क़ानूनी रूप से राम मंदिर का निर्माण प्रशस्त होने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के उन पहलुओं पर ध्यान देना ज़रूरी है, जो आपको इतिहास में पीछे ले जाकर यह बताएगा कि सारी चीजें सार्वजनिक रूप से ज्ञात थीं लेकिन फिर भी मामले को अटकाने, लटकाने और भटकाने की कोशिशें जारी थीं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम निर्णय में कहा कि मंदिर वहीं बनेगा और मस्जिद कहीं और बनेगा। मस्जिद के लिए अयोध्या में ही किसी और जगह पर 5 एकड़ ज़मीन मुहैया कराने का आदेश दिया गया। सीजेआई गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय पीठ ने यह माना कि मुस्लिम पक्ष राम जन्मभूमि पर अपना एक्सक्लूसिव स्वामित्व नहीं साबित कर पाया।
यह भी एक संयोग ही था कि जिस दिन राम मंदिर पर फ़ैसला आया, उसी दिन करतारपुर साहिब कॉरिडोर का उद्घाटन भी हुआ। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह सम्मिलित हुए। करतारपुर कई वर्षों तक सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का निवास स्थान रहा है। उन्होंने वहाँ 18 वर्ष गुजारे थे। ऐसे में, सिखों के लिए यह ख़ुशी का क्षण रहा क्योंकि जिस पवित्र स्थल को वो सीमा के इस पार से देख कर ही संतोष कर लेते थे, अब वहाँ जाकर दर्शन करने का भी सौभाग्य प्राप्त होगा।
इन सबके बीच राम मंदिर मामले में भी गुरु नानक देव जी का जिक्र आया। अयोध्या फ़ैसले की जो कॉपी है, उसमें पृष्ठ संख्या 991-995 में सिखों के प्रथम गुरु का जिक्र किया गया है। एक तरह से ये प्रमुख आधार रहा, जिसका संज्ञान लेते हुए अदालत ने यह माना कि बाबर के आक्रमण से वर्षों पहले भी अयोध्या एक तीर्थस्थल था और वहाँ पूजा-पाठ होते थे। दरअसल, सुनवाई के दौरान राजिंदर सिंह नामक वकील कोर्ट में पेश हुए थे, जो सिख इतिहासकार हैं और सिख साहित्यों के बड़े विद्वान भी हैं। उन्होंने सिख साहित्यों के आधार पर यह साबित किया कि गुरु नानक देव 1510 में भगवान श्रीराम का दर्शन करने गए थे।
गुरु नानक देव जी ने सं 1510-1511 में अयोध्या में भगवान श्रीराम का दर्शन किया था। गुरु नानक देव सं 1507 (विक्रम संवत 1564) में भद्रपद पूर्णिमा के दिन तीर्थाटन के लिए निकले थे। उससे पहले उन्हें भगवान का साक्षात्कार हो चुका था। उसके बाद वो दिल्ली से हरिद्वार और सुल्तानपुर होते हुए अयोध्या पहुँचे। उनका ये तीर्थाटन 3-4 सालों तक चला। वो 1510-11 (विक्रम संवत 1567-68) में अयोध्या पहुँचे। सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर ध्यान दिलाया है कि जब उनका ये दौरा हुआ, तब तक बाबर ने भारत पर आक्रमण नहीं किया था। राजिंदर सिंह ने सिखों के पवित्र साहित्य ‘जन्म साखी’ को सबूत के रूप में पेश कर बताया कि गुरु नानक देव ने भगवान राम का दर्शन किया था।
इलाहबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले में भी जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने ‘जन्म साखी’ का जिक्र करते हुए इस घटना की तरफ़ ध्यान दिलाया था। राजिंदर सिंह ने ‘आदि साखी’, ‘पुरातन जन्म साखी’, ‘पोढ़ी जन्म साखी’ और ‘गुरु नानक वंश प्रकाश’ जैसे पवित्र पुस्तकों का जिक्र करते हुए अपनी बात का सबूत पेश किया। यह भी पता चला कि बाद के दिनों में गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविन्द सिंह भी भगवान श्रीराम का दर्शन करने अयोध्या पहुँचे थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गुर नानक देव द्वारा वहाँ जाकर दर्शन करना हिन्दुओं की आस्था और विश्वास पर मुहर लगाता है। कोर्ट ने माना है कि बाबर के आक्रमण से पहले के कई धार्मिक दस्तावेज मौजूद हैं, जो जन्मभूमि की बात का समर्थन करते हैं।
यहाँ एक और घटना का याद दिलाना ज़रूरी है, जो निहंग सिखों को लेकर है। नवम्बर 30, 1858 को अवध के थानेदार ने एक एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें उसने कहा था कि 25 सिख राम जन्मभूमि में घुस आए और उन्होंने गुरु गोविन्द सिंह का हवन किया। इन सिखों ने वहाँ की दीवारों पर ‘राम-राम’ लिखा और कई धार्मिक प्रक्रियाएँ पूरी करते हुए पूजा-पाठ भी किया। यह बताता है कि यह आंदोलन सिर्फ़ हिन्दुओं का नहीं था बल्कि पूरा भारत इससे जुड़ा हुआ था। निहंग सिखों की कहानी गुरु गोविंद सिंह और उनके पुत्रों के बलिदान तक जाती है। निहंग सिख संख्याबल में कम होने बावजूद दुश्मन को नाकों चने चबवाने वाले इतिहास के कारण विख्यात हैं।
राम मंदिर की पहली FIR में लिखा है, सरदार निहंग सिंह, जो पंजाब से 25 सिख शिष्यों के साथ 28 नवम्बर 1858 को अयोध्या आये। उन्होंने ने बाबरी ढांचे पर कब्जा किया, भगवान श्री राम की मूर्ति स्थापित की और हवन कर रहे हैं। सिख समुदाय ने ढांचे की दीवार पर राम- राम लिख दिया और पूजा कर रहे हैं https://t.co/y02nGTa0HO pic.twitter.com/FkBLgsaSBn
— Vikas Bhadauria (ABP News) (@vikasbha) November 10, 2019
यह सब बताता है कि अयोध्या विवाद को जबरदस्ती लम्बा खींचा जा रहा था जबकि सारी चीजें पब्लिक डोमेन में पहले से ही थीं। गुरु नानक देव द्वारा वहाँ दर्शन करना और फिर निहंग सिखों द्वारा जन्मभूमि में राम की आराधना करने से यह पता चला है कि राम जन्मभूमि से भारत के लोगों की भावनाएँ जुड़ी थीं, सिर्फ़ हिन्दुओं की नहीं।