‘होली कब है, कब है होली’ के साथ ही ‘चुनाव कब है, कब है चुनाव?’ जैसे सवालों से भी अब पर्दा गिर चुका है। चुनाव की तारीखें मार्केट में ‘वायरल’ हो चुकी हैं। लेकिन चुनाव की तारीखों से पर्दा तो हट चुका है लेकिन राहुल बाबा की अक्ल पर गिरा पर्दा है कि उठता ही नहीं!
प्रियंका गाँधी के भाई और रॉबर्ट वाड्रा के साले राहुल गाँधी मानो प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिए इतने उतावले हुए जा रहे हैं कि आतंकवादी मसूद अजहर को ‘जी’ कहकर बुलाने लगे हैं। आतंकवादियों को सम्मान देकर उन्होंने जो मिसाल क़ायम कर दी है, राजनीति में अब इस तहजीब और शिष्टाचार में उनका कोई दूर-दूर तक सदियों तक कोई मुकाबला नहीं कर पाएगा। वैसे तो घोटालेबाजों और आतंकवादियों को सम्पूर्ण सम्मान देना कॉन्ग्रेस पार्टी हमेशा से ही अपना पहला कर्तव्य समझती आई है, लेकिन आजकल बिना जुबान लड़खड़ाए ही आतंकवादियों को पूरा सम्मान देने का सबसे सही अवसर कॉन्ग्रेस भाँप चुकी है।
जीजा जी से शुरू हुई 2019 लोकसभा चुनावों की तैयारी कब आतंकवादी मसूद अजहर जी पर आ गई, राहुल गाँधी को पता भी नहीं चला। हर तरफ से हार हासिल होने पर उनका ‘जी जनाब’ होना स्वाभाविक है। बहुत प्रयासों के बाद भी राफेल घोटाला साबित न हो सका, जनेऊधारी हिंदुत्व काम न आया, गो-भक्ति का अब समय नहीं रहा। मने, राहुल गाँधी की हालत उस बोर्ड परीक्षा के विद्यार्थी की तरह हुई पड़ी है, जिसे कल सुबह पेपर देने जाना है और वो आज शाम नोट्स बनाने बैठा है। उसे अभी सिलेबस भी खरीदना है, ‘मोस्ट इम्पोर्टेन्ट’ और वेरी-वेरी इम्पोर्टेन्ट सवाल लाल-नीले और तमाम रंगीन पेनों से रंग कर परीक्षा के मैदान में कूदना है। लेकिन अब पर्याप्त समय न देखकर वो विद्यार्थी अब सिर्फ व्हाट्सएप्प पर अपने साथ वालों से पूछ रहा, “तेरा कितना सिलेबस हुआ भाई? अपनी तो बैक पक्की है।”
अभी समय बिताने के लिए राहुल गाँधी तमाम वो हरकत करेंगे, जो उनका इस कठिन समय में ध्यान बाँट सकें ताकि वो एग्जाम हॉल में बिना ‘स्ट्रेस’ के जा सकें। इसलिए राष्ट्रवादी जन राहुल गाँधी से गुस्सा ना ही व्यक्त करें। मसूद अजहर को सम्मानसूचक ‘जी’ देना उनका इम्तेहान से पहले ‘स्ट्रेस रिलीज़’ करने का जरिया मात्र है। राहुल गाँधी साबित कर चुके हैं कि उनकी अक्ल पर पड़ा हुआ पर्दा अब उनके ‘जी’ तक तो कम से कम उतर ही चुका है। साथ ही बताना चाहूँगा कि यहाँ पर ‘जी’ से तात्पर्य राहुल गाँधी के ‘जिगर’ से है।
राहुल बाबा का नया गम ये है कि कॉन्ग्रेस की आगामी चुनावों में सबसे बड़ी उम्मीद-बैंक, बहुजन समाजवादी पार्टी भी अब मीडिया में जा-जाकर बताने लगी है कि हम कॉन्ग्रेस से गठबंधन नहीं कर रहे। यानी, विद्यार्थी के अरमानों पर एक और कुठाराघात! कॉन्ग्रेस के लिए ऐन समय पर BSP के हाथी का पीछे हट जाना ऐसा है, जैसे पेपर हाथ में आते ही उस सवाल का नदारद होना जिसे विद्यार्थी ने सबसे ज्यादा इसलिए रटा था क्योंकि वो सवाल हर साल जरूर आता था और इसी वजह से ‘VVImpt’ (वेरी-वेरी इम्पोर्टेन्ट) होने के कारण उसकी ‘TRP हाई’ हुआ करती थी।
खैर, अब परीक्षार्थी राहुल गाँधी आंसर सीट खाली रह जाने के भय से उस मोड (Mode) में आ चुका है, जिसमें वो जय बजरंगबली बोलकर जो कुछ भी उसने रटा हुआ है, उसकी उल्टी करने के लिए कमर कस चुका है। इसलिए चुनाव से पहले इस तरह के ‘जी-अजीर’ अभी ना जाने और कितने देखने को मिलेंगे।
सत्ता से गए 5 साल हो गए हैं लेकिन राहुल गाँधी अभी तक ‘जी’ को नही भूल पाए हैं और उसका असर अब तक दिखाई देता है। आज ही राहुल गाँधी को नया स्वप्न भी आया है, जिसमें वो NSA अजीत डोभाल को मसूद अजहर के साथ कंधार जाते हुए देख रहे हैं। तो मित्रों, ये अल्पवयस्क युवाओं की नींद की वह अवस्था होती है, जिसमें इंसान हक़ीक़त और स्वप्न में अंतर महसूस न कर पाने के चलते बिस्तर पर ही ‘सू-सू’ कर बैठता है। लेकिन गाँधी परिवार से होने के नाते राहुल गाँधी की सू-सू अलग है। यह राजनीतिक सू-सू है जो आम आदमी से बिलकुल अलग है। राहुल गाँधी निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि आखिर क्या हक़ीक़त है और क्या स्वप्न। राहुल गाँधी अभी यह फैसला करेंगे कि जिस भाजपा सरकार पर वो आतंकवादी को रिहा करने का आरोप लगा रहे हैं उसकी सर्वदलीय बैठक में उनकी पारिवारिक पार्टी भी शामिल थी।
परमादरणीय मसूद अजहर ‘जी’ के नाम भुनाने की जल्दबाजी में राहुल गाँधी यह तक भूल गए हैं कि उस आतंकवादी को पकड़ने कॉन्ग्रेस पार्टी सदस्य नहीं गए थे। लेकिन फिर भी यदि कॉन्ग्रेस मानती है कि उसी ने मसूद अजहर को पकड़ा था, तो फिर नरेंद्र मोदी को भी पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय देने में रॉबर्ट वाड्रा के साले साहब की पार्टी को ज्यादा समस्या नहीं होनी चाहिए।
कॉन्ग्रेस की की ‘जी’ सीरीज अभी लम्बी चलनी है। जो ‘जी’ की परंपरा कॉन्ग्रेस ने विकसित की है, अध्यक्ष जी उसको पार्टी के लिए पेटेंट करते हुऐ कल मसूद अजहर ‘जी’ पर तो लॉक कर ही चुके हैं। नेताओं से लेकर मीडिया गिरोह तक द्वारा भाजपा को आम चुनावों में विजयी होने से रोकने के लिए आजमाए गए एक-एक कर सारे प्रोपेगेंडा ‘लगभग’ ध्वस्त हुए जा रहे हैं। आज इंदिरा गाँधी वर्जन-2 ने भी भाषण देकर साबित कर दिया है कि उनकी सिर्फ नाक और साड़ी ही इंदिरा गाँधी से मिलती है। जानकारों और विशेषज्ञों का मानना है कि रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी का भाषण नेहा कक्कड़ की आवाज से भी ज्यादा फ़्लैट था।
अब इस परीक्षा की घड़ी में कॉन्ग्रेस को अपने आखिरी हथियार और ‘इक्के’ को मैदान में उतारने पर विचार करना चाहिए। उनकी जनता के बीच छवि ऐसी है कि राजनीति और कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच उनका ‘विशेष फैन क्लब’ देखा जाता रहा है। खासकर जबसे उनकी पत्नी ने उनके साथ हर समय खड़े रहने का सिनेमाई दावा किया है। उस हस्ती का नाम है रॉबर्ट वाड्रा! जनता के बीच देखे जा रहे उत्साह को देखते हुए, रॉबर्ट वाड्रा अगर अभी भी कॉन्ग्रेस की तरफ से चुनावों में कूद पड़ें तो कॉन्ग्रेस के रुझान बदलने तय हैं क्योंकि जिस भी मैदान में रॉबर्ट वाड्रा कूदते हैं, वो कब उनके नाम हो जाता है खुद रॉबर्ट वाड्रा भी नहीं जानते हैं। इसलिए Don’t underestimate the power of a Property Dealer Man जी।