Friday, November 15, 2024
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जन्माष्टमी: सम्पूर्णता में जीने का सन्देश – श्री कृष्ण की 16 कलाएँ, उनके ग्वाले से द्वारकाधीश होने की सम्पूर्ण यात्रा

कृष्ण प्रत्येक विषम परिस्थिति में मजबूती के साथ खड़े रहे और जीवन को अपने चरम आनंदमयी रूप में जीया। जिनका समूचा बचपन राक्षसों से लड़ते बीता, घर-परिवार, रिश्ते-नाते, प्रेमिका और संगी-साथी सब छूट गए और अंत में एक भयंकर युद्ध, जिसकी परिणति थी- भीषण नरसंहार। इसके बावजूद...

आज जन्माष्टमी है अर्थात जनमानस में प्रेम, संघर्ष और आनंद के पर्याय भगवान कृष्ण का जन्म दिवस। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्री कृष्ण ने जन्म लिया थ। उनका जन्म लेना अपने आप में एक युगांतकारी घटना थी। जो अपने कर्मों से संसार को जीवन का अमूल्य पाठ पढ़ाने का निहीत उद्देश्य लेकर इस धरा पर अवतरित हुए थे। शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन चंद्रमा वृष राशि में और सूर्य सिंह राशि में था।

अब अगर इसी आलोक में इस वर्ष को देखें तो इस साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार 11-12 अगस्त 2020 को है। यह दो दिन क्यों है इसकी भी वजह हैं। दरअसल, यह माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। 12 अगस्त को ही कृतिका नक्षत्र लगेगा। जबकि चंद्रमा मेष और सूर्य राशि में संचार करेंगे। कृतिका नक्षत्र और राशियों की स्थिति के कारण वृद्धि योग बन रहा है।

ऐसे में अगर कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को देखा जाए तो जन्माष्टमी 11 अगस्त की होनी चाहिए, लेकिन अगर रोहिणी नक्षत्र को भी ध्यान में रखें तो फिर 12 अगस्त को भी कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। गृहस्थों और सन्यासियों का भी भेद है। किसी के लिए अष्टमी तिथि का महत्व अधिक है तो वहीं कुछ अन्यों के लिए रोहिणी नक्षत्र का अधिक महत्व है। ऐसे में मथुरा में जन्माष्टमी 12 अगस्त को मनाई जा रही है। वहीं नंदलाल के गाँव ब्रज में 11 अगस्त यानि आज धूमधाम से जन्माष्टमी मनाई जा रही है।

अब इस विशेष स्थिति में श्री कृष्ण के जन्म के कारण यदि जन्माष्टमी के व्रत के माहात्म्य की भी बात किया जाए तो इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को चंद्रमा और सूर्य देवता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। वैसे जन्माष्टमी को शास्त्रों में ‘व्रतराज’ भी कहा गया है और ऐसा माना गया है कि इस एक दिन व्रत रखने से समस्त विघ्न बाधाएँ दूर होती हैं और कई पुण्यों का फल प्राप्त होता है।

भारतीय संस्कृति में हज़ारों वर्षों से भगवान कृष्ण आस्था के केंद्र रहे हैं। हिन्दू जनमानस में कृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति और प्रेम का भाव युगों से व्याप्त है। खासतौर से समूचा भारत कृष्ण को न केवल अपना आराध्य मानता है बल्कि कृष्ण उनकी जीवनशैली में इस प्रकार रचे बसे हैं जैसे देह में आत्मा। भक्तिकाल के कवियों की एक समूची पीढ़ी ने अपना सम्पूर्ण जीवन कृष्ण की आराधना करते, उनपर कविताएँ और गीत लिखते हुए बिता दिया।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी न सिर्फ अपने आराध्य नटखट बाल-गोपाल नन्दलाल के जन्मोत्सव के उल्लास और आनंद का उत्सव मनाने का दिन है बल्कि यह अवसर है, उनके उन मूलभूत गुणों से भी दो-चार होने का, कि कैसे एक कारागार में जन्में, ग्वालों संग पले-बढ़े, लेकिन जीवन के तमाम संघर्षों, संकटों और विसंगतियों को आनंद पूर्वक पार करने के कारण, वो लोगों के आराध्य और आस्था के केंद्र बन गए।

अक्सर कृष्ण पर बात करते समय बाँसुरी, मक्खन और गोपियों का ज़िक्र होने लगता है परन्तु यह बेहद एकांगी और संकुचित दृष्टि है। कृष्ण को एक सम्पूर्ण चरित्र यूँ ही नहीं माना गया है बल्कि उनका जन्म ही मानव जाति के आध्यात्मिक और लौकिक जीवन को व्यवस्थित करने के लिए हुआ था। भगवान विष्णु के अवतार के रूप में वह सभी सोलह कलाओं से युक्त थे। अब तक के अन्य किसी अवतार में यह परिपूर्णता नहीं पाई जाती।

कृष्ण की सोलह कलाएँ उनके विशेष सोलह गुणों से सम्बंधित हैं। जो आज भी यदि किसी में हों तो जिस अनुपात में इन गुणों की व्याप्ति होगी उसी अनुपात में उस मनुष्य में भी प्रभाव देखने को मिलेंगे, ऐसा तत्वदर्शियों का कहना है। नर से नारायण हो जाने की बात भी यूँ ही नहीं कही गई है। श्री कृष्ण की सोलह कलाओं पर संक्षेप में बात की जाए तो उनका क्रम इस प्रकार है:

भगवान श्री कृष्ण की सोलह कलाएँ

  • श्री सम्पदा

                     इस कला से युक्त व्यक्ति धन से तो समृद्धशाली होता ही है, साथ ही मन क्रम वचन से भी समृद्धशाली होता है। ऐसा माना जाता है कि इस कला के स्वामी के पास माँ लक्ष्मी का स्थाई वास होता है अतः श्री सम्पदा से युक्त व्यक्ति को कभी भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता।

  • भू सम्पदा

                  इस कला से युक्त व्यक्ति के पास बड़ी मात्रा में ज़मीन और संपत्ति होती है जिसपर वह न केवल कुशलता से शासन करने की योग्यता रखता है बल्कि दिन प्रतिदिन अपनी संपत्ति को बढ़ाने की योग्यता भी रखता है।

  • कीर्ति सम्पदा

                         इस कला से युक्त व्यक्ति की ख्याति और उपलब्धि विश्व में लोकप्रियता का मानक बन जाती हैं। इस कला के होने पर व्यक्ति अन्य के बीच न केवल लोकप्रिय बल्कि विश्वासपात्र व प्रिय व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान स्थापित करता है।

  • वाणी सम्मोहन

                           कहा जाता है कि जिव्ह्या बड़े से बड़े कार्य को बनाने और बिगाड़ने का हुनर जानती है। इस कला से युक्त व्यक्ति की वाणी बेहद मधुर, सौम्य और मन को मोह लेने वाली होती है। ऐसे लोग शत्रु को भी अपनी बातों से आकर्षित कर लेते हैं। इनकी बातें सुनकर भयंकर क्रोध भी शांत हो जाता है।

  • लीला  

           इस कला से युक्त व्यक्ति चमत्कारी होता है जो अशुभ को शुभ में परिवर्तित करने की शक्ति रखता है। इनके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को अलौकिक आनंद और ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

  • कांति

            इस कला से युक्त व्यक्ति के मुख पर एक सुंदर और सौम्य आभा विराजमान रहती है। यह देखने में अत्यंत सुंदर और मनमोहक होते हैं। कोई व्यक्ति इनकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रहता है।

  • विद्या

          इस कला से युक्त व्यक्ति बेहद बुद्धिमान और ज्ञान संपन्न होता है। ऐसा व्यक्ति वेदों का ज्ञाता, संगीत और कला का मर्मज्ञ, युद्ध कला में पारंगत और राजनीति तथा कूटनीति में निपुण होता है।

  • विमला

              इस कला से युक्त व्यक्ति विमल अर्थात् छल-कपट और भेद भाव से दूर होता है। इनके मन में किसी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं होती और ये श्रेष्ठ आचार-विचार और निर्मल स्वभाव के होते हैं।

  • उत्कर्षिणी शक्ति

                             इस कला से युक्त व्यक्ति दूसरों को अकर्मण्यता से दूर करके कर्म की ओर प्रवृत्त करता है। ऐसे व्यक्तियों में दूसरों का अज्ञान हरने और उन्हें जीवन की सही दिशा दिखाने का कौशल भी होता है। अपने प्रेरणादायी वक्तव्यों से यह सामने वाले की चिंता और भय को दूर करने में सक्षम होते हैं।

  • नीर-क्षीर विवेक

                                      इस कला से युक्त व्यक्ति अपने विवेक से सही और गलत का निर्धारण करने की योग्यता रखता है साथ ही दूसरों को भी कर्तव्य पथ पर सही परिस्थिति की ओर इंगित करता है।

  • कर्मण्यता

                           इस कला से युक्त व्यक्ति कर्मठ होता है और जीवन में कर्म को प्रमुख मानता है। वह अपने साथ-साथ दूसरों को भी कर्म का महत्त्व समझाता है और निस्वार्थ भाव से कर्म करने की प्रेरणा देता है।

  • योग शक्ति

                              इस कला से युक्त व्यक्ति आत्मा को परमात्मा का अंश मानते हुए योग के माध्यम से इसकी शुद्धि की ओर जागरूक रहते हैं। ये आध्यात्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।

  • विनय

                       इस कला से युक्त व्यक्ति अहंकार विहीन तथा शालीन होते हैं। इनके पास अथाह धन, सौन्दर्य और ख्याति होते हुए भी उसका प्रचार या दिखावा नहीं करते, न ही उसके बल पर स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरों को हीन समझते हैं।

  • सत्य धारणा

                                  इस कला से युक्त व्यक्ति सत्यवादी होते हैं जो किसी भी परिस्थिति में सत्य का साथ नहीं छोड़ते। यह सत्य के मार्ग पर बड़े से बड़े संकट को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर लेते हैं परन्तु सत्य के मार्ग से विचलित नहीं होते।

  • आधिपत्य

                            इस कला से युक्त व्यक्ति का व्यवहार ऐसा होता है जिसके साथ दूसरे व्यक्ति को सुरक्षा और अपनेपन का एहसास होता है जिसके कारण दूसरा व्यक्ति इनके प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होकर इनका आधिपत्य स्वीकार करना चाहता है और इनके साहचर्य में रहना चाहता है।

  • अनुग्रह क्षमता

                                     इस कला से युक्त व्यक्ति सदैव दूसरों का कल्याण करने वाले कार्य करता है और उसके जीवन का उद्देश्य दूसरों की सेवा करना और उनके कष्ट हरना होता है।

एक व्यक्ति में इतने सारे गुणों का होना किंचित सुखद आश्चर्य है तथापि श्री कृष्ण के चरित्र में यह सोलह विशेषताएँ पाई जाती हैं इसलिए ही हिन्दू धर्म में इन्हें ईश्वर की उपाधि प्राप्त है। वर्तमान युग में जब परिवर्तन की धारा बड़ी तेज़ी से बह रही है, लेकिन कृष्ण का जीवन चरित और उनकी दी हुई शिक्षाएँ हमारे लिए आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। महाभारत का ‘गीता प्रसंग’ तो मानव मात्र की समस्याओं को सुलझाने का एक अचूक मंत्र है।

कृष्ण के जीवन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। बाल्यावस्था की तमाम विपरीत परिस्थितियों और शत्रुओं के बीच रहकर भी कृष्ण ने न केवल गोकुल में आनंदमय जीवन बिताया बल्कि प्रेम का एक ऐसा रूपक गढ़ा जिसकी गाथा युगों-युगों से भारतीय समाज गाता चला आ रहा है। इसका अभिप्राय यह है कि जीवन आनंद का दूसरा नाम है। व्यक्ति को हर परिस्थिति में प्रसन्न और संतुष्ट रहना चाहिए। प्रेम और साहचर्य से ही स्थितियाँ स्वयं के अनुकूल बनाई जा सकती हैं।

कृष्ण ने व्यक्ति को समय एवं परिस्थिति के अनुकूल आचरण करने की शिक्षा दी है। वे व्यर्थ की नैतिकता और मान्यताओं से मुक्त होने की बात करते हैं | वर्तमान समय की यही माँग है। वे मानते हैं कि मनुष्य को अपनी और अपने सम्बन्धियों की रक्षा हेतु दुर्जनों पर दया नहीं दिखानी चाहिए भले ही वह आपके कितने भी प्रिय क्यों न हो। वे अन्याय के खिलाफ़ लड़ने और हथियार उठाने की प्रेरणा देते हैं क्योंकि धर्म और सत्य की स्थापना में जो बाधक बन रहा है, वो आपका अपना नहीं है।

महाभारत में कृष्ण को हम एक कुशल राजनेता और कूटनीतिज्ञ के रूप में देखते हैं। कृष्ण राजनीति के पुरोधा हैं। शत्रुओं पर किन नीतियों से विजय प्राप्त की जाए और अपनी वृत्तियों से कैसे छुटकारा प्राप्त हो, इसका सन्देश गीता के माध्यम से कृष्ण ने अर्जुन को दिया है। आज भी व्यक्ति अपने आंतरिक लोभ, मोह और माया से स्वयं को मुक्त कर यदि बड़े परिप्रेक्ष्य में अपनी नीतियाँ बनाता है तो निश्चय ही वह जीवनरूपी रणक्षेत्र का विजेता सिद्ध होता है। कृष्ण ने सही समय आने पर हर तरह के मोह और बंधन से निकल जाने का सिद्धांत दिया है।

वह स्वयं सोलह वर्ष की उम्र में गोकुल छोड़ कर चले आए थे और फिर अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रतिज्ञा ली तो द्वारकाधीश बनने के बाद भी कभी गोकुल लौट कर नहीं गए। उन्होंने गीता में निष्काम कर्म का उपदेश देते हुए कहा कि व्यक्ति को केवल अपने कर्म से प्रयोजन होना चाहिए। फल की चिंता उसे नहीं करनी चाहिए क्योंकि समय आने पर प्रत्येक कर्म का फल अवश्य मिलता है।

                             “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगो$स्तवकर्मणि।”

कृष्ण के जीवन से कलाओं के महत्त्व को भी समझा जा सकता है। कृष्ण बाँसुरी बजाते थे। मोरपंख धारण करते थे। इन प्रतीकों के माध्यम से यह पता चलता है कि जीवन में प्रकृति और संगीत कितने महत्वपूर्ण हैं। इनके बिना मनुष्य का जीवन नीरस हो जाएगा। यूँ भी कृष्ण को आनंद का देवता कहा जाता है। उनके जन्मदिन पर मेले लगते हैं, बाज़ार सजता है, झूले झुलाए जाते हैं, झाकियाँ तैयार होती हैं और भजन कीर्तन का सुन्दर वातावरण हर तरफ दिखाई देता है अतः कृष्ण जीवन में उल्लास और प्रसन्नता का भाव देने वाले हैं। वे मानते हैं कि जीवन सबसे बड़ा है। कोई घटना, स्थिति या व्यक्ति जीवन से बड़ा नहीं है अतः हर हाल में व्यक्ति को अपनी भीतरी प्रसन्नता व उत्साह को बनाए रखना चाहिए।

कृष्ण ने सदैव समाज में कमजोर, निर्बल और असहाय व्यक्ति की सहायता करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने सुदामा, गोपियों और पाण्डवों के माध्यम से यह दिखाया कि सत्य के पक्ष में खड़ा व्यक्ति चाहे जितना भी हीन या दुर्बल क्यों न हो, साथ उसी का देना चाहिए क्योंकि समाज में समता व समानता की स्थापना तभी सम्भव है जब समाज के सबसे निचले दर्जे पर खड़े व्यक्ति को साथ लिया जाएगा। शोषित और वंचितों की पीड़ा दूर करके ही एक सुंदर और नैतिक मूल्यों वाले समाज की स्थापना की जा सकती है।

वर्तमान पीढ़ी कृष्ण से यह भी सीख सकती है कि मनुष्य को वर्तमान में जीना चाहिए। उसे भूत और भविष्य की चिंता में अपना समय और ऊर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए। “क्यों व्यर्थ चिंता करते हो?, किससे व्यर्थ डरते हो?” उनका मानना है कि व्यक्ति को अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग वर्तमान को बेहतर बनाने में करनी चाहिए और यदि असफलता मिलती है तो उस पर दुखी न होकर उसके कारणों की पड़ताल करनी चाहिए जिससे अग्रिम प्रयास में उन गलतियों का दोहराव न हो। यह सफलता का एक अचूक उपाय है। साथ ही व्यक्ति को दूरदर्शी भी होना चाहिए क्योंकि सीमित मनःस्थिति के आधार पर किया गया कार्य भविष्य में कष्टों का कारण बन सकता है।

इस प्रकार से यह देखा जा सकता है कि कृष्ण ने अपने जीवन में इतनी समस्याओं के होते हुए भी न केवल उन सभी समस्याओं पर विजय पाई बल्कि प्रत्येक विषम परिस्थिति में मजबूती के साथ खड़े रहे और जीवन को अपने चरम आनंदमयी रूप में जीया। जिनका समूचा बचपन राक्षसों से लड़ते बीता, घर परिवार, रिश्ते नाते, प्रेमिका और संगी साथी सब छूट गए। आजीवन विभिन्न संकटों का सामना करते रहे और अंत में एक भयंकर युद्ध जिसकी परिणति थी- भीषण नरसंहार। इसके बावजूद जीवन में दुःख और आँसू का कोई स्थान नहीं।

यह सब केवल इसलिए संभव हो सका क्योंकि कृष्ण इस संसार को आनंदमय जीवन का सन्देश देने आए थे। उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा आनंद की यात्रा है जो मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है। कृष्ण ने यह सिखाया कि व्यक्ति अकेले इस दुनिया में आया है और अकेले ही जाना है इसलिए दुनियायवी वस्तुओं का मोह त्यागकर शुद्ध रूप से जीवन जिओ और चरम आनंद की प्राप्ति करो। यही जीवन की सफलता का महत्वपूर्ण सूत्र है।

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पायल
पायल
खोजी हूँ, हर पल कुछ नया तलाश लेने का जूनून, पढ़ना और घूमना ज़िन्दगी का पसंदीदा शगल फ़िलहाल हिंदी साहित्य में पीएचडी कर रही हूँ........

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