मनोरंजन इंडस्ट्री को कवर करने वाले पत्रकारों ने एक नया गिल्ड या यूँ कह लीजिए, गिरोह बनाया है। अब से कोई भी सेलिब्रिटी इनसे टेढ़ी बात करता है तो ये गिल्ड इसका विरोध करेगा और निर्णय लेगा कि पत्रकारों को आगे क्या करना है? सवाल है कि इन सब की ज़रूरत क्यों आन पड़ी? इसका जवाब है कि जिस तरह एक व्यक्ति ने देश की मुख्यधारा की मीडिया में हलचल मचा रखी है और उसके विरोध में लिखने के लिए आम लूटपाट की घटनाओं को भी भाजपा, हिंदुत्व और ब्रह्मणवाद से जोड़ा जाता है, ठीक उसी तरह एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में भी कोई है, जिसने मीडिया की हिपोक्रिसी पर नकेल कस दी है। एक ऐसी महिला ने मीडिया को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है, जो बॉलीवुड की खानदानी परिपाटी से नहीं आती।
कई बात खानदानी सेलेब्रिटीज के आगे दंडवत होने वाला मीडिया आज एक महिला के आगे बेबस नज़र आ रहा है। एक सुदूर पहाड़ी राज्य के कस्बे में जन्मी कंगना रनौत ने बॉलीवुड में अपनी बुलंदी का झंडा ऐसा गाड़ा है कि आज वह अकेले अपने दम पर किसी भी फ़िल्म को हिट कराने की ताक़त रखती है। वह अपने दम पर ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ का नेट बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 150 करोड़ रुपए तक पहुँचा सकती हैं और ‘मणिकर्णिका’ को 100 करोड़ रुपए तक पहुँचा सकती हैं। यह सब मीडिया को खल रहा है क्योंकि कंगना नेपोटिज्म पर सवाल खड़े करती हैं। वह बनी-बनाई राह से जुदा चलती हैं।
Sir u r very proud of an unauthorised illegal Guild built specifically to intimate & threaten a self made actor, well it might b exciting fr u all to take law & order in ur hands bt notice hs been served to u all..(contd) https://t.co/CHrmEVmT28
— Rangoli Chandel (@Rangoli_A) July 13, 2019
ऐसा नहीं है कि कंगना की सारी फ़िल्में अच्छी होती हैं। इस पर बहस हो सकती है कि उनकी कौन-सी फ़िल्म अच्छी थी और कौन सी बुरी? किस फ़िल्म में क्या अच्छे थी और क्या बुराई, इस पर बात करने का सबको हक़ है। कंगना ने उस पत्रकार ने क्या पूछा था? उन्होंने बस पूछा था कि एक फ़िल्म की समीक्षा करते समय इसके लिए किसी अभिनेत्री को हिंसाप्रिय या जिन्गोइस्टिक कैसे ठहराया जा सकता है? उन्होंने पूछा था कि उनके साथ वैन में बैठ कर खाना खाने और मैसेज भेजने वाले पत्रकार सामने मित्र और पीछे दुश्मन होने का दिखावा क्यों करते हैं? बस इतनी सी बात पर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का मीडिया भड़क गया।
यहाँ हम इस घटनाक्रम पर चर्चा करेंगे लेकिन सबसे पहले मीडिया से सवाल है कि जब बॉलीवुड के खानदानी सेलेब्स ने पत्रकारों, कैमरामैन और समीक्षकों के साथ दुर्व्यवहार किया, तब उन्हें गिल्ड बनाने की ज़रूरत क्यों नहीं महसूस हुई? क्योंकि अगर स्तर की बात करें तो कंगना ने तो सिर्फ़ 2-4 शब्द ही बोले थे, जबकि कई सेलेब्स ने पत्रकारों की पिटाई तक भी की, तब मीडिया को उनकी सुरक्षा की चिंता क्यों नहीं सताई? क्या खानदानी हीरो और हीरोइन का विरोध करने से मीडिया का ही घाटा है? क्या मीडिया अगर इन सेलेब्स के सीरियल दुर्व्यवहारों का विरोध करने लगे तो उसका दाना-पानी बंद हो जाएगा? आइए एक नज़र ऐसी घटनाओं पर डालते हैं।
मुंबई के चेम्बूर में स्थित आरके स्टूडियो कभी पूरी इंडस्ट्री का मुख्यालय हुआ करता था। राज कपूर से इसका गहराने नाता होने के कारण अब भी मीडिया वहाँ जुटता है। इसी तरह 2016 में गणेश विसर्जन के दौरान भी यहाँ मीडिया का मेला लगा था। यहाँ वरिष्ठ अभिनेताओं ऋषि कपूर व उनके भाई रणधीर कपूर ने पत्रकारों के साथ वैसा ही व्यवहार किया, जैसा लोग गली के आवारा कुत्तों के साथ करते हैं। पत्रकारों को थप्पड़ मारा गया, उन्हें धक्का देकर बाहर निकला गया। यहाँ तक कि एक वरिष्ठ फ़िल्म समीक्षक को भी बॉडीगार्ड्स ने धकेल दिया। भरी बारिश में कपूर भाइयों के हाथों ज़लील होने वाले पत्रकारों के पक्ष में क्या गिरोह विशेष एक हुआ?
मुम्बई से पत्रकार मित्रों ने फोन किया,कहा-आप पत्रकार हैं,आप #KangnaRanaut के साथ और साथी पत्रकारों के खिलाफ क्यों खड़े हैं?
— Ashok Shrivastav (@ashokshrivasta6) July 12, 2019
बहुत सोचा,विचार किया, फिर दिल से आवाज़ आई-पत्रकार का काम साथियों का साथ देना नहीं,सच का साथ देना है।
और सच क्या है ?#WeStandWithKanganaRanaut@Rangoli_A
शायद मीडिया को इस बात का डर होगा कि कल को रणबीर की शादी होगी तो उसे फुटेज कहाँ से मिलेगा? मीडिया अगर कपूर खानदान के विरुद्ध जाता है तो वो करिश्मा कपूर के वैवाहिक जीवन से जुड़ी चटपटी ख़बरें कहाँ से आएँगी? इसी वर्ष जून में एक टीवी पत्रकार ने सलमान ख़ान के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कराया। ख़ान पर आरोप है कि उन्होंने उस पत्रकार को गाली दी, धमकी दी और दुर्व्यवहार किया। तब मीडिया को एकता बनाए रखने की क्यों नहीं सूझी? राजीव मसंद और अन्य समीक्षकों ने इस पर क्या कुछ बोला? नहीं। इसी तरह एक कार्यक्रम के दौरान फोटोग्राफर्स और ख़ान के बॉडीगार्ड्स के बीच लड़ाई हुई। आहत कैमरा पर्सन्स ने सलमान को बैन किया।
क्या बॉलीवुड को कवर करने वाले पत्रकारों ने तब किसी गिरोह को बनाने की घोषणा की? सलमान ने पत्रकारों को साफ़-साफ़ कहा कि उन्होंने जैसा व्यवहार किया, अगर वो ख़ुद वहाँ उपस्थित रहते तो पत्रकारों के साथ न जाने क्या होता। प्रतिबन्ध का मज़ाक उड़ाते हुए सलमान ने कहा कि वो कुछ दिनों बाद घुटने के बल बैठ कर फोटोग्राफर्स से निवेदन करेंगे कि उनका करियर डूबने से बचा लें। इतना सब कुछ होने के बावजूद कोई ठोस एक्शन नहीं लिया गया। या तो वो फोटोग्राफर्स गिरोह विशेष के किसी काम के नहीं थे या फिर सलमान का विरोध उन पर भारी पड़ सकता था। उन्हें ख़ूब पता है कि ऐसा कर के सलमान के नए लुक्स में पिक्स लेने का मौका वो गँवा सकते हैं।
इसी तरह जब जया बच्चन के सामने पत्रकार ऐश्वर्या राय से बात कर रहे थे तब जया ने उन्हें कड़ी डाँट पिलाई। जया ने पत्रकारों से कहा, “क्या ऐश्वर्या-ऐश्वया बुला रहे हो, तुम्हारे क्लास में पढ़ती है क्या?” जया बच्चन को ये बात अखर रही थी कि पत्रकार उनकी बहू ऐश्वर्या राय को पहले नाम से क्यों सम्बोधित कर रहे हैं? इसी तरह जया बच्चन ने एक बार एक पत्रकार के माइक को धक्का दे दिया। लेकिन, ये सब बस एंटरटेनमेंट शो में एक छोटी सी चटपटी ख़बर बन कर रह गई। कंगना के मामले में ऐसा नहीं है। कंगना बॉलीवुड की इलीट वर्ग के विपरीत अधिकतर हिंदी में बात करती हैं और पत्रकारों को ख़ुश रखने के लिए फ़िल्में नहीं बनातीं। वह गिरोह विशेष की पसंददीदा विषय नहीं चुनतीं।
Why top critics of Bollywood are all English speaking, well to do, well connected people?
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) July 11, 2019
Why no vernacular, small town critic is ever seen dining wining with stars?
How mediocre critics became so rich?
Of course, ask Kangana many tough questions but answer these too.
इसी तरह 2012 में जब ईशा देओल की शादी के दौरान मीडिया ने धर्मेद्र से उनके दोनों बेटों की अनुपस्थिति के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “आप बकवास मत कीजिए।” लेकिन, यह आई-गई बात थी। अगर इस चीज को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है तो फिर कंगना वाले मुद्दे पर इतना हाय-तौबा मचाने की क्या ज़रूरत है? कंगना ने तो बस मीडिया को एक आइना दिखाया है, बाकियों ने तो समय-समय पर पत्रकारों को ‘उनकी औकात दिखाने’ का काम किया है। आज प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट गिल्ड एक पेज पर खड़े हैं, सिर्फ़ कंगना को बॉयकॉट करने के लिए। आख़िर एक महिला ने ऐसा क्या कर दिया कि इतने बड़े-बड़े संगठनों की नींद उड़ गई है?
एक पत्रकार ने जब दीपिका पादुकोण के बारे में कुछ लिखा, तो रणवीर को उस पर गुस्सा आ गया। उन्होंने कहा कि अगर वो पत्रकार उनके सामने आ गया तो उसके साथ मारपीट की नौबत न आ जाए, इसके लिए उन्हें ख़ुद पर कड़ा नियंत्रण रखना पड़ेगा। उन्होंने अप्रैल 2015 में कहा था कि वो उस पत्रकार से बहुत ही ज्यादा गुस्सा हैं। रणवीर की इस ‘फिजिकल असॉल्ट’ वाली बात के ऊपर पत्रकारों का ख़ून ठंडा बना रहा, उबला नहीं। लेकिन, कंगना ने कुछ सवाल क्या पूछ दिए, पूरे गिरोह में खलबली मच गई। चड्डियाँ कितनी बार बदली जाती हैं और उनका रंग क्या होता है, अगर मीडिया ने यह दिखाने और फ़िल्मों में फ़र्ज़ी विचारधारा ढूँढने की कोशिश न की होती तो शायद आज उनकी बेइज्जती की नौबत ही नहीं आती।
जो भी हो, एक सेल्फ-मेड अभिनेत्री ने मीडिया को बता दिया है कि दो अलग-अलग लोगों के मामले में सिर्फ़ इसीलिए दोहरा रवैया नहीं चलेगा क्योंकि एक खानदानी परिवार से आता है और एक ने गाँव-कस्बों से आकर इंडस्ट्री में अपना पाँव जमाया है। कंगना के सवालों का अब भी जवाब देना पड़ेगा मीडिया को- ये फ़िल्मों में ब्राह्मणवाद और मर्दवाद जैसी चीजें ढूँढना कब बंद करोगे? आज एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री ने एक गिरोह बनाया है, एडिटर्स गिल्ड के रूप में मुख्यधारा की मीडिया में ऐसा एक गिरोह पहले से ही सक्रिय है जो बंगाल में पत्रकारों की पिटाई पर तो चुप रहता है लेकिन कहीं किसी भाजपा शासित राज्य में कोई पत्रकार गिरफ़्तार भी हो जाए तो इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाता है।
I agree with #KanganaRanaut. They are termites, leeches and wasps rolled into one. Right time for someone as feisty as Kangana to be on Social Media. https://t.co/m7AR7QW9eX
— Sanjay Dixit ಸಂಜಯ್ ದೀಕ್ಷಿತ್ संजय दीक्षित (@Sanjay_Dixit) July 11, 2019
कंगना रनौत के साथ मीडिया ज्यादतियाँ कर रहा है। देश के हर मुद्दों को लेकर उनसे ज़बरदस्ती बयान देने को कहा जाता है और उनके बयान गिरोह विशेष की राय से मिलते जुलते नहीं हैं, इसीलिए उनको निशाना बनाया जाता है। खानदानी सेलेब्स के पैरों पर लोटने वाली मीडिया को एक महिला ने ऐसा आइना दिखाया है कि औपचारिक रूप से एक गिरोह का गठन करने की नौबत आ गई है। शायद यही टाँग खींचने की परम्परा का दुष्परिणाम है कि बॉलीवुड में सुदूर शहरों से आए हुए उतने अभिनेता नहीं हैं जितने खानदानी और नेपोटिज्म से आए अभिनेता-अभिनेत्री हैं। या तो मीडिया अपना रवैया बदले नहीं तो कंगना जैसी और भी आएँगी। अब देश की महिलाएँ जवाब देना जानती हैं, चाहे वो किसी भी क्षेत्र में हों।