Saturday, July 27, 2024
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ख़ामोश बाबू से ही ख़ामोश ना रहा गया…

ख़ामोश बाबू को उन महिलाओं ने क्षमा दान दे ही दिया जिसकी बदौलत वो मंच पर सरेआम अपनी हरक़तों का बखान भी कर गए और वहाँ मौजूद लोगों की वाह-वाही भी लूट गए। इसे कहते हैं एक तीर से दो निशाने।

फ़िल्म इंडस्ट्री में अच्छा ख़ासा नाम कमा चुके अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा (ख़ामोश बाबू) के सुर आजकल कुछ अलग ही लय पकड़ते नज़र आ रहे हैं। आजकल सार्वजनिक तौर पर महिलाओं को पुरुषों के पतन तक के लिए ज़िम्मेदार ठहरा देने जैसी बेतुकी बात भी कह बैठते हैं। ये बात और है कि बाद में उस बात को ज़बरदस्ती हँसी-ठिठोली का ज़रिया मात्र बना दिया गया।

मौक़ा था मुंबई में नवोदित लेखक ध्रुव सोमानी की किताब ‘A Touch of Evil’ के विमोचन का जहाँ ख़ामोश बाबू से ख़ामोश नहीं रहा गया और महिलाओं पर ही बोल बैठे कि किसी आदमी के पतन, बदनामी और नाक़ामयाबी का कारण महिलाएँ ही होती हैं। माने ये कि अगर पुरुष समाज कोई ग़लती करें और उसकी सज़ा उन्हें दी जाए तो उसकी ज़िम्मेदार केवल और केवल महिलाएँ ही होंगी। हाँ… अगर महिलाएँ चुप्पी साधे रहें तो उनकी सफलता के द्वार कभी बंद ही नहीं होंगे।

इसके बाद वो #MeeToo पर भी बोले कि तमाम हरक़तों के बावजूद अब तक किसी महिला ने उन पर केस नहीं किया है। भई क्या बात है… वाह-वाह… ये तो बड़ी ही बहादुरी का काम कर दिखाया शत्रुग्न सिन्हा ने, अपने इक़बाल-ए-जुर्म को हँसी-हंँसी में ही बयाँ कर गए जनाब। अब इन्हें अपने इस क़ारनामे पर वाकई घमंड होना चाहिए क्योंकि उन्हें उन महिलाओं ने क्षमा दान दे दिया जिनकी बदौलत आज वो मंच पर सरेआम अपनी हरक़तों का बखान भी कर गए और वहाँ मौजूद लोगों की वाह-वाही भी लूट गए। इसे कहते हैं एक तीर से दो निशाने।

हैरानी तो इस बात पर है कि शत्रुघ्न की यह पूरी गतिविधि कई मेनस्ट्रीम मीडिया की सुर्ख़ी बना जहाँ उनके द्वारा महिलाओं के प्रति इस विचार को नदारद रखा गया, जहाँ वो हँस-हँस कर अपने कृत्यों का बखान बड़े ही निराले अंदाज़ में कर रहे थे।

उदाहरण के तौर पर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की ही बात करें तो उनकी भावनाओं को कुछ इस तरह पेश किया, जिसमें उन्हें बड़ा ही सौभाग्यशाली दर्शाया गया कि उनका नाम #MeToo  में शामिल नहीं है। हैरानी होती है कि इतने बड़े मीडिया हाउस ने भी इस तरह के वक्तव्य को हँसी-ठिठोली का जामा पहनाया।

बढ़ते हैं आगे, और बताते हैं कि ‘द क्विंट’ ने भी शत्रुघ्न सिन्हा के भाग्यशाली होने को ही अपनी सुर्ख़ी बनाया।

इसके बाद बात एनडीटीवी की, जिसने अपनी इंग्लिश और हिंदी वेबसाइट पर भाग्यशाली वाली लाइन को अपनी हेडलानन बनाया।


ये तो कहना पड़ेगा कि वाकई शत्रुघ्न सिन्हा बहुत भाग्यशाली हैं और इसकी वजह यह है कि ये उनका भाग्य ही है जो मज़ाक में किए गए इक़रार को बड़े स्तर के मीडिया हाउस हल्के में ले रहे हैं। क्योंकि न तो कहीं कोई हल्ला-गुल्ला होता दिख रहा है और न ही कोई #MeeToo पर उनके द्वारा बोली बातों पर कहीं कोई आपत्ति ही दर्ज हुई। ऐसा सौभाग्य बड़ा ही विरलय होता है, जो यदा-कदा ही किसी-किसी की झोली में गिरता है।

पंजाब केसरी ने भी ख़ामोश बाबू को सौभाग्यशाली हेडलाइन से ही संबोधित किया है।

बता दें कि शत्रुघ्न सिन्हा, ख़ुद एक बेटी (सोनाक्षी सिन्हा) के पिता हैं, ऐसे में इस तरह का मज़ाक तो उन्हें बिल्कुल भी शोभा नहीं देता। उन्हेंं तो शुक्रगुज़ार होना चाहिए अपनी देवी स्वरूपा पत्नी का, जो उनकी ग़लत हरक़तों और उसके इक़रार पर भी चुप्पी साधे हैं। अब ये तो भगवान जाने उनकी देवी स्वरूपा पत्नी ने अपनी चुप्पी को कब से साधे रखा होगा। शायद अपनी पत्नी की इसी अनोखी और दिव्य शक्ति के बलबूते ही वे इस तरह का साहसिक कार्य करने में सक्षम हो जाते होंगे।

क़िस्मत हो तो ऐसी जहाँ इक़बाल-ए-जुर्म भी हो और उसका आनंद भी हो इस पर उनका आत्मविश्वास तो देखते ही बनता था। अपनी पत्नी को अपना कवच बताने वाले सोनाक्षी के पिता उन महिलाओं के योगदान को भुला बैठे जिनके साथ उन्होंने ग़लत हरक़तें करने का दंभ भरा। क्या होता अगर वो महिलाएँ जाग उठतीं और और उनकी हरक़तों से पर्दा उठा देतीं तो, आज वो या तो कहीं मुँह छिपा रहे होते या अपने बचाव के लिए अपनी कवचरूपी पत्नी को आगे कर रहे होते।

हद है भई, जब सांसद स्तर के लोग ही इस तरह का मखौल सरेआम उड़ाएंगे तो #MeeToo जैसा अभियान तो धरा का धरा ही रह जाएगा और ऐसे अभियान तो कभी रफ़्तार पकड़ ही नहीं पाएँगे। ख़ैर, तमाम बातों का लब्बोलुआब फ़िलहाल तो यही रहा कि कैसे भी सही लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी ग़लत हरक़तों को एक मंच पर खुलेआम स्वीकारा तो सही, वो बात अलग है कि लोगों ने इसे हँसी का रास्ता दिखा दिया, जो एक गंभीर प्रश्न है?

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