गुरुगोविंद जी ने कहा था कि सिख की पहली पहचान उसके केश होते हैं। इसलिए सिखों को अपने केश नहीं कटवाने चाहिए। गुरुगोविंद जी की इस बात का अनुसरण लंबे समय से हर सिख करता आ रहा है। मगर, भाई तारू सिंह इतिहास के पन्नों में दर्ज वो नाम हैं जिन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथी व सिखों पर अत्याचार करने वाले लाहौर गवर्नर जकारिया खान बहादुर के कहने पर भी अपने केश नहीं उतारे बल्कि जब दबाव बनाया गया तो केश उतरवाने की जगह पूरी खोपड़ी ही उसके हवाले कर दी और कहा, “ज्यादा खुश मत हो मैं तुझे जूतियों से मारकर पहले नरक में भेजूँगा और फिर दरगाह जाऊँगा।”
आज ‘भाई तारू सिंह’ सिखों के बीच वो नाम है जिसे सिख धर्म के इतिहास में गर्व से लिया जाता है। उनकी शहीदी को कोई भी सिख भूल नहीं सकता, यही कारण है कि उनके नाम तारू सिंह के सामने सिख उन्हें भाई लगाकर सम्मान देते हैं और उन्हें भाई साहिब भी कहा जाता है।
भाई तारू सिंह का किस्सा उस समय का है जब पंजाब के अमृतसर में मुगलों का राज शुरू हो चुका था और लाहौर का गवर्नर जकारिया खान था। मुगल ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस्लाम कबूल करवाकर अपनी ताकत बढ़ाना चाहते थे। मगर भाई तारू सिंह को यह अत्याचार मंजूर नहीं था। वह अपनी माता के साथ पहूला गाँव में रहते थे और सिख धर्म ही उनके लिए सब कुछ था।
भाई तारू सिंह अपने धर्म के प्रति इतने ईमानदार थे कि रोजाना सुबह 21 बार जपुजी साहिब का पाठ करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते थे और गाँव में आने जाने वाले प्रत्येक गुरुसिक्ख के रहने की व्यवस्था करना और जंगलों में रहने वाले सिंखों के लिए लंगर तैयार कर उन तक पहुँचाने की सेवा उनकी दिनचर्या थी।
Martyrdom of Bhai Taru Singh Ji.
— Amaan (@amaanbali) June 25, 2020
Bhai Taru Singh ji was born in village Phoole, in Tehsil Kasur of Lahore which was ruled by Zakariya Khan Bahadur who was viceroy of Mughal Empire to Lahore at that time. Many Sikh & Hindu scholars have documented Bhai Taru Singh ji. pic.twitter.com/N1RrPOlW6T
एक बार की बात है कि अपने इसी स्वभाव के कारण उन्होंने एक रहीम बख्स नाम के मछुआरे की मदद की। पहले विश्राम की जगह ढूँढते हुए भाई साहिब के पास आए रहीम बख्स को भाई साहिब ने विश्राम करवाया और फिर रात का भोजन। रहीम ने इसी दौरान तारू सिंह से अपना दुख साझा किया और कहा कि पट्टे जिले से कुछ मुगल उनकी बेटी को अगवा कर ले गए है इसलिए वह नजर चुराते घूम रहे है। रहीम ने कहा कि उसने इस बारे में कई लोगों से शिकायत की है। लेकिन कहीं उसकी सुनवाई नहीं हुई।
रहीम बख्स की सारी बातें सुनकर भाई साहिब मुस्कुरा दिए और कहा गुरु के दरबार में तुम्हारी पुकार पहुँच गई है। अब तुम्हें बेटी मिल जाएगी। रहीम के वहाँ से जाने के बाद भाई तारू सिंह ने ये बात सिंखों के गुट को बताई और उस गुट के सभी सिखों ने मिलकर रहीम की बेटी को छुड़वा लिया।
रहीम की बेटी की रिहाई पर तारू सिंह बहुत खुश थे। लेकिन लाहौर का गवर्नर जकारिया खान इस खबर को सुनकर भीतर ही भीतर झुलस चुका था। दरअसल, एक ओर तो वो लोगों को इस्लाम कबूल करवाकर मुस्लिम बनाना चाह रहा था और दूसरी ओर मुस्लिमों को सिखों के एक गुट ने मार दिया। ये बात उसे किसी कीमत पर गँवारा नहीं थी। उसने तारू सिंह को अपने पास गिरफ्तार करके लाने को कहा।
बस फिर क्या, मुगल सैनिक पहुँचे तारू सिंह के घर और जकारिया खान का आदेश सुनाया। इसके बाद भाई तारू घबराए नहीं। बल्कि उन्होंने उन लोगों को खाना खाने का आग्रह किया। पहले तो सैनिकों ने मना किया। लेकिन बाद में वह भी मान गए। सबने भाई तारू के घर भोजन किया और फिर उन्हें गिरफ्तार करके जकारिया खान के पास ले आए।
भाई तारू सिंह को कैदी के रूप में देखकर जकारिया खान बहुत खुश हुआ। उसने सिखों की बहादुरी के किस्से सुने ही हुए थे बस उसने अपने चालाक दिमाग में तारू सिंह को इस्लाम कबूल करवाने की युक्तियाँ जुटानी शुरू कर दी। उसका सोचना था कि अगर आज तारू सिंह मान गया तो कल को और सिख भी मानेंगे। मगर अफसोस, उसकी कोई जुगत काम न आई।
ज़कारिया खान ने तारू सिंह से कहा, “तारू सिंह… तुमने जो किया वह माफी के लायक बिलकुल नहीं है, लेकिन मैं तुम्हें एक शर्त पर छोड़ सकता हूँ। तुम इस्लाम कबूल कर लो, हमारे मित्र बन जाओ मैं तुम्हारी सभी गलतियों को नजरअंदाज कर दूँगा।“
मौत के सामने कोई जिंदगी के लिए सौदा कर रहा था। लेकिन तारू सिंह का जवाब बेहद निर्भीक था। वे जकारिया खान की ओर देखकर मुस्कुराए और कहा चाहे जान चली जाए लेकिन वह अपने गुरुओं के साथ गद्दारी कभी नहीं करेंगे।
इसके बाद तारू सिंह ने ज़कारिया खान की मानसिकता को समझते हुए उन्हें बिना किसी डर के ललकारा और जकारिया खान ने उन्हें कैदखाने में बंद करवा दिया। कैदखाने से गुजरते लोग उन्हें हर रोज इस्लाम कबूल करने का लालच देते। लेकिन भाई तारू सिंह हमेशा अपना जवाब तैयार रखते।
देखते ही देखते जकारिया खान परेशान हो गया। उसने तंग आकर उन्हें सजा देने का फैसला किया। लेकिन जब प्रताड़नाएँ झेल कर भी भाई तारू सिंह ने उफ्फ नहीं किया तो उनके केश काटने का फैसला हुआ। लेकिन सवाल ये था कि केश काटता कौन? क्योंकि कोई नाई उनके बाल काटने की हिम्मत न जुटा सका।
इसे देखते हुए जकारिया खान ने एक नई जुगत लगाई। (सिख साहित्य में मौजूद जानकारी के अनुसार) उसने चालाकी दिखाते हुए भाई तारू सिंह से कहा, “मैंने सुना है कि आपके गुरु और गुरु के सिक्खों से अगर कुछ माँगा जाए तो वो जरूर मिलता है। मैं भी आपसे एक चीज की माँग करता हूँ, मुझे आपके केश चाहिए।” भाई तारू सिंह ने इस बात को सुनकर दो टूक जवाब दिया, “केश दूँगा, जरूर दूँगा लेकिन काट कर नहीं, खोपड़ी सहित दूँगा।”
इसके बाद जल्लाद को बुलवाकर उनकी खोपड़ी काटनी शुरू हुई और इस अत्याचार को अपनी जीत समझकर जकारिया खान बहुत खुश हुआ। जिसे देख भाई तारू सिंह जी के मुख से सहज ही निकल गया, “ज्यादा खुश मत हो जकारिया खान, मैं तुम्हें जूतियाँ मारते हुए नरक में पहले भेजूँगा और खुद दरगाह बाद में जाऊँगा।”
इसके बाद उनकी खोपड़ी उतार ली गई और उन्हें खाई में फेंक दिया गया। कहते हैं कि जब तारू सिंह पर यह दर्दनाक प्रहार किया जा रहा था तब भी वे चुप थे और मन ही मन सिख धर्म के पहले गुरु नानक देवजी द्वारा रचा गया ‘जपुजी साहिब’ का पाठ कर रहे थे।
जब उनके साथ हुई इस घटना की सूचना खालसा पंथ के कुछ लोगों तक पहुँची तो वे फटाफट जाकर खाई में से तारू सिंह को बाहर निकालकर ले आए। फिर उन्हें एक धर्मशाला में लाया गया जहाँ उनकी मरहम-पट्टी की गई, लेकिन कुछ संभव इलाज के बाद तारू सिंह ने आगे का इलाज कराने से मना कर दिया और अपना ध्यान ‘गुरु को याद’ करने में लगा दिया।
दूसरी ओर उनकी वो बात सच हो गई जहाँ उन्होंने जकरियाँ खाँ को कहा था कि वे उसे जूतियाँ मारकर नरक भेजेंगे फिर कहीं जाएँगे।
दरअसल कहा जाता है कि तारू सिंह के साथ ये अत्याचार करने के बाद जकारिया खान को अचानक पेशाब आना बंद हो गया और पेट में असहनीय दर्द होने लगा। उसे याद आया कि ये सब उसी का परिणाम है जो उसे भाई तारू सिंह के साथ किया। उसने जल्द से जल्द खालसा पंथ के अनुयाई के पास क्षमा पत्र भिजवाया और तकलीफ का उपाय भी पूछा। जिसपर उन्होंने बताया कि उसकी समस्या का हल भी स्वयं तारू सिंह ही है।
उन्होंने कहा, तारू सिंह द्वारा पहने गए जूते को यदि ज़करिया खान अपने सिर पर मारेगा तो उसे पेशाब आ जाएगा, लेकिन फिर भी वह जल्द ही मर जाएगा।
हुआ भी यही… ज़कारिया खान ने तारू सिंह का जूता मँगवाया और जैसे ही उसे अपने सिर पर मारा तो उसे पेशाब आया और कुछ राहत मिली। कुल 21 दिनों तक यही सब चला लेकिन 22वें दिन 1 जुलाई 1745 ई को वह मर गया। उसकी मौत की खबर सुनने के बाद भाई तारू सिंह ने भी अपने प्राण त्यागे।
आज तारू सिंह की शूरता को पूरा सिख समुदाय नमन करता है। उन्हें भाई तारू सिंह का दर्जा दिया जाता है। उनके त्याग को सिख धर्म में इतनी महत्ता दी जाती है कि सिखों की अरदास में भी उनकी शहीदी को दर्जा मिला है। आज उनके शहीदी दिवस पर सोशल मीडिया पर उनकी कहानी को साझा करके उन्हें याद किया जा रहा है। इसलिए हमने भी भाई तारू सिंह पर जानकारी जुटाकर उनसे जुड़ी कहानी आपतक साझा करने का प्रयास किया है।