राहुल गाँधी यूँ तो मोदी को लेकर अनेकों प्रकार की बातें करते हैं, मसलन वो उनसे ‘दस मिनट भी बहस नहीं कर पाएँगे’, मोदी उनसे ‘आँख नहीं मिला पाते’, ‘चौकीदार चोर है’ इत्यादि। लेकिन इस दौरान जो उन्होंने एक ‘तथ्यात्मक आरोप’ लगाया है वह राफेल विमान सौदे में मोदी द्वारा दलाली खाने और घोटाला करने का है। मैं तथ्यात्मक इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इसके अलावा उनके बाकी सभी आरोप बतोलेबाजी ही हैं, लेकिन ‘राफेल’ तो ‘एग्जिस्ट’ करता है, हम सबको पता है, इस सौदे पर फ़्रांस सरकार के साथ वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी ने ही हस्ताक्षर किए हैं।
इस आरोप में राहुल गाँधी लगातार राफेल की कीमत को ₹1600 से लेकर ₹526 करोड़ से लेकर ₹1600 करोड़ तक का बताते हैं। अगर हम विमानों की कीमत जैसे तकनीकी विषय में न जाएँ, तो उनका मूल और फ्लैट आरोप यह है कि इसमें ₹30 हजार करोड़ का घोटाला हुआ है। अर्थात नरेंद्र मोदी ने भारत सरकार के खजाने से ₹30 हजार करोड़ लूट लिए हैं और दिलचस्प बात यह है जो राहुल गाँधी कहते हैं कि लूट के ये ₹30 हजार करोड़ नरेंद्र मोदी ने अनिल अम्बानी की जेब में डाल दिए हैं।
कॉन्ग्रेस पार्टी अध्यक्ष और रॉबर्ट वाड्रा के साले राहुल गाँधी इस बात को इतनी बार दोहरा चुके हैं कि हम इस घटनाक्रम को भी इमेजिन करने लगते हैं कि आखिर कैसे यह सब हुआ होगा? नरेंद्र मोदी अकेले में तो अनिल अम्बानी को बुला नहीं सकते हैं, क्योंकि सबको पता चल जाएगा, इसलिए किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में मोदी ने सबसे नजरें बचाकर, अनिल अम्बानी को किसी कोने में ले जाकर, उसके कोट की जेब में ₹30 हजार करोड़ ठूँस दिए होंगे।
अब रेगुलर करेंसी के इतने नोट तो एक जेब में बन नहीं सकते, इसलिए यह भी मुमकिन है कि मोदी ने RBI के तत्कालीन गवर्नर ऊर्जित पटेल (गुजराती) को बोलकर ₹15 हजार करोड़ की कीमत वाले दो स्पेशल नोट छपवाए होंगे और उन्हीं नोटों को बंद मुट्ठी करके जूनियर अम्बानी की जेब में डाल दिया होगा। वैसे ही, जैसे शेयरिंग सवारियाँ ढोने वाला ऑटो ड्राईवर, आवश्यकतानुसार ट्रैफिक पुलिस वाले की मुट्ठी गर्म कर देता है, और प्रभु का तीसरा नेत्र भी इस दुर्लभ संयोग को देखने से वंचित रह जाता है।
अब अम्बानी की जेब गरम करने वाले मुद्दे की असलियत जानते हैं कि यह ₹30 हजार करोड़ का आँकड़ा आखिर आया कहाँ से, जबकि राफेल विमान सौदा ही कुल ₹58 हजार करोड़ का है? दरअसल यह ₹30 हजार करोड़ वह ऑफसेट ऑब्लिगेशन अमाउंट है, जिसे फ़्रांस की सरकार इस सौदे की शर्तों के तहत अगले पाँच से दस सालों में भारत की कम्पनियों के साथ भारत में निवेश करेगी। जिसके लिए भारत की 100 से अधिक कम्पनियों का चयन हुआ है, जिसमें रिलायंस भी एक है और इसके लिए ‘रिलायंस डिफेन्स’ ने दसॉं एविएशन कम्पनी (Dassault Aviation Company) के साथ एक ‘जॉइंट वेंचर’ बनाया है। इसके अंतर्गत ₹850 करोड़ का इन्वेस्टमेंट होगा, जिसमें रिलायंस के हिस्से का इन्वेस्टमेंट ‘सिर्फ ₹426 करोड़’ का है, जो आने वाले पाँच से दस साल के दौरान होगा। अब अगर अनिल अम्बानी यह पूरा इन्वेस्टमेंट भी डकार जाए, तब भी यह घोटाला सिर्फ ₹426 करोड़ का होगा, न कि ₹30 हजार करोड़ का, जैसा कि कॉन्ग्रेस चिरयुवा अध्यक्ष और विश्व वैमानिकी के जानकार माननीय राहुल गाँधी कहते आ रहे हैं।
यहाँ मैंने जो इस सौदे में अनिल अम्बानी की भूमिका का तकनीकी स्पष्टीकरण दिया है। एक बार अगर हम उसे भी दरकिनार कर देते हैं, और इसे ₹30 हजार करोड़ का ही घोटाला मान लेते हैं, और तब एक नजर कल की उस खबर पर डालते हैं, जो आज भी सुर्खियाँ बटोर रही है कि एक दूरसंचार सौदे में ₹500 करोड़ के कर्ज में डूबे अनिल अम्बानी को बचाने के लिए उनके बड़े भाई मुकेश अम्बानी ने उनका यह कर्जा चुकाया, वरना उन्हें 3 महीने के जेल हो सकती थी।
तब इसी एंगल से सोच लीजिए कि अगर अनिल अम्बानी के पास मोदी द्वारा उसकी जेब में ठूँसे गए ₹30 हजार करोड़ रखे होते तो क्या वह सिर्फ ₹500 करोड़ के लिए जेल जाने के मुहाने पर खड़ा होकर इस तरह से पूरी दुनिया में सरेआम जलील होना स्वीकार करता?
इन सभी कारणों से इस हवाबाजी का यह सार निकलता है कि नरेन्द्र मोदी ने बीते 5 साल में ‘आर्थिक अनियमिता’ और ‘घोटाले’ के नाम पर महज एक ‘राफेल’ करने की कोशिश की, लेकिन इसमें भी वे एक फूटी कौड़ी नहीं कमा सके, क्योंकि देश में एक जागरूक, मजबूत और रक्षा विशेषज्ञ के तौर पर राहुल गाँधी जैसा विपक्ष का नेता मौजूद था।
इसलिए, अगर आगे भी देश को मोदी-शाह जैसे शातिर चौकीदारों से बचाना है, तो आने वाले कई सालों तक विपक्ष में राहुल गाँधी जैसा एक जानकार, मँजा हुआ, सुलझा हुआ, ऊर्जावान, ओजस्वी और अविवाहित नेता ही चाहिए। इसलिए मेरी भारत की जनता से यही अपील रहेगी, खासकर युवा वर्ग से कि इस बार कॉन्ग्रेस को इतना वोट तो अवश्य दीजिएगा कि लोकसभा में उसकी कम से कम 10% सीटें आ जाएँ, ताकि उसे अधिकृत तौर पर नेता विपक्ष का पद मिल सके, जिसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल होता है। चूँकि पीएम को मिलने वाली SPG सुरक्षा पहले से ही उनके पास है… और जीने को क्या चाहिए?