रवीश कुमार ने सुई तो नहीं भोंकवाई पर उन्हें टीका चुभ गया। टीका सुई में न रहकर माथे पर रहे तब भी रवीश को चुभता है। आज फिर से चुभा तो वे लोगों के विश्वास पर खरे उतरते हुए चिल्लाए; पल्स पोलियो के सामने पिट गया आज का टीका अभियान।
पढ़कर लगा जैसे पल्स पोलियो ने गुंडे भेजकर टीके की पिटाई करवा दी हो और टीका बेचारा बंगाल में बीजेपी समर्थक की तरह मार खाकर जमीन पर पड़ा हो और इधर से रवीश कुमार उसके मुँह के आगे माइक रख कर पूछ रहे हों; वैसे तो टीका ब्राह्मणवाद का प्रतीक है पर पत्रकार होने के नाते इतना तो पूछना ही पड़ेगा कि पिट कर कैसा लग रहा है? बाते यहाँ से शुरू होकर आगे जाती और शायद वहाँ भी पहुँचती जहाँ रवीश टीके से कहते; मुझे पता था कि मोदी जी एक न एक दिन तुम्हें पिटवा देंगे। दरअसल पिटना ही तुम्हारी नियति है।
रवीश के अनुसार चूँकि टीका मोदी जी का था इसलिए उसके प्रति उनकी सहानुभूति भी शुद्ध नहीं रहती। वे दूसरे ही पल उससे कहते; मोदी के टीके हो, ऐसे में पिटते नहीं तो और क्या होता? सोनिया जी के पल्स पोलियो ने तुम्हारी पिटाई कर दी। किसी और के टीके होते तो मुझे तुम्हारे साथ खालिस सहानुभूति होती। मैं तुम्हारे लिए आवाज़ उठाता। इस पल्स पोलियो के खिलाफ आज का प्राइम टाइम करता और कल तुम्हारे समर्थन में… माफ़ करो, किसी का समर्थन करते हुए मैं दिखना नहीं चाहता इसलिए तुम्हारे समर्थन में नहीं बल्कि पल्स पोलियो के विरोध में फेसबुक पोस्ट भी लिखता। पर अब तुम्हारे लिए क्या कहें? एक तो मोदी के हो और ऊपर से टीका। मुझे टीका और टीका वालों से नफ़रत है।
उधर टीका बेचारा रवीश को ध्यान से देखते हुए मन ही मन सोचता; एक टीका रहे या 86 लाख, माथे पर रहे या सिरिंज में, इन्हें छोटा ही लगेगा क्योंकि इनकी ये सोच टीका के बारे में नहीं है बल्कि उस व्यक्ति के बारे में है जिसके माथे पर एक टीका लगा है या जो एक दिन में 86 लाख टीके का प्रबंध करता हो। सब बात की एक बात यह है कि ये व्यक्ति एक ऐसा फूफा है जो किसी और के विवाह में स्वादिष्ट भोजन खाकर यह कहने में जरा भी नहीं हिचकेगा कि; भोजन तो बड़ा स्वादिष्ट था लेकिन अगर नमक अधिक हो जाता तो खराब हो जाता। हाँ, अगर विवाह राहुल गाँधी का हुआ तो बात और होगी।
टीका आगे सोचता; अंतर की बात पर इन्हें या तो जातियों का अंतर पता है या फिर अवॉर्ड का। इनके लिए टीके और पल्स पोलियो में अंतर भले न हो पर ये रामनाथ गोयनका अवार्ड और मैग्सेसे अवॉर्ड में अन्तर कभी नहीं भूलेंगे। ये कभी नहीं कहेंगे कि अभिसार शर्मा और ये एक जैसे ही हैं क्योंकि अभिसार को भी रामनाथ गोयनका अवार्ड मिला है। पर ये ऐसा नहीं कहेंगे। इन्हें पल्स पोलियो और टीके में अंतर दीखता अगर टीका राहुल गाँधी के माथे पर होता या 86 लाख टीकों का प्रबंधन राहुल गाँधी ने किया होता। विरोध के इनके ही स्वर में इनका दिमाग ऐसा डूबा है कि इन्हें प्रणॉय राय भी याद नहीं दिला सकते कि पल्स पोलियो और कोरोना का टीका अलग-अलग है क्योंकि पोलियो संक्रामक रोग नहीं है। इनके लिए इंजेक्शन लगाना और दो बूँद दवा पिलाना भले एक ही काम है पर फील्ड रिपोर्टिंग और एंकरिंग अलग-अलग काम है।
टीका आगे सोचता; पल्स पोलियो से टीके को पिटवा ही दिया था तो साथ-साथ 2012 में तब की सरकार के स्कैम से 2021 में जीरो स्कैम को भी पिटवा देना चाहिए था। लिख देना चाहिए था कि; 2012 के कोयला स्कैम से पिट गई मोदी सरकार की ईमानदारी। आखिर किसी को भी पिटवा देना रवीश कुमार के फेसबुक पोस्ट का खेल है।
पल्स पोलियो से टीके को पिटवा दिया अब कॉन्ग्रेस के कोयला स्कैम से पिटेगी मोदी की ईमानदारी: रवीश कुमार
पल्स पोलियो से टीके को पिटवा ही दिया था तो साथ-साथ 2012 में तब की सरकार के स्कैम से 2021 में जीरो स्कैम को भी पिटवा देना चाहिए था। लिख देना चाहिए था कि; 2012 के कोयला स्कैम से पिट गई मोदी सरकार की ईमानदारी।
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