महाराष्ट्र के नासिक स्थित त्रयम्बकेश्वर मंदिर में 13 मई 2023 की रात करीब 9:15 बजे मुस्लिमों का एक समूह दाखिल होने की कोशिश करता है। त्रयम्बकेश्वर शिवलिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हिंदू परंपरा के अनुसार इस मंदिर में सिर्फ हिंदुओं को प्रवेश और पूजा का अधिकार है। जिन मुसलमानों ने मंदिर के परिसर में प्रवेश करने की कोशिश की वो लोग गर्भगृह के अंदर शिवलिंग पर चादर चढ़ाना चाहते थे। बाद में मुस्लिम पक्ष के तरफ से बयान आया कि वे महादेव को धूप का धुआँ पेश कर रहे थे।
इस विवाद के बीच आपको त्रयम्बकेश्वर मंदिर का इतिहास भी जान लेना चाहिए। औरंगजेब ने अपने शासन काल में अन्य बड़े मंदिरों के साथ इस मंदिर को भी तुड़वा दिया था। मंदिर की जगह एक मस्जिद बनवा दी गई थी। हिंदुओं ने बाद में मंदिर पर दोबारा कब्जा कर लिया और मस्जिद की जगह मंदिर बनवा दिया था।
मंदिर में मुस्लिमों का जबरन प्रवेश
13 मई की रात को जैसे ही स्थानीय मुस्लिम मंदिर परिसर में दाखिल हुए, वहाँ तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें गर्भगृह तक जाने से रोक लिया। इसके बाद मंदिर प्रशासन ने मंदिर में घुसे लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। इस घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।
पुलिस ने अकील यूसुफ सैय्यद, सलमान अकील सैय्यद, मतीन राजू सैय्यद और सलीम बक्श सैय्यद को त्रयम्बकेश्वर मंदिर में जबरन प्रवेश करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इन लोगों के खिलाफ IPC की धारा 295 और 511 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। राज्य के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीश के आदेश के बाद मामले की जाँच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है।
आरोप है कि उर्स के मौके पर निकाले गए जुलूस में शामिल लोग शिवलिंग पर चादर चढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। जुलूस के आयोजक मतीन सैय्यद ने दावा किया कि मुस्लिम समाज के लोग चादर को सीढ़ियों तक ले गए थे, लेकिन उनका इरादा शिवलिंग पर चादर चढ़ाने का नहीं था।
हिंदुओं पर साम्प्रदायिक सद्भाव खराब करने का आरोप
त्रयम्बकेश्वर नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष अवेज़ कोंकणी (Avez Kokni) ने कहा कि मुस्लिमों ने मंदिर में प्रवेश करने या महादेव पर चादर चढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया। यहाँ नजदीकी दरगाह में उर्स के दौरान मुस्लिमों द्वारा पीढ़ियों से मंदिर की सीढ़ियों से धूप या लोबान का धुआँ दिखाने की परंपरा रही है।
नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष ने कहा, “स्थानीय हिंदू समाज ने कभी भी इस प्रथा का विरोध नहीं किया। अब मामले ने साम्प्रदायिक रंग ले लिया है। इससे काफी हैरानी हो रही है।” वैसे हिंदुओं ने ऐसा कब महसूस किया होगा कि उनके देवता को लोबान के इस धुएँ की जरूरत है।
नासिक जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (Nashik District Central Cooperative Bank) के पूर्व अध्यक्ष और त्रयम्बकेश्वर के निवासी परवेज़ कोंकणी ने कहा कि सदियों से चली आ रही यह प्रथा मजहबी समन्वय व एकता का प्रतीक है। शहर में मुस्लिमों की आबादी काफी कम है और सभी यहाँ सद्भाव के साथ रहते हैं। उन्होंने कहा, “शहर शांतिपूर्ण और गैर-सांप्रदायिक रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हिंदू बहुल इलाके में मुझे सहकारी बैंक का अध्यक्ष चुना गया है।”
परवेज का कहना है कि सदियों पुरानी परंपरा पर सवाल उठाए जाने से वे हैरान हैं। अब यहाँ सवाल उठता है कि क्या साम्प्रदायिक एकता का यह झंडाबरदार किसी मस्जिद, दरगाह या अन्य मजहबी स्थान पर हनुमान चालीसा के पाठ की वकालत करेगा? राज्यसभा सांसद संजय राउत ने भी त्रयम्बकेश्वर में हुई घटना को भी सही ठहराया है।
ऐसी प्रथाओं का रोका जाना क्यों जरूरी?
हिंदू देवता के किसी भी मंदिर में इस तरह से चादर चढ़ाने की कोई परंपरा नहीं है। किसी भी शास्त्र में इसका उल्लेख नहीं है। साथ ही गैर-हिंदुओं को मंदिर में प्रवेश करने और परिसर के अंदर अपने गैर-हिंदू धर्म के अनुष्ठान करने की अनुमति भी नहीं दी जा सकती।
सनातन धर्म में देवी-देवताओं के पूजा और अनुष्ठान की खास प्रक्रिया होती है। ऐसे में साम्प्रदायिक सौहार्द्र के नाम पर पूजा पद्धति को विकृत नहीं किया जाना चाहिए। यदि किसी हिंदू मंदिर में धार्मिक सौहार्द्र के नाम पर इस तरह की प्रक्रियाएँ हो रही हैं तो उन पर तुरंत पाबंदी लगनी चाहिए।
Trimbakeshwar Shiva temple in Nashik is one of the 12 Jyotirlings. Aurangzeb's forces vandalized this ancient shrine and build a masjid in 1690. Balaji Bajirao Bhat, the 8th Maratha Peshwa, restored the shrine and pulled down the masjid in 1754. An account https://t.co/r0MTqpDBXk
— Manoshi Sinha (@authormanoshi) November 29, 2020
कुछ लोग धार्मिक सौहार्द्र के नाम पर इस तरह के प्रथाओं की वकालत कर सकते हैं। हो सकता है कि देश के कुछ मंदिरों में धार्मिक सौहार्द्र जैसी प्रक्रियाएँ की जा रही हों, लेकिन ज्योतिर्लिंग जैसे प्रमुख मंदिरों का इन सब से अलग रहना उस स्थान की विशेषता के लिए भी आवश्यक है।
हिंदुओं को आवश्यकतानुसार इन चीजों में बदलाव करना चाहिए, जिससे हमारे पौराणिक स्थलों की पूजा पद्धति दूषित न हो। त्रयम्बकेश्वर मामले में मुस्लिम ज्योतिर्लिंग को चादर दिखाने को समन्वय की संस्कृति बता रहे हैं और इस घटना को लेकर हिंदुओं एवं मंदिर अधिकारियों पर धार्मिक बैर और घृणा फैलाने का परोक्ष आरोप लगा रहे हैं।
Do you know ? Trimbakeshwar Temple, one of the 12 Jyotirlingas in Nashik, was demolished by Aurangzeb in 1680 AD and built a mosque there to make Nasik's name Gulchnabad.
— Śrīrām 🇮🇳 (@Vadicwarrior) September 16, 2022
#Thread pic.twitter.com/T0eR1eYzYl
त्रयम्बकेश्वर मंदिर में धूप का धुआँ दिखाने को धार्मिक सौहार्द्र बताने वाले ये लोग इस तथ्य को छिपा जाते हैं कि धार्मिक एकता की जिम्मेदारी सिर्फ हिंदुओं को दी गई है। क्या हिंदुओं के साथ प्रेम और सद्भाव दिखाने के लिए किसी मस्जिद या ईदगाह में आरती, यज्ञ, हवन या किसी भी तरह के पूजा की इजाजत मिल सकती है? क्या इस देश में ऐसी कोई परंपरा रही है, जहाँ किसी मस्जिद में किसी हिंदू देवता का बड़ा अनुष्ठान आयोजित किया गया हो?
Bramhagiri, 28 Km from Nashik City in Maharashtra. This ancient Hindu temple in the town of Trimbak, is one of the 12 Jyotirlingas and highly venerated and sacred pilgrimage site shrines in Bharat.
— Śrīrām 🇮🇳 (@Vadicwarrior) September 16, 2022
मजहबी प्रेम और सम्मान का बोझ हिंदुओं के कंधों पर ही लाद दिया गया है। हिंदुओं से उम्मीद की जाती है कि वे गैर-हिंदुओं को मंदिरों में देवताओं पर चादर चढ़ाने की अनुमति दें। मुस्लिम हिंदू देवी-देवताओं की कितनी इज्जत करते हैं, इसका उदाहरण काशी विश्वनाथ में देखिए।
ज्ञानवापी परिसर में तथाकथित मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिला है। इसी स्थान पर मुस्लिम वजू किया करते थे। शिवलिंग पर कुल्ला किया करते थे, हाथ-पैर धोते थे। इसी मजहब के मानने वाले त्रयम्बकेश्वर मामले में हिंदुओं को सांप्रदायिक सद्भाव की बातें सुना रहे हैं।
Aurangzeb destroyed the original 1000 years old Trimbakeshwar temple, built a Masjid over it & renamed Nasik as Gulshanabad. Marathas recaptured Nashik in 1751 pulled down the Masjid & rebuilt Trimbakeshwar.
— Śrīrām 🇮🇳 (@Vadicwarrior) September 16, 2022
हर हर महादेव ।।
Pic credit☺️ :- @sanatansanskrutivigyan
मराठों के दम पर त्रयम्बकेश्वर को दोबारा हासिल किया गया
साल 1689 में औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या कर दी। राजा की मृत्यु के बाद औरंगज़ेब ने हिंदुओं पर और अधिक अत्याचार शुरू कर दिए। उसने साल 1690 में भारत के अन्य स्थानों की तरह मराठा साम्राज्य के तहत आने वाले धार्मिक स्थलों को अपवित्र और नष्ट करने का आदेश दिया। ऐसा करके वह मराठा योद्धाओं का मनोबल कम करना चाहते था। उस समय युवा छत्रपति राजाराम महाराज के नेतृत्व में हिंदू साम्राज्य की रक्षा के लिए लड़ रहे थे।
जदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक ‘औरंगजेब का इतिहास'(History of Aurangzeb) और काशीनाथ साने ने अपनी पुस्तक वार्षिक इतिब्रित्ता (वार्षिक समाचार पत्र) में कई स्थानों पर एलोरा, त्र्यंबकेश्वर, नरसिंहपुर, पंढरपुर, जेजुरी और यवत (भूलेश्वर) में औरंगजेब द्वारा मंदिरों को तोड़े जाने का उल्लेख किया है।
मुगल आक्रांता औरंगजेब ने त्रयम्बकेश्वर स्थित भगवान शिव के एक हजार साल पुराने मंदिर को तोड़ दिया था। इसके स्थान पर उसने एक मस्जिद बनवा दी थी। इतना ही नहीं, कुंभ नगरी नासिक का नाम बदलकर गुलशनाबाद रख दिया गया था।
मराठों का नया इतिहास – खंड II (New History of Marathas – Volume II) में जीएस सरदेसाई लिखते हैं, “नवंबर 1754 में त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को मराठाओं ने दोबारा बनवाया था। उन्होंने त्रयम्बकेश्वर मंदिर के स्थान पर बनवाए गए मस्जिद को गिरवा दिया था।
अन्य ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि मंदिर का निर्माण तीन वर्षों यानी 1751 से 1754 तक चला था। अर्थात छत्रपति राजाराम के शासनकाल में बालाजी बाजीराव भट उर्फ नानासाहेब पेशवा के नेतृत्व में मराठों ने कार सेवा की थी। मंदिर का पुनर्निर्माण बेसाल्ट पत्थर से कराया गया था। यह मंदिर आज भी इसी स्वरूप में है।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित तीन मुखी शिवलिंग तीन देवताओं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में है। यह नासिक शहर से 28 किलोमीटर दूर ब्रह्मगिरि पर्वत की तलहटी में स्थित है। मंदिर हेमाद पंथी शैली में बनाया गया है। इस शैली का नाम 13वीं शताब्दी के यादव वंश क्षत्रिय राजा के मंत्री हेमाद्रि पंडित के नाम पर रखा गया है। उन्होंने उस शैली को प्रतिष्ठित किया था।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर को प्राप्त करने के लिए असंख्य हिंदू सैनिकों ने लगातार चार पीढ़ियों तक अपने प्राणों की आहुति दी। अपनी भूमि की रक्षा करने, मंदिरों में देवताओं को पुनर्स्थापित करने और धर्म को पुनर्स्थापित करने में हमारे पूर्वजों को बहुत समय लगा।
हिंदुओं को विचार करना चाहिए कि क्या त्र्यंबकेश्वर जैसे उनके देवताओं को वास्तव में किसी इस्लामी पूजा स्थल से कुछ लोबान के धुएँ की आवश्यकता है? इस तथ्य को जानते हुए कि उसी मंदिर को अतीत में उसी आस्था के आक्रमणकारी ने हिंदुओं पर इस्लामिक आस्था थोपने और अत्याचार करने के लिए नष्ट कर दिया गया था।
त्रयम्बकेश्वर विवाद के बाद मुख्य बातें:
- त्रयम्बकेश्वर मंदिर में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर पहले से ही प्रतिबंध है। यह प्रतिबंध आज के समय की नहीं है।
- मंदिर को वर्ष 1690 में औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था और इसकी जगह एक मस्जिद बनवाई गई थी। वर्ष 1754 में मराठों ने अपने पराक्रम से मस्जिद को तोड़कर मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।
- अब, स्थानीय मुस्लिमों का कहना है कि वे किसी गुलाम वली शाह दरगाह के जुलूस के दौरान भगवान को धूप दिखाने के लिए पहले सीढ़ी पर एक पल के लिए रुकते हैं। हम कैसे जान सकते हैं कि यह एक प्रयोग नहीं है? क्योंकि दूसरी तरफ का इतिहास मंदिर को ध्वस्त करने का है। इसलिए ‘मैं सीढ़ियों पर रूक गया, अंदर नहीं आया, चादर चढ़ाने का इरादा नहीं था, बस धूप ही तो दिखाया’ आदि तर्क विश्वसनीय नहीं हैं। स्थानीय दरगाह के खादिम सलीम सैय्यद ने यह भी कहा कि जब वो सीढ़ियों पर रूकते हैं तो ‘हर हर महादेव और ओम नमः शिवाय’ का जाप करते हैं। भले ही यह किसी हिंदू को खुश करने वाली बात हो, लेकिन क्या सलीम सैय्यद को उसका मजहब ऐसा करने की अनुमति देता है?
- यदि किसी गैर-हिंदू की त्रयम्बकेश्वर में आस्था है तो उसका हिंदू धर्म में स्वागत है।
- क्या किसी इस्लामी तीर्थ स्थल या मस्जिद में हनुमान चालीसा का पाठ करना, मंत्रों का पाठ करना, पूजा करना, यज्ञ, होम-हवन या कम से कम कुमकुम-हल्दी आदि हवा मे उड़ाना ठीक है? यदि नहीं तो सद्भाव बनाए रखने का भार केवल हिंदू समुदाय के कंधों पर ही क्यों?
- अंतिम प्रश्न हिंदुओं के लिए है। क्या ज्योतिर्लिंग जैसे विशेष पवित्र पूजा स्थल पर विधर्मियों के पूजा स्थल की धूप, दीप, फूल, कपड़े आदि देवता को चढ़ाना या दिखाना आवश्यक है? क्या इससे उस स्थल की ऊर्जा प्रभावित नहीं होगी? हमारे देवताओं में इनकी कितनी आस्था है, यह समझने के लिए ज्ञानवापी का उदाहरण ही काफी है। तथाकथित मस्जिद में 300 वर्षों तक वजूखाने में शिवलिंग का किस प्रकार सम्मान होता रहा, यह पूरी दुनिया देख चुकी है।
इन तर्कों को किसी भी तरह से कट्टरता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह गैर-हिंदुओं को अपना धर्म पालन करने के अधिकार से वंचित करने की बात नहीं करता है।