Sunday, November 24, 2024
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जिस जज ने खुलवाया राम जन्मभूमि का ताला, MBBS पढ़ती उनकी बेटी को ‘विशेष वर्ग’ ने किया था टॉर्चर: मुलायम सरकार में प्रमोशन भी नहीं

अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए कई लोगों ने संघर्ष किया है। इसमें उन जज 'कृष्ण कुमार पांडे' का नाम भी आता है जिन्होंने हिंदुओं को वहाँ पूजा करने की इजाजत दी। इस एक फैसले के बाद उनके जीवन में जो उथल-पुथल मची उसका किसी को अंदाजा भी नहीं है।

अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए कई लोगों ने संघर्ष किया है। इसमें उन जज ‘कृष्ण मोहन पांडे’ का नाम भी आता है जिन्होंने हिंदुओं को वहाँ पूजा करने की इजाजत दी। इस एक फैसले के बाद उनके जीवन में जो उथल-पुथल मची, उसका किसी को अंदाजा भी नहीं है। बताया जाता है कि हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देने के बाद उन्हें पाकिस्तान से तो धमकियाँ आती ही थीं। देश में भी उनके साथ अन्याय होना शुरू हो गया था। इस फैसले को देने की वजह से तत्कालीन प्रदेश सरकार द्वारा उनका प्रमोशन रोक दिया गया था। पदोन्नति पाने के लिए उन्हें कोर्ट में लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इतना ही नहीं उनकी बेटी को क्लास में एक खास वर्ग द्वारा परेशान किया जाता था, जिसका जिक्र बहुत कम पढ़ने को मिलता है।

बेटी को किया गया प्रताड़ित

आज राम मंदिर में रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारियाँ जोरों पर हैं। इसी क्रम में जज कृष्ण मोहन पांडे के फैसले को भी याद किया जा रहा है जो उन्होंने 1 फरवरी 1986 को दिया था। इसी आदेश में जन्मभूमि का ताला खोलकर हिंदुओं को वहाँ पूजा पाठ करने की इजाजत दी गई थी। हिंदुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, केएम पांडे की बेटी मधु पांडे की मानें तो उनके पिता लंबित मामलों के खिलाफ थे और इसीलिए उन्होंने इस मामले में सीधा निर्णय सुनाया। वह किसी तरह दबाव में नहीं थे। जब वे फैजाबाद (अब अयोध्या) के जिला जज नियुक्त हुए तो उन्होंने 40 वर्ष से लंबित इस मुकदमे को प्राथमिकता दी थी।

मधु पांडे के अनुसार उनके पिता ने खुद गजेटियर से लेकर पुराने साक्ष्यों का तीन से चार माह तक गहन अध्य्यन किया था। इसके बाद उन्होंने सारे साक्ष्य जुटाए थे। जब उन्हें कहीं ये बात नहीं मिली कि मंदिर का ताला क्यों बंद है तो उन्होंने 1 फरवरी 1986 को अपना ऐतिहासिक निर्णय दिया। इस फैसले को न हाईकोर्ट ने पलटा न सुप्रीम कोर्ट ने। मगर इस एक निर्णय से सब तत्कालीन सरकार बिलबिला गई।

उन्होंने उनकी पदोन्नति रोक दी। वहीं कृष्ण मोहन पांडे के फैसला देने के बाद उनकी बेटी को भी प्रताड़ित किया गया। वह उस समय केजीएमसी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। जब क्लास में सबको पता चला कि ताला खोलकर पूजा पाठ करने की अनुमति देने का फैसला उनके पिता का है तो उन्हें एक ‘वर्ग’ द्वारा बहुत परेशान किया गया। हालत ऐसी कर दी गई कि उन्हें कई पेपर छोड़ने की स्थिति बन गई।

केएम पांडे के भतीजे सुजीत पांडे बताते हैं कि एक फैसला सुनाने के लिए उन्होंने अपने चाचा को 8-8 घंटे रिसर्च करते देखा था। करीबन 6 माह तक ऐसा रहा। लेकिन किसी को उन्होंने भनक भी नहीं लगने दी कि वह किस मुकदमे पर काम कर रहे हैं। सुजीत पांडे ये भी बताते हैं कि उनके चाचा को एक ज्योतिषी प्रो कुन्ने ने कहा था कि कुछ समय बाद उनका एक छोटे जिले में ट्रांसफर होगा, वह वहाँ जाने से मना न करें। उन्हें प्रसिद्धि मिलेगी। जब केएम पांडे का ट्रांसफर फैजाबाद हुआ और उनके सामने अयोध्या का मामला आया तो वो समझ गए कि यही वो केस है। उन्होंने दिन रात मेहनत करके इस फैसले पर निर्णय दिया।

वानर खुद बैठा था फैसला सुनने

1991 में उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘अंतरआत्मा की आवाज’ में लिखा, ”जिस दिन मैं ताला खुलवाने का फैसला दे रहा था उस दिन मुझे बजरंगबली के वानर के रूप में दर्शन हुए। मेरे दरबार की छत पर एक काला बंदर दिन भर झंडा-स्तंभ पकड़े बैठा रहा। जो लोग इस फैसले को सुनने के लिए दरबार में आए थे, वे उन्हें चना दे रहे थे और उस बंदर को मूँगफली, लेकिन मजे की बात है कि उस बंदर ने कुछ भी नहीं खाया। वह चुपचाप झंडा चौकी पकड़कर लोगों को देखता रहा। वह मेरे आदेश सुनाते ही चला गया। जब फैसला देने के बाद डीएम और एसएसपी मुझे घर ले गए तो मैंने देखा कि वही बंदर मेरे घर के बरामदे में बैठा है। मैं बहुत हैरान हुआ। मैंने उसे प्रणाम किया। वह कोई दिव्य शक्ति रही होगी।”

मुलायम सरकार ने रोकी पदोन्नति

इसी फैसले के बाद जब केंद्र सरकार के पास हाईकोर्ट में प्रमोट करने वाले जजों की लिस्ट भेजी गई तो कृष्ण मोहन पांडे के नाम के साथ मुलायम सिंह यादव ने भी अपना नोट छोड़ा। इस नोट में लिखा था“पांडे जी सुलझे हुए ईमानदार तथा कर्मठ जज हैं। फिर भी 1986 में राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने का आदेश देकर उन्होंने सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा की थी, इसलिए मैं उनके नाम की सिफारिश नहीं करता।” बस इसी नोट के कारण केएम पांडे पदोन्नति के लिए नामित होने के बाद भी प्रमोशन न पा सके।

बाद में 13 जनवरी 1990 को विश्व हिंदू परिषद अधिवक्ता संघ के तत्कालीन महासचिव हरिशंकर जैन ने इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। तब जाकर कृष्ण मोहन पाण्डेय को हाई कोर्ट में पदोन्नति मिली। जानकारी के अनुसार, याचिका में जस्टिस पांडेय के प्रमोशन की माँग करते हुए कहा गया था कि यूपी सरकार ने 15 लोगों का नाम केंद्र को भेजा था, जिसमें मुख्यमंत्री का लिखा उक्त कथित नोट लगा हुआ था। केंद्रीय कैबिनेट ने वह सूची विचार के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को भेजी। सीजेआई ने उसमें से 7 नामों को मंजूरी दी, जिसमें जस्टिस पांडेय का नाम भी शामिल था। लेकिन, केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने सीजेआई की ओर से सूची में मंजूर कर भेजे गए 7 नामों में से 6 को नियुक्ति की मंजूरी दी और जस्टिस पांडेय का नाम रोक लिया। बाद में उनसे कनिष्ठ जज आरके अग्रवाल को हाई कोर्ट प्रमोट किया गया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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