मूल रूप से तेलुगू भाषा की एक फिल्म, जो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बोली जाती है। फिल्म का थीम हैं भगवान श्रीकृष्ण और द्वारका। द्वारका गुजरात में है। फिल्म की कहानी का एक हिस्सा उत्तर प्रदेश के मथुरा में पहुँचता है। फिर इसके कुछ अहम दृश्य हिमाचल प्रदेश में दिखाए गए हैं। यही है ‘कार्तिकेय 2’ की खूबसूरती, जो भारत की विविधता और भौगोलिक सुंदरता को अपने साथ लिए चलता है। ये फिल्म नहीं, एक अनुभव है।
एक बड़े मीडिया संस्थान ने अपनी समीक्षा में लिखा कि फिल्म में ‘Too Much Of Shri Krishna’ है। हाँ, मैं इस बात से सहमत हूँ। लेकिन, इसमें गलत क्या है? क्या आपने कभी पूछा कि ‘Dune (2021)’ फिल्म में ‘Too Much Of Spices’ क्यों है, या फिर ‘Lord Of The Rings’ फिल्म सीरीज में ‘Too Much Of Ring’ क्यों है? अथवा, आपने तो ये भी नहीं पूछा कि ‘PK’ में ‘Too Much Of Hinduphobia’ क्यों है। फिर अब ऐसा सवाल क्यों?
‘कार्तिकेय 2’ की शुरुआत होती है महाभारत की एक कहानी से, भगवान श्रीकृष्ण के युग से। हम आपको फिल्म की कहानी नहीं बताएँगे, लेकिन इतना जान लीजिए कि जिस तरह से निर्देशक चंदू मोंडेती ने द्वापर और अभी के समय को एक कहानी के जरिए जोड़ा है, वो काबिले तारीफ़ है। प्राचीन काल के वर्णन को एनीमेशन के जरिए समझाया गया है। ‘कार्तिकेय’ सीरीज की यही पहचान भी रही है, पार्ट-1 में भी एनीमेशन के जरिए कुछ चीजें बताई गई थीं।
आज की युवा पीढ़ी को ये फिल्म इसीलिए देखनी चाहिए, क्योंकि उन्हें मनोरंजन के साथ-साथ अपने इतिहास का ज्ञान भी मिलेगा। उन्हें इसीलिए देखनी चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें समुद्र में डूबी द्वारका नगरी से लेकर द्वापर युग में वर्णित कुछ कथाओं की भी जानकारी मिलेगी। सामानांतर में सब चलते रहते हैं और सब आपस में जुड़े रहते हैं। कहानी को ज्यादा पेंचीदा नहीं बनाया गया है, एक लय में रखा गया है। किरदारों को जिस तरह से लिखा गया है, वो रोचक है।
फिल्म में अगर अभिनय की बात करें तो निखिल सिद्धार्थ एक अभिनेता के रूप में लगातार परिपक्व होते जा रहे हैं। वो पहले से ही अलग तरह की थीम चुनने के लिए जाने जाते हैं। ‘Ekkadiki (2016)’ हो या ‘Swamy Ra Ra (2013)’, ये फ़िल्में अपने साथ एक अलग तरह का प्रयोग साथ लाती रही हैं। निखिल सिद्धार्थ की स्क्रीन प्रेजेंस फिल्म में दमदार रखी गई है, जिसके वो हकदार भी हैं। हर दृश्य में वो आपको दिख ही जाएँगे और वो बोर भी नहीं करते।
हाँ, फिल्म के कुछ दृश्य जरूर लंबे खिंच गए हैं ये फिर उन्हें और बेहतर बनाया जा सकता था, लेकिन ‘कार्तिकेय 2’ को एक अच्छी फिल्म बताने से नहीं रोक सकती। कुछ दृश्य ऐसे हैं, जो आपके रोंगटे खड़े कर देंगे। डायलॉग ही ऐसा करने के लिए काफी हैं। अभिनेत्री अनुपमा परमेश्वरन का कुछ खास किरदार है नहीं। विलेन के रूप में शांतनु हैं और एक अभीर का किरदार है, जो खासा डराता है। साँप ‘कार्तिकेय’ सीरीज की USPs में से एक है, उसका जगह-जगह बखूबी इस्तेमाल किया गया है।
अभिनय की जब बात हो रही है तो एक व्यक्ति की चर्चा महत्वपूर्ण हो जाती है, जिन्होंने कुछ ही मिनटों के लिए फिल्म में आकर एक ऐसा समाँ बाँध दिया, जो उनके 40 साल के फ़िल्मी करियर को एकदम जायज साबित करता है। मैं बात कर रहा हूँ अनुपम खेर की, जो निर्माता अभिषेक अग्रवाल की पिछली फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में भी थे और रवि तेजा अभिनीत उनकी अगली पैन-इंडिया फिल्म ‘टाइगर नागेश्वर राव’ में भी हैं।
‘कार्तिकेय 2’ में उनका कैमियो और भगवान श्रीकृष्ण को परिभाषित करते हुए उनके एक-एक शब्दों को देख कर कभी-कभी लगता है ये किरदार नहीं, वास्तविक अनुपम खेर बोल रहे हैं। श्रीकृष्ण में श्रद्धा और भक्ति के बिना कोई व्यक्ति इस किरदार को नहीं निभा सकता था, इतना तो तय है। फिल्म में सुलेमान के किरदार में एक ‘अच्छा मुसलमान’ भी है। ये बॉलीवुड की USP रही है,हिन्दू-मुस्लिम एकता दिखाने के लिए और मुस्लिमों के महिमामंडन के लिए।
लेकिन, निर्देशक ने इस किरदार का बिलकुल सही उपयोग किया है और ये बॉलीवुड से अलग है। सुलेमान के सामने ही अधिकतर घटनाएँ घटित होती हैं और श्रीकृष्ण की खोज की इस यात्रा का वो साक्षी होता है, मदद करता है, जगह-जगह अचंभित होता है। जब फिल्म का सन्देश है कि रामायण और महाभारत हमारे लिए मिथक नहीं इतिहास हैं, तो ये संपूर्ण भारतवासियों के लिए है, हिन्दू हो या मुस्लिम। प्राचीन काल के धुरंधर हमारे पूर्वज थे, हम सबके।
‘कार्तिकेय 2’ को एक मिस्ट्री-थ्रिलर से ज्यादा एडवेंचर की कैटेगरी में रख सकते हैं। गवर्द्धन की पहाड़ियाँ, द्वारका की गलियाँ, बुंदेलखंड का रेगिस्तान और हिमाचल की नदी – ये फिल्म एक तरह से भारत की विविधता में एकता का परिचायक है। अध्यात्म और अन्धविश्वास को अलग कर के देखने का सन्देश इसमें निहित है, लेकिन ये कार्य हिन्दू धर्म को नीचा दिखाए बिना ही किया गया है। हमारे पुरातन ऋषि-मुनि वैज्ञानिक थे, हमारा अध्यात्म, आज का विज्ञान से कम नहीं है – ये सन्देश निहित है।
Karthikeya 2 has “too much Sri Krishna references”, but “Hinduism fervour” may make it a hit despite being no fun, said India Today review after public anger made them tweak the headline pic.twitter.com/3Hg9LYgkTN
— Gems of Bollywood (@GemsOfBollywood) August 18, 2022
अंत में, इस फिल्म को 37 वर्षीय निखिल सिद्धार्थ के अभिनय के लिए देखा जाना चाहिए जिनमें अगला पैन-इंडिया स्टार बनने की पूरी संभावनाएँ हैं। इसे निर्माता अभिषेक अग्रवाल के लिए देखा जाना चाहिए, जो सनातनी कंटेंट्स में अपना वित्त लगा कर उन्हें आगे बढ़ा रहे हैं। इस फिल्म को भगवान श्रीकृष्ण और महाभारत की कथाओं को नए रूप में जानने के लिए देखा जाना चाहिए। इसे देखा जाना चाहिए इसकी उम्दा सिनेमैटोग्राफी के लिए। काल भैरव का बैकग्राउंड म्यूजिक शानदार है और दृश्यों के साथ तारतम्य में है। इसका अनुभव लेने के लिए भी इसे देखें।
‘कार्तिकेय 3’ जब भी आएगी, वो एक पैन-इंडिया फिल्म होगी – इसे इस फ्रैंचाइजी की दूसरी फिल्म ने ही सुनिश्चित कर दिया गया। तभी आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा’ और अक्षय कुमार की ‘रक्षा बंधन’ के फ्लॉप होने के बावजूद ये फिल्म टिकी हुई है और हिंदी बेल्ट में इसकी स्क्रीन्स की संख्या बढ़ाई जा रही है। कलेक्शंस भी बढ़ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी सफलता ये होगी कि इस तरह की थीम पर और भी फ़िल्में बनें। जन्माष्टमी पर ‘कार्तिकेय 2’ देखने का अनुभव अच्छा रहेगा।