Sunday, November 17, 2024
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‘1 लाख राजपूत सर कटाने को तैयार हैं…’: दिल्ली-मुंबई नहीं, नाथद्वारा से क्यों लॉन्च हुआ रिलायंस का 5G? इस इतिहास में गोवर्धन पर्वत और औरंगजेब भी

जोधपुर के चौपासनी में भी श्रीनाथजी वाली बैलगाड़ी कई दिनों तक खड़ी रही थी, वहाँ भी उनका मंदिर है। कोटा से 10 किलोमीटर दूर जहाँ भगवान की चरण पादुकाएँ रखी हुई हैं, उसे चरण चौकी मंदिर के रूप में जानते हैं।

मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस ने 5G सेवाएँ लॉन्च कर दी गई है। इसके लिए उनके बेटे आकाश अंबानी परिवार सहित नाथद्वारा पहुँचे थे, जहाँ ये कार्यक्रम हुआ। अब आपके मन में ये सवाल ज़रूर उठ सकता है कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु या चेन्नई जैसे शहरों से क्यों नहीं, राजस्थान के राजसमंद स्थित एक छोटे से शहर से भला 5G जैसी सेवा क्यों लॉन्च की गई, जिससे देश भर में डिजिटल क्रांति आने वाली है। आगे बढ़ने से पहले बता दें कि नाथद्वारा, श्रीनाथजी का नगर है।

रिलायंस परिवार की श्रीनाथजी में रही है गहरी आस्था, यहीं से लॉन्च हुआ 4G और 5G

इसी मंदिर के मोती महल परिसर में आकाश अंबानी ने रिलायंस जियो की 5G सेवाओं का शुंभारंभ किया। शनिवार (22 अक्टूबर, 2022) को सुबह 10:30 से लेकर दोपहर 12 बजे तक ये कार्यक्रम चला। नाथद्वारा में 5G सेवाओं के लिए 20 टॉवर की व्यवस्था की गई है, जिससे लोगों को हाईस्पीड इंटरनेट मिलेगी। याद रखने वाली बात ये भी है कि 2015 में 4G सेवाएँ लॉन्च करने से पहले मुकेश अंबानी ने यहाँ श्रीनाथजी का दर्शन किया था।

इस साल भी करीब एक महीने पहले वो अपनी होने वाली बहू राधिका मर्चेंट के साथ श्रीनाथजी के दरबार में पहुँचे थे। उन्होंने तभी इसका ऐलान कर दिया था और धनतेरस के अवसर पर इसकी शुरुआत भी हो गई। मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी की माँ कोकिलाबेन श्रीनाथजी मंदिर ट्रस्ट की वाइस प्रेजिडेंट भी हैं। श्रीनाथजी के प्रति धीरूभाई अंबानी की भी गहरी आस्था थी। मुकेश अंबानी कभी विग्रह के सामने अपना मोबाइल फोन नहीं निकालते हैं।

श्रीनाथजी बाल स्वरूप भगवान हैं। इस मंदिर परिसर में मोती महल चौक, महाप्रभु जी की बैठक, कीर्तनिया गली, रतन चौक, कमल चौक, गोवर्धन पूजा चौक, प्रीतमपोली, नक्कारखाना, कृष्ण भण्डार, समाधान, खर्च भण्डार, लालन का चबूतरा, प्रसादी भण्डार और नाक चौक जैसे स्थल आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप का ये मंदिर हवेलीनुमा है। सन् 1672 में ब्रज से ये प्रतिमा आई थी। यह वल्लभ संप्रदाय का प्रधान पीठ है, ऐसे में वैषणव समाज की श्रीनाथजी में गहरी आस्था है।

राजस्थान के सजसमंद स्थित नाथद्वारा का श्रीनाथजी मंदिर: परिचय

अब हम आपको श्रीनाथजी मंदिर का इतिहास बताएँगे, लेकिन उससे पहले मंदिर के बारे में जानते हैं। सबसे पहले तो ये जानिए कि यहाँ के मुख्य विग्रह के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप को अपने हाथ की उँगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाए दिखाया गया है। कथा कुछ यूँ है कि ब्रजभूमि में जब इंद्र ने मूसलाधार बारिश कराई तो श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्क ऊँगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा कर समस्त जनता को अतिवृष्टि से बचाया। अंत में इंद्र को अपनी गलती का पछतावा हुआ और उन्होंने भगवान से क्षमा माँगी।

नाथद्वारा मंदिर का पेंटिंग की दुनिया में भी खासा महत्व है। सुंदर-सुंदर चित्रकारी का ये शहर हब रहा है। नाथद्वारा शैली की चित्रकारी को ‘पिछवाई’ भी कहते हैं, जो आकार में बड़ी होती है और सामान्यतः कपड़ों पर बनाई जाई है। स्थानीय लोग इसे ‘ठाकुर जी की हवेली’ भी कहते हैं। सुबह के लगभग 11 बजे ‘राजभोग दर्शन’ होता है, जब भगवान को दिन का भोजन दिया जाता है। मंदिर परिसर की दीवारों पर रंगीन चित्रकारियाँ लगी हुई हैं। मुख्य मंदिर के भीतर मोबाइल या कैमरे का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है। बनास नदी के किनारे स्थित इस शहर को आप छोटा ब्रज भी कह सकते हैं।

श्रीनाथजी की मूर्ति दुर्लभ संगमरमर वाले काले पत्थर से तराशी गई है। जिस रथ से इस प्रतिमा को ब्रज से यहाँ लाया गया था, उसे भी सजा कर और संरक्षित कर के रखा गया है। मंदिर की रसोई में स्थानीय और मौसमी सब्जियाँ बनती हैं। वल्लभाचार्य के वंशज इस मंदिर के स्थायी अभीक्षक होते हैं।श्रीनाथजी मंदिर पर इस पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था भी निर्भर है। नाथद्वारा ‘पुदीना चाय’ के लिए भी विख्यात है, जहाँ पुदीने वाली चाय आपको मिलती है।

कुल्हड़ में रख कर सामन्यतः इस अलग स्वाद वाले चाय को परोसा जाता है। भगवान को यहाँ मौसम के हिसाब से प्रसाद अर्पित किया जाता है। नाथद्वारा अगर आपको ट्रेन से जाना है तो आपको 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मावली जंक्शन या फिर 50 किलोमीटर दूर उदयपुर जंक्शन पर उतरना होगा। उदयपुर में महाराणा प्रताप एयरपोर्ट भी है। यहाँ आने वाले लोग हल्दीघाटी भी जाते हैं, जहाँ महाराणा प्रताप और अकबर की फ़ौज का युद्ध हुआ था। एकलिंग जी का दर्शन भी करते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप के इस मंदिर का इतिहास

गोवर्धन पर्वत उठाने वाली द्वापर युग की कथा आज भी जीवित है। दुनिया भर में हिन्दू कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथमी तिथि को ये त्योहार मनाते हैं। दीपावली के एक दिन बाद आने वाले इस पर्व को ‘अन्नकूट’ के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं, जब इस्लामी शासकों द्वारा मंदिरों का विध्वंस किया जा रहा था, तब वल्लभाचार्य संप्रदाय के 2 साधु इस मूर्ति को ब्रज से यहाँ छिपते हुए लेकर आए। रथ के पहिए यहाँ धँस जाने के कारण भगवान को यहीं स्थापित किया गया।

10 फरवरी, 1672 को नाथद्वारा में श्रीनाथजी मंदिर की स्थापना की गई थी। महाराजा राजसिंह (1652-1680) के काल में यहाँ की चित्रकारी शैली का विकास हुआ। वल्लभाचार्य के जो 2 साधु इस प्रतिमा को लेकर आए थे, उन्हें महाराणा ने शरण दी। उनके नाम थे गोविंद और दामोदर। सिहाड़ गाँव में भगवान का नया मंदिर बना। ब्रज और मेवाड़ का ये मिलान चित्रकारी की एक शैली का भी जन्मदाता बना, जिसे नाथद्वारा शैली या ‘हवेली शैली’ कहा गया।

ये वो समय था, जब औरंगजेब लगातार मंदिरों को ध्वस्त किए जा रहा था और उनमें से कइयों की जगह मस्जिदों का निर्माण करवा रहा था। ऐसे समय में महाराणा राजसिंह ने श्रीनाथजी की रक्षा के लिए सिर कटाने तक की शपथ ली। राजस्थान में महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब का सामना ऐसे ही किया, जैसे पंजाब में गुरु गोविंद सिंह और महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी कर रहे थे। राणा ने एक चुनौती के रूप में इसे लिया और इस विग्रह की तब रक्षा की, जब औरंगजेब के भय से कोई उन साधुओं को शरण देने को तैयार नहीं था।

किशनगढ़ की राजकुमारी रानी चारुमति ने औरंगजेब को ठुकरा कर राजसिंह से विवाह किया था, जिससे मुग़ल बादशाह उनसे खासा नाराज़ रहता था। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि श्रीनाथजी की रक्षा के लिए 1 लाख राजपूत अपना सर कटाने के लिए तैयार हैं। जोधपुर के चौपासनी में भी श्रीनाथजी वाली बैलगाड़ी कई दिनों तक खड़ी रही थी, वहाँ भी उनका मंदिर है। कोटा से 10 किलोमीटर दूर जहाँ भगवान की चरण पादुकाएँ रखी हुई हैं, उसे चरण चौकी मंदिर के रूप में जानते हैं।

मंदिर में 8 प्रकार के दर्शन का विधान है। सन् 1934 में उदयपुर के शासक ने आदेश जारी किया था कि मंदिर की संपत्ति पर मंदिर का ही अधिकार होगा। इस तरह मंदिर की 562 प्रकार की संपत्तियों को संरक्षित किया गया। तिलकायत जी महाराज इसके मुख्य पुजारी थे, जिन्हें मंदिर का संरक्षक, प्रबंधक और ट्रस्टी नियुक्त किया गया। क्षेत्र के वनवासियों की भी इस मंदिर में खास आस्था है, जिन्हें प्रसाद का एक हिस्सा (इसे ‘लूटना’ भी कहा जाता है) मिलता है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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