Monday, November 18, 2024
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परमाणु बम बनाने वाले ने भी मानी जिसकी ताकत, बॉलीवुड उस ब्रह्मास्त्र के बारे में नहीं बताएगा: यहाँ पढ़ें इस विध्वंसकारी अस्त्र का इतिहास

ब्रह्मास्त्र से गर्भ की मृत्यु वैसी ही है, जैसे परमाणु बम के प्रभाव से होता है। जापान में कई वर्षों तक प्रभावित इलाकों में दिव्यांग बच्चों का जन्म होता रहा।

ब्रह्मास्त्र क्या है? मैं फिल्म की बात नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि उसमें न तो ठीक से ब्रह्मास्त्र का इतिहास बताया गया है और न ही हमारे वेद-पुराणों या रामायण-महाभारत की कोई पुष्ट कथा उसमें है। ब्रह्मास्त्र क्या है, ये हमें हमारे सनातन साहित्य में ही मिलेगा। जब हमारे विद्वान ऋषि-मुनि सब लिख गए हैं, उन्हें पढ़े बिना भला कैसे बॉलीवुड वाले ‘ब्रह्मास्त्र’ बना सकते हैं? अगर वो बना रहे हैं, तो जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। ब्रह्मास्त्र की असली कहानी हम आपको बताएँगे।

हम में से अधिकतर लोगों ने रामायण और महाभारत में इस विध्वंसकारी अस्त्र का जिक्र सुना है। इसका निर्माण स्वयं भगवान ब्रह्मा ने किया था। रामायण में तब, जब मेघनाद ने इसका प्रयोग रामभक्त हनुमान पर किया। महाभारत में तब, जब युद्ध ख़त्म होने के बाद कौरवों की तरफ से लड़ने वाले गुरु द्रोण के पुत्र अश्वस्थामा ने इसका प्रयोग किया। दोनों ही कथाएँ विस्तृत में वर्णित हैं। तुलसीदास रचित ‘रामचारितमानस’ में सुंदरकांड के इस 19वें दोहे को देखिए:

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥

अर्थात, जब रावण के पुत्र मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र का संधान किया, तब माँ सीता से मिलने लंका के अशोक वाटिका में राक्षसों का संहार कर रहे हनुमान जी ने सोचा कि अगर वो इसका सम्मान नहीं रखते हैं तो इस महान अस्त्र की महिमा मिट जाएगी। इसीलिए, उनके जैसा शक्तिशाली व्यक्ति भी ब्रह्मास्त्र लगने के बाद मूर्छित हो गया। इसके बाद नागपाश से बाँध कर वो हनुमान को रावण के दरबार में ले गया। ये है ब्रह्मास्त्र की महिमा, जिसके सम्मान का ख्याल रूद्र के रूप हनुमान भी करते हैं।

इसी तरह महाभारत में कथा आती है कि युद्ध में कौरवों की हार के बाद अश्वस्थामा ने बचने के लिए अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ा, क्योंकि इसकी काट कुछ और नहीं हो सकती थी। दोनों अस्त्रों के टकराने से प्रलय को रोकने के लिए देवर्षि नारद और वेद-व्यास प्रकट हुए और दोनों योद्धाओं को रोका। अश्वस्थामा को ब्रह्मास्त्र वापस लेना नहीं आता था, अतः उसने इसे उत्तरा (अभिमन्यु की पत्नी) के गर्भ की ओर छोड़ दिया और उसमें पल रहा अर्जुन का वंशज निष्प्राण हो गया।

ब्रह्मास्त्र के बारे में कहा जाता है कि ये संपूर्ण विश्व के विनाश की क्षमता रखता है। इतिहास में कुछ ही ऐसे योद्धा हुए हैं, जिनके पास ये अस्त्र था। इसका जो विवरण है, वो कुछ-कुछ परमाणु बम से भी मिलता है। क्योंकि, वर्णित है कि ब्रह्मास्त्र के प्रयोग के बाद उस क्षेत्र में वर्षों तक अकाल पड़ा रहता है और जीव-जंतुओं का विनाश हो जाता है। ये भी जानने वाली बात है कि परमाणु बम के जनक माने जाने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक जे रॉबर्ट ओपनहाइमर का झुकाव हिन्दू धर्म की तरफ था।

जब अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम का प्रयोग किया, तब उन्होंने क्षुब्ध होकर महाभारत की पंक्तियाँ इस्तेमाल करते हुए कहा था, “अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, पूरे विश्व को तबाह करने वाला।” भगवद्गीता में ये पंक्ति खुद भगवान श्रीकृष्ण ने कही थी। उन्होंने कहा था कि वो लोकों का संहार करने वाले काल हैं और प्रतिपक्षी सेना के लोग अर्जुन के बिना भी मृत्यु को प्राप्त होंगे। असल में ये जो श्लोक (जो गीता के 11वें अध्याय का 32वाँ श्लोक है) है, वो इस प्रकार है:

श्री भगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।

महर्षि विश्वामित्र जब महाराज कौशिक हुआ करते थे और ब्रह्मर्षि वशिष्ठ से उनकी दुश्मनी चलती थी, तब उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया था, लेकिन ब्रह्माण्डस्र अस्त्र के कारण इसका कोई असर नहीं हुआ। भगवान श्रीराम के पास भी ब्रह्मास्त्र था। राजस्थान में एक बड़े क्षेत्र में रेगिस्तान होने के पीछे भी रामायण में कथा है कि श्रीराम के ब्रह्मास्त्र से ध्रुम्तुल्य नाम का एक जगह ध्वस्त हो गया था, जिसे राजस्थान में चिह्नित किया गया।

ब्रह्मास्त्र का शाब्दिक अर्थ हुआ भगवान ब्रह्मा का बाण। पुराणों में हमें इसी तरह के ब्रह्मशीर अस्त्र का भी जिक्र मिलता है। अर्जुन को उनके गुरु द्रोण ने ही ब्रह्मास्त्र दिया था। ब्रह्मास्त्र से गर्भ की मृत्यु वैसी ही है, जैसे परमाणु बम के प्रभाव से होता है। जापान में कई वर्षों तक प्रभावित इलाकों में दिव्यांग बच्चों का जन्म होता रहा। आपको पढ़ने को मिला होगा कि भारत में कहीं-कहीं रेडिएशन काफी उच्च है, इसका कारण प्राचीन काल में चले किसी विध्वंसकारी हथियार को भी बताया जाता है।

तमिल कम्ब रामायण में वर्णन है कि मेघनाद जब मायावी शक्तियों का प्रयोग कर के बार-बार अदृश्य हो रहा था, तब लक्ष्मण ने ब्रह्मास्त्र के प्रहार की सोची, लेकिन भगवान श्रीराम ने प्रलय होने की आशंका के कारण उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। साइबेरिया में जून 1908 में 12 मेगा टन का एक भयंकर ब्लास्ट हुआ था, जो ‘Tunguska Event’ के नाम से जाना जाता है। इस तबाही के पीछे Asteroid को कारण बताया गया, लेकिन क्या प्राचीन काल में ऐसी क्षमता वाले हथियार हुए करते थे? वर्णनों से तो ऐसा ही लगता है।

ब्रह्मास्त्र का कोई निश्चित आकार नहीं होता था। उसे चलाने के लिए मन की शक्ति चाहिए थी, क्योंकि वो मंत्रों से संचालित होता था। प्राचीन साहित्य में वर्णन है कि इसे चलाने पर आकाश से उल्काएँ गिरने लगती हैं और जल में उफान आ जाता है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि महाभारत में परमाणु बम जैसी किसी शक्ति का इस्तेमाल हुआ तो था, कहीं वो ब्रह्मास्त्र ही तो नहीं? महाभारत का युद्ध ही शायद इसीलिए हुआ था, ताकि दिव्य अस्त्रों को रखने वाले लोग और वो सभी अस्त्र, एक साथ ख़त्म हो जाएँ।

ब्रह्मास्त्र पाँचों तत्वों, अर्थात भूमि, जल, अग्नि, आकाश और वायु – इन सभी में उथल-पुथल मचाने की क्षमता रखता है। भगवान ब्रह्मा ने असुरों से संसार की रक्षा के लिए इसका निर्माण किया था, ताकि धर्म का राज बना रहे। ब्रह्मास्त्र से ही ब्रह्मशीर अस्त्र बना था, जो आज के हाइड्रोजन बम के बराबर हो सकता है। कहीं-कहीं तो लिखा है कि ब्रह्मास्त्र घास की पत्ती जितना पतला होता था, लेकिन अति भयंकर। फिल्म में शायद ही ये जानकारियाँ आपको मिले, खासकर बॉलीवुड की।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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