प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज मंगलवार (14 दिसंबर, 2021) को स्वर्वेद महामंदिर धाम विहंगम योग के 98वें वार्षिकोत्सव में शामिल होंगे। भारत की आध्यात्मिक-सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी के उमरहाँ में निर्माणाधीन विशाल साधना केंद्र स्वर्वेद महामंदिर शिल्प और अत्याधुनिक तकनीक के अदभुत सामंजस्य का प्रतीक है। बाबा विश्वनाथ धाम के साथ ही यह महामंदिर भी काशी के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व की शिखर पताका को और ऊँचा उठाने वाला है।
विहंगम योग संस्थान द्वारा काशी के उमरहाँ में पिछले 18 वर्षों से निर्माणाधीन स्वर्वेद महामंदिर 180 फीट ऊँचा और सात मंजिलों का है। गाजीपुर रोड पर उमरहां में आकार ले रहे दिव्य धाम में प्रधानमंत्री मोदी न सिर्फ विहंगम योग के साधको को बल्कि यहीं से सम्पूर्ण विश्व को एक बार फिर योग-ध्यान और काशी की संस्कृति से जोड़ने वाले हैं।
महामंदिर में सद्गुरु सदाफल देव महाराज के 2024 में होने वाले शताब्दी समारोह और लोकार्पण को देखते हुए कई बड़े आयोजन किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में 98वें वार्षिकोत्सव के रूप में 13-15 दिसंबर तक चलने वाले 3 दिवसीय कार्यक्रम और 5100 कुंडीय विश्वशांति वैदिक महायज्ञ का आयोजन किया गया है। आयोजन के दूसरे दिन यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब 3 बजे पहुँचेंगे और करीब 3 लाख उपस्थित साधकों और काशीवासियों के साथ ही पूरे विश्व में स्थित अनुवायियों को सम्बोधित करेंगे।
कल के ‘दिव्य काशी भव्य काशी’ और आज के विहंगम योग के इस कार्यक्रम के जरिए पीएम मोदी ने काशी से 2022 की ही नहीं बल्कि 2024 और उससे आगे की भी राजनीतिक दिशा तय कर दी है। 2024 में इसी स्वर्वेद महामंदिर का जब वे लोकार्पण कर देश को समर्पित करेंगे तो सामने होगा लोकसभा चुनाव।
प्रधानमंत्री मोदी जब यहाँ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व संत सद्गुरु सदाफल देव महाराज की जेल यात्रा के शताब्दी महोत्सव एवं विहंगम योग संत समाज के 98वें वार्षिकोत्सव पर आयोजित समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करेंगे। उस दौरान राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के साथ ही कई अन्य बीजेपी नेता भी उपस्थित रहेंगे।
क्या है स्वर्वेद
स्वरवेद की व्युत्पत्ति दो शब्दों से ली गई है- ‘स्वाह’ का अर्थ है ब्रह्म, सार्वभौमिक ऊर्जा और ‘वेद’ जिसका अर्थ है ज्ञान। इसलिए, स्वर्वेद एक अद्वितीय आध्यात्मिक ग्रन्थ है जो सार्वभौमिक होने के ज्ञान से संबंधित है। आध्यात्मिक पथ के साधक जिन्हें विहंगम योग की असाधारण तकनीक में दीक्षित किया गया है, वे वास्तव में अपने जीवन के हर पहलू को विकसित करना शुरू कर देते हैं। जिसे मैंने वहाँ बिताए करीब 3 घंटों में खुद अनुभव भी किया। मंदिर के सभी तलों पर गया। वहाँ शिल्पकला अभी के समय में उत्कृष्ट नमूना देखा। युद्धस्तर पर जिस तरह से पिछले 18 सालों से निर्माण कार्य जारी है आप उसकी विशालता और व्यापकता का स्वतः अंदाजा लगा सकते हैं।
सद्गुरु सदाफल देवजी महाराज स्वर्वेद की प्रस्तावना में लिखते हैं, “स्वर्वेद मेरे भीतर प्रज्ज्वलित आत्मज्ञान का खज़ाना, सचेतन दीप्ति है; मेरे ह्रदय के मंदिर का निरंतर दिव्य प्रकाश। सच्चे साधकों के लिए यह दिव्य अमृत की धारा है।” बता दें कि स्वर्वेद में कुल 3137 श्लोकों के माध्यम से आध्यात्मिकता, योग और ध्यान पर अनुभवजन्य प्रकाश डालने का सार्थक प्रयास किया गया है।
निज अनुभव वर्णन करूँ, दिव्य ज्ञान प्रभु सोय
तेरा है तुझमें रहे करत समर्पण सोय
सर्ववेद पढ़ते हुए मैंने खुद अनुभव किया कि केवल विद्वता के बलपर ऐसी गहन अवधारणाओं का विस्तार करना एक दुष्कर कार्य है, शायद असंभव भी। केवल एक योगी जिसने आध्यात्मिक पथ में महारत हासिल कर ली है, वही इस ज्ञान की विशालता को उजागर कर सकता है।
स्वर्वेद महामंदिर
स्वर्वेद महामंदिर जैसा कि नाम से भी आप अनुमान लगा सकते हैं कि कोई मंदिर है। दरअसल, यह एक आध्यात्मिक ग्रन्थ स्वर्वेद को समर्पित मूल रूप से 7 चक्रों को समर्पित सात तलों का आध्यात्मिक मंदिर है। हालाँकि, स्वर्वेद में भी कबीर की तरह 10 चक्रों पर बात की गई है। यह मंदिर चेतना का वह उदात्त क्षेत्र है जो सत्य के साधकों को भौतिक अनुभवों से परे ले जाकर चेतना के उच्च शिखर को अनुभव कराने के लिए एक अनुकूल स्थान प्रदान करता है।
जिस स्तर पर 100 से अधिक वर्षों से साधना के स्तर पर काम किया गया और प्राचीन सनातन परम्पराओं से कुछ बहुत गूढ़ बातों से साधकों को परिचित कराया गया है वह भी अपने आप में बेहद अनूठा है। यह महामंदिर एक अद्वितीय आध्यात्मिक ग्रंथ स्वर्वेद को समर्पित है जो साधकों को निरंतर प्रज्ञा के मार्ग पर अग्रसर कर रहा है। आने वाले समय में यह सूक्ष्म और स्थूल स्तर पर समाज के आध्यात्मिक जागरण को मजबूत करते हुए शांति, सद्भाव और प्रेम की स्थापना का केंद्र बनने जा रहा है। महामंदिर की नींव, स्वर्वेद, एक शाश्वत योगी और विहंगम योग के संस्थापक सद्गुरु सदाफल देवजी महाराज द्वारा लिखित एक दिव्य आध्यात्मिक ग्रंथ है।
महामंदिर का मुख्य उद्देश्य मानव जाति को अपनी शानदार आध्यात्मिक विरासत से जोड़ना, उसकी आभा और अनुभवों से दुनिया को परिचित कराना है। यह महामंदिर आने वाले समय में जब अपनी पूरी ऊर्जा में काम करेगा तो आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को अपनी साधना के लिए एक नई ऊर्जा प्रदान कर उनका मार्ग प्रशस्त करेगा।
2024 में लोकार्पण के समय कैसा होगा स्वर्वेद महामंदिर
संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज ने ऑपइंडिया को बताया, “देश की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी में 2004 में स्वर्वेद महामंदिर निर्माण की नींव रखी गई। जो एक विहंगम आध्यात्मिक केंद्र बन रहा है। यहाँ एक साथ 20 हजार से ज्यादा लोग बैठकर योग साधना कर सकेंगे। महर्षि सद्गुरु सदाफल देव महाराज को समर्पित स्वर्वेद महामंदिर संतों-ऋषियों से विरासत में मिली भारतीय संस्कृति और ज्ञान को सहेजने के उद्देश्य से बनाया जा रहा है। यह स्थापत्य व संरचना की दृष्टि से भी अनूठा होगा।”
उन्होंने आगे बताया, “जो पत्थर भगवान श्री राम जन्मस्थली मन्दिर के निर्माण में लगाया जा रहा है। वो राजस्थान के भरतपुर स्थित बयाना गाँव का है। वही पत्थर यहाँ लगाया जा रहा है। इस महामंदिर में राजस्थान के अनेक स्थानों के पत्थर हैं। महामंदिर में जो लकड़ी का वर्क है, वो बलसरी सागौन गुजरात का है। यह शिल्प कला का अद्भुत नमूना है।”
बता दें कि हिमालय की गुफाओं में 17 वर्ष के गहन तप साधना के जरिए अनुभूत ज्ञान को स्वर्वेद के रूप में अभिव्यक्त करने वाले सद्गुरु सदाफलदेव महाराज महामंदिर में रचनारत नजर आएँगे। यहाँ उनकी 113 फीट ऊँची दिव्य प्रतिमा लगाई जाएगी। इसमें प्लेटफार्म 32 फीट का तो प्रतिमा की ऊँचाई 81 फीट होगी। इसे भरतपुर (राजस्थान) के सवा लाख घन फीट गुलाबी पत्थरों से आकार दिया जा रहा है।
विहंगम योग संस्थान द्वारा स्वर्वेद के नाम पर सात मंजिला महामंदिर 68,000 वर्गफीट में फैला है। इस 180 फीट ऊँचे और 268 पिलरों पर खड़े सात मंजिला भवन में हर तल पर महर्षि सदाफल देव की प्रतिमा भी स्थापित होगी। सभी तलों पर उनकी साधना मुद्रा में मूर्ति लगाई जाएगी। 78,800 वर्ग फीट में विस्तारित पूरे परिसर में बन रहे महामंदिर की बाहरी दीवारों पर गज समूह, ऋषिकाएँ व साधक होंगे तो पाँच तलों पर भीतरी दीवारों पर श्वेत मकराना मार्बल पर अत्याधुनिक तकनीक से स्वर्वेद के दोहे उकेरे जा रहे हैं।
इसके अलावा दो तलों पर वेद की ऋचाएँ, उपनिषद, गीता के ब्रह्म-विद्यापरक श्लोक, मानस की चौपाइयाँ और कबीर की वाणी भी होगी। मंदिर के शीर्ष पर 125-125 पंखुड़ियों वाला कमल है। जीआरसी तकनीक से बनी पंखुडिय़ों को गुजरात के नौसारी से मँगाया गया है।
दुनिया के अनूठे महामंदिर में 150 चित्रमय झाँकियों के जरिए पुरातन भारतीय संस्कृति का दर्शन होगा। सैैंड स्टोन पर आत्मा-परमात्मा, ऋषि संस्कृति, विश्व को भारत की देन योग, आयुर्वेद, शून्य समेत विभिन्न झाँकियाँ होंगी। हर झलकी को छह गुणा चार वर्ग फीट में बनाया जा रहा है।
बता दें कि ब्रह्म विद्या विहंगम योग की साधना स्थली में एक साथ 20 हजार लोग साधना कर सकेंगे। छठें तल पर दो आडिटोरियम भी बना। हर एक में 238 लोगों के बैठने की व्यवस्था है जहाँ योग-ध्यान पर शोध और व्याख्यान सहित विद्वत और प्रायोगिक चर्चा को भी नया आयाम दिया जाएगा। मंदिर निर्माण में तीन लाख घन फीट सफेद मार्बल और इतने ही सैैंड स्टोन का उपयोग किया जा रहा है।
स्वर्वेद महामंदिर की खास बातें
- 180 फीट की ऊँचाई का सप्ततलीय महामंदिर
- 135 फीट ऊँची सद्गुरु सदाफल देव की सैंडस्टोन प्रतिमा
- 3 लाख वर्गफीट में दुर्लभ श्वेत मकराना संगमरमर का प्रयोग।
- 3 लाख घन फीट में ही नक्काशी दार गुलाबी सैंडस्टोनका प्रयोग हो रहा है।
- 2,50,000 वर्गफीट कुल क्षेत्रफल (फ्लोर एरिया)
- 20 हजार विहंगम योग साधकों के एक साथ बैठने हेतु स्थान
- 4,000 स्वर्वेद दोहे मकराना संगमरमर की दीवारों पर उत्कीर्ण
- 238 क्षमता के दो अत्याधुनिक सभागार
मंदिर में कार्यक्रम की तैयारियाँ पूरी कर ली गई है। संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने स्वयं समारोह स्थल पर जाकर तैयारी का निरीक्षण कर दिशा-निर्देश दिए। वहीं कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस पूरे परिसर का निरीक्षण किया था और इस स्थान के महत्ता को जाना था।
विहंगम योग के साधकों ने ऑपइंडिया को बताया कि इस महाआयोजन में भाग लेने के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र समेत कई प्रांतों तथा विदेशों से भी विहंगम योग के करीब 3 लाख साधक और अनुयाई सम्मिलित हो रहे हैं। साधकों को ठहरने के लिये 4 लाख स्क्वायर फीट में वाटर प्रूफ पंडाल की व्यवस्था की गई है। वहीं भंडारे के लिए सात बड़े भोजनालय तथा छह कैंटीन की व्यवस्था की गई है। संपूर्ण महामंदिर परिसर को आकर्षक रूप से सजाया गया है।
गौरतलब है कि स्वर्वेद महामंदिर धाम में मई 2017 में 21000 कुंडीय स्वर्वेद उत्तरार्ध ज्ञान महायज्ञ हुआ था। उस समय इसे इतिहास के सबसे विशालतम यज्ञ की संज्ञा भी दी गई थी। वहीं इस बार के इस 3 दिवसीय आयोजन की भव्यता और आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने कहा, “अध्यात्म जीवन की आवश्यकता है। इससे जीवन का संपूर्ण विकास होता है। हम इस शरीर में हैं। हम इस संसार में हैं। जिंदगी बीत रही है। और जिंदगी जीने की तैयारी में ही सारी जिंदगी बीत जाती है… जिंदगी है क्या, जीवन क्यों मिला है, इसका कितना, कहाँ, किस हद तक हमें बोध हो पाता है… इन सब पर बात करते हुए उन्होंने जीवन और अध्यात्म पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।”