भारत की अयोध्या से करीब 3500 किलोमीटर दूर है, अयुथ्या (Ayutthaya)। इसे थाईलैंड की अयोध्या कहते हैं। थाईलैंड वह देश है, जिसके राजा आज भी ‘राम’ की उपाधि धारण करते हैं।
अयुथ्या थाइलैंड के स्वर्णभूमि एयरपोर्ट से करीब 93 किमी दूर है। इस एयरपोर्ट पर समुद्र मंथन की प्रतिकृति बनी है। इससे ही सटा एक और शहर है, लोकमुरी। यह शहर राम भक्त हनुमान को समर्पित है। यहाँ वानरों की पूजा की जाती है। थाईलैंड की 95 फीसदी जनसंख्या बौद्ध है। लेकिन विष्णु, गणेश, त्रिदेव और इंद्र को पूजते हैं। इस देश की भाषा का भी संस्कृत से रिश्ता है।
#WATCH | Thailand: Visuals from 'Ayutthaya', the city named after the ancient Indian city of Ayodhya.
— ANI (@ANI) November 29, 2023
Here is a dynasty, every king of which is considered to be an incarnation of Ram. (29.11) pic.twitter.com/vpdzZ5IdJg
कहानी ‘अयुथ्या’ की
अयुथ्या शहर सियामी साम्राज्य की दूसरी राजधानी थी। इस साम्राज्य की पहली राजधानी सुखोताई थी। इस ऐतिहासिक शहर को 1350 में बसाया गया था। ये साम्राज्य 14वीं से 18वीं शताब्दी तक फला-फूला, क्योंकि ये एक ऐसे द्वीप पर बना हुआ था जिसके चारों तरफ तीन नदियाँ चाऊफ्रेया, पासक और लोकमुरी थी। ये समुंदर को सीधे इस शहर से जोड़ती थीं। इस तरह की भौगोलिक स्थिति के चलते ये दुश्मन के हमले और बाढ़ के खतरे सुरक्षित था।
इस दौरान रणनीतिक नजरिए से बेहद सुरक्षित यह शहर दुनिया के सबसे बड़ा महानगरीय शहर क्षेत्र होने के साथ ही वैश्विक कूटनीति और वाणिज्य का केंद्र बन गया। आज भी अयुथ्या ऐतिहासिक पार्क में इस पुराने शहर के खंडहर हो चुके हिस्से इसकी भव्यता की गाथा कहते नजर आते है। इसकी स्थापना राजा रामतिबोदी प्रथम ने की थी।
1350 में सिंहासन पर बैठने से पहले उन्हें प्रिंस यू थोंग (गोल्डन क्रैडल) के तौर पर जाना जाता था। उथोंग के बारे में कई बातें कही जाती हैं। इसमें उनके मंगराई का वंशज होना भी शामिल है। एक प्रसिद्ध किंवदंती में कहा गया है कि रामतिबोदी एक चीनी थे जो चीन से आए थे। कई ऐतिहासिक दस्तावेज उन्हें कंबोडिया के ख्मेर वंश का मानते हैं। ख्मेर कंबुज कंबोडिया का ही प्राचीन नाम है।
थाइलैंड पर ख्मेर वंश ने सन 850 में कब्जा कर लिया था, लेकिन 1767 में बर्मा की सेना ने इसे तबाह कर यहाँ के निवासियों को शहर छोड़ने को मजबूर कर दिया था। बर्मीज ने यहाँ 100 साल तक राज किया। इसका असर अब भी शहर पर दिखता है। हालाँकि इस शहर का पुनर्निर्माण उसी जगह पर कभी नहीं किया गया और इसलिए ये आज भी पुरातात्विक स्थल के तौर पर जाना जाता है।
1976 में इसके ऐतिहासिक पार्क होने का ऐलान किया गया। इसके एक हिस्से को 1991 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया गया। इसका क्षेत्रफल 289 हेक्टेयर है। मौजूदा वक्त में ये शहर फ्रा नखोन सी अयुथ्या जिले के फ्रा नखोन सी अयुथ्या प्रांत में है।
खंडहर देते हैं भव्यता की गवाही
कभी वैश्विक कूटनीति और वाणिज्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा अयुथ्या, अब एक पुरातात्विक खंडहर है। इसकी खासियत ऊँचे प्रांग (अवशेष टावर) और विशाल बौद्ध मठों के अवशेष हैं। इससे शहर के अतीत के आकार और इसकी वास्तुकला की भव्यता का अंदाजा देते हैं। अयुथ्या को बेहद व्यवस्थित तरीके से बनाया गया था। इसके सभी प्रमुख संरचनाओं के आसपास सड़कें, नहरें और खाई शामिल थीं।
नदियों का अधिक से अधिक फायदा उठाने के लिए जल प्रबंधन के लिए एक हाइड्रोलिक प्रणाली थी जो तकनीकी तौर से बेहद उन्नत और दुनिया में अद्वितीय थी। यह शहर सियाम की खाड़ी के ऊँचाई पर था जो भारत और चीन के बीच समान दूरी पर था और नदी के ठीक ऊपर अरब और यूरोपीय शक्तियों से सुरक्षित था।
आर्थिक गतिविधियों का था केंद्र
कभी अयुथ्या क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अर्थशास्त्र और व्यापार का केंद्र था। वह पूर्व और पश्चिम के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क बिंदु के तौर पर जाना गया। इससे शाही दरबार ने दूर-दूर तक राजदूतों की अदला-बदली की। इसमें वर्साय के फ्राँसीसी दरबार, दिल्ली के मुगल दरबार के साथ-साथ जापान और चीन के शाही दरबार भी शामिल थे। अयुथ्या में विदेशियों ने सरकारी नौकरियाँ की और शहर में निजी तौर पर भी रहे।
अयुथ्या के रॉयल पैलेस से नीचे की तरफ विदेशी व्यापारियों और मिशनरियों के एन्क्लेव थे। हर इमारत अपनी-अपनी स्थापत्य शैली में थी। शहर में विदेशी असर बहुत अधिक था और वो अभी भी जीवित कला और स्थापत्य खंडहरों में देखा जा सकता है। अयुथ्या का स्कूल ऑफ आर्ट वहाँ सभ्यता की सरलता और रचनात्मकता के साथ-साथ कई विदेशी प्रभावों को जज्ब करने की काबिलियत दिखाता है।
यहाँ बने बड़े महल और बौद्ध मठ उदाहरण के लिए वाट महथत और वाट फ्रा सी सेनफेट उनके बनाने वालों की आर्थिक संपन्नता और तकनीकी कौशल के साथ-साथ उनकी अपनाई गई बौद्धिक परंपरा के भी प्रमाण हैं। सभी इमारतों को उच्चतम गुणवत्ता के शिल्प और भित्ति चित्रों से सजाया गया था। इसमें सुखोताई की पारंपरिक शैलियों का असर था। ये अंगकोर से विरासत में मिला था जो जापान, चीन, भारत, फारस की 17 वीं और 18 वीं शताब्दी की कला शैलियों से उधार लिया गया था।
वाट फरा में विराजते हैं श्रीराम
यूट्यूबर/पत्रकार मुकेश तिवारी ने कुछ महीनों पहले अयोध्या से अयुथ्या तक की यात्रा की थी। उन्होंने ट्रैवल जुनून नाम के यूट्यूब चैनल पर 18 अप्रैल 2023 को एक वीडियो अपलोड कर इस यात्रा के बारे में बताया है।
वीडियो में मुकेश ने बताया है कि यहाँ का वाट फरा राम मंदिर हिंदू देवता मर्यादा पुरोषत्तम को समर्पित है, जो बताता है कि यहाँ पुराने वक्त से उनका अस्तिव रहा है। इसे अयुथ्या के पहले राजा रमाथी बोधी प्रथम के अंत्येष्टि की जगह पर तैयार किया गया था। राजा बोधी प्रथम हिंदू और बौद्ध धर्म में बराबर आस्था रखते थे।
उनका धर्म तो बौद्ध था, लेकिन हिंदू धर्म और प्रभु श्रीराम में गहरी आस्था की वजह से ही उनकी अंत्येष्टि की जगह पर ये मंदिर बनाया गया। इसे बनाने की इजाजत उनके बेटे ने दी थी। ये भी कहा जाता है कि माथी बोधी प्रथम की मौत के बाद बनाया गया ये पहला मंदिर था। इस मंदिर में बड़ा खजाना था जिसे लंबे वक्त तक लूटा गया। ये भगवान राम और हिंदू धर्म से बहुत प्राचीन समय से चला आ रहा थाईलैंड का रिश्ता ही जो इस देश की राजधनी बैंकॉक में तीसरी वर्ल्ड हिंदू कॉन्ग्रेस में 61 देशों के सैकड़ों हिंदू जुटे थे।