Friday, November 15, 2024
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3000 नारी सेना संग रानी जयराज कुमारी ने मुगलों को चटाई धूल, शुरू करवाई थी रामजन्मभूमि पर पूजा: जहाँ पति और भाई ने पाई वीरगति, वहीं हुईं बलिदान

रानी जयराज कुमारी ने 3 हजार महिला सैनिकों को लेकर जीत ली थी रामजन्मभूमि। हुमायूँ द्वारा अयोध्या भेजी फ़ौज से लड़कर गर्भगृह पर हुई थीं बलिदान। उनका शव वहीं मिला, जहाँ उनके पति राजा रणविजय सिंह का शव मिला था। बचपन से थी थीं युद्ध कला में निपट। पति रणविजय और भाई वीरभानु प्रताप सिंह ने भी रामजन्मभूमि की रक्षा के लिए त्यागे थे प्राण।

अयोध्या में 500 साल तक चले रक्तरंजित संघर्ष के बाद आखिरकार 22 जनवरी 2024 को भगवान राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा उनके जन्मभूमि पर विधि-विधान से हो गई। इस अवसर पर देश और दुनिया भर के हिन्दुओं ने ना सिर्फ दीपावली मनाई, बल्कि उन तमाम रामभक्तों को भी याद किया जिन्होंने मुगल से लेकर मुलायम सिंह यादव के काल के बीच खुद को राम के नाम पर बलिदान कर दिया।

उन अनगिनत ज्ञात-अज्ञात बलिदानियों में तमाम नारी शक्तियाँ भी हैं, जिन्हें वामपंथी कलमकारों ने साजिशन इतिहास के पन्नों से विस्मृत कर दिया। उन्हीं नारी शक्तियों में एक थीं रानी जयराज कँवर (जयराज कुमारी) और उनके साथ लड़कर वीरगति पाईं 3 हजार से अधिक महिलाओं की सेना। ऑपइंडिया ने रानी जयराज कुमारी के हंसवर स्थित महल पहुँचकर इतिहास और वर्तमान की जानकारी जुटाई।

राम मंदिर के लिए पति, भाई, देवर ने दिया था बलिदान

उत्तर प्रदेश के जिला अम्बेडकरनगर के हंसवर राजघराने की रानी जयराज कँवर के पति राजा रणविजय सिंह मुगल आक्रांता बाबर की फ़ौज से लड़कर रामजन्मभूमि पर वीरगति पा गए थे। इसी युद्ध में रानी के भाई एवं गोरखपुर के पास स्थित जयराज नगर के राजकुमार वीरभानु प्रताप सिंह भी बलिदान हुए थे। इसके साथ ही रानी जयराज कँवर के देवर और उनके के युवा भी राम मंदिर की रक्षा के लिए सन 1526-27 में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

अपने पति राजा रणविजय सिंह और प्रजा के बलिदानियों के अंतिम संस्कार के बाद रानी जयराज कुमारी ने अपने साथ 3,000 नारियों की सेना लेकर रणक्षेत्र में कूद पड़ीं और रामजन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए आक्रमण कर दिया था। हमने अपनी पिछली रिपोर्ट में इस युद्ध के बारे में विस्तार से बताया था। साथ ही यह भी बताया था कि किस प्रकार से अभी हंसवर का ऐतिहासिक राजमहल जर्जर हालत में है।

बचपन से ही थीं युद्ध कौशल में पारंगत

अम्बेडकरनगर के इतिहासकार और हंसवर राजघराने से जुड़े बलराम मिश्र ऑपइंडिया को बताते हैं कि रानी जयराज कुमारी बचपन से ही युद्ध कला में निपुण थीं। उन्होंने अपने मायके जयराज नगर में घुड़सवारी और तलवारबाजी जैसी युद्ध कलाएँ सीखी थीं। हंसवर के राजा रणविजय सिंह से शादी होने के बाद भी रानी जयराज कँवर ने अपने युद्ध कौशल की प्रैक्टिस नहीं छोड़ी थी।

रानी जयराज कुमारी के बारे में बलराम मिश्रा बताते हैं कि उन्होंने अपनी एक खास सेना बनाई थी, जो राजा की नियमित फ़ौज से अलग थी। लगभग 3 हजार की संख्या वाली इस सेना में सिर्फ महिलाएँ थीं। हंसवर राज्य की ये महिलाएँ सभी जातियों से थीं। इन्हें बराबर का सम्मान मिलता था।

महल के बाहर इसी हिस्से में दी जाती थी महिला सैनिकों को युद्ध की ट्रेनिंग

महिला सैनिकों की ट्रेनिंग आदि की जिम्मेदारी खुद रानी जयराज कुमारी सँभालती थीं। कुछ ही समय में ये सभी महिलाएँ युद्ध कला में प्रवीण हो गईं। इन महिलाओं के परिवार में बच्चों की शिक्षा-दीक्षा आदि भार राजपरिवार स्वयं उठाता था और इस पर विशेष ध्यान देता था।

डाकुओं के गिरोह को बाँधकर नगर में लाईं

इतिहास की एक घटना का जिक्र करते हुए बलराम मिश्र बताते हैं कि एक समय हंसवर राज्य के बाहरी हिस्से में कई डाकू सक्रिय थे। वो न सिर्फ घरों में लूटपाट करते, बल्कि लोगों की हत्या भी कर देते थे। राज्य की नियमित सेना काफी कोशिशों के बाद भी उनको पकड़ नहीं पा रही थी, क्योंकि डकैती डालने के बाद सभी डाकू नदी पार करके दूसरे राज्य की सीमा में घुस जाते थे।

ऐसे में इन डाकुओं को पकड़ने का जिम्मा खुद रानी ने अपनी सेना के साथ उठाया था। डाकुओं की तलाश में रानी जयराज कुमारी कई दिनों तक अपनी नारी सेना की चुनिंदा सैनिकों के साथ वेश बदलकर सीमाओं पर घूमती रहीं। वो नदी के तट पर ही छिपकर रूकती थीं। आखिरकार एक दिन उनकी तलाश पूरी हुई।

एक दिन डाकुओं के गिरोह ने वेश बदली हुई रानी जयराज और उनकी सैनिकों को देखा तो उन्हें महिला समझकर उन पर हमला कर दिया। आमने-सामने के इस युद्ध में रानी जयराज कुमारी और उनकी सैनिक भारी पड़ीं और कई डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया। जो डाकू बच गए थे, उन्हें बाँधकर नगर में लाया गया और राज्य के कानून के हिसाब से दंडित किया गया था।

आज भी गूँजता है रानी का गुणगान

रानी जयराज कुमारी की वीरता का गुणगान आज भी हंसवर के कुछ विद्वान गाकर बताते हैं। उनकी वीरता को लेकर संस्कृत में लिखे तमाम किताबों में एक किताब में एक पंक्ति है, “जयराज कुमारी राख्या भार्या युद्ध विशारद:, पतिव्रताः तपोमूर्तिः सौंदर्यो देवताः नताः”। इस श्लोकों का हिंदी में अर्थ है कि राजा रणविजय की धर्मपत्नी रानी जयराज कुमारी युद्ध विशारद, तपस्वी, पतिव्रता और सुंदरता में देवांगनाओं को भी लज्जित करने वाली थीं। हालाँकि समय के साथ ये सभी श्रुतियाँ लोग भूलते जा रहे हैं।

महल के इसी हिस्से में रहती थीं रानी जयराज कुमारी

पति के बलिदान के बाद बुलाई थी राजसभा

रानी जयराज कुमारी के बारे में बलराम मिश्रा आगे बताते हैं कि जन्मभूमि पर बलिदान हुए अपने पति के अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने राज्य के सभी मंत्रियों की एक सभा बुलवाई थी। इस सभा में उन्होंने मंत्रियों को राज्य चलाने और बचे पुरुष सैनिकों को वहाँ की सुरक्षा की जिम्मेदारी दे दी। इसी सभा में उन्होंने अपनी 3000 नारी सेना के साथ रामजन्मभूमि कब्जाए मुगलों पर हमले का एलान कर दिया।

बलराम मिश्र बताते हैं कि इस सभा में कई राज्यों के व्यापारी भी थे। उन्होंने धन देकर सहयोग किया। महाजनों द्वारा मिले दान को रानी ने मीर बाकी से युद्ध में बलिदान हुए परिवारों को आर्थिक मदद देने के लिए बाँट दिया। राजकोष में बचे धन का एक हिस्सा लेकर रानी जयराज कुमारी अपनी सेना के साथ अयोध्या कूच कर गईं। वो बलिदानी हुए अपने पति द्वारा छेड़े गए अभियान को पूरा करना चाहती थीं।

छापामार युद्ध करके मार डाले कई मुगल फौजी

बलराम मिश्र ने हमसे यह बातचीत रानी जयराज कुमारी के हंसवर स्थित महल के प्रांगण में की। उन्होंने हमें आगे बताया कि रानी के मुकाबले मुगलों के पास सैन्य बल और संसाधन कहीं अधिक थे। इसलिए रानी ने छापामार युद्ध का सहारा लिया। उन्होंने साल 1528 से 1530 तक अयोध्या की सीमा पर मौजूद आसपास के गाँवों में छिपकर कई मुगल फौजियों का वध किया था।

उनकी नारी सेना भी अलग-अलग टुकड़ियों में रहती थी। उन्हें अलग-अलग कामों में लगाया गया था। इन कामों में दुश्मन के रसद भंडार को जलाना, उनकी सैन्य स्थिति की जासूसी करना तथा मुगल सेना की मूवमेंट पर नजर रखने सहित कई काम शामिल थे। ये सभी महिला सैनिक दिन भर गाँव की कामकाजी महिलाओं के रूप में रहती थीं।

ये सैनिक महिलाएँ लकड़ियाँ बीनने और खेतों में काम करने के बहाने गाँवों में समय बिताती थीं और मौका देखकर मुगल सैनिकों पर हमला कर देती थीं। कई बार तो उन्हें भूखे भी रहना पड़ता था। हालाँकि, भूख पर भी विजय पाना उन सैनिकों को ट्रेनिंग में सिखाया गया था। इन 3 वर्षों में रानी जयराज ने अपने राज का हाल-चाल भले लेती रहीं पर वो लौटकर हंसवर नहीं गईं।

बाबर की मौत के बाद मुगल फ़ौज पर किया आक्रमण

इतिहासकार बलराम मिश्रा द्वारा रानी जयराज कुँवर के बारे में दी गई तमाम बातों की तश्दीक अयोध्या में रामजन्मभूमि पत्थर निर्माण कार्यशाला में विहिप द्वारा लगाया गया बोर्ड भी करता है। इसमें रानी जयराज कुमारी के बारे में संक्षेप में जानकारी दी गई है। इसमें बताया गया है कि रानी ने एक बार रामजन्मभूमि को मुगल सेना से छुड़ा भी लिया था।

अयोध्या में VHP द्वारा संचालित मंदिर निर्माण कार्यशाला पर लगा रानी जयराज कुमारी  का चित्र व उनका इतिहास

बलराम मिश्रा ने हमें आगे बताया कि 26 दिसंबर 1530 को आगरा में बाबर की मौत होने की घटना के बाद रानी जयराज कुमारी ने मुगल फ़ौज को थोड़ा कमजोर महसूस किया। हालाँकि बाबर के मरते ही हुमायूँ की ताजपोशी नए बादशाह के तौर पर हो गई थी। इस बदलाव को रानी ने रामजन्मभूमि पर कब्जा किए मुगलों पर हमले के लिए उचित समझा।

गर्भगृह को लिया कब्ज़े में और शुरू करवाई पूजा

आखिरकार रानी जयराज कुमारी ने जनवरी 1531 में रामजन्मभूमि पर अपनी नारी शक्ति और आसपास के कुछ रामभक्त ग्रामीणों के साथ हमला कर दिया। इस हमले के लिए मुगल फ़ौज तैयार नहीं थी और उसके कई फौजी मारे गए। रानी जयराज कुमारी का हमला इतना भीषण था कि मुगल फ़ौज को भारी नुकसान उठाते हुए रामजन्मभूमि से पीछे हटना पड़ा।

रानी ने अपने पति की तरह ही रामजन्मभूमि को फिर से अपने कब्ज़े में लिया। उन्होंने अयोध्या के संतों को बुलवाकर वहाँ फिर से पूजा-पाठ भी शुरू करवा दिया। पूजा-पाठ के लिए गर्भगृह पर एक अस्थाई छोटा-सा मंदिर भी बनवा दिया। बड़े मंदिर का निर्माण करने लायक समय रानी जयराज कुमारी के पास नहीं था, क्योंकि उन्हें पता था कि मुगल फ़ौज पलट कर जरूर आएगी।

नाराज हुमायूँ ने दिया कत्लेआम का फरमान

रानी जयराज कुमारी की वीरगाथा प्राचीन समय के इतिहासकार रामगोपाल शारद द्वारा लिखी पुस्तक ‘रामजन्मभूमि का रोमांचकारी इतिहास’ नामक पुस्तक में भी मिलती है। बलराम मिश्रा ने हमें आगे बताया कि अपनी फौजों की हार सुनकर अपने अब्बा की राह चल रहा हुमायूँ नाराज हो गया। उसने अप्रैल 1531 के अंत में एक बड़ी फ़ौज फिर से अयोध्या के लिए भेजी।

लुप्तप्राय प्रचीन ऐतिहासिक पुस्तकों में भी मिलता है रानी जयराज कुमारी की वीरता का उल्लेख

इस बीच रानी चाहतीं तो वो भाग भी सकती थीं, लेकिन उन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए अपने पति की तरह अंतिम साँस तक रामजन्मभूमि की रक्षा का संकल्प लिया था। दरबरे अकबरी ने भी इस लड़ाई का जिक्र अपनी भाषा में किया है। तब उसने लिखा कि रानी जयराज ने 3 हजार महिलाओं की फ़ौज लेकर 10 हमले किए और सबसे अंतिम वाले में उन्हें कामयाबी हासिल हुई थी।

जहाँ वीरगति पाए थे राजा वहीं बलिदान हुईं रानी भी

बलराम मिश्र ने हमें आगे बताया कि अप्रैल 1531 में हुमायूँ ने तोपों और बंदूकों के साथ अयोध्या में भारी-भरकम मुगल फ़ौज भेजी। अयोध्या रामजन्मभूमि पर तब लगभग 3 महीने तक लगातार पूजा-पाठ हुई थी और वहाँ कब्ज़ा हिन्दुओं का था। खुद रानी और उनकी नारी सेना मंदिर परिसर की रखवाली करती थीं। उनका साथ स्वामी महेश्वरानंद दे रहे थे। उन्होंने आसपास के गाँवों से योद्धाओं को जमा किया था।

मुगल फ़ौज ने हमला करके पहले पहली पंक्ति में मौजूद हिन्दू योद्धाओं की हत्या की। इसी संघर्ष में स्वामी महेश्वरानंद भी बलिदान हो गए। फिर जन्मभूमि परिसर में नारी सैनिकों के साथ घनघोर युद्ध हुआ। युद्ध में बारी-बारी से सभी सैनिक वीरगति को प्राप्त होती रहीं। जवाबी हमले में कई मुगल सैनिक और उनके कमांडर भी ढेर कर दिए गए थे। अंत में मुगल फ़ौज गर्भगृह पहुँची। यहाँ रानी जयराज कुमारी ने कई घाव खाने के बाद भी अंतिम साँस तक युद्ध किया।

अंत में मंदिर के गर्भगृह में ही रानी जयराज कुमारी भी अपने पति की भाँति वीरगति को प्राप्त हो गईं। बताया जाता है कि उनका भी पार्थिव शव उसी जगह मिला था, जहाँ पर उनके पति राजा रणविजय सिंह बलिदान हुए थे। रानी जयराज कुमारी के बलिदान के साथ ही एक बार फिर से अप्रैल 1531 में मुगल फ़ौज रामजन्मभूमि पर काबिज़ हो गई। वहाँ बने अस्थाई मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया और पूजा-पाठ बंद करवा दी गई।

एक भी महिला सैनिक को जिन्दा नहीं पकड़ पाए मुगल

इतिहासकार बलराम मिश्र के साथ हंसवर राजमहल में हिन्दू संगठन से जुड़े कई अन्य लोग भी जमा हो गए थे। उन्होंने बताया कि उनकी जानकारी में रानी जयराज कुमारी दुनिया की एकलौती ऐसी नारी शक्ति थीं, जिन्होंने 3 हजार महिलाओं की सेना बनाकर लाखों मुगलों से लगभग 4 वर्ष तक युद्ध किया।

विश्व हिंदू परिषद के अशोक कुमार ने हमें बताया कि उन्हें पता चला था कि उन सभी नारी सैनिकों को ऐसी ट्रेनिंग दी गई थी कि वो किसी विधर्मी के हाथ पड़ने से पहले खुद को समाप्त कर लें। रानी जयराज कुमारी के साथ बलिदान हुईं सभी महिला सैनिकों में से कोई एक महिला मुगल सैनिकों के हाथ जिन्दा नहीं लगी थी।

हंसवर राजमहल के प्रवेश द्वारा पर आज भी मौजूद है भगवान गणेश की मूर्ति

बलिदान होने के समय रानी के 2 बच्चे थे, जिन्हें राजपरिवार के बचे हुए सदस्यों ने पाले थे। आज भी हंसवर क्षेत्र के सभी सदस्य रानी जयराज कुमारी द्वारा रामजन्मभूमि के लिए किए गए बलिदान को याद करते हैं। स्थानीय हिन्दू संगठनों की इच्छा है कि हंसवर के महल को एक धरोहर के रूप में विकसित किया जाए, ताकि नई पीढ़ी को धर्म की रक्षा के लिए लड़ने और त्याग की प्रेरणा मिले।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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