मिस्र के फिल्म निर्देशक मोहम्मद दीब (Mohammad diab) की फिल्म ‘अमीरा’ (Amira) ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूम मचा रखी है। दर्शक इसे खूब पसंद कर रहे हैं, लेकिन फिलिस्तीन (palastine) में इस फिल्म का जबर्दस्त विरोध किया जा रहा है। फिलिस्तीनियों ने इस फिल्म को इजरायल (israel) की जेलों में बंद उसके कैदियों का अपमान बताया है। भारी विरोध के बाद ऑस्कर के लिए भेजी गई इस फिल्म को जॉर्डन (Jorden) ने वापस ले लिया है।
यह फिल्म 17 साल की काल्पनिक फिलिस्तीनी लड़की ‘अमीरा’ (Amira) की कहानी पर आधारित है। अमीरा का पिता इजरायल की जेल में बंद है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि फिलिस्तीनी कैदी अपने शुक्राणु (Sperm) को स्मगल करके जेल से बाहर भेजवाते थे और उससे उनकी पत्नियाँ गर्भधारण करती थीं। ऐसी ही ‘शुक्राणु तस्करी’ से अमीरा का जन्म हुआ था। बाद में अमीरा को पता चलता है कि जिस कैदी को वह अपना जैविक पिता समझती है, वास्तव में वो ‘नपुंसक’ है। उसका जन्म तो इजरायल की जेल के जेलर के वीर्य (Sperm) से हुआ है।
दूसरी तरफ, फिलिस्तीनी कैदी समर्थक समूह का कहना है कि बीते 10 साल में इस तरह से फिलिस्तीन में करीब 100 बच्चों का जन्म हुआ है। फिलिस्तीनी कैदी सहायता समूह के मुताबिक, वर्तमान में इजरायल की जेलों में करीबी 4,500 फिलिस्तीनी कैदी बंद हैं। इन सभी को इजरायल के नागरिक और सैन्य ठिकानों पर आतंकी हमले के आरोप में कैद किया गया है। वहीं, फिलिस्तीनी सरकार इन कैदियों को इजरायल के कब्जे के खिलाफ लड़ना वाला स्वतंत्रता सेनानी बताती है।
अमीरा को लेकर फिलिस्तीन के संस्कृति मंत्रालय (Culture ministry) ने कहा है कि यह फिल्म कैदियों की गरिमा, उनकी वीरता और महान संघर्ष का मजाक उड़ाती है। फिलिस्तीन स्थित आतंकी संगठन हमास (Hamas) ने इसे आक्रामक करार दिया है। स्मगल किए गए शुक्राणु से बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं में से एक उम मुहन्नद अल जेबेन ने बताया कि फिल्म में इजरायल की कहानी को प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है, जबकि इसमें फिलिस्तीन के संघर्ष को कम दिखाया गया।
दो पुरस्कार जीतकर भी फिल्म को वापस लेना पड़ा
फिल्म का प्रीमियर सितंबर में वेनिस (Venis) के बिएननेल में हुआ था, जहाँ इसने दो पुरस्कार जीते थे। लेकिन फिलिस्तीनियों के विरोध के आगे इसे वापस लेना पड़ा। जॉर्डन के रॉयल फिल्म आयोग ने 2022 अकादमी पुरस्कार के नामांकन से इस फिल्म को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि वह फिल्म के कलात्मक मूल्यों का सम्मान करती है। आयोग का यह भी मानना है कि फिल्म में कैदियों की दुर्दशा और प्रतिरोध के साथ-साथ कब्जे के बावजूद एक सम्मानजनक जीवन के लिए उनकी इच्छा को उजागर किया गया है।
गौरतलब है कि इस फिल्म को जॉर्डन, फिलिस्तीन और मिस्र ने मिलकर बनाया है। फिल्म के निर्देशक मोहम्मद दीब मिस्र के रहने वाले हैं और उनकी शिक्षा अमेरिका के न्यूयॉर्क में हुई है। उन्होंने फिल्म का बचाव किया, लेकिन यह भी कहा कि स्क्रीनिंग तब तक बंद रहेगी, जब तक कि कैदियों और उनके परिवारों की एक ‘विशेष समिति’ फिल्म देखकर अपनी राय नहीं देती।