल्स में डाल सकता है। इस पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

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आगे व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी चांसलर श्री रबिश ने सुनाया, “अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत!” ये बात उन्होंने अपना आवाज़ में रिकॉर्ड कर ग्रुप में डाली थी ताकि इम्पैक्ट ज़्यादा पड़े लेकिन आधे घंटे तक किसी ने सुना ही नहीं तो उन्हें गुस्सा आ गया, “अरे, अब क्या कर रहे हो? एक दिन बाद अब लेकर आ रहे हो आर्टिकल? इससे कैसे होगा हंगामा? कैसे फैलाएँगे हम हिन्दुओं के खिलाफ ज़हर? यही तरीक़ा है माओवंशियों की पत्रकारिता का?”

इस पर लल्लनडाउन के सबसे घाघ पत्रकार ने कहा, “हें हें हें…”

“देखो दूबे, ये ठीक बात नहीं है। इसको कॉपी करने की रॉयल्टी लगती है, पेटेंट है मेरा!” रबिश ने याद दिलाया कि उनकी आइकॉनिक हँसी पर कॉपीराइट है। 

“अरे सर, हम तो बस यही कह रहे थे कि अभी अमेरिका में तो महाशिवरात्रि शुरू ही हो रही होगी। चला देते हैं आर्टिकल। हमारा जाल तो कितना फैला है आपको पता ही है। ग़रीबों के गोविन्दा से कहते हैं कि वाशिंगटन पोस्ट में गरीबी का एंगल लेकर लिख दे। अभी उन्होंने सबरीमाला पर भी धूर्तता, आई मीन बुद्धिमानी की थी।” लल्लनडाउन के प्रधान लम्पट ने कहा। 

“अंग्रेज़ी के अख़बारों में आ जाए तो इसे हम ग्लोबल पोवर्टी और मोदी से सीधा जोड़ सकते हैं कि मोदी ने जिस तरह से ‘हिन्दू आइडेंटिटी’ को जगाया है, और जिस तरह से ‘मिलिटेंट हिन्दुइज्म’ और ‘अल्ट्रा नेशनलिज्म’ की बातें हो रही हैं, उससे वो लोग भी शिवलिंग पर दूध चढ़ाने लगे हैं जो पहले घरों में अपने काम से मतलब रखते थे।” नाराजदीप ने एंगल दिया।

“यस… एग्जेक्टली। फिर मैं ना, वो ना, लिख दूँगी ना, कि ना… लोगों में अपने आप को ज़्यादा हिन्दू बताने का प्रेशर आ रहा है क्योंकि अगर वो मंदिर नहीं जाते हैं तो उनका सामाजिक बायकॉट होता है। फिर हम इंडिया स्पैंड का फर्जी डेटा डाल देंगे कि साम्प्रदायिक अपराध बढ़ रहे हैं। हम इसको सीधा इससे जोड़ सकते हैं कि मोदी और योगी जैसे नेताओं के आने से भारत में गरीबी बढ़ी है। हम बस लिख देंगे, इसका डेटा देने की भी ज़रूरत नहीं है क्योंकि पश्चिम वाले तो वैसे भी हमें गरीब ही मानते हैं। इसी का रोना रोकर तो मुझे लिखने का काम मिला। जो ही दो हज़ार देते हैं, एक आर्टिकल का, लेकिन मैं विचारधारा के लिए दृढ़संकल्प होकर काम कर रही हूँ।” ग़रीबों के गोविन्दा ने स्माइली भेजकर अपनी बात को विराम दिया।

रबिश ने इस बात का अनुमोदन किया और ‘द डोन्ट थिंक’, ‘द लायर’ और ‘द स्प्रिंट’ वालों को डाँट लगाई कि वो लोग भी कुछ कर लें। इस पर मिलिट्री मामलों के फर्जी जानकार शेखर कूप्ता ने कहा कि वो अपनी टीम से फोटोशॉप पर एयर स्ट्राइक के एरिया की ‘सैटेलाइट तस्वीरें’ बनवा रहे हैं। उसमें उन्होंने कहा कि जहाँ जैश का कैम्प था, उससे कहीं दूर जंगलों में बम गिरने से टूटे पेड़ों को दिखा देंगे ताकि पाकिस्तान की बात सच लगे। 

हमें यह जानकारी पतंजलि का विज्ञापन पाने वाले ‘प्राइम टाइम’ के प्रोड्यूसर से मिली जिन्हें हमने दस रुपया प्रति चैट स्क्रीनशॉट की दर से देने का वायदा किया। जिस तरह से उनके टीवी को लगातार घाटा हो रहा है, उन्होंने इस ऑफ़र को सहर्ष स्वीकार किया और रियल टाइम में स्क्रीनशॉट हम तक पहुँचाते रहे। 

वहीं, हमने इसी मसले पर कई राष्ट्रवादियों से बात की तो उनमें से एक ने बताया, “हमने तो काउंटर आर्टिकल तैयार रखा था कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का वैज्ञानिक कारण यह है कि पत्थर को सदियों तक उसके आकार में बचाए रखने के लिए वसा की ज़रूरत होती है, जो कि दूध, घी, या शहद आदि से पूरी होती है। लेकिन पूरे दिन आर्टिकल न आने से हमें दुःख हुआ है। फिर भी, हम इन लम्पटों की आदत जानते हैं, ये आएँगे ज़रूर। हम ने इसे अलग फ़ोल्डर में रख लिया है।”

दूसरे राष्ट्रवादी ने कहा कि उन्हें ऑपइंडिया की टीम पर भरोसा था कि वो इनके बैलून को पंक्चर करके तसल्लीबख्श करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे अतः उन्होंने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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